भारत के प्रधान मंत्री ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में जाति आधारित जनगरना-२०११ को जिस तरह गोल मटोल जवाब देकर टाल गए है, उससे संदेह के घेरे में कांग्रेस की नियति आ जाती है, जिस देश का प्रधानमंत्री देश की सबसे बड़ी पंचायत में यह स्वीकार करता हो की जाति आधारित जनगरना करायी जाएगी उससे इस प्रकार गोल मटोल जवाब की अपेक्षा नहीं हो सकती पर एसा करके उन्होंने सारी संभावनाओ को दर किनार कर दिया है। लगता है की कांग्रेस की आतंरिक चाल के कोई नए हथकंडे तैयार किये जा रहे है, समय और सत्य की समझ से कोसों दूर जिस बडबोलेपन का आदी समाज सार्वजनिक तौर पर अन्याय और हड़प का सिद्धांत अख्तियार कर सारा समय अपने एसों आराम के लिए चुना और तो और देश के कारीगरों मेहनतकशों किसानों मजदूरों की जिंदगी को नारकीय बनाने की योजनाये बनायीं तब उन्हें यह कहाँ पता था की बराबरी या हिस्सेदारी की मांग तो एक ना एक दिन उठेगी जरुर पर ये टालू किस्म के लोग तब सब कुछ टाल गए थे।
आज का एक अहम् मुद्दा जिसे अंग्रेजों ने जरुरी समझा था और तत्कालीन 'विश्वयुद्ध' की विडंबनाओ की वजह से जिसे कट कर दिया गया था उसे देसी अंग्रेजों ने आज तक टाल कर रखा थोड़ी सी संभावना तब 'बनी' जब कांग्रेस की अध्यक्षता एक विदेशी हाथों में है, अगर वैसी ही नियति इन्होने भी अख्तियार 'न' की तो वर्तमान समय में पूरे देश से कांग्रेस को जाना होगा, यह जाती का सवाल इतना आसान नहीं है जितना आसान आज के बौद्धिक बरगलस करके तमाम सुविधाभोगी जमात द्वारा आज नहीं सदियों से किया जा रहा जो कुछ इनके भ्रष्ट बेहुदे और विकृत मानसिकता से किया जा रहा है, जिसे वक़्त ने बड़ी बुद्धिमत्ता से यहाँ तक खींच कर खड़ा किया है। आज राष्ट्रीय स्तर पर जिस अपराधिक प्रवृत्ति के लोग देश की सत्ता के नियामक बने है उनकी नियती साफ नहीं है. कहने को वह देशप्रेमी राष्ट्रभक्त आदी-आदी कहे जा रहे है लेकिन सारी संपदाओं पर उनके बहकाओं में आकर पिछड़े और दलित उन्हें सारी सत्ता सौंप देते रहे है आज उनकी मौजूदा हालत के लिए यही पिछड़े और दलित की मानसिकता जिम्मेवार है जहाँ उनकी संख्या तक का लेखा जोखा कराने पर इतना बड़ा समाज असहाय है, इसमे कोई दो राय नहीं की हमारा देश विकास की जिस गति को प्राप्त कर सकता था उसे इन्ही सुबिधाभोगी देशद्रोहियों ने नहीं होने दिया है, फिर ऐसा प्रधानमंत्री जो कहीं से ग्राम प्रधान तक का चुनाव नहीं जीत सकता वह जनता जो 'वोट' डालती है उसके लिए क्यों नीति बनाएगा या बनवाएगा वह तो अपने गृह-मंत्री से नंगे भूखों की जायज मांगों पर उन्हें गोलियों से भुनवायेगा.
आज सारा समाज केंद्र की ओर देख रहा है की वह जातीय गरना पर क्या फैसला लेता है और सदियों की छुटी हुयी आधारभूत मान्यताओं को दरकिनार कराने की साजिश में लगे पूरे तथाकथित समाज बुद्धिजीवियों की विरासत यह देश और दौलत उनकी ही है एसा उनका मानना है. यदि यही हाल रहे तो देश को उन तमाम जातियों को दिल्ली घेरना होगा जिन्हें जानबूझकर छोड़ दिया जा रहा है जिनकी गिनती नहीं हो रही है. नहीं तो सदियों से दबे कुचले लोग जिस जातिवाद का शिकार है उसका कोई निदान करने का उपाय ढूढ़ना पड़ेगा उसका सारा मूल्यांकन तभी होगा जब समग्र इंतजामात करना होगा अन्यथा भारतीय लोकतंत्र का नया स्वरुप गढ़ ही नहीं जा रहा है सर्वत्र दिखाई देने लगा है. राजतन्त्र की पुरानी अवधारणा पर सदियों से लड़ी गयी लड़ाई को दर किनार करके फिर से राजतन्त्र गढ़ा जा रहा है.
पिछड़ी जातियों और दलितों को भी बांटना उनका सदियों का मोनोपली रही है जिससे उनकी हार होती रहती है, इसी हार के बदले बदलते माहौल के लिए बनाये जाने वाली ताकतों का भी जिक्र उनके द्वारा किया जा रहा है, उनकी दिक्कतें यहीं नहीं खत्म होती है बल्कि वो अब ज्यादा चिंतित हो गए है की कहीं उनकी असलियत खुल न जाय ! आज जब पुरे देश की यह मांग है जाती की पहचान और उनकी संख्या उन्हें यह एहसास हो ऐसी जानकारी से कतराना क्या पुरे अवाम के लिए क्या सन्देश है, जहाँ एक तरफ आई टी और सूचना के अधिकार की बात हो रही हो वहां जातियों की संख्या छुपाने की साजिस का कारण आसानी से समझ आता है पूरी दुनिया इस देश के सबसे खतरनाक इरादे को समझ रही है पर आज के देश के इन्त्ज़म्कारों को यह समझ नहीं आ रहा है.
ऐसे प्रधानमंत्री को क्यों रहना चहिये जिसे उसकी ही कैबिनेट ही घुमा रही हो,उनके यह सच उनकी अध्यक्ष को जो समझा रहे है उन्हें यह भी समझ में आना चाहिए की यू पी ये -१ के कामकाज में लालू प्रसाद यादव का भी योगदान था मुलायम सिंह यादव ने ही अंततः इन्हें बचाया था जिससे उनकी जनता ने उन्हें उसका सबब भी दिया है। यह इनको भी नहीं भूलना चाहिए की जनता कभी भी सबक सिखा सकती है।
डॉ.लाल रत्नाकर
4 टिप्पणियां:
बहुत सही लिखा रत्नाकर जी ने..साधुवाद !!
आज हिंदुस्तान अख़बार के ब्लॉग-वार्ता में इस पोस्ट की चर्चा..बधाई.
आज हिंदुस्तान अख़बार के ब्लॉग-वार्ता में इस पोस्ट की चर्चा..बधाई.
कई प्रश्नों की पड़ताल करता है यह आलेख..बढ़िया है.
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