बुधवार, 19 नवंबर 2008

''बाल साहित्य समीक्षा'' की भाव-भूमि पर कृष्ण कुमार यादव

बहुत कम ही लोगों को अल्पायु में पत्रिकाओं द्वारा व्यक्तित्व-कृतित्व पर विशेषांक प्रकाशित किये जाने का सौभाग्य मिलता है। कृष्ण कुमार यादव उनमें से एक हैं. कानपुर से प्रसिद्ध बाल साहित्यकार डा. राष्ट्रबंधु ने '' बाल साहित्य समीक्षा '' का सितम्बर-०८ अंक '' प्रशासन और साहित्य के नाविक '' शीर्षक से युवा साहित्यकार कृष्ण कुमार यादव पर जारी किया है। आवरण पृष्ठ पर कृष्ण कुमार यादव के मनमोहक चित्र से सुसज्जित बाल साहित्य समीक्षा का यह अंक अपने 32 पृष्ठीय लघु कलेवर में उनकी बहुमुखी प्रतिभा वाले समग्र व्यक्तित्व और कृतित्व को उदघाटित करता है। उनकी बाल कविताओं पर इस अद्भुत विशेषांक में कुल पाँच मूल्यांकनपरक लेख शामिल हैं।

‘‘विलक्षण प्रतिभा के धनी‘‘ शीर्षक से प्रस्तुत लेख कृष्ण कुमार के व्यक्तित्व को जीवन के तमाम सोपानों से गुजारते हुए पाठको के सम्मुख रखता है। ‘‘बाल मन को सहेजती कविताएं‘‘ में डाॅ0 विद्याभाष्कर वाजपेयी लिखते हैं कि, कृष्ण कुमार की बाल कविताएं सिर्फ कागजी तीर नहीं हैं, बल्कि वास्तविकता की भावभूमि पर खड़ी हैं, तो ‘‘बाल मन की झांकी प्रतिबिम्बित करती बाल कविताएं‘‘ में कृपा शंकर यादव के मत में कृष्ण कुमार की बाल कविताओं की एक अनूठी विशेषता है, जहाँ मजे-मजे में वे समकालीन समाज से जुड़े कुछ गूढ़ प्रश्नों और अन्तर्विरोधों पर लेखनी चलाने के बहाने बाल मन से खिलवाड़ करने वाली भावनाओं पर भी निशाना साधते हैं। कृष्ण कुमार की बाल कवितायें समकालीन सरोकारों के साथ बाल मनोविज्ञान को जिस प्रकार प्रस्तुत करने में पूर्णतया सक्षम दिखती हैं, उस पर डाॅ0 अवधेश ने बखूबी लिखा है। जितेन्द्र ‘जौहर‘ कृष्ण कुमार की रचनाधर्मिता के सभी पहलुओं को समेटते हुए उन्हें ‘‘विविध दायित्वों के गोवर्धन-धारक‘‘ रूप में देखते हैं।

वरिष्ठ बाल साहित्यकार सूर्य कुमार पाण्डेय ने कृष्ण कुमार की कविताओं पर लिखने के बहाने बाल-विमर्श की उपेक्षा पर भी सवाल उठाये हैं। उनके शब्दों में ही- ‘‘आज की कविता में दलित और महिला विमर्श को नारे की तरह उछाला गया, जन चेतना में इसके महत्व को नकारा भी नहीं जा सकता, किन्तु एक अनछुआ पहलू है, बाल-विमर्श। इस देश की आधी से कुछ कम आबादी बच्चों की है। उनके शोषण, उत्पीड़न की तमाम चिंताओं के बीच हस्तक्षेप करती हुई बाल-विमर्श की कम कविताएँ ही नजर आती हैं। आज के बदलते समय, समाज और बच्चों की चिन्ता वह जरूरी पहलू हंै, जिस पर कृष्ण कुमार यादव की दृष्टि गई है।‘‘ डाॅ0 विनय शर्मा ने बाल साहित्य एवं इसके सरोकारों पर कृष्ण कुमार यादव का एक साक्षात्कार भी प्रस्तुत किया है, जिसमें श्री यादव ने बाल साहित्य को रोचक बनाने हेतु अंधविश्वास व पलायनवादी दृष्टिकोण पर आधारित साहित्य की बजाय रोचक ढंग से ऐसे उद्देश्यमूलक साहित्य के सृजन की जरूरत की बात कही है, जो बच्चों को बाँध सके।कुल मिलाकर पत्रिका का यह अंक अपने सामाजिक-साहित्यिक दायित्वों की अनुपम ढंग से न सिर्फ पूर्ति करता है बल्कि कई नए मानदंड भी स्थापित करता है।
संपर्क: डा. राष्ट्रबंधु, १०९/३०९ आर.के. नगर, कानपुर
समीक्षक: जवाहरलाल ‘जलज‘, शंकर नगर- बांदा (उ0प्र0)

10 टिप्‍पणियां:

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

बहुत कम ही लोगों को अल्पायु में पत्रिकाओं द्वारा व्यक्तित्व-कृतित्व पर विशेषांक प्रकाशित किये जाने का सौभाग्य मिलता है। कृष्ण कुमार यादव उनमें से एक हैं.........इस हेतु ढेरों बधाई !!

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

Congts to KK Yadav for this sp. issue.

बेनामी ने कहा…

बाल कवितायेँ पढना मुझे अच्छा लगता है. कभी के.के. जी की बाल-कवितायेँ भी पढना चाहूँगा.

Akanksha Yadav ने कहा…

वरिष्ठ बाल साहित्यकार सूर्य कुमार पाण्डेय लिखते हैं कि- ‘‘आज की कविता में दलित और महिला विमर्श को नारे की तरह उछाला गया, जन चेतना में इसके महत्व को नकारा भी नहीं जा सकता, किन्तु एक अनछुआ पहलू है, बाल-विमर्श। इस देश की आधी से कुछ कम आबादी बच्चों की है। उनके शोषण, उत्पीड़न की तमाम चिंताओं के बीच हस्तक्षेप करती हुई बाल-विमर्श की कम कविताएँ ही नजर आती हैं। आज के बदलते समय, समाज और बच्चों की चिन्ता वह जरूरी पहलू हंै, जिस पर कृष्ण कुमार यादव की दृष्टि गई है।‘‘.....bada satik vishleshan hai.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

युवा प्रशासक और साहित्यकार कृष्ण कुमार यादव विशेष बधाई के पात्र हैं कि उन पर इतनी अल्पायु में ही साहित्यिक पत्रिकाएं विशेषांक जारी कर रही हैं....बधाई.

www.dakbabu.blogspot.com ने कहा…

डाक सेवा के इतने वरिष्ठ अधिकारी के बारे में सुनकर बांछे खिल गयीं.

Unknown ने कहा…

कृष्ण कुमार की बाल कवितायें समकालीन सरोकारों के साथ बाल मनोविज्ञान को प्रस्तुत करने में पूर्णतया सक्षम दिखती हैं...SAHI VISHLESHAN.

Unknown ने कहा…

राष्ट्रबंधु जी को प्रतिभाएं ढूढने में कठिनाई नहीं होती, इसका एक उदहारण यह विशेषांक है.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

Belated wishes of merry x-mas.

Bhanwar Singh ने कहा…

Bas yun hi age badhte rahen.