लोकसभा और विधान सभा चुनावों के दौरान हर मतदाता के बाएं हाथ की तर्जनी के नाखून पर एक स्याही लगाई जाती है, जो इस बात का प्रतीक होता है कि वह अपना मत दे चुका है। स्याही का यह निशान भारतीय लोकतंत्र की एक अनुपम पहचान बन चुका है। जब हम लोग छोटे-छोटे थे तो इस स्याही के प्रति काफी क्रेज था। इस स्याही को येन-केन-प्रकरेण मिटाना हम लोगो का शगल होता था पर ये मिटने का नाम नहीं लेती थी। तब न तो लोकतंत्र की परिभाषा पता थी और न ही चुनाव का मतलब। पूरी मित्र मण्डली के साथ जाकर अपना वोट दे आते थे और फिर उधर से विभिन्न राजनैतिक दलों के पम्फलेट्स इत्यादि बटोर कर लाते थे। वक्त के साथ जैसे-जैसे किताबी ज्ञान बढ़ा, वैसे-वैसे राजनीति की बारीकियाँ एवं चुनाव की महिमा भी समझ में आती गई। आज के चुनाव पहले के चुनावों जैसे नहीं रहे। जिस प्रकार पर्यावरण में प्रदूषण फैलता गया वैसे ही चुनाव भी प्रदूषित होते गये। जाति-धर्म-धन-गुण्डई जैसे तत्व प्रत्याशियों के लिए आम बात हो गये। इसके बावजूद लोकतंत्र की महिमा कम नहीं हुई और हर बार हम यह सोच कर वोट दे आते हैं कि शायद इससे अगली बार कुछ आमूल चूल परिवर्तन होंगे। इस सकारात्मक दृष्टिकोण पर ही लोकतंत्र का भविष्य टिका हुआ है।
फिलहाल हम बात कर रहे थे वोट के दौरान बाएं हाथ की तर्जनी के नाखून पर लगाई जाने वाली स्याही की। इस चुनावी स्याही के उत्पादन का श्रेय कर्नाटक के प्रसाद नगर स्थित मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड (एमपीवीएल) को जाता है। आजादी के बाद दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में फर्जी मतदान रोकने के लिए स्याही लगाने का फैसला किया गया। मैसूर के पूर्व महाराजा नलवाड़ी कृष्णराजे वाडेयार और प्रसिद्ध इंजीनियर भारतरत्न सर मोक्षगंुडम विश्वेश्वरैया ने यह कंपनी बनाने का सपना देखा था। उनके प्रयासों से 1937 में इस कंपनी की स्थापना की गई और आजादी के बाद 1947 में इसे सार्वजनिक उपक्रम में बदल दिया गया। आज भी इस स्याही के उत्पादन का अधिकार केवल मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड के पास है।
यह चुनावी स्याही एक अलोप्य स्याही है, जो उंगली पर लगने के बाद एक मिनट में सूखती है। सूखने के बाद उंगली पर ऐसे चिपकती है कि लाख प्रयास कर लीजिए, कई महीनों तक छूटने का नाम ही नहीं लेती। इसे किसी रसायन, साबुन या तेल से भी नहीं हटाया जा सकता। वस्तुतः यह स्याही फर्जी मतदान को रोककर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने में महत्वपूर्ण भूमिका चुपचाप अदा करती है। यह स्याही एक मतदाता द्वारा एक ही मत डालने की प्रक्रिया को भी सुनिश्चित करती है। एक फरवरी 2006 से चुनाव आयोग द्वारा मतदाता की उंगली पर इसके लगाने के तरीके में थोड़ा बदलाव किया गया है। अब इसे बांये हाथ की तर्जनी उंगली पर नाखून के निचले किनारे से लेकर ऊपरी किनारे और त्वचा के जोड़ तक एक रेखा के रूप में लगाया जाता है। इससे पहले इस स्याही को नाखून के ऊपरी किनारे और त्वचा के जोड़ पर ही लगाया जाता था। यह बात कम लोगों को ही पता होगी कि अगर कोई व्यक्ति फर्जी तौर पर मतदान करते हुए (प्राक्सी मतदान) पकड़ा गया तो इस स्याही को उसके बांये हाथ की बीच की उंगली पर लगाया जाता है।
आज मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड द्वारा इस स्याही का व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन हो रहा है। पिछले साल सितंबर तक पहले छह महीने में एमपीवीएल से एनआरडीसी को करीब 20 लाख रूपये रायल्टी मिली। शुरू से यह उपक्रम ही इस स्याही की आपूर्ति चुनाव आयोग को करती आ रही है। खास बात तो यह है कि दुनिया के 25 देशों में यह चुनावों के सफल निष्पादन में अपनी भूमिका निभाती है। भारत में बनने वाली इस चुनावी स्याही को लगभग 25 देशों को निर्यात किया जाता है।
Mahila Samman Savings Certificate : Varanasi Region at top in Uttar
Pradesh, 21,000 women invested more than Rs. 1 billion
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Post Office Savings schemes are very popular among public. People have
been investing in these from generation to generation. Postmaster General
of Vara...
16 घंटे पहले
11 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर जानकारी.चुनाव के बहाने तमाम नई-नई जानकारियां छनकर सामने आ रही हैं.
लोकतंत्र अपना रूप भले ही बदल रहा है पर कुछ चीजें कभी नहीं बदलतीं...उनमें ही यह एक स्याही है.
स्याही लगवाई तो कई बार, पर इसके बारे में पहली बार इतने विस्तार से जाना.बहुत खूब...
बेहद रोचक जानकारी.
चुनावी स्याही के निर्माण, विकास और इसकी उपादेयता पर बेहद उम्दा आलेख.
जाति-धर्म-धन-गुण्डई जैसे तत्व प्रत्याशियों के लिए आम बात हो गये। इसके बावजूद लोकतंत्र की महिमा कम नहीं हुई और हर बार हम यह सोच कर वोट दे आते हैं कि शायद इससे अगली बार कुछ आमूल चूल परिवर्तन होंगे। इस सकारात्मक दृष्टिकोण पर ही लोकतंत्र का भविष्य टिका हुआ है।
Bahut sahi likha apne.
अब तो मानना ही पड़ेगा की लोकतंत्र में स्याही बड़े कम की चीज है. फिर वो चाहे किसी के चेहरे पर लगे या अंगुली पर.
अब तो मानना ही पड़ेगा की लोकतंत्र में स्याही बड़े कम की चीज है. फिर वो चाहे किसी के चेहरे पर लगे या अंगुली पर.
ek vistrit jaankari ke liye aapka abhivaadan karti hun......
पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ...अच्छा लगा. आपके आलेख बेहद प्रभावी हैं.
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