रविवार, 18 अक्तूबर 2009

श्री कृष्ण से जुड़ी है गोवर्धन पूजा

दीपवाली के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपक्ष को गोवर्धन पूजा की जाती है। इस पर्व पर गाय के गोबर से गोवर्धन की मानव आकृति बना उसके चारों तरफ गाय, बछडे़ और अन्य पशुओं के साथ बीच में भगवान कृष्ण की आकृति बनाई जाती है। इसी दिन छप्पन प्रकार की सब्जियों द्वारा निर्मित अन्नकूट एवं दही-बेसन की कढ़ी द्वारा गोवर्धन का पूजन एवं भोग लगाया जाता है। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाले भारत में यह पर्व हमें पशुओं मुख्यतः गाय, पहाड़, पेड़-पौधों, ऊर्जा के रूप में गोबर व अन्न की महत्ता बताता हैै। गाय को देवी लक्ष्मी का प्रतीक मानकर लक्ष्मी पूजा के बाद गौ-पूजा की भी अपने देश में परम्परा रही है।
पौराणिक मान्यतानुसार द्वापर काल में अपने बाल्य काल में श्री कृष्ण ने नन्दबाबा, यशोदा मैया व अन्य ब्रजवासियों को बादलों के स्वामी इन्द्र की पूजा करते हुए देखा ताकि इंद्र देवता वर्षा करें और उनकी फसलें लहलहायें व वे सुख-समृद्धि की ओर अग्रसर हों। श्रीकृष्ण ने ग्रामवासियों को समझाया कि वर्षा का जल हमें गोवर्धन पर्वत से प्राप्त होता है न कि इंद्र की कृपा से। इससे सहमत होकर ग्रामवासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा आरम्भ कर दी। श्रीकृष्ण ब्रजवासियांे को इस बात का विश्वास दिलाने के लिए कि गोवर्धन जी उनकी पूजा से प्रसन्न हैं, पर्वत के अंदर प्रवेश कर गए व सारी समाग्रियों को ग्रहण कर लिया और अपने दूसरे स्वरूप मंे ब्रजवासियों के साथ खडे़ होकर कहा-देखो! गोवर्धन देवता प्रसन्न होकर भोग लगा रहे हैं, अतः उन्हें और सामाग्री लाकर चढ़ाएं। इंद्र को जब अपनी पूजा बंद होने की बात पता चली तो उन्हांेने अपने संवर्तक मेघों को आदेश दिया कि वे ब्रज को पूरा डुबो दें। भारी वर्षा से घबराकर जब ब्रजवासी श्रीकृष्ण के पास पहुँचे तो उन्होंनेे उनके दुखों का निवारण करने हेतु अपनी तर्जनी पर पूरे गोवर्धन पर्वत को ही उठा लिया। पूरे सात दिनों तक वर्षा होती रही पर ब्रजवासी गोवर्धन पर्वत के नीचे सुरक्षित पडे़ रहे। सुदर्शन चक्र ने संवर्तक मेघों के जल को सुखा दिया। अंततः पराजित होकर इंद्र श्रीकृष्ण के पास आए और क्षमा मांगी। उस समय सुरभि गाय ने श्रीकृष्ण का दुग्धाभिषेक किया और इस अवसर पर छप्पन भोग का भी आयोजन किया गया। तब से भारतीय संस्कृति में गोवर्धन पूजा और अन्नकूट की परम्परा चली आ रही है।
के.के. यादव

शनिवार, 17 अक्तूबर 2009

गुरुवार, 8 अक्तूबर 2009

इंसानियत को खून से सींचते राम किशोर यादव

अपना खून किसे नहीं प्यारा होता है, पर यदि कोई अपना खून देकर दूसरों की जिंदगी बचाने का प्रयास करे तो इसे एक सकारात्मक कदम ही कहेंगे। ऐसे ही एक शख्स हैं- राम किशोर यादव। नेहरू युवा केन्द्र फैजाबाद के जिला युवा समन्वयक राम किशोर यादव ने वर्ष 2000 में किसी अखबार में खबर पढ़ी कि स्थानीय ब्लडबैंक में कतई रक्त नहीं है। इस घटना ने उनकी संवेदना को इस तरह झकझोरा कि स्वैच्छिक रक्तदान की अलख जगाना उनकी जिन्दगी का मकसद बन गया। इससे प्रेरणा लेकर उन्होंने हर ब्लाक में दस-दस युवाओं की टीमें तैयार कर दीं, जो नियमित रूप से रक्तदान करते हैं। सबसे खास बात यह है कि इस अभियान के लिए उन्हें किसी फंड की जरूरत नही पड़ी।

राम किशोर यादव के इस अथक प्रयास से फैजाबाद जिला अस्पताल का ब्लडबैंक अब प्रदेश के उन ब्लडबैंकों में शुमार किया जाता है, जहां कभी रक्त की कमी नहीं पड़ती। राम किशोर यादव अब तक करीब 1500 यूनिट रक्तदान करवा चुके हैं। उनसे प्रेरित रक्तदाताओं में फैजाबाद में मंडलायुक्त रहे आईएएस अधिकारी अरूण कुमार सिन्हा, डीएम रहे आलोक कुमार, दीपक कुमार, आमोद कुमार, एसएसपी रहे प्रशान्त कुमार तथा कई अन्य प्रशासनिक अधिकरी शामिल हैं। राम किशोर यादव ने फैजाबाद व आसपास के जिलों में करीब दस हजार युवाओं को प्रेरित कर रखा है जो किसी भी वक्त रक्तदान करने को तैयार रहते हैं। उनके रजिस्टर में करीब एक हजार स्वैच्छिक रक्तदाताओं के नाम, पते व ब्लडग्रुप दर्ज है, जिन्हें जरूरत के मुताबिक याद किया जाता है।

राम किशोर यादव की दिलीख्वाहिश है कि उनके अभियान को गति देने के लिए कोई मुख्यमंत्री फैजाबाद तशरीफ लाए, जिन्हें वह उनके वजन बराबर रक्त से तौलना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने चार मुख्यमंत्रियों को पत्र भी लिखे, पर जवाब नहीं आया। खैर, उनका हौसला बरकरार है। वह ऐसी व्यवस्था चाहते हैं, जिससे फैजाबाद जिला अन्य जिलों के ब्लडबैंकों को रक्त की आपूर्ति कर सके। फिलहाल वह लखनऊ के एसजीपीजीआई, चिकित्सा विश्वविद्यालय तथा राम मनोहर लोहिया अस्पताल के साथ समन्वय स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि उनकी अलख दूर-दूर तक रोशनी बिखेर सके।

यदुकुल की तरफ से राम किशोर यादव को शुभकामनायें कि वे अपने नेक कार्य में सफल हों।

मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009

राजपाल यादव ने खरीदी टी-10 गली क्रिकेट टीम

बॉलीवुड के जाने माने हास्य कलाकार राजपाल यादव टी-10 गली क्रिकेट सीजन-2 के लिए कानपुर गली क्रिकेट टीम के मालिक बन गए हैं। 5 अक्टूबर, 2009 को यह घोषणा की गई। राजपाल यादव गली क्रिकेट टीम का मालिक बनने वाले बॉलीवुड के दूसरे कलाकार हैं। उनसे पहले दिव्या दत्ता पिछले महीने लुधियाना गली क्रिकेट टीम की मालकिन बनी थी। राजपाल यादव ने इस मौके पर कहा कि कानपुर में क्रिकेट के प्रतिभावान खिलाड़ियों की कमी नहीं है। उनकी प्रतिभा को देश के समक्ष निखारने की जरूरत है।

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009

राजपाल यादव: दर्शकों के चहेते हास्य कलाकार

करीब डेढ़ सौ फिल्मों में शानदार अभिनय के दम पर 38 वर्षीय राजपाल यादव आज हिंदी सिनेमा की जानी-मानी शख्सियत हैं। रंगमंच पर अभिनय की ठोस बुनियाद के सहारे फिल्मी मनोरंजन दुनिया के सफर पर उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर से निकले राजपाल यादव लगभग हर तरह के किरदार में फिट नजर आते हैं, पहले खलनायकी में सफलता हासिल करने के बाद कॉमेडी में राजपाल यादव अपना लोहा मनवा चुके हैं। कॉमेडी के जरिए वे लोगों के दिलों पर राज कर रहे है। उनके लीड रोल्स की भी खासी चर्चा हुई है। फिल्म अभिनेता ओमपुरी कहते हैं- ''राजपाल यादव में गजब का सेंस ऑफ़ ह्यूमर है। वह कॉमेडी ही नहीं, हर तरह के रोल शिद्दत से कर सकते हैं।'' गाँव से निकलकर मायानगरी मुंबई में अपनी सफलता का सिक्का जमाने वाले राजपाल यादव युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। राजपाल यादव के बारे में सौम्या अपराजिता का एक समीक्षात्मक आलेख यहाँ प्रस्तुत है-

जन्मदिन-1965
जन्मस्थान- कुलरा, उत्तर प्रदेश
कद- 5 फुट 3 इंच
छोटा कद, हंसमुख व्यक्तित्व और जबरदस्त अभिनय राजपाल यादव की पहचान है। बीते कुछ वर्षो में राजपाल ने स्वाभाविक अभिनय प्रतिभा के बल पर दर्शकों के चहेते हास्य कलाकार के रूप में अपनी पहचान बनायी है। आलम तो यह है कि किसी फिल्म में राजपाल यादव की मौजूदगी भी दर्शकों को सिनेमाघरों तक आकर्षित करने की क्षमता रखती है। समकालीन हिन्दी सिनेमा परिप्रेक्ष्य में जहाँ नायक और हास्य कलाकारों के बीच के दूरियां मिट रही हैं वहीं, राजपाल यादव ने हास्य अभिनेता के अस्तित्व को बनाए रखा है। जब मशहूर और दिग्गज निर्देशक प्रियदर्शन के साथ राजपाल काम करते हैं तो उनकी कॉमिक टाइमिंग और भी निखर कर आती है। हंगामा,भूलभूलैया,ढोल,9 चुप चुप के जैसी फिल्मों में निर्देशक-अभिनेता की इस जोड़ी ने मिलकर दर्शकों को खूब हंसाया। हास्य-रस से भरपूर भूमिकाओं के साथ-साथ गंभीर भूमिकाओं में भी राजपाल अपने अभिनय के रंग भरते रहे हैं। मैं मेरी पत्‍‌नी और वो में एक कुंठित पति की भूमिका को उन्होंने जितनी संजीदगी से जीया ,उतनी ही संवेदनशीलता के साथ मौलिक घटना पर आधारित अंडरट्रायल में अपनी पुत्रियों के साथ कुकर्म करने का आरोप झेल रहे एक अपराधी पिता की भूमिका को उन्होंने जीवंत किया। दरअसल, राजपाल यादव उन अभिनेताओं की सूची में शुमार हैं जो हर रस की भूमिकाओं में स्वयं को ढाल कर सिनेप्रेमियों की प्रशंसा बटोरने की क्षमता रखते है। अब, तो राजपाल को आकर्षक व्यक्तित्व वाले नायकों के समकक्ष की भूमिकाएं भी सौंपी जाने लगी हैं। जहां ढोल के चार नायकों में राजपाल यादव एक थे वहीं रामा रामा क्या है ड्रामा में भी उनकी मुख्य भूमिका थी। दरअसल, राजपाल यादव ने यह साबित कर दिया है कि अभिनय प्रतिभा और दर्शकों का मनोरंजन कर सकने की क्षमता ही हिन्दी फिल्मों में किसी कलाकार विशेष की सफलता का आधार होता है न कि मात्र आकर्षक व्यक्तित्व।
करियर की मुख्य फिल्में
2000-जंगल-सिप्पा
2001-प्यार तूने क्या किया-रामपाल यादव
2001-चांदनी बार-इकबाल चमड़ी
2001-यह जिंदगी का सफर-दादा
2002-कोई मेरे दिल से पूछे-राजा नायडू
2002-तुमको न भूल पाएंगे-लल्लन
2002-कंपनी-जोसेफ
2002-लाल सलाम-धत्तू
2002-मैंने दिल तुझको दिया-मुन्ना
2002- चोर मचाए शोर-छोटू
2002-रोड-भंवर सिंह
2003-एक और एक ग्यारह-छोटू
2003-हासिल-छोटकू
2003-हंगामा-राजा
2003-मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूं-राजेश्वर सिंह
2003-कल हो न हो-गुरू
2004-लव इन नेपाल-बंटी गाइड
2004-आन-आप्टे
2004-मुझसे शादी करोगी-राज पुरोहित
2004-टार्जन:द वंडर कार-हवलदार सीताराम
2004-वास्तु शास्त्र-राजपाल
2005-वक्त-लक्ष्मण
2005-क्या कूल हैं हम-उमा शंकर त्रिपाठी
2005-नेताजी सुभाष चंद्र बोस-भगत राम तलवार
2005-पहेली-भोजा
2005-मैंने प्यार क्यों किया?-थापा
2005-जेम्स-टोनी
2005-गरम मसाला-बब्बन
2005-शादी नंबर वन-मिस्टर वाइ
2006-अपना सपना मनी-मनी-माथा प्रसाद
2006-मालामाल विकली-बाज बहादुर
2006-शादी से पहले-शायर कानपुरी
2006-डरना जरूरी है-इंश्योरेंस सेल्समैन
2006-फिर हेरा फेरी-पप्पू
2006-चुप चपु के-बंदया
2006-लेडिज टेलर-चंदर
2006-भागमभाग-गुलाम लखन सिंह
2007-अनवर-गोपीनाथ
2007-अंडरट्रायल-सागर हुसैन
2007-पार्टनर-छोटा डॉन
2007-रामगोपाल वर्मा की आग-रंभाभाई
2007-ढोल-मारू दामदेरे
2007-गो-जगताप तिवारी
2007-भूल भूलैया-छोटे पंडित
2008-रामा रामा क्या है ड्रामा
2008-क्रेजी फोर-गंगाधर
2008-भूतनाथ-एंथोनी
2008-हंसते हंसते-सनी
2008-कहानी गुडि़या की-तौफीक
आने वाली फिल्में- सी कंपनी, बिल्लू बार्बर, बंदा ये बिंदास है।