शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

मूल्यों में विश्वास के प्रतीक राजनेता : राम नरेश यादव

उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ राजनेता रामनरेश यादव ने अपना 83वां जन्मदिन सदैव की तरह बड़ी सादगी से मनाया। इस मौके पर भारी संख्या में शुभचिंतकों और समर्थकों ने फूल-मालाएं और गुलदस्ते भेंट कर रामनरेश यादव 'बाबू जी' के दीर्घजीवी होने की कामनाएं कीं। कांग्रेस विधान मंडल दल के नेता प्रमोद तिवारी, कांग्रेस सांसद पीएल पुनिया, पूर्व राज्यपाल माता प्रसाद, कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह, रामकृष्ण द्विवेदी, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सूर्यप्रताप शाही, सिराज मेहंदी सहित अनेक नेता, नौकरशाह और सामाजिक क्षेत्र के लोग भी रामनरेश यादव को जन्मदिन की बधाई देने पहुंचे। दिनभर उन्हें बधाईयां देने आने वालों का तांता लगा रहा। लोगों ने उन्हें फोन पर बधाईयां दीं। सवेरे घर पर सुंदरकाण्ड का पाठ हुआ और शाम को आवास पर ही काव्य गोष्ठी, मुशायरा जैसे विभिन्न कार्यक्रम भी आयोजित किए गए। वक्ताओं ने उनके व्यक्तित्व की लोकगीतों और विचारों के माध्यम से खुले दिल से सराहना करते हुए उनके प्रशासनिक और राजनीतिक जीवन की उपलब्धियों की चर्चा की।

लखनऊ का माल एवेन्यू बड़े-बड़े सत्ताधीशों और राजनेताओं से आबाद है। राजधानी का यह पॉश इलाका ज़हन में आते ही एहसास होता है कि इस अतिविशिष्ट क्षेत्र में हर कोई फाइव स्टार जीवनशैली से समृद्ध है। मेरे एक सहयोगी को वहां जाना था-सो उसके आग्रह पर मैं भी उसके साथ एक मॉल ऐवेन्यू पहुंचा जहां गेंदे के फूलों से सजे गेट के बाहर और भीतर का अत्यंत सादगी भरा नजारा देख मैने खुद से प्रश्न किया कि एक राजनेता और इतनी सादगी? जीहां! यह घर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रामनरेश यादव का था जिनका कि 83 वां जन्मदिन था और उनके प्रशंसक शुभचिंतक, राजनेता रिश्ते-नातेदार सवेरे से ही आ जा रहे थे। बूंदी का लड्डू और एक गिलास पानी लेने के बाद मैं भी जन्मदिन की बधाई देने के लिए आगे बढ़ा। मेरा अभिवादन स्वीकार करते हुए उन्होंने भारी संख्या में मौजूद शुभचिंतकों की फूल मालाओं और गुलदस्तों को सीने से लगाया। राजनेताओं के जन्मदिन और उनकी छोटी-मोटी पार्टियां ही पूरे शहर और रास्तों को सर पर उठा लेती हैं, ये तो फिर भी राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इतने बड़े राजनेता का सादगी से भरा जन्मदिन उन राजनेताओं के लिए बहुत बड़ी नसीहत है जिनका जन्मदिन नोटों की थैलियों और रैलियों में बदल चुका है। रामनरेश यादव जब देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान थे तो वे अपने जन्मदिन या घर में किसी मांगलिक कार्य पर अत्यंत गरीब लोगों के बीच बैठकर अपने जीवन की जनसामान्य के लिए उपयोगिता का आकलन करते थे। आज भी उन्हें वैसा ही देखा जा रहा है।

आजमगढ़ के गांव आंधीपुर (अम्बारी) में एक साधारण किसान परिवार में जन्मे रामनरेश यादव एक शिक्षक और एक अधिवक्ता के रूप में सामाजिक रूप से प्रगति करते हुए आगे चलकर एक ईमानदार और मूल्यों की राजनीति करने वाले आम आदमी के मददगार और एक दिग्गज राजनीतिज्ञ कहलाए। सही मायनों में उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व का कोई मुकाबला नही है उत्तर प्रदेश की राजनीति में दिग्गजों के बीच एक दिग्गज राजनीतिज्ञ का खिताब आज भी उनके पास है, बस फर्क इतना है कि आज के कई बड़े कहलाए जा रहे राजनेता माफियाओं, गुंडों और बदमाशों के नेता/सरगना कहे जाते हैं और रामनरेश यादव एक आम आदमी के और मूल्यों आधारित राजनीति के साथ चलने वाले नेता माने जाते हैं। भीड़ एवं सुरक्षा कर्मियों के घेरे में चौबीस घंटे रहने की महत्वकांक्षा उन पर कभी भी भारी नहीं पड़ सकी। जो लोग रामनरेश यादव के सामाजिक और राजनीतिक जीवन से परिचित हैं वे इन लाइनों से जरूर सहमत होंगे। उद्योगपतियों की तरह अरबपति या खरबपति राजनेता बनने की होड़ में शामिल राजनेताओं से यदि रामनरेश यादव की तुलना की जाए तो सभी जानते हैं कि उन्होंने अकूत दौलत को छोड़कर नैतिक मूल्यों को अपनी पूंजी बनाया है वे अन्य नेताओं की तरह धनसंपदा के पीछे नही भागे, यही कारण है कि अपने राजनीतिक जीवन में वे कई बार उपेक्षा के शिकार भी हुए हैं। कहने वाले कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास जो कद्दावर नेता हैं या जिन्हें वज़नदार नेता कहा जाता है उनमें रामनरेश यादव का पड़ला काफी भारी है।

चकाचौंध भरे राजनेताओं के घरों पर ऐसे मौको पर जो प्रायोजित हलचल देखी जाती है वह यहां हमेशा सादगी के रूप में देखी गई है। उनसे मिलने आने वालों में जो लोग हैं रामनरेश यादव उनसे आत्मीयता और सम्मान से मिलते हैं और जैसा कि हर राजनेता के साथ होता है- जिस आगुंतक के प्रति पहले से जो भावनाएं रिश्ता एवं लगाव हो वह वहां उतना ही निकटता से प्यार-सम्मान और सौगात पाता है। उनके एक माल ऐवेन्यू पर आज के राजनेताओं जैसी भव्यता का भौंडा प्रदर्शन नहीं है या यह कहिए कि ऐसा जश्न नहीं है जो दूसरों को भीतर से चिढ़ाता हो। पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते उनको यहां एक बंगला आजीवन आवंटित है-उसमें भी उन्होंने कोई ऐसा अतिरिक्त निर्माण नहीं कराया जो शान और शौकत या रौब का एहसास कराता हो। एक लंबे समय से रामनरेश यादव का यह सरकारी बंगला इसी सच्चाई की गवाही देता है। जिन्हें उनका जन्मदिन मालूम है वे सवेरे से ही आ रहे हैं और जलपान के साथ अपने नेता का आशीर्वाद या अभिवादन ले रहे हैं।

रामनरेश यादव का समाजवादी आंदोलन और भारतीय राजनीति में हमेशा विशिष्ट स्थान रहा है। उन्होंने दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और गरीबों के दुख-दर्द को बहुत करीब और गहराई से समझा है, डॉ लोहिया की विचारधारा से प्रेरित होने के नाते उनमें किसी के लिए तनिक भी भेदभाव नहीं दिखाई देता है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी से निकले रामनरेश यादव प्रसिद्ध समाजवादी चिंतक एवं विचारक आचार्य नरेंद्र देव के प्रभाव में रहे हैं। पंडित मदनमोहन मालवीय और भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के भारतीय दर्शन से उनका सामाजिक जीवन काफी प्रभावित है।

अपने 55 वर्ष के राजनीतिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए रामनरेश यादव कहते हैं कि कांग्रेस को छोड़ कोई भी दूसरी पार्टी देश की एकता-अखण्डता, राष्ट्रीय प्रतिबद्धता और जनकल्याण पर ध्यान नहीं दे रही है। उन्होंने इसीलिए राजीव गांधी के नेतृत्व में और कांग्रेस के सिद्धांतों में आस्था व्यक्त करने के पूर्व 12 अप्रैल 1989 को स्वेच्छा से राज्यसभा की सदस्यता के साथ-साथ विभिन्न पदों से त्याग-पत्र देकर कांग्रेस में शामिल होने की घोषणा की थी। वे कहते हैं कि कांग्रेस ही एक ऐसी पार्टी है जो सिद्धांतों में आस्था रखकर देश को अंदर और बाहर समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष लोकतंत्रीय व्यवस्था की संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकती है। उनका कहना है कि देश को एक स्थिर और सक्षम सरकार की जरूरत है जो कांग्रेस ही दे सकती है, खिचड़ी और लंगड़ी सरकार से अब देश का भला होने वाला नहीं है। कांग्रेस के अलावा कोई दूसरा दल नहीं है जो देश को एक मजबूत सरकार दे सके।

साभार : स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

3 टिप्‍पणियां:

Bhanwar Singh ने कहा…

राम नरेश जी के बारे में अच्छी जानकारी...

KK Yadav ने कहा…

रामनरेश यादव का समाजवादी आंदोलन और भारतीय राजनीति में हमेशा विशिष्ट स्थान रहा है। उन्होंने दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और गरीबों के दुख-दर्द को बहुत करीब और गहराई से समझा है, डॉ लोहिया की विचारधारा से प्रेरित होने के नाते उनमें किसी के लिए तनिक भी भेदभाव नहीं दिखाई देता है...रामनरेश जी को देखा तो है, पर पहली बार इतने विस्तार से जाना.

Unknown ने कहा…

...अब तो राजनीति में मूल्य भी बदल गए हैं. तभी तो रामनरेश यादव जैसे लोग उपेक्षित भी हो गए हैं.