गुरुवार, 6 सितंबर 2012

प्रगतिशील चेतना के प्रखर कवि : रमाशंकर यादव 'विद्रोही'

उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में जन्मे रमाशंकर यादव 'विद्रोही' प्रगतिशील चेतना के प्रखर कवि रूप में जाने जाते हैं. उनकी रचनाधर्मिता में उनका नाम ‘विद्रोही’ के नाम से विख्यात है। दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्रों के बीच उनकी कविताएँ ख़ासी लोकप्रिय रही हैं। वाम आंदोलन से जुड़ने की ख़्वाहिश और जेएनयू के अंदर के लोकतांत्रिक माहौल ने उन्हें इतना आकृष्ट किया कि वे इसी परिसर के होकर रह गए। उन्होंने इस परिसर में जीवन के 30 से भी अधिक वसंत गुज़ारे हैं। शरीर से कमज़ोर लेकिन मन से सचेत और मज़बूत इस कवि ने अपनी कविताओं को कभी कागज़ पर नहीं उतारा। उनकी कविताओं में कई तो अंधेरे में और राम की शक्ति पूजा की तरह की लंबी कविताएँ हैं। उन्हें अपनी सारी कविताएँ याद है और वे बराबर मौखिक रूप से अपनी कविताओं को छात्रों के बीच सुनाते रहे हैं। ख़ुद को नाज़िम हिकमत, पाब्लो नेरूदा, और कबीर की परंपरा से जोड़ने वाला यह कवि जेएनयू से बाहर की दुनिया के लिए अलक्षित सा रहा है।

अपनी कविता की धुन में छात्र जीवन के बाद भी उन्होंने जेएनयू कैंपस को ही अपना बसेरा माना। वे कहते हैं, "जेएनयू मेरी कर्मस्थली है. मैंने यहाँ के हॉस्टलों में, पहाड़ियों और जंगलों में अपने दिन गुज़ारे हैं।" वे बिना किसी आय के स्रोत के छात्रों के सहयोग से किसी तरह कैंपस के अंदर जीवन बसर करते रहे हैं। अगस्त 2010 में जेएनयू प्रशासन ने अभद्र और आपत्तिजनक भाषा के प्रयोग के आरोप में तीन वर्ष के लिए परिसर में उनके प्रवेश पर पाबंदी लगा दी थी। जेएनयू के छात्र समूह ने प्रशासन के इस रवैए का पुरज़ोर विरोध किया। तीन दशकों से घर समझने वाले जेएनयू परिसर से बेदखली उनके लिए मर्मांतक पीड़ा से कम नहीं थी।

नितिन पमनानी ने विद्रोही जी के जीवन संघर्ष पर आधारित एक वृत्त वृत्तचित्र आई एम योर पोएट (मैं तुम्हारा कवि हूँ) हिंदी और भोजपुरी में बनाया है। मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में इस वृत्तचित्र ने अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ वृत्तचित्र का गोल्डन कौंच पुरस्कार जीता।

उनकी कविताओं में वाम रुझान और प्रगतिशील चेतना साफ़ झलकती है।वाचिक परंपरा के कवि होने की वजह से उनकी कविता में मुक्त छंद और लय का अनोखा मेल दिखता है।उनके पास क़रीब तीन-चार सौ कविताएँ हैं जिनमें से कुछ पत्रिकाओं में छपी है। उन्होंने ज्यादातर दिल्ली और बाहर के विश्वविद्यालयों में घूम-घूम कर ही अपनी कविताएँ सुनाई हैं। उनकी कुछ प्रतिनिधि कविताएँ इस प्रकार हैं-

नई खेती

मैं किसान हूँ

आसमान में धान बो रहा हूँ

कुछ लोग कह रहे हैं

कि पगले! आसमान में धान नहीं जमा करता

मैं कहता हूँ पगले!

अगर ज़मीन पर भगवान जम सकता है

तो आसमान में धान भी जम सकता है

और अब तो दोनों में से कोई एक होकर रहेगा

या तो ज़मीन से भगवान उखड़ेगा

या आसमान में धान जमेगा।

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औरतें…

इतिहास में वह पहली औरत कौन थी जिसे सबसे पहले जलाया गया?

मैं नहीं जानता

लेकिन जो भी रही हो मेरी माँ रही होगी,

मेरी चिंता यह है कि भविष्य में वह आखिरी स्त्री कौन होगी

जिसे सबसे अंत में जलाया जाएगा?

मैं नहीं जानता

लेकिन जो भी होगी मेरी बेटी होगी

और यह मैं नहीं होने दूँगा।

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मोहनजोदड़ो...

और ये इंसान की बिखरी हुई हड्डियाँ

रोमन के गुलामों की भी हो सकती हैं और

बंगाल के जुलाहों की भी या फिर

वियतनामी, फ़िलिस्तीनी बच्चों की

साम्राज्य आख़िर साम्राज्य होता है

चाहे रोमन साम्राज्य हो, ब्रिटिश साम्राज्य हो

या अत्याधुनिक अमरीकी साम्राज्य

जिसका यही काम होता है कि

पहाड़ों पर पठारों पर नदी किनारे

सागर तीरे इंसानों की हड्डियाँ बिखेरना

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जन-गण-मन

मैं भी मरूंगा

और भारत के भाग्य विधाता भी मरेंगे

लेकिन मैं चाहता हूं

कि पहले जन-गण-मन अधिनायक मरें

फिर भारत भाग्य विधाता मरें

फिर साधू के काका मरें

यानी सारे बड़े-बड़े लोग पहले मर लें

फिर मैं मरूं- आराम से

उधर चल कर वसंत ऋतु में

जब दानों में दूध और आमों में बौर आ जाता है

या फिर तब जब महुवा चूने लगता है

या फिर तब जब वनबेला फूलती है

नदी किनारे मेरी चिता दहक कर महके

और मित्र सब करें दिल्लगी

कि ये विद्रोही भी क्या तगड़ा कवि था

कि सारे बड़े-बड़े लोगों को मारकर तब मरा॥


1 टिप्पणी:

Prashant Kumar ने कहा…

I know Mr. Ramashankar from studies at JNU. You can find him mostly at Ganga dhaba. He is very popular in JNU campus. Nice blog.