शनिवार, 25 अक्तूबर 2014

‘आत्मदीपो भव’ बन आगे बढ़ती रहीं कविता

जज्बा हो तो कुछ भी असंभव नहीं। यह बात सच लागू होती है कविता यादव पर।  बारहवीं पास करने के बाद ही इलाहाबाद शहर के एक प्रतिष्ठित परिवार में शादी हो गई। तकरीबन सात बरस का खुशहाल पारिवारिक जीवन बीता लेकिन एक दिन अचानक पति विजय सिंह यादव को ‘साइलेंस हार्ट हटैक’ हुआ और कविता अकेली हो गई। यह हादसा उसकी कल्पना से परे था लेकिन उसने बड़ी मुश्किल से खुद और पति की ओर से छोड़े गए गैस एंजेसी के कारोबार को संभाला। छह बरस के मितुल और ढाई बरस के तेजस की देखभाल भी बड़ी जिम्मेदारी थी लेकिन ससुर रिटायर्ड जस्टिस सखाराम सिंह यादव सहित पूरे परिवार ने भरपूर सहयोग दिया।

शुरुआत में तो कविता कभी कभार ही किसी जरूरी काम से एजेंसी पर जाती थीं लेकिन उन्हें अपने पर पूरा भरोसा था सो साल भर छह बरस के मितुल को पढ़ने के लिए देहरादून भेजने के बाद उन्होंने पूरी तरह काम संभाल लिया। डिलेवरी मैन और उपभोक्ताओं से लेकर इंडियन ऑयल के अधिकारियों तक से आए दिन जूझना उनकी दिनचर्या बन गई। धैर्य से लोगों की शिकायतें दूर करने सहित काम को बेहतर बनाने का क्रम जारी रहा।

एक बार एक वरिष्ठ अधिकारी ने मामूली सी बात पर तीन वर्ष के लिए उनकी एजेंसी के लिए गैस के नए कनेक्शन पर रोक लगा दी। कागजी औपचारिकताओं के बाद भी आदेश बहाल नहीं हुआ तो कविता ने दफ्तर पहुंचकर सबके सामने कारण पूछा, तब जाकर मामला सुलझा। कई बार शिकायतें दूर करने के लिए वह उपभोक्ताओं के घर तक भी गईं। शुरुआत में संकोची कविता दफ्तर की मीटिंग में पीछे बैठतीं लेकिन बेहतर काम से उन्होंने अगली पंक्ति में जगह बना ली।

‘आत्मदीपो भव’ यानी खुद अपना प्रकाश बनती कविता आगे बढ़ते हुए दूसरों की मुश्किलों में भी खड़ी रहीं। बिना जान पहचान किसी मरीज की जिंदगी बचाने के लिए खून देने से लेकर किसी जरूरतमंद की बेटी की शादी सहित अनाथालय, विकलांग केंद्र के किसी बच्चे को हर तरह से मदद जैसे कामों में वह हमेशा आगे रहीं। कुल मिलाकर अपने आंगन की लक्ष्मी बनने सहित कविता, कई परिवारों के लिए भी किसी ‘लक्ष्मी’ से कम नहीं।

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