रविवार, 15 फ़रवरी 2009

एशिया की प्रथम महिला ट्रेन ड्राइवर: सुरेखा यादव

आज महिलाएं हर क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रहीं हैं। राजनीति, प्रशासन, साहित्य, कला, उद्योग, मीडिया हर क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। कुछ कार्य ऐसे भी हैं, जिन्हें प्रारम्भ में महिलाओं के योग्य नहीं समझा गया। पर अपने कौशल की बदौलत महिलाएं आज उन क्षेत्रों में भी सफलता के परचम फहरा रहीं हैं। उन्हीं में एक हैं- भारत की प्रथम महिला ट्रेन चालक सुरेखा(भोंसले)यादव। महाराष्ट्र के सतारा जिले में एक किसान परिवार में जन्मीं सुरेखा ने विद्युत अभियांत्रिकी में पत्रोपाधि पाठ्यक्रम 1986 में पूरा किया। रोजगार के विज्ञापन देखते हुए एक दिन उनकी निगाह रेलवे के सहायक इंजन ड्राइवर की रिक्ति पर पड़ी, जिसके लिए न्यूनतम योग्यता विद्युत अभियांत्रिकी में पत्रोपाधि थी। बस फिर क्या था, सुरेखा ने आवेदन कर दिया। सफलता पश्चात तीन वर्षों तक उन्हें विभिन्न परीक्षणों के दौर से गुजरना पड़ा। फिर अन्ततः जब नियुक्ति मिली तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा, आखिर वह ट्रेन का इंजन चलाने वाली देश की ही नहीं बल्कि एशिया महादीप की प्रथम महिला ड्राइवर बन चुकी थीं। प्रारम्भ में कुछ समस्याएं अवश्य आईं परन्तु आत्मविश्वास ने उन्हें आगे बढ़ाया। उनके साथी पुरूषों ने इस काम के खतरों की बात की लेकिन उनका निश्चय देखकर वे सब उनकी मदद करने लगे। इस तरह सुरेखा की गाड़ी पटरी पर दौड़ने लगी।

सुरेखा के इस काम से उनके पारिवारिक जीवन पर भी असर पड़ा है। उनके काम के घंटे तो अनिश्चित हैं ही, पुलिस विभाग में काम कर रहे पति के काम का समय भी निश्चित नहीं है। लेकिन बच्चे और पति उन्हें पूरा सहयोग देते हैं। उनके बच्चों के स्कूल ने उन अभिभावकों को सम्मानित करने का आयोजन किया जो विशिष्ट कार्य कर रहे हों। बच्चों ने उनका नाम दे दिया। मंच पर जब वह सम्मानित हो रही थीं तो बच्चे जोरदार तालियाँ बजा रहे थे। वर्ष 2000 में उन्हें उपनगरीय लोकल गाड़ियों का ड्राइवर बनाया गया। पर सुरेखा की मंजिलें तो अभी और भी हैं। उन्हें पैसेंजर गाड़ी का ड्राइवर बनना है, फिर घाट पार करने वाले इंजन का ड्राइवर और फिर लंबी दूरी वाले मेल और एक्सप्रेस का ड्राइवर। सुरेखा को अपने कौशल पर पूर्ण विश्वास है और निश्चिततः ट्रेन की गति के साथ-साथ उनके जीवन की गाड़ी भी अपनी पटरी पर सरपट दौड़ती रहेगी।

शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009

अब गोमूत्र से बनेगी कोल्ड ड्रिंक

पहली नज़र में यह पढ़कर मुझे अजीब लगा कि जल्द ही गोमूत्र से बनने वाली कोल्ड ड्रिंक बाजार में उतरने वाली है। सबसे बड़ी बात है कि अन्य शीतल पेयों की तरह इसमें किसी तरह के रसायनों का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। वैसे भी आज हर चीज में मिलावट आम बात हो गई है। खाने से लेकर दैनिक उपयोग की हर चीज में भी विभिन्न रसायनों को मिलाया जा रहा है। ऐसे में लोगों का रूझान प्राकृतिक चीजों की तरफ बढ़ता जा रहा है। गोमूत्र और गोबर से भी दैनिक उपयोग की कई वस्तुओं का निर्माण किया जा रहा है। गोबर से मोस्कीटो क्वायल, डिस्टेंपर, नहाने का साबुन, फेस पाउडर, धूप स्टिक, हवन वाला बिस्कुट, पूजन लेप, गोमय कंडे मूर्तियाँ, गमले, दंत मंजन, अच्छी क्वालिटी का कागज, पानी, आग, ध्वनिरोधी और रेडिएशन मुक्त टाइल्स, नालीदार चादरें और जमीन पर बिछाने वाली चटाईयाँ बनाई जा रही हैं। गोमूलत्र का उपयोग भी फिनायल, नील, हैंडवाश, आटर शेव लोशन, बाम और कई अन्य दवाईयों को बनाने में किया जा रहा है। वैज्ञानिक आधार पर भी यह सिद्ध हो चुका है कि गोबर और गोमूत्र का उपयोग पूर्णतः सुरक्षित है। इसी कड़ी में अब जल्द ही गोमूत्र से बनी कोल्ड ड्रिंक भी बाजार में उपलब्ध होगी। वर्तमान में गौरक्षा विभाग की कानपुर गौशाला में कोल्ड ड्रिंक बनाई जा रही है। नागपुर और त्रिपुरा में भी जल्द ही इसका निर्माण कार्य शुरू किया जाएगा। सो अब कोक और पेप्सी को भूल जाइए। कोल्ड ड्रिंक पीते वक्त रसायनों से डरने की भी जरूरत नहीं है।

शनिवार, 7 फ़रवरी 2009

टैब्लाइड आकार में प्रथम साहित्यिक पत्रिका ‘प्रगतिशील आकल्प‘ के संपादक:डा0 शोभनाथ यादव

समकालीन प्रसिद्ध कवि, साहित्यकार एवं संपादक डाo शोभनाथ यादव पिछले पांच दशकों से रचना-कर्म में सक्रिय हैं। 14 जून 1937 को जौनपुर में जन्में डाo यादव (एम.ए., बीएड., पी.एच.डी) टैब्लाइड आकार में देश की प्रथम साहित्यिक पत्रिका ‘प्रगतिशील आकल्प‘ का पिछले 8 वर्षों से कुशल सम्पादन कर रहे हैं। श्रीमती एम.एम.के. काॅलेज, बान्द्रा (पश्चिम), मुंबई में पूर्व रीडर एवं अध्यक्ष, हिन्दी विभाग रहे डाo यादव ‘आकल्प‘ तथा ‘प्रगतिशील आकल्प‘ द्वारा आयोजित महत्वपूर्ण अखिल भारतीय साहित्यिक, सामाजिक एवं राजनीतिक सरोकारों पर बेलाग परिचर्चाओं के आयोजन एवं सम्पादन से सतत जुड़े हुए हैं। देश की प्रायः सभी पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं एवं आपकी कविताओं का अंग्रेजी, रूसी, गुजराती, पंजाबी तथा मराठी में अनुवाद हो चुका है। यूरोप तथा की यात्रा द्वारा अपनी सृजनधर्मिता में वृद्धि करने वाले डाॅ0 यादव विश्व हिन्दी सम्मेलन (न्यूयार्क)-2007 में भी शिरकत कर चुके हैं।
कविता-संग्रहः संभावना (समकालीन भारतीय कविताः संपादन 1970), बियाॅण्ड द साइट (अंग्रेजी में अनूदित कविताएं 1973), कविता (बंबई के प्रतिनिधि कवियों का संपादन 1974), भस्मासुर की भूमिका (1980), ईश्वर आतंकवादी (1991), अग्निमुखी (1993), अनाम त्रिज्याएं (1995), प्रजातंत्र का भोंपू (1996), दहक उठा गुलमोहर (1996), समकालीन कविता-1(1996), बोगनवीलिया के फूल(1997), समकालीन कविता-2 (1997), समकालीन कविता-2000(2000), समकालीन कविता-2002(2002), सूअरबाड़ा (2003), मेरी काव्य-यात्रा (2004), जहां जली है मशाल कोई (2004), प्रतिकार (मराठी रूपांतर 2004), नरकगाथा (प्रबंध-काव्य प्रकाश्य)।
गद्य-कृतियांः थैलसगाथा (प्रयोगात्मक उपन्यास), दरख्तों में सूरज (आत्मोपन्यास), अंतर्यात्रा के साये (रचनात्मक डायरी), खंडहरों के बीच मेरी बेचैनियां (प्रयोगात्मक उपन्यास) प्रकाश्य।
चिंतनः राजनीति, समाज एवं साहित्यः डिसिप्लिन इन डेमोक्रेसी एण्ड सोशलिज्म (अखिल भारतीय अंग्रेजी परिचर्चा एवं संपादन 1976), राजनीति बनाम साहित्य (अखिल भारतीय परिचर्चा एवं संपादन 1978), बर्तोल्त ब्रेख्त (1998)।
आलोचनाः कवयित्री महादेवी वर्मा (शोध-प्रबंध 1970)
संपादनः आकल्प (1976 से 2000 तक), इंद्रधनुष (1980), महाश्वेता (1996), महाराष्ट्र हिन्दी परिषद् विशेषांक (1997), समाजवादी जागरण (1999), प्रगतिशील आकल्प (2001 से नियमित पत्रिका), रामदरश मिश्रः सृजन-सम्मान अंक (2004)।
डाॅ. शोभनाथ यादव पर अन्य रचनाकारों की पुस्तकेंः डाॅ. शोभनाथ यादवः व्यक्तित्व एवं कृतित्व (2004)- डाॅ. रीना सिंह द्वारा पी-एच.डी. उपाधि हेतु शोध-प्रबंध प्रकाशित, प्रगतिशील आकल्प द्वारा प्रकाशित ‘समकालीन कविता-2002‘ पर आगरा से गरिमा अग्रवाल द्वारा एम.फिल. उपाधि। शोभनाथ यादव के काव्य में प्रगति-चेतना पर पी.एच.डी. शोध-कार्य जारी, शोभनाथ यादव की जनधर्मी कविताएं (संपादक-डाॅ. करूणाशंकर उपाध्याय), शोभनाथ यादव के काव्य में आधुनिकता (अमित कुमार सिंह द्वारा पी.एच.डी. शोध-कार्य), शोभनाथ यादव के काव्य में संवदेना (श्रीमती कल्पना जैन द्वारा एम.फिल. शोध-कार्य), शोभनाथ यादव की साहित्यिक पत्रकारिता (गुलाबचंद यादव द्वारा एम.फिल. शोध-कार्य)।
पुरस्कार/सम्मानः महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी पुरस्कार (1998), महाराष्ट्र हिन्दी परिषद् सारस्वत -सम्मान (1997), अंतराष्ट्रीय आर्यभट्ट प्रतिष्ठान सारस्वत-सम्मान (1997), ‘अभियान‘ उत्तर प्रदेश साहित्य-सम्मान (1999), डाॅ. शोभनाथ यादव सृजन-वर्ष (1996-97), निराला काव्य-सम्मान (2003), साहित्य गौरव सम्मान (जयहिंद फाउंडेशन-2004), उ0प्र0 हिन्दी संस्थान का एक लाख रूपये का राष्ट्रीय पुरस्कार (2006) आदि।
संपर्कः संपादकः ‘प्रगतिशील आकल्प‘, पंकज क्लासेस, जोगेश्वरी (पूर्व),
मुंबई-400060 (मो0-09969580809)