सोमवार, 1 अगस्त 2011

‘हंस‘ के 25 साल और हिन्दी साहित्य के ‘द ग्रेट शो मैन‘ राजेन्द्र यादव

यदि भारत में आज हिन्दी साहित्य जगत की लब्धप्रतिष्ठित पत्रिकाओं का नाम लिया जाये तो उनमें शीर्ष पर है-हंस और यदि मूर्धन्य विद्वानों का नाम लिया जाय तो सर्वप्रथम राजेन्द्र यादव का नाम सामने आता है। साहित्य सम्राट प्रेमचंद की विरासत व मूल्यों को जब लोग भुला रहे थे, तब राजेन्द्र यादव ने प्रेमचंद द्वारा 1930 में प्रकाशित पत्रिका ‘हंस’ का पुर्नप्रकाशन आरम्भ करके साहित्यिक मूल्यों को एक नई दिशा दी।

अपने 25 साल पूरे कर चुकी यह पत्रिका अपने अन्दर कहानी, कविता, लेख, संस्मरण, समीक्षा, लघुकथा, गजल इत्यादि सभी विधाओं को उत्कृष्टता के साथ समेटे हुए है। ‘‘मेरी-तेरी उसकी बात‘‘ के तहत प्रस्तुत राजेन्द्र यादव की सम्पादकीय सदैव एक नये विमर्श को खड़ा करती नजर आती है। यह अकेली ऐसी पत्रिका है जिसके सम्पादकीय पर तमाम प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाएं किसी न किसी रूप में बहस करती नजर आती हैं। समकालीन सृजन संदर्भ के अन्तर्गत भारत भारद्वाज द्वारा तमाम चर्चित पुस्तकों एवं पत्र-पत्रिकाओं पर चर्चा, मुख्तसर के अन्तर्गत साहित्य-समाचार तो बात बोलेगी के अन्तर्गत कार्यकारी संपादक संजीव के शब्द पत्रिका को धार देते हैं। साहित्य में अनामंत्रित एवं जिन्होंने मुझे बिगाड़ा जैसे स्तम्भ पत्रिका को और भी लोकप्रियता प्रदान करते है।

कविता से लेखन की शुरूआत करने वाले हंस के सम्पादक राजेन्द्र यादव ने बड़ी बेबाकी से सामन्ती मूल्यों पर प्रहार किया और दलित व नारी विमर्श को हिन्दी साहित्य जगत में चर्चा का मुख्य विषय बनाने का श्रेय भी उनके खाते में है। निश्चिततः यह तत्व हंस पत्रिका में भी उभरकर सामने आता है। आज भी ‘हंस’ पत्रिका में छपना बड़े-बड़े साहित्यकारों की दिली तमन्ना रहती है। न जाने कितनी प्रतिभाओं को इस पत्रिका ने पहचाना, तराशा और सितारा बना दिया, तभी तो इसके संपादक राजेन्द्र यादव को हिन्दी साहित्य का ‘द ग्रेट शो मैन‘ कहा जाता है। निश्चिततः साहित्यिक क्षेत्र में हंस एवं इसके विलक्षण संपादक राजेन्द्र यादव का योगदान अप्रतिम है।

(राजेंद्र यादव के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए क्लिक करें- http://en.wikipedia.org/wiki/Rajendra_Yadav)
संपर्क-राजेन्द्र यादव, अक्षर प्रकाशन प्रा0 लि0, 2/36 अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली

6 टिप्‍पणियां:

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

राजेन्द्र यादव जी को आगरा मे प्र.ले.स.के कार्यक्रम मे सुना है। लेखन के साथ ही उनकी वक्र्त -कला भी उत्तम है। उनके नेक करी के लिए मुबारकवाद।

KK Yadav ने कहा…

हंस के संपादक राजेंद्र यादव जी का हिंदी-साहित्य में योगदान अतुलनीय है. उन पर एक गंभीर पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा.

KK Yadav ने कहा…

हंस के संपादक राजेंद्र यादव जी का हिंदी-साहित्य में योगदान अतुलनीय है.
उन पर एक गंभीर पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा.

Unknown ने कहा…

Really Rajendra Yadav ji Great Show man of Hindi Literature..Nice Post..thanks.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

हंस और राजेंद्र यादव जी के बारे में काफी महत्वपूर्ण जानकारी. आपकी शोधपरक क्षमता को नमन. यदुकुल ब्लॉग ने ने अल्प समय में ही काफी अच्छा काम किया है और नाम भी कमाया है. इससे जुड़े विद्वत-जनों की रचनाधर्मिता का कायल हूँ. शुभकामनाओं सहित.

Meena kharat ने कहा…

एक हिंदी भाषी प्रदेश से अहिंदी भाषी क्षेत्र में आकर अध्यापकीय कार्य करना और उसमें हंस का योगदान निःसंदेह बहुत ही सहायक रहा. शुभकामना सहित.