जाति या समुदाय किसी भी व्यक्ति की बड़ी ताकत होती है। जाति के पक्ष-विपक्ष में कहने वाले बहुत लोग मिलेंगे, पर इसकी सत्ता को कोई नक्कार नहीं सकता। यह एक आदर्श नहीं व्यवहारिकता है। यही कारन है कि जातीय-संगठन भी तेजी से उभरते हैं. सबसे ज्यादा संगठन आपको ब्राह्मणों और कायस्थों के दिखेंगें. ये संगठन जहाँ सामाजिक आधार प्रदान करते हैं, वहीँ कई बार राजनीति में भी अद्भुत गुल खिलाते हैं.
कभी लालू प्रसाद यादव का दायाँ हाथ माने जाने वाले रंजन प्रसाद यादव का जब लालू यादव से मनमुटाव हुआ तो उन्होंने सारा ध्यान "यादव जागरण मंच" को स्थापित करने में लगा दिया। इस मंच ने रंजन यादव को सामाजिक और राजनैतिक ताकत दी, जिसकी बदौलत अंतत: पिछले लोकसभा चुनाव में रंजन यादव जद (यू) के प्रत्याशी रूप में लालू यादव को पाटलिपुत्र से पराजित कर पहली बार लोकसभा पहुँचे. पर यहीं से रंजन यादव के लिए "यादव जागरण मंच" गौड़ हो गया। इस मंच के माध्यम से जब वे लोकसभा पहुँच गए तो इसकी उपेक्षा करने लगे. अंतत: हारकर मंच के लोगों ने रंजन प्रसाद यादव को मंच के संरक्षक पद से मुक्त करने, निलंबित करने और सामाजिक बहिष्कार करने का फैसला किया. मंच के बिहार प्रदेश संयोजक और पूर्व विधायक धर्मेन्द्र प्रसाद जैसे तमाम लोग अब रंजन यादव से खफा हैं.
..दुर्भाग्यवश यादव समाज में यही हो रहा है. यदुवंशी नेता सत्ता में आते ही यादवों कि उपेक्षा करने लगते हैं. मुलायम सिंह ने अमर सिंह को तरजीह दी तो शरद यादव भाजपा के साथ खड़े हो गए. लालू यादव जमीनी हकीकत को भूलकर हवा-हवाई नेता बनने लगे. कभी परिवारवाद तो कभी यादवों की उपेक्षा...वाकई इन सबसे उबरने की जरुरत है. यादव महासभा स्वयं राजनीति का शिकार हो चुकी है. यदुवंशी बुद्धिजीवी और अधिकारियों का इससे कोई नाता नहीं है. सवाल पुन: वही है आखिरकार यदुवंश की उपेक्षा कर ये नेता कहाँ तक जा पाएंगे. जो यादव उन्हें ताकत देते हैं, उन्हें ही सत्ता के मद में चूर बड़े नेता पटकनी देने का प्रयास करते हैं. यदि यादव नेताओं को दीर्घकालीन राजनीति करनी है तो यादवों की गरिमा, अस्मिता को लेकर चलना होगा. यादव किसी की गठरी नहीं हैं कि जहाँ चाहा उपयोग कर लिया. आज कांग्रेस से लेकर बसपा तक अपने परंपरागत वोटबैंक को वापस लेन कि कोशिश कर रहे हैं, ऐसे में यादव नेताओं को भी इस पर मंथन करने की जरुरत है...!!
Mahila Samman Savings Certificate : Varanasi Region at top in Uttar
Pradesh, 21,000 women invested more than Rs. 1 billion
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Post Office Savings schemes are very popular among public. People have
been investing in these from generation to generation. Postmaster General
of Vara...
12 घंटे पहले
6 टिप्पणियां:
सभी राजनेता अपनी राजनैतिक जरुरत के जाति का सहारा लेते है और जातिय भावनाओं का दोहन कर जैसे ही इन्हें सत्ता मिल जाति है ये अपने जातीय समुदाय को भूल जाते है | यही नहीं जब तक हम जाति के नाम पर वोट देते रहेंगे तब तक हर दल किसी न किसी रूप में हमारी जातिय भावनाओं का अपने हित साधन में दोहन करते रहेंगे |चौदह साल तक मुलायम के साथ रहने वाले अमर सिंह को भी पार्टी से निकालने के बाद आज अपना क्षत्रिय समुदाय याद आ रहा और वह भी अभी जमकर क्षत्रियों की जातिय भावना का अपने राजनैतिक हित में दोहन करने में लगा है |
इसलिए यादव बंधुओ जातीयता के बंधन से मुक्त बनो और राष्ट्र का हित सोचो | नहीं तो इसी तरह राजनेताओं द्वारा इस्तेमाल होते रहोगे !!
सही लिखा आपने. हर नेता जाति का इस्तेमाल सत्ता पाने के लिए करता है, फिर भूल जाता है.
दुर्भाग्य से जातिवादी राजनेताओं की यही नियति है.
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"शब्द-शिखर" पर सुप्रीम कोर्ट में भी महिलाओं के लिए आरक्षण
वाकई मंथन की जरुरत है..
यदि यादव नेताओं को दीर्घकालीन राजनीति करनी है तो यादवों की गरिमा, अस्मिता को लेकर चलना होगा. यादव किसी की गठरी नहीं हैं कि जहाँ चाहा उपयोग कर लिया.
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लाजवाब विश्लेषण..बधाई.
जो जैसा करेगा , वैसा भरेगा.
भँवर सिंह यादव
संपादक- यादव साम्राज्य, कानपुर
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