बुधवार, 10 दिसंबर 2014

'चरवाहा' ने भी दी मंगलयान को उड़ान : चरवाहे से वैज्ञानिक तक का अमित यादव का सफर

उत्तर प्रदेश के  जौनपुर के एक गांव में गाय चराने वाला आज विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में विश्वभर में नाम कमा रहा है। प्रतिभा के दम पर ही उसने चरवाहा से मंगलयान का इंजन बनाने तक का सफर तय किया। 23 सितंबर को पहले प्रयास में ही सफलता पूर्वक मंगल पर जाने वाले यान के लिए दस से ज्यादा इंजन बनाने में सहयोग किया। इसकी चर्चा न्यूयार्क टाइम्स ने भी अपने छह अक्टूबर के अंक में संपादकीय पेज पर एक कार्टून बनाकर की है।

जौनपुर के खुटहन क्षेत्र के नेवादा गांव के अमित यादव का मन शुरुआती दिनों से ही पढ़ाई के साथ गाय चराने में लगता था। गाय चराने में व्यस्त अमित ने इंटरमीडिएट की बोर्ड परीक्षा में भौतिक विज्ञान का एक प्रश्नपत्र देना ही भूल गए थे। तेज दिमाग के धनी अमित ने एक प्रश्नपत्र में अधिक नंबर प्राप्त कर पूरे विषय में पास हो गए। इसके बाद चंद्रशेखर आजाद विश्वविद्यालय कानपुर से बीटेक, आइआइटी मुंबई से एमटेक की पढ़ाई पूरी की। 2007 में एलपीएससी इसरो तिरुअनंतपुरम केरल केंद्र में उनको पीएसएलवी प्रोग्राम में वैज्ञानिक सी के पद पर नियुक्त मिली। प्रमोशन मिलने के बाद अब वैज्ञानिक डी के पद पर तैनात हैं। इनका चयन भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर मुंबई के लिए भी हुआ था मगर अंतरिक्ष को जानने के जुनून और एपीजे अब्दुल कलाम की प्रेरणा के कारण इसरो जाना उचित समझा।

मंगलयान के चौथे इंजन पीएसएलवी में उनका अहम योगदान है। चंद्रयान, मंगलयान समेत कई और पीएसएलवी यान के लिए इंजन बनाने में मदद की है। अमित अपनी सफलताओं का श्रेय शिक्षक डा.बृजेश यदुवंशी व अपने खास मित्र ब्रह्मानंद यादव को देते हैं।

वैज्ञानिकों में भी चरवाहा के नाम से मशहूर
अमित ने विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में एक अलग पहचान बनाई है। इसके बाद भी वह वैज्ञानिकों के बीच अपने पुराने शौक गाय चराने के लिए हमेशा जाने जाते हैं।

न्यूयार्क टाइम्स में भी चर्चा
दि न्यूयार्क टाइम्स ने छह अक्टूबर को संपादकीय पेज पर कार्टून प्रकाशित किया, जिसमें दिखाया गया कि ग्रामीण वेशभूषा का एक शख्स गाय लेकर एलीटिस्ट स्पेस क्लब का दरवाजा खटखटा रहा है और अंदर संभ्रांत से दिख रहे कुछ लोग बैठे हैं। यह कार्टून सिंगापुर के हेंग किम सॉन्थ ने भारत के अंतरिक्ष में सशक्त प्रयासों पर बनाया था। अखबार के संपादक एंड्रयू शेसेंथल ने हेंग का बचाव करते हुए लिखा कि अंतरिक्ष अभियान पर अब केवल अमीरों का ही कब्जा नहीं रह गया है, जिसका मतलब पश्चिमी देशों से था।