रविवार, 15 मार्च 2009

देशज भाषाओं को जोड़ती पत्रिका ‘राष्ट्रसेतु‘

क्षेत्रवाद, विघटनवाद और प्रांतवाद के इस संक्रांति समय में भारतीय भाषाओं को जोड़ने एवं उनके अंतःसंबंधों की पड़ताल करने का महती कार्य कर रही है ‘राष्ट्रसेतु‘ पत्रिका। दिनोंदिन शोध के गिरते स्तर के कारण ‘राष्ट्रसेतु‘ जैसी साहित्य-शोध को समर्पित पत्रिकाओं का महत्व स्वयंसिद्ध है। इस द्वैमासिक पत्रिका की कार्य योजना भारतीय संविधान की बाईस भाषाओं के विभिन्न साहित्यिक-सांस्कृतिक-लौकिक आयामों को समेटने की है जो निःसंदेह स्वागत योग्य और प्रेरणादायी है। छत्तीसगढ़-रायपुर से प्रकाशित द्वैमासिक ‘राष्ट्रसेतु‘ के संपादक हैं जगदीश यादव।

आम पत्रिकाओं की लीक से हटकर यह एक प्रयोगधर्मी पत्रिका है जिसका आभास संपादकीय में मिलता है। अपने नाम को सार्थक करती इस पत्रिका में विभिन्न भारतीय भाषाओं के सांस्कृतिक, लौकिक एवं व्याकरणगत पक्षों पर गंभीर अनुशीलन प्रस्तुत किया गया है। वस्तुतः ‘राष्ट्रसेतु‘ भाषाओं के मध्य सेतु निर्माण का स्तुत्य कार्य कर एक सुदृढ़ राष्ट्र की अवधारणा को पुष्ट कर रही है जिसके लिए संपादक जगदीश यादव बधाई के पात्र हंै। अपने इस सारस्वत अभीष्ट की ओर संपादकीय आलेख में खुलासा किया गया है जिसकी पुष्टि, पत्रिका में समाहित सामग्री का अवलोकन करने से हो जाती है।
संपर्क- जगदीश यादव, मिश्रा भवन, आमानाका, रायपुर (छत्तीसगढ़)

बुधवार, 11 मार्च 2009