बुधवार, 30 मई 2012

अखिलेश यादव से मिले बिल गेट्स

माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राज्य की स्वास्थ्य एवं कृषि सेवाओं में सुधार के लिए मिलकर काम करने का फैसला किया है.बिल गेट्स मुख्यमंत्री यादव से मिलने के लिए 30 मई को लखनऊ आए थे.

उत्तर प्रदेश सरकार की एक विज्ञप्ति में बताया गया है कि राज्य सरकार और बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन दो महीने के भीतर एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करेंगे.विज्ञप्ति के अनुसार गेट्स फाउंडेशन जच्चा- बच्चा के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं, टीकाकरण और खेती के कार्यक्रमों में राज्य सरकार को तकनीकी, डिजाइन और प्रबंधकीय सुविधाएँ देगा.स्वास्थ्य मंत्री अहमद हसन के अनुसार मुलाक़ात के दौरान मुख्यमंत्री श्री यादव ने बिल गेट्स से कहा कि उत्तर प्रदेश को वित्तीय सहायता के बजाय तकनीकी और प्रबंधन की सुविधाएँ चाहिए.राज्य सरकार ने गेट्स फाउंडेशन से सूचना तकनीक और टेली मेडिसिन के क्षेत्र में भी मदद की अपेक्षा की है.

साभार : BBC

पंकज यादव बने बाबा जय गुरुदेव के उत्तराधिकारी

गत 18 मई को ब्रह्मलीन हुए बाबा जय गुरुदेव के उत्तराधिकारी की घोषणा कर दी गई। बाबा के बेहद करीबी रहे पंकज यादव को उनका उत्तराधिकारी बताया है। इस तरह बाबा जगगुरुदेव आश्रम की लगभग 12 हजार करोड़ रुपए की संपत्ति पर भी पंकज यादव का ही अधिकार होगा। पंकज यादव ने ही बाबा जयगुरुदेव को मुखाग्नि दी थी।

बाबा जय गुरुदेव के त्रयोदशी संस्कार के मौके पर मथुरा में पंकज यादव को बाबा जय गुरुदेव का उत्तराधिकारी घोषित किया गया. जय गुरुदेव के फैसले का हवाला देते हुए उन्‍हें ट्रस्ट का अध्यक्ष घोषित कर दिया गया है. बाबा के भक्त फूल सिंह ने सार्वजनिक रूप से एक पत्र पढ़कर सुनाया, जो बाबा द्वारा लिखा बताया गया। पत्र के अनुसार 20 जुलाई 2010 को बाबा ने इटावा की सिविल अदालत में लिखित में दिया था कि उनके बाद पंकज को उत्तराधिकारी बनाया जाए। फूल सिंह ने ट्रस्ट प्रबंधक संतराम चौधरी, रामकृष्ण यादव दददू, चरन सिंह एडवोकेट सहित तमाम पदाधिकारियों की मौजूदगी में यह पत्र पढ़ा।
- राम शिव मूर्ति यादव : यदुकुल

मंगलवार, 29 मई 2012

बिहटा की नव्या यादव मैट्रिक में लहराया परचम

बिहार विद्यालय परीक्षा समिति द्वारा आयोजित मैट्रिक परीक्षा 2012 का रिजल्ट 29 मई की शाम शिक्षा मंत्री प्रशांत कुमार शाही ने जारी किया। टॉप टेन में एक बार फिर बेटियों का दबदबा कायम रहा। घोषित परिणाम में टॉप टेन में 18 परीक्षार्थियों को जगह मिली जिनमें 10 छात्राएं शामिल हैं। इनमें से अधिकांश ग्रामीण परिवेश से ताल्लुक रखती हैं। नव्या यादव ने ९३ प्रतिशत अंक के साथ मैट्रिक में सर्वाधिक अक प्राप्त किये हैं.

इस वर्ष आयोजित परीक्षा में 12,52,069 परीक्षार्थी शामिल हुए जिसमें 8,89,358 सफल हुए।बोर्ड परीक्षा में पास प्रतिशत 71.03प्रतिशत रहा। प्रथम श्रेणी से पास करने वाले परीक्षार्थियों की संख्या 2,20,357(17.59 प्रतिशत) रहा। जबकि द्वितीय श्रेणी से 4,64,139(37.06 प्रतिशत) छात्र और तृतीय श्रेणी से 2,04,860(16.36 प्रतिशत) छात्र उत्तीर्ण हुए। 9935 छात्र परीक्षा में अनुपस्थित रहे और 1703 को परीक्षा में कदाचार के आरोप में निष्कासित किया गया था। बताते चलें कि परीक्षा में 3,57,807(28.97 प्रतिशत)परीक्षार्थी असफल घोषित हुए।

बोर्ड परीक्षा का रिजल्ट छात्रों के लिए सुखद नहीं रहा। पिछले वर्ष की तुलना में छात्रों के पास प्रतिशत में गिरावट दर्ज की गई जबकि छात्राओं का पास प्रतिशत बढ़ा है। पिछले वर्ष छात्राओं का पास प्रतिशत 42.87 प्रतिशत था जो बढ़कर 44.87 प्रतिशत हो गया। दूसरी तरफ छात्रों का पास प्रतिशत 57.12 प्रतिशत से घटकर 55.13 प्रतिशत रह गया। परीक्षा में 6,90,282 छात्र में से 3,80,552 और 5,61,787 छात्राओं में से 2,52,074 को सफलता हाथ लगी।

मुलायम सिंह यादव को इंटरनेशनल ज्यूरिसिस्ट पुरस्कार

समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव को वर्ष 2012 के सम्मानित इंटरनेशनल ज्यूरिसिस्ट पुरस्कार से नवाजा गया। पूर्व रक्षा मंत्री और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री यादव को बार और पीठ की बेहतरी के लिए उनके द्वारा किए गए साहसिक योगदान के लिए पुरस्कृत किया गया है। मंगलवार, मई 28, 2012 की रात इंटरनेशनल कांफ्रेंस ऑफ ज्यूरिस्ट ऑन रूल ऑफ लॉ में एक वक्तव्य में कहा गया, विधि के क्षेत्र में उनका योगदान दुनिया में अद्वितीय है। हालांकि मुलायम सिंह यादव पुरस्कार लेने के लिए वहां मौजूद नहीं थे।

मंगलवार, 22 मई 2012

द्वारिका-धाम की यात्रा...

भगवान श्री कृष्ण से सम्बंधित तमाम धार्मिक स्थल देश-विदेश में प्रसिद्द हैं. गुजरात में द्वारिका का नाम जग-जाहिर है. कुछ प्रमुख धार्मिक स्थलों की सैर करते हैं-

द्वारका
गुजरात के पश्चिमी समुद्र तट पर स्थित द्वारका हिंदुओं के चार सबसे पवित्रतम तीर्थस्थलों (चार धाम) में से एक है और भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़ी हुई अधिकतर विंâवदंतियों में इसका जिक्र होता है। कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण वंâस का वध करने के बाद मथुरा छोड़कर पूरे यादव वंश के साथ सौराष्ट्र समुद्र तट पर पहुंचे और स्वर्णद्वारका नामक नगर का निर्माण किया, फिर यहीं से उन्होंने अपने साम्राज्य पर शासन किया। ऐसी कथा है कि भगवान श्री कृष्ण ने स्वर्गारोहण के समय अपने परिजनों और भक्तों से स्वर्णद्वारका छोड़ने और उसके एक दिन डूबने की बात कही थी । आज तक यह समुद्र में डूबी हुई है। खुदाई से इसकी पुष्टि हुई है।

द्वारकाधीश मंदिर

मान्यता है कि मूल द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण भगवान श्री कृष्ण के पौत्र वङ्कानाभ ने उनके (हरि-गृह) आवास के ऊपर करवाया था। इसे जगत मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। यह मंदिर २५०० साल पुराना है। यह ऊंची मीनार और हाल से युक्त है। यहां का ७२ स्तंभों पर निर्मित ७८.३ मीटर ऊंचा द्वारकाधीश मंदिर (जगत मंदिर) पांच मंजिलों वाला भव्य मंदिर, गोमती और अरब सागर के संगम पर स्थित है। मंदिर के गुंबद से सूर्य और चंद्रमा से सुसज्जित ८४ मीटर लंबा बहुरंगी ध्वज लहराता रहता है।
मंदिर में दो प्रवेश द्वार हैं, उत्तर में स्थित मुख्य द्वार 'मोक्ष द्वार' कहलाता है। दक्षिण का प्रवेश द्वारा 'स्वर्ग द्वार' कहलाता है। इसके बाहर ५६ डग भर कर गोमती नदी तक पहुंचते हैं।

रुक्मिणी देवी मंदिर :
द्वारका के इतिहास में विभिन्न अवधियों का प्रतिनिधित्व करते अनेकानेक मंदिर हैं, लेकिन तीर्थयात्रियों के बीच आकर्षण का एक और मुख्य वेंâद्र भगवान कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी का मंदिर है। रुक्मिणी को धन और सौंदर्य की देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। यह छोटा-सा मंदिर नगर से १.५ किमी उत्तर में स्थित है। मंदिर की दीवारें खूबसूरत पेंटिंग्स से सजी हुई हैं। इनमें रुक्मिणी को श्रीकृष्ण के साथ दिखाया गया है।

गोमती घाट मंदिर :
चक्रघाट पर गोमती नदी अरब सागर में मिलती है। यहीं पर गोमती घाट मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि यहां पर स्नान करने से मुक्ति मिलती है। द्वारकाधीश मंदिर के पिछले प्रवेश द्वार से गोमती नदी दिखायी देती है। गोमती और समुद्र के संगम पर ही भव्य समुद्र नारायण मंदिर (संगम नारायण मंदिर) भी है।

इन मंदिरों के अलावा नागेश्वर महादेव मंदिर, गोपी तालाब भी तीर्थयात्रियों के लिए आकर्षण का वेंâद्र है। यह द्वारका से २० किमी उत्तर में स्थित है। नागेश्वर महादेव मंदिर शिव के १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

भाल्का तीर्थ :
कहा जाता है कि इसी स्थान पर हिरण चर्म को धारण कर सो रहे कृष्ण को हिरण समझकर मारा गया तीर जाकर लगा और इस तरह उनकी इहलीला समाप्त हुई थी। कृष्ण का त्रिवेणी घाट पर दाह-संस्कार किया गया था।
इसी के पास सोम (चंद्र) द्वारा स्थापित सोमनाथ मंदिर है। कहा जाता है कि मूल मंदिर सोने का था। इसके गिरने के बाद रावण ने चांदी के मंदिर का निर्माण किया। इसके ढहने के बाद श्रीकृष्ण ने लकड़ी के मंदिर का निर्माण किया। बाद में भीमदेव ने पाषाण मंदिर का निर्माण किया। सोमनाथ में एक सूर्य मंदिर भी है।

मेला और त्यौहार :
अगस्त और सितंबर के महीने में द्वारका में जन्माष्टमी धूमधाम से मनायी जाती है।
वैâसे पहुंचें : हवाई, रेल और सड़क तीनों मार्गों से द्वारका पहुंचा जा सकता है। द्वारका से सबसे करीब का एअरपोर्ट है, १३५ किमी दूर स्थित जामनगर एअरपोर्ट। द्वारका में रेलवे स्टेशन है। सरकारी और निजी बस सेवाओं के अलावा टैक्सी से भी द्वारका पहुंचा जा सकता है।

रविवार, 20 मई 2012

मथुरा-धाम की यात्रा...

भगवान श्री कृष्ण से सम्बंधित तमाम धार्मिक स्थल देश-विदेश में प्रसिद्द हैं. उत्तर प्रदेश में मथुरा का नाम जग-जाहिर है. कुछ प्रमुख धार्मिक स्थलों की सैर करते हैं-

मथुरा
मथुरा यमुना नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। यह भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि है। भागवत पुराण में मथुरा में श्री कृष्ण और गोपियों की रासलीलाओं का जिक्र है। यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्थित है। मथुरा आज आध्यात्मिक और धार्मिक पर्यटन का प्रमुख वेंâद्र बन गया है। देश–विदेश से बड़ी संख्या में लोग यहां आते हैं।

राधारमण मंदिर
राधारमण का मतलब राधा को आनंदित करनेवाला यानी भगवान श्रीकृष्ण। इस मंदिर की स्थापना १५४२ ई. में हुई थी।

जुगल किशोर मंदिर
यह सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। इसकी स्थापना १६२७ ई. में हुई थी। मुगल बादशाह अकबर ने १५७० में वृंदावन की यात्रा की थी, तब चार मंदिरों की स्थापना की अनुमति दी थी।

केसी घाट मंदिर
भगवान श्रीकृष्ण ने इसी स्थान पर महाकाय घोड़े के रूप में प्रगट हुए दानव को मारा था। इसके बाद केसी घाट पर स्नान किया था। इस घाट पर लोग बड़ी संख्या में स्नान करते हैं। हर शाम को यहां आरती उतारी जाती है।

रंगजी मंदिर
इस मंदिर का निर्माण एक धनी सेठ परिवार ने १८५१ई. में करवाया था। यह भगवान श्री रंगनाथ को समर्पित है। इसमें भगवान विष्णु शेषनाग पर लेटे हुए हैं। पारंपरिक दक्षिण भारतीय गोपुरम शैली में है और चारों तरफ दीवारों से घिरा हुआ है।

द्वारकाधीश मंदिर
इस मंदिर का निर्माण १८१४ ई. में किया गया था। नगर के बीचोंबीच स्थित यह काफी लोकप्रिय मंदिर है। मथुरा में सबसे ज्यादा दर्शनीय मंदिर हैं जो यमुना नदी के पास स्थित हैं।

मंदिरों के अलावा फाल्गुन (फरवरी-मार्च) महीने में मनायी जानेवाली ब्रज (बरसाना, नंदग्राम. दौजी) की होली काफी प्रसिद्ध हौ
वैâसे पहुंचे: मथुरा दिल्ली से १४१ किमी दक्षिण-पूर्व में और आगरा से ४७ किमी उत्तर पश्चिम में स्थित है। मथुरा से दिल्ली और आगरा के लिए बस सेवा उपलब्ध है। मथुरा रेलवे स्टेशन भी है। आगरा, भरतपुर, सवाई माधोपुर और कोटा से मथुरा ट्रेन से भलीभांति जुड़ा हुआ है।

वृंदावन
वृंदावन मथुरा से १५ किमी दूर है। यमुना के किनारे स्थित यह तीर्थस्थल आध्यात्मिक पर्यटकों में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। इसकी लोकप्रियता का अंदाजा से इसी से लगाया जा सकता है कि यहां पर हर साल ५ लाख से ज्यादा पर्यटक पहुंचते हैं। नये और प्राचीन अनगिनत मंदिरों के लिए जाना जाता हैं। भगवान कृष्ण ने अपने बचपन के दिन यहीं पर बिताये। कहा जाता है कि मुगल सम्राट अकबर ने वृंदावन के आध्यात्मिक महत्व को स्वीकार किया था। यहां पर उसने पांच मंदिरों - गोविंद देव, मदन मोहन, गोपीनाथ और जुगल किशोर नामक मंदिरों के निर्माण की अनुमति दी थी। भारतीय जनमानस में वृंदावन के छाये होने की सबसे बड़ी वजह भगवान श्रीकृष्ण के बारें में यहां से जुड़ी विंâवदंतियां और पौराणिक कथायें हैं।

बांके बिहारी मंदिर:
बांके बिहारी की मूल रूप से निधिवन में पूजा होती थी। सन् १८६४ में मंदिर के निर्माण के बाद यहां प्रतिष्ठित कर दिया गया। खासकर सावन में झूला यात्रा के समय वृंदावन में यह सबसे लोकप्रिय मंदिर बन जाता है। साल में एक बार मंगल आरती होती है।
इस्कान मंदिर:
देश भर में 'हरे राम हरे कृष्ण' के अनुयायियों द्वारा निर्मित अनेक मंदिरों में से एक मंदिर यहां पर है। इसका मकसद भागवत गीता और भारत के अन्य वैदिक ग्रंथों के संदेशों के माध्यम से जनकल्याण करना है। हर साल अक्टूबर-नवंबर में इस्कॉन ब्रज मंडल परिक्रमा का आयोजन करता है। इसके अंतर्गत एक माह तक वृंदावन के १२ जंगलों से होकर गुजरना पड़ता है।

कृष्ण बलराम मंदिर : यह एक खूबसूरत मंदिर है। इसमें गौरा निताई, कृष्ण बलराम और राधा श्याम सुंदर की मूर्तियां हैं ।

शनिवार, 19 मई 2012

यदुकुल शिरोमणि मशहूर संत बाबा जय गुरुदेव का निधन

दुनिया को गुरु का महत्‍व समझाने वाले देश के मशहूर संत यदुकुल शिरोमणि बाबा जय गुरुदेव का शुक्रवार को निधन हो गया. करीब 10 दिनों से बीमार चल रहे 116 साल के जय गुरुदेव का गुड़गांव में इलाज चल रहा था, लेकिन शुक्रवार,18 मई, 2012 को अस्पताल से छुट्टी मिलने के कुछ घंटों बाद ही मथुरा के आश्रम में उन्‍होंने रात 10:30 बजे अंतिम सांस ली.

जय गुरुदेव के देश-विदेश में लाखों भक्त हैं. उनके भक्त खासकर गांव में रहने वाले लोग हैं. वे अपना प्रचार दीवारों पर लिखवा कर किया करते थे.

कौन थे जय गुरुदेव?
बहुत कम लोगों को मालूम है कि जय गुरुदेव का असली नाम तुलसी दास जी महाराज था. इनका जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के खिटोरा गांव में हुआ था. वह 116 वर्ष के थे। जय गुरुदेव के देश-विदेश में करोड़ों भक्त हैं. इनके अनुयायियों में अनपढ़ किसान से लेकर पढ़े-लिखे लोग शामिल हैं. अपने अनुयायियों को जय गुरुदेव हमेशा गुरु का महत्व समझाते थे.

गुरुदेव का बचपन

दरअसल, छोटी उम्र में ही तुलसीदास के माता-पिता चल बसे, जिसके बाद वे सत्य की खोज में निकल पड़े. इसी दौरान उनकी मुलाकात संत घूरेलाल जी से हुई और उन्‍होंने जीवन भर के लिए इन्हें अपना गुरु मान लिया. संत घूरेलाल की मौत के बाद जय गुरुदेव ने मथुरा जिले में आगरा दिल्ली राजमार्ग पर अपने गुरु की याद में चिरौली संत आश्रम की स्थापना की और समाजसेवा में जुट गए.

समाजसेवा और जय गुरुदेव
जय गुरुदेव अपने आश्रम और ट्रस्टों के जरिए हमेशा गरीबों की मदद किया करते थे, जिसमें निशुल्क शिक्षा, निशुल्क चिकित्सा और दहेज बिना सामूहिक शादियां करवाना जैसी चीजें शामिल हैं. उन्‍होंने समाज में वैचारिक चेतना लाने के लिए दूरदर्शी पार्टी की भी स्थापना की थी. गुरुदेव शराब के सख्त खिलाफ थे और लोगों को हमेशा शाकाहारी भोजन के लिए प्रेरित करते थे.

ब्रज का सबसे ऊंचा मंदिर
जय गुरुदेव ने अपने गुरु घूरेलाल जी की याद में 160 फुट ऊंचे योग साधना मंदिर का निर्माण किया, जो सफेद संगममर का बना है. ये मंदिर पूरे ब्रज का सबसे ऊंचा और अनोखा मंदिर है. मंदिर में 200 फुट लंबा और 100 फुट चौड़ा सत्संग हॉल है, जिसमें लगभग 60,000 लोग एक साथ बैठ सकते हैं.

शोकाकुल अनुयायी

बाबा के निधन की खबर सुनकर उनके लाखों अनुयायी शोकाकुल हो गए। यहां आश्रम में बहुत से तो फूट-फूटकर रो रहे थे। देशभर से हजारों अनुयायियों के आश्रम में कॉल आ रहे हैं। वह किसी भी तरह बाबा की पूरी जानकारी लेना चाहते हैं, इससे आश्रम की सारी लाइनें ठप हो गयी हैं।

रात 10.30 बजे आश्रम में घोषणा की गयी कि बाबा अपने धाम को चले गए। उनका पार्थिव शरीर आश्रम में ही भक्तों के दर्शनों को सुबह रख दिया जाएगा। वैसे रात में भी उनके भक्तों का तांता उनके आश्रम स्थित कक्ष में दर्शनों को लगा रहा। आश्रम समिति उनके अंतिम संस्कार का शनिवार को फैसला लेगी।

पिछले काफी समय से बाबा अस्वस्थ चल रहे थे। चिकित्सकों के अनुसार बाबा जय गुरुदेव को कफ, फेफड़े में पानी भरने और हार्ट संबंधी दिक्कतें थीं। छह मई को उनकी तबियत ज्यादा बिगड़ गई थी। चिकित्सकीय सलाह पर बाबा आठ मई को गुड़गांव स्थित मेदांता अस्पताल में भर्ती कराये गये थे। आश्रम पर उपस्थित अनुयायियों के अनुसार, बाबा की इच्छा और डॉक्टरों की सलाह पर वह मेदांता अस्पताल की आइसीयू एंबुलेंस से शुक्रवार दोपहर आश्रम लाए गए थे। यहां उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। दिल्ली और गुड़गांव के कई विशेषज्ञ डॉक्टर उन पर गहन निगरानी रख रहे थे।

शुक्रवार शाम बाबा का नियमित परीक्षण करने वालों में शामिल मथुरा के डॉ. आरसीएस परिहार ने बताया था कि बाबा की हालत बेहद नाजुक है। उन्हें जीवन रक्षक उपकरणों के सहारे रखा जा रहा है। बाबा के प्रमुख अनुयायियों में से एक संतराम चौधरी के अनुसार, संक्रमण के लिहाज से चिकित्सकों की टीम ने यहां आने के बाद बाबा के पास किसी की भी आवाजाही को प्रतिबंधित कर दिया था। वैसे सोलह मई को बाबा ने मेदांता में उपस्थित अपने अनुयायियों से बात की थी। इस दौरान उन्होंने उनसे अपने आश्रम पर ले चलने को भी कहा था।
--राम शिव मूर्ति यादव: यदुकुल

शुक्रवार, 18 मई 2012

भगवान कृष्ण को समर्पित नाथद्वारा मंदिर

भगवान श्री कृष्ण से सम्बंधित तमाम धार्मिक स्थल देश-विदेश में प्रसिद्द हैं. राजस्थान में नाथद्वारा मंदिर का नाम जग-जाहिर है.नाथद्वारा राजस्थान में उदयपुर से 48 किमी दूर है। भगवान श्रीनाथजी (भगवान कृष्ण) को समर्पित यह एक महान वैष्णव मंदिर है, जिसका निर्माण 17वीं शताब्दी में किया गया था। दंतकथा है कि वृंदावन स्थित श्रीनाथजी के मंदिर को मुगल बादशाह के सैनिक तोड़ना चाहते थे। उनसे बचाने के लिए उनकी मूर्ति को बैलगाड़ी से सुरक्षित जगह ले जाया जा रहा था। आज नाथद्वारा में जहां उनका मंदिर है, वहां पहुंचने पर बैलगाड़ी का पहिया कीचड़ में धंस गया और बहुत कोशिशों को बावजूद निकाला नहीं जा सका, तो पुजारियों ने समझा कि भगवान श्रीकृष्ण इससे आगे नहीं जाना चाहते, इसलिए उन्होंने इसी स्थल पर उनकी मूर्ति स्थापित कर एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया। यह आज एक लोकप्रिय तीर्थस्थल का रूप धारण कर चुका है। यहां पर भारतीयों के साथ-साथ बड़ी संख्या में विदेशी भी अपनी आस्था जताने और मानसिक शांति प्राप्त करने आ रहे हैं।


वैâसे पहुंचें: नाथद्वारा उदयपुर से बस या टैक्सी से पहुंचा जा सकता है। यहां का हवाई अड्डा उदयपुर शहर से 24 किमी दूर है

बुधवार, 16 मई 2012

श्रीकृष्ण और उनकी पत्नियाँ

भगवान श्री कृष्ण न सिर्फ यदुकुल बल्कि सर्व-संसार के आराध्य माने जाते हैं. उन्होंने पत्नी के रूप में कई नारियों को अपनाया और उन्हें सम्मानजनक स्थान दिया. कृष्ण की प्रथम पत्नी थी रुक्मिणी उनका अपहरण करके विवाह किया था यह अपहरण रुक्मिणी के कहने पर ही हुआ था रुक्मिणी; राजा भीष्मक और शुध्दम्बी की कन्या थी कृष्ण की दूसरी पत्नी ;निशाधराज जाम्बवान की पुत्री जाम्बवती थी कृष्ण की तीसरी पत्नी सत्राजित की पुत्री सत्यभामा थी सत्राजित को शक्तिसेन के नाम से भी जानते हैं कृष्ण की चौथी पत्नी अवन्ती की राजकुमारी मित्रविन्दा थी कौशल की पुत्री सत्या ;कृष्ण की पांचवी पत्नी थी मद्र कन्या वृहत्सेना की पुत्री लक्ष्मणा ;कृष्ण की छठी पत्नी थी केकय कन्या भद्रा कृष्ण की सातवीं पत्नी थी कृष्ण की आठवी पत्नी कालिंदी थी ये खांडव वन की रहने वाली थी यही पर पांडवों का इंद्रप्रस्थ बना था नरकासुर के द्वारा बंदी बनायीं गयी सोलह सहस्र स्त्रियों को कृष्ण ने मुक्त कराया और उनसे विवाह किया

कृष्ण और रुक्मिणी के प्रथम पुत्र प्रदुम्न का उसके जन्म के छठवें दिन ही असुर शंबरासुर ने अपहरण कर लिया था उसकी पत्नी मायावती ने उसे आसुरी प्रवृतियों के साथ पाला था प्रदुम्न को जब अपने माता-पिता के बारे में पता चला तो उसने शंबरासुर का वध कर दिया और द्वारका आ गया कृष्ण और रुक्मिणी के दूसरे पुत्र का नाम चारुदेष्ण था सत्यभामा के पुत्र का नाम भानु था जाम्बवती के पुत्र का नाम साम्ब था यही पुत्र यादव वंश के नाश का कारण बना था साम्ब का विवाह दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा के साथ हुआ था मित्रव्रंदा का पुत्र वृक था सत्याके पुत्र का नाम वीर था कृष्ण और रुक्मिणी की पुत्री का नाम चारु था कृष्ण की तीन बहने थी.1- एकानंगा....यह यशोदा पुत्री थी. 2- सुभद्रा ...यह रोहिणी पुत्री थी. 3- द्रोपदी ....मानस भगिनी थी गुरु संदीपन ने कृष्ण को शास्त्रों सहित चौदह विद्या और चौसठ कलाओं का ज्ञान दिया था गुरु घोरंगिरस ने सांगोपांग ब्रह्म ज्ञान की शिक्षा दी थी राधा और द्रोपदी कृष्ण की सखियाँ थी !!

साभार : कल्पना दुबे

सोमवार, 14 मई 2012

जैसलमेर को बसाया यादव वंश के प्रसिद्ध राजा जयशाली ने

जयशाली यादव वंश के प्रसिद्ध राजा थे, जिन्होंने जैसलमेर नगर बसाया और वहाँ का किला बनवाया था। अपने पिता के सबसे बड़े पुत्र होने पर भी पहले इन्हें राजसिंहासन नहीं मिला था। पर अपने छोटे भाई की मौत पश्चात् इन्होंने शाहाबुद्दीन गोरी से सहायता लेकर अपने भतीजे भोजदेव को मारा और राज्याधिकार प्राप्त किया था। सिंहासन पर बैठने के बाद संवत् १२१२ में इन्होंने जैसलमेर नगर बसाया और किला बनवाया था।

शनिवार, 12 मई 2012

यादव वंश के राजा भिल्लम द्वारा स्थापित शहर दौलताबाद

दौलताबाद गाँव और प्राचीन शहर, महाराष्ट्र राज्य, दक्षिण-पश्चिम भारत में स्थित है। दौलताबाद दक्षिण के यादववंशी राजाओं की राजधानी थी। और यह देवगिरी का सुल्तान मुहम्मद तुग़लक़ द्वारा रखा गया नाम था। यह गोदावरी नदी की उत्तरी घाटी में स्थित है और भौगोलिक दृष्टि से भारत का केन्द्रीय स्थल कहा जा सकता है।

इतिहास

12वीं सदी के उत्तरार्द्ध में यादव वंश के राजा भिल्लम द्वारा स्थापित यह शहर मध्य काल में एक महत्त्वपूर्ण दुर्ग और प्रशासनिक केंद्र था। एक विशाल चट्टानी परिदृश्य वाला यह दुर्ग अपराजेय था और इसे कभी ताक़त के बल पर हासिल नहीं किया जा सका, षड्यंत्रों के द्वारा ही इस पर क़ब्ज़ा किया गया।

14वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में दिल्ली की मुस्लिम सल्तनत के अधीन आने तक यह शहर हिन्दू यादव वंश की राजधानी था।

17वीं शताब्दी में मुग़लों द्वारा दक्कन में औरंगाबाद के समीप अपना प्रशासनिक मुख्यालय स्थापित करने के साथ ही इसका पतन हो गया।

इस नगर ने इतिहास में बहुत बार उत्थान और पतन देखा। यह 1318 ई. तक यादवों की राजधानी रहा, 1294 ई. में अलाउद्दीन ख़िलजी ने इसे लूटा। बाद में ख़िलजी की फ़ौजों ने दुबारा 1318 ई. में यादव राजा हरपाल देव को पराजित कर मार डाला। उसकी मृत्यु से यादव वंश का अंत हो गया। बाद में जब सुल्तान मुहम्मद तुग़लक़ गद्दी पर बैठा, उसे देवगिरी की केन्द्रीय स्थिति बहुत पसंद आयी। उस समय मुहम्मद तुग़लक़ का शासन पंजाब से बंगाल तक तथा हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक फैला हुआ था।

राजधानी बनाने का प्रयत्न

सुल्तान ने देवगिरि का नाम दौलताबाद रखा। उसने इस नगर में बड़े-बड़े भवन और सड़कें बनवायीं। एक सड़क दौलताबाद से दिल्ली तक बनायी गई। 1327 ई. में सुल्तान दिल्ली से राजधानी हटाकर दौलताबाद ले गया। दिल्ली के नागरिकों ने दौलताबाद जाना पसंद नहीं किया। इस स्थानांतरण से लाभ कुछ नहीं हुआ, उल्टे परेशानियाँ बढ़ गयीं। फलत: राजधानी पुन: दिल्ली ले आयी गई। लेकिन इससे दौलताबाद का महत्त्व नहीं घटा। दक्षिण में जब बहमनी राज्य टूटा, तब अहमदनगर राज्य में दौलताबाद का गढ़ अत्यंत शक्तिशाली माना जाता रहा। 1631 ई. में सम्राट शाहजहाँ इस गढ़ को सर न कर सका, और क़िलेदार फतेह ख़ाँ को घूस देकर ही उस पर क़ब्ज़ा कर सका। मुग़ल शासन के अंतर्गत भी दौलताबाद प्रशासन का मुख्य केन्द्र बना रहा इसी नगर से औरंगज़ेब ने अपने दक्षिणी अभियानों का आयोजन शुरू किया। औरंगज़ेब के आदेश से गोलकुण्डा का अंतिम शासक अब्दुल हसन दौलताबाद के ही गढ़ में कैद किया गया था। 1707 ई. में बुरहान-पुर में औरंगज़ेब की मृत्यु होने पर उसके शव को दौलताबाद में ही दफनाया गया। 1760 ई. में यह नगर मराठों के अधिकार में आ गया, लेकिन इसका पुराना नाम देवगिरि पुन: प्रचलित न हो सका। आज भी यह दौलताबाद के नाम से ही जाना जाता है।

साभार : भारत कोश

गुरुवार, 10 मई 2012

वृष्णि और अन्धक संघ / Vrishni and Andhak

मधु राजा के सौ पुत्रों में से ज्येष्ठ पुत्र, एक यादवराज था। इसी के कुल में श्रीकृष्ण पैदा हुए थे और इसी कारण 'वार्ष्णेय' कहलाए। इनका वंश 'वृष्णि वंशीय यादव' कहलाता था। ये लोग द्वारिका में निवास करते थे। प्रभास क्षेत्र में यादवों के गृह कलह में यह वंश भी समाप्त हो गया।


वृष्णि-गणराज्य शूरसेन-प्रदेश में स्थित था। वृष्णियों का तथा अंधकों का प्राचीन साहित्य में साथ-साथ उल्लेख है। पाणिनि [1] में वृष्णियों तथा अंधको का उल्लेख हैं।

कौटिल्य के अर्थशास्त्र [2] में वृष्णियों के संघ-राज्य का वर्णन है।

महाभारत में अंधक वृष्णियों का कृष्ण के संबंध में वर्णन है। [3]

इसी प्रसंग में कृष्ण को संघ मुख्य भी कहा गया है जिससे सूचित होता है कि वृष्णि तथा अंधक गणजातियों के राज्य थे। [4]

वृष्णि राजज्ञागणस्य भुभरस्य । ' यह सिक्का वृष्णि-गणराज्य द्वारा प्रचलित किया गया था और इसकी तिथि प्रथम या द्वितीय शती ई॰पू॰ है। [5]

अंधक एवं वृष्णि संघ सम्भवतः यदुवंशियों के राजा भीम सात्वत के पुत्रों के नाम पर बने थे । कृष्ण वृष्णि थे एवं उग्रसेन और कंस अंधक थे ।

मथुरा में तीर्थंकर नेमिनाथ भी अंधक कहे गये हैं । कुछ ग्रंथों में कृष्ण को अंधक भी कहा गया है ।

मथुरा अंधक संघ की राजधानी थी और द्वारिका वृष्णियों की ।

श्री राम के पश्चात जब अयोध्या की गद्दी पर कुश थे और लव युवराज थे, तब मथुरा में भीम के पुत्र अंधक राज्य करते थे । उनके बाद अंधक वंशियों का मथुरा पर अधिकार रहा, जो उग्रसेन और उनके पुत्र कंस तक कायम रहा था । भीम के दूसरे पुत्र का नाम वृष्णि था । उनके वंश में उत्पन्न शूर ने शौरपुर (वर्तमान बटेश्वर) बसा कर अपना पृथक् राज्य स्थापित किया था । शूर के पुत्र वसुदेव हुए, जिनके पुत्र बलराम तथा श्री कृष्ण थे ।

वैदिक साहित्य में उत्तरी पांचाल के पौरव-राजा दिवोदास और उनके वंशज सुदास की विजय-गाथाओं का उल्लेख मिलता है । सुदास ने हस्तिनापुर के पौरव राजा संवरण को उनके नौ साथी राजाओं की विशाल सेना सहित पराजित किया था । 10 राजाओं के उस भीषण संघर्ष को प्राचीन वाग्मय में "दशहराज्ञ युद्ध' कहा गया है । वीरवर सुदास से पराजित होने वाले उन नौ राजाओं में एक यादव नरेश भी था ।

महाभारत शांति पर्व अध्याय-82:
कृष्ण:-

हे देवर्षि ! जैसे पुरुष अग्रिकी इच्छा से अरणी काष्ठ मथता है; वैसे ही उन जाति-लोगों के कहे हुए कठोर वचनसे मेरा हृदय सदा मथता तथा जलता हुआ रहता है ॥6॥

हे नारद ! बड़े भाई बलराम सदा बल से, गद सुकुमारता से और प्रद्युम्न रूपसे मतवाले हुए है; इससे इन सहायकों के होते हुए भी मैं असहाय हुआ हूँ। ॥7॥ आगे पढ़ें:-कृष्ण नारद संवाद

श्री कृष्णदत्त वाजपेयी का अनुमान है कि यादव राजा भीम सात्वत का पुत्र अंधक रहा होगा, जो सुदास के समय यादवों की मुख्य शाखा का अधिपती और शूरसेन जनपद के तत्कालीन गणराज्य का अध्यक्ष था । वह संभवत: अपने पिता भीम के समान वीर नहीं था । अंधक के वंश में कुकुर हुआ था । कुकुर की कई पीढ़ी बाद आहुक हुआ, जिसके दो पुत्र उग्रसेन और देवक हुए थे । उग्रसेन का पुत्र कंस था और देवक की पुत्री देवकी थी । उग्रसेन, देवक और कंस अपने पूर्वज अंधक और कुकुर के नाम पर अंधक वंशीय अथवा कुकुर वंशीय कहलाते थे । अंधक के भाई वृष्णि के दो पुत्र हुए, जिनके नाम देवमीढूष और युधाजित थे । देवमीढूष के पुत्र श्र्वफल्क और उनके पुत्र अक्रूर थे । वृष्णि के वंशज वाष्णि वंशीय अथवा वार्ष्णेय कहलाते थे ।




अंधक और वृष्णि वंशिय द्वारा शासित शूरसेन प्रदेशांतर्गत मथुरा और शौरिपुर के दोनों राज्य 'गणराज्य' थे । उनका शासन वंश-परंपरागत न होकर समय-समय पर जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा होता था । वे प्रतिनिधि अपने-अपने गणों के मुखिया होते थे, और राजा कहलाते थे ।




महाभारत युद्ध से पूर्व उन दोनों राज्यों का संघ था, जो 'अंधक-वृष्णि-संघ' कहलाता था । उस संघ में अंधकों के मुखिया आहुक-पुत्र उग्रसेन थे और वृष्णियों के शूर-पुत्र वसुदेव थे । उस संघीय गण राज्य का राष्ट्रपति उग्रसेन था । इस संघ राज्य के केंद्र मन्त्रियों में एक उद्धव भी थे । उग्रसेन की भतीजी देवकी का विवाह वसुदेव के साथ हुआ था, जिनके पुत्र भगवान कृष्ण थे । उग्रसेन के पुत्र कंस का विवाह उस काल के सर्वाधिक शक्तिशाली मगध साम्राज्य के अधिपति जरासंध की दो पुत्रियों के साथ हुआ था । वसुदेव की बहिन कुन्ती का विवाह कुरु प्रदेश के प्रतापी महाराजा पांडु के साथ हुआ था, जिनके पुत्र सुप्रसिद्ध पांडव थे । वसुदेव की दूसरी बहिन श्रुतश्रवा हैहयवंशी चेदिराज दमघोष को व्याही थी, जिसका पुत्र शिशुपाल था । इस प्रकार शूरसेन प्रदेश के यादवों का पारिवारिक संबंध भारतवर्ष के कई विख्यात राज्यों के अधिपतियों के साथ था । उग्रसेन का पुत्र कंस बड़ा शूरवीर और महत्वाकांक्षी युवक था । फिर उन्हें अपने श्वसुर जरासंध के अपार सैन्य बल का भी अभिमान था । वह गणतंत्र की अपेक्षा राजतंत्र में विश्वास रखता था । उन्होंने अपने साथियों के साथ संघ राज्य के विरुद्ध कर उपद्रव करना आरम्भ किया । अपनी वीरता और अपने श्वसुर की सहायता से उन्होंने अपने पिता उग्रसेन और बहनोई वसुदेव को शासनाधिकार से वंचित कर उन्हें कारागृह में बन्द कर दिया और आप अंधक-वृष्णि संघ का स्वेच्छाचारी राजा बन गया था । वह यादवों से घृणा करता था और अपने को यादव मानने में लज्जित होता था । उसने मदांध होकर प्रजा पर नाना प्रकार के अत्याचार किये थे । अंत में श्री कृष्ण द्वारा उनका अंत हुआ था ।

टीका टिप्पणी और संदर्भ
↑ पाणिनि 4,1,114 तथा 6,2,34
2.↑ (पृ0 12)
3.↑ 'यादवा: कुकुरा भोजा: सर्वे चान्धकवृष्णय:, त्वय्यासक्ता: महाबाहो लोकालोकेश्वराश्च ये।'महाभारत शांति0 81,29
4.↑ 'भेदाद् विनाश: संघानां संघमुख्योऽसि केशव' शाति0 81,25 ।
5.↑ दे0 मजुमदार-कार्पोरेअ लाइफ इन ऐंशेंट इंडिया–पृ0 280

साभार :ब्रज डिस्कवरी

मंगलवार, 8 मई 2012

पूर्व राज्यपाल डा. भीष्म नारायण सिंह ने किया कृष्ण कुमार-आकांक्षा यादव के बाल-गीत संग्रहों का विमोचन



युगल दंपत्ति एवं चर्चित साहित्यकार व ब्लागर कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव के बाल-गीत संग्रह 'जंगल में क्रिकेट' एवं 'चाँद पर पानी' का विमोचन पूर्व राज्यपाल डा. भीष्म नारायण सिंह और डा. रत्नाकर पाण्डेय (पूर्व सांसद) ने राष्ट्रभाषा स्वाभिमान न्यास एवं भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद्, नई दिल्ली द्वारा गाँधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में 27 अप्रैल, 2012 को किया. उद्योग नगर प्रकाशन, गाजियाबाद द्वारा प्रकाशित इन दोनों बाल-गीत संग्रहों में कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव के 30 -30 बाल-गीत संगृहीत हैं.


इस अवसर पर दोनों संग्रहों का विमोचन करते हुए अपने उद्बोधन में पूर्व राज्यपाल डा. भीष्म नारायण सिंह ने युगल दम्पति की हिंदी साहित्य के प्रति समर्पण की सराहना की. उन्होंने कहा कि बाल-साहित्य बच्चों में स्वस्थ संस्कार रोपता है, अत: इसे बढ़ावा दिए जाने क़ी जरुरत है. पूर्व सांसद डा. रत्नाकर पाण्डेय ने युवा पीढ़ी में साहित्य के प्रति बढती अरुचि पर चिंता जताते हुए कहा कि, यह प्रसन्नता का विषय है कि भारतीय डाक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी होते हुए भी श्री यादव अपनी जड़ों को नहीं भूले हैं और यह बात उनकी कविताओं में भी झलकती है. युगल दम्पति के बाल-गीत संग्रह क़ी प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि इसमें आज का बचपन है और बीते कल का भी और यही बात इन संग्रह को महत्वपूर्ण बनाती है.


कार्यक्रम में राष्ट्रभाषा स्वाभिमान न्यास के संयोजक डा. उमाशंकर मिश्र ने कहा कि यदि युगल दंपत्ति आज यहाँ उपस्थित रहते तो कार्यक्रम कि रौनक और भी बढ़ जाती. गौरतलब है कि अपनी पूर्व व्यस्तताओं के चलते यादव दंपत्ति इस कार्यक्रम में शरीक न हो सके. आभार ज्ञापन उद्योग नगर प्रकाशन के विकास मिश्र द्वारा किया गया. इस कार्यक्रम में तमाम साहित्यकार, बुद्धिजीवी, पत्रकार इत्यादि उपस्थित थे.