सोमवार, 30 जुलाई 2012

यदुवंशी सुशील कुमार ने ध्वज वाहक बनकर किया लंदन ओलम्पिक-2012 में भारतीय दल का नेतृतव

भारतीय ओलम्पिक संघ द्वारा पहलवान सुशील कुमार को लंदन ओलम्पिक खेलों में भारतीय दल का ध्वज वाहक नियुक्त किया गया, जिसके क्रम में उन्होंने उद्घाटन समारोह में बखूबी अपनी भूमिका का निर्वाह किया. गौरतलब है कि यदुवंश से सम्बन्ध रखने वाले सुशील कुमार ने विश्व कुश्ती चैम्पियनशिप 2010 में 66 किलो भारवर्ग की फ्रीस्टाइल प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक तथा वर्ष 2008 में बीजिंग ओलम्पिक में पुरुष के 66 किलोग्राम फ्रीस्टाइल कुश्ती प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता था. यह बीजिंग ओलम्पिक में भारत का तीसरा पदक था. पहला पदक निशानेबाज अभिनव बिन्द्रा ने 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में जीता जो कि ओलम्पिक इतिहास में भारत का पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक था. दूसरा विजेन्द्र कुमार ने मुक्केबाजी में कांस्य पदक जीता. अपनी इन्हीं सब उपलब्धियों के चलते जुलाई 2009 में सुशील कुमार सोलंकी को भारत का सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न पुरुस्कार प्रदान किया गया. यह भारत के लिए कुश्ती में दूसरा पदक था. इससे पहले वर्ष 1952 में हैलेसिंकी ओलम्पिक खेल में केडी जाधव (K D Jadhav) ने कांस्य पदक जीता था.

--राम शिव मूर्ति यादव : यदुकुल

बुधवार, 25 जुलाई 2012

चौधरी हरमोहन सिंह यादव : ग्राम सभा से राज्य सभा तक का सफ़र ख़त्म

शौर्य चक्र से सम्मानित वरिष्ठ सपा नेता चौधरी हरमोहन सिंह यादव का 24 जुलाई , 2012 दिन मंगलवार देर रात मेहरबान सिंह का पुरवा स्थित आवास पर हृदय गति रुकने से निधन हो गया। वह 91 वर्ष के थे। गुरुवार को घर के पास स्थित समाधि स्थल में उनका अंतिम संस्कार हुआ, जहाँ मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव सहित तमाम दिग्गज लोग अंतिम संस्कार में शामिल हुए.

18 अक्तूबर 1921 को कानपुर में चौधरी धनीराम सिंह के सुपुत्र रूप में जन्मे हरमोहन सिंह ने वक़्त के माथे पर एक लम्बी इबारत लिखी. मात्र हायर सेकेंडरी पास इस जुनूनी व्यक्तित्व ने छह दशक की राजनीति में ग्राम सभा से लेकर राज्य सभा के सफर में अपनी अलग पहचान बनायी। मुलायम सिंह यादव का हर कदम पर साथ देकर कभी मिनी मुख्यमंत्री तो कभी छोटे साहब कहलाये। हरमोहन सिंह को उनके बड़े भाई स्व. रामगोपाल सिंह यादव राजनीति में लाये थे। वह 31 की उम्र में गुजैनी ग्रामसभा के निर्विरोध प्रधान बने तब किसी ने सोचा न होगा कि एक दिन यही हरमोहन सिंह कानपुर में समाजवाद का मजबूत स्तंभ बनेंगे। ग्राम प्रधान से शुरू उनकी राजनीतिक यात्रा का सिलसिला आगे बढ़ता गया। वह नगर महापालिका में पार्षद बने और लगातार 42 वर्ष तक महापालिका, फिर नगर निगम के पदेन सदस्य रहे। उन्हें जिला सहकारी बैंक के प्रथम अध्यक्ष होने का गौरव भी हासिल हुआ। वर्ष 70 में वह एमएलसी बने और वर्ष 90 तक इस सफर में तीन बार एमएलसी रहे। 80 के दशक मेंअखिल भारतीय यादव महासभा के अध्यक्ष बने। इसी दशक में चौधरी चरण सिंह का उत्तराधिकार उनके पुत्र अजीत सिंह को मिलने के कारण मुलायम सिंह की उनसे खटपट हो गयी। मुलायम कमजोर पड़ रहे थे, तभी भरी सभा में हरमोहन सिंह ने कहा कि मुलायम सिंह यादव चाहे हीरो रहें या जीरो, हम तो मुलायम सिंह का ही साथ देंगे। उनके इस ऐलान के बाद मुलायम सिंह लोकदल से अलग हो गये तथा हेमवती नंदन बहुगुणा के साथ लोकदल (ब) गठित किया। तभी से हरमोहन सिंह, मुलायम सिंह के पारिवारिक सदस्य हो गये। चौधरी साहब ने 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद रतनलाल नगर में 4 -5 घंटे बेटे चौधरी सुखराम सिंह यादव के साथ दंगाइयों पर हवाई फायरिंग करके सिख भाइयों की रक्षा की थी। इस वजह से 1991 में तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन ने उन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित किया था।

1989 में मुलायम सिंह के मुख्यमंत्री बनने पर हरमोहन सिंह का प्रभाव ऐसा बढ़ा कि लोग उन्हें मिनी मुख्यमंत्री कहने लगे। उनके आवास को साकेत धाम कहा गया तथा सत्ता की राजनीति में चौधरी हरमोहन सिंह कानपुर क्षेत्र का केंद्र बन गये थे। सपा के दायरे में तब से आज तक यही माना गया कि मुलायम सिंह यादव कभी चौधरी हरमोहन सिंह यादव की बात को टालते नहीं है। मुलायम सिंह ने नब्बे के दशक में चौधरी हरमोहन सिंह को दो बार राज्यसभा सदस्य बनाया। मुलायम सिंह उनको छोटे साहब कहकर बुलाते थे। चौधरी हरमोहन 18 वर्ष तक विधान परिषद और 12 वर्ष तक राज्यसभा में रहे। चौधरी हरमोहन सिंह के प्रभाव का ही कमाल रहा जो उनके पुत्र सुखराम सिंह एमएलसी और फिर विधान परिषद के सभापति बने। दूसरे पुत्र जगराम सिंह दो बार विधायक बने, स्व. हरनाम सिंह व अभिराम सिंह को भी पद दिलाये। कई नेताओं को विधान सभा व लोकसभा के लिये टिकट तथा अन्य पद दिलाये। यादव समाज के लिये गाजियाबाद में श्रीकृष्ण भवन बनवाया। मेहरबान सिंह पुरवा पर उनकी मेहरबानियां हमेशा बरसती रहीं। उनकी बदौलत वहां पर प्राइमरी से लेकर डिग्री विधि महाविद्यालय और पैरा मेडिकल कालेज स्थापित हो चुके हैं। हर तरफ से आने वाली रोड व नालियां चकाचक हैं और मनोरंजन एकता पार्क भी है। उम्र का बंधन उनकी राजनीतिक उमंग को कम नहीं कर पाया। वर्ष 2003 में राज्यसभा सांसद पद खत्म हो गया तो वह मेहरबान सिंह पुरवा में ही अपना आवास बना कर सपाइयों का हौसला बढ़ाते रहे। अभी दस दिन पहले उनके बुलावे पर मेहरबान सिंह पुरवा आये मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने खुले मंच से कहा था कि चौधरी हरमोहन सिंह के बताये हर काम होंगे। उनसे हमारे परिवार का रिश्ता कभी कम न होगा और उसी रिश्ते को निभाने के लिये मुख्यमंत्री फिर से मेहरबान सिंह पुरवा आकर छोटे साहब को अंतिम सलामी देंगे। उन्होंने मुख्यमंत्री से कहा था कि कानपुर का सौंदर्यीकरण करा दो, उसके पहले ड्रेनेज सिस्टम सुधारा जाये। इस इच्छा को पूर्ण देखे बिना वह चले तो गये लेकिन उनका ग्राम सभा से लेकर राज्यसभा का सफर इतिहास बन गया।
-राम शिव मूर्ति यादव : यदुकुल

नाम -चौधरी हरमोहन सिंह यादव/
जन्म - 18 अक्टूबर, 1921, मेहरबान सिंह का पुरवा, कानपुर नगर/
पिता -चौधरी धनीराम सिंह यादव/
वैवाहिक स्थति - विवाह, श्रीमती गयाकुमारी जी के साथ। आपके पाँच पुत्र एवं एक पुत्री है/
शिक्षा -हायर सेकेण्डरी/
राष्ट्रीय अध्यक्षः
अखिल भारतीय यादव महासभा, सन् 1980 (मथुरा)/
अखिल भारतीय यादव महासभा, सन् 1993 (हैदराबाद)/
अखिल भारतीय यादव सभा, सन् 1994 /
अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा के का0 अध्यक्ष 2007 तक/
संस्थापकः
श्रीकृष्ण भवन, वैशाली, गाजियाबाद/
कैलाश विद्यालोक इण्टर काॅलेज/
चौधरी रामगोपाल सिंह विधि महाविद्यालय, मेहरबान सिंह का पुरवा, कानपुर/
मनोरंजन एकता पार्क, कानपुर/
गयाकुमार इण्टर काॅलेज एवं छात्रावास, मेहरबान सिंह का पुरवा, कानपुर/
मोहन मंदिर, मेहरबान सिंह का पुरवा, कानपुर/
राजनैतिक :
प्रधान (निर्विरोध), लगातार दो बार, ग्रामसभा गुजैनी, सन् 1952/
सदस्य, (निर्विरोध), अंतरिम जिलापरिषद/
सभासद, कानपुर महापालिका सन् 1959, दूसरी बार, 1967/
पदेन सदस्य, कानपुर नगर निगम, लगभग 42 वर्ष/
जिला सहकारी बैंक के प्रथम अध्यक्ष/
उत्तर प्रदेश भूमि विकास बैंक के उपाध्यक्ष (निर्विरोध)/
दिनांक 06 मई, 1970 को प्रथम बार कानपुर-फर्रूखाबाद स्थानीय निकाय निर्वाचन क्षेत्र से उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित। आपका कार्यकाल 05 मई, 1976 तक रहा।/
द्वितीय बार दिनांक 06 मई, 1976 को कानपुर-फर्रूखाबाद स्थानीय निकाय निर्वाचन क्षेत्र से उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित। आपका कार्यकाल 05 मई, 1982 तक रहा। /
तृतीय बार दिनांक 06 मई, 1984 से जनता दल समाजवादी के टिकट पर विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित। आपका कार्यकाल 05 मई, 1990 तक रहा।/
सभापति (दो बार) उत्तर प्रदेश विधान परिषद की आश्वासन समिति के। /
संसदीय राजभाषा समिति के सदस्य रहे।/
पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष, लोकदल।/
पूर्व सदस्य, राष्ट्रीय कार्यकारिणी, लोकदल एवं जनता दल।/
सदस्य, राज्य सभा सन् 1990 से 1996 तक।/
सदस्य राज्यसभा सन् 1997 से 2003/
महामहिम राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत।/
रुचिः समाजसेवा, ग्रामीण विकास एवं किसानों के हितों की रक्षा में। /
अन्यः सन् 1984 में श्रीमती इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद रतन लाल नगर, कानपुर के सिख भाइयों की लगभग 4-5 घण्टे अपने सुपुत्र चौधरी सुखराम सिंह यादव (सभापति, विधान परिषद उत्तर प्रदेश) के साथ हवाई फायरिंग करके दंगाइयों से रक्षा करने के कारण सन् 1991 में भारत के महामहिम राष्ट्रपति द्वारा शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया।/
स्थायी पताः ग्राम मेहरबान सिंह का पुरवा, तहसील व जिला-कानपुर, उ0प्र0।
देहावसान : 24 जुलाई , 2012

-राम शिव मूर्ति यादव : यदुकुल

सोमवार, 2 जुलाई 2012

सुरों का महासंग्राम के विजेता बने अरूणदेव यादव

भोजपुरी चैनल महुआ टीवी के लोकप्रिय शो ‘सुरों का महासंग्राम’ के विजेता के ताज झारखण्ड के अरूणदेव यादव का माथे चढ़ल जे बिहार के प्रतीक राज के आठ हजार वोट से हरा दिहलें. पटना के बी.एम.पी. ग्राउण्ड से लाइव कार्यक्रम के ग्रैण्ड फिनाले में यु.पी. के कल्पना तिसरका जगहा रहली.

पचास हजार लोग का मौजुदगी में भइल एह फिनाले में मनोज तिवारी, निरहुआ, पाखी हेगड़े, संभावना सेठ, प्रवेशलाल, शुभी शर्मा, उत्तम तिवारी, संगीतकार धनंजय मिश्रा, सतीश, अजय, गायक मोहन राठौर, ममता रावत आ आलोक कुमार रंगारंग कार्यक्रम पेश कइलें.

साभार : CinemaBhojpuri.in

रविवार, 1 जुलाई 2012

सादगी से मनाया गया युवराज-मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का जन्मदिन

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का 39वां जन्मदिन बड़ी सादगी से बिना किसी खर्चीले समारोह के मनाया गया. उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में कहीं बधाइयों के बैनर-होर्डिग नहीं दिख रहे हैं. सरकारी और गैर सरकारी किसी भी आयोजन की सुगबुगाहट भी नहीं है. अगर बताया न जाए तो शायद आम जनता को पता भी नहीं चलेगा कि एक जुलाई को सूबे के मुख्यमंत्री का 39 वां जन्मदिन है.

शनिवार को समाजवादी पार्टी के कार्यालय में आने वाले सैकड़ों कार्यकर्ताओं में यह जानने की उत्सुकता दिखायी दे रही थी कि मुख्यमंत्री के रूप में अपना पहला जन्मदिन अखिलेश किस रूप में मनाएंगे. पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी सब को एक ही जवाब दे रहे थे कि वह जन्मदिन मनाते कहां हैं, जो यह बताऊं कि कैसे मनाएंगे.

सत्ता के केन्द्र कालिदास मार्ग और विक्रमादित्य मार्ग पर शनिवार को रोज की तरह ही चहल-पहल थी. कालिदास मार्ग पर मुख्यमंत्री का सरकारी आवास है और विक्रमादित्य मार्ग पर उनका व उनके पिता का गैर सरकारी आवास और समाजवादी पार्टी का प्रदेश मुख्यालय है.

विक्रमादित्य मार्ग से ले कर कालिदास मार्ग तक कहीं भी अखिलेश यादव के जन्मदिन से संबंधित कोई होर्डिंग नहीं लगी है और न कोई बैनर या पोस्टर. जबकि कालिदास मार्ग और उसके आसपास के सारे इलाके पिछले पांच साल के दौरान प्रदेश की पूर्व मुखिया के जन्मदिन पर होर्डिगों, बैनरों व पोस्टरों से पट जाते थे और पूरी राजधानी पर नीला रंग छा जाता था.

भव्य आयोजनों की तैयारियां महीने भर पहले से की जाने लगती थीं. जन्मदिन तो बहाना होता था अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिनाने और जनता का दिल जीतने के लिए घोषणाएं करने का लेकिन अखिलेश ने अपनी उपलब्धियों का ढिंढोरा पीटने के लिए जन्मदिन का सहारा नहीं लिया. हालांकि मात्र एक सौ आठ दिन के कार्यकाल में उपलब्धियों के रूप में गिनाने के लिए उनके पास बहुत कुछ है.

सूबे की कमान सम्भालने के बाद अपनी कार्यशैली से उन्होंने ऐसा माहौल दिया कि नौकरशाही ने भी तनावमुक्त होकर उनके दिशानिर्देशन में प्रदेश के विकास का खाका तैयार किया और उस पर काम शुरू हो गया. जनता दर्शन के माध्यम से जनता का उनसे सीधा जुड़ाव सम्भव हो सका. वर्षों से लटकी योजनाओं और जनता की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए अनेक योजनाओं को धरातल पर लाने का काम चल रहा है.

राज्य की 20 करोड़ की आबादी को इस बात का सुकून है कि सचिवालय से लेकर सरकारी दफ्तरों तक उसकी आवाज सुनी जा रही है. जनप्रतिनिधि सदन में जनता की आवाज बन रहे हैं. फिर भी अखिलेश ने जन्मदिन के मौके का फायदा नहीं उठाया. किसी खर्चीले समारोह का आयोजन न किया जाना, उनकी सादगी और सरलता का परिचायक है.

प्रदेश के नये मुखिया ने शपथ ग्रहण के बाद से अब तक कई बार सादगी का संदेश दिया है. उन्होंने कालिदास मार्ग के सारे बैरियर हटवा कर एक बार फिर यह रास्ता आम लोगों के लिए खोल दिया.

अपने काफिले में 40 कारों की संख्या घटा कर केवल 8 कर दी. मुख्यमंत्री के गुजरने वाले रास्तों पर आधे घण्टे पूर्व से यातायात पर लगने वाले प्रतिबंध को समाप्त कर यह एहसास कराया कि वह भी आम आदमी से अलग नहीं हैं.

ताहिर अब्बास : सहारा न्यूज ब्यूरो

चिरंजीवी भव अखिलेश यादव : जीवन यात्रा के 40 वें वर्ष में प्रवेश

आज उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का जन्मदिन है. उन्होंने अपने जीवन यात्रा के 39 साल पूरे कर 40 वें वर्ष में प्रवेश किया है. आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश और देश के सबसे युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का जन्म 1 जुलाई 1973 को प्रदेश के इटावा जिले के सैफेई गाँव में हुआ था उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव रविवार को अपना 39वां जन्मदिन सादगीपूर्ण तरीके से मना रहे हैं और उन्होनें ज्यादातर समय अपने परिवार के लिए रखा है। इस अवसर पर कोई सरकारी आयोजन नहीं किया गया है। गौरतलब है कि देश के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने गत 15 मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव व उनकी पहली पत्नी मालती देवी की एक मात्र संतान अखिलेश ने राजस्थान के धौलपुर स्थित मिलेट्री स्कूल से अपनी शिक्षा पूरी की जिसके बाद उन्होंने मैसूर के एस०जे० कालेज ऑफ इंजीनियरिंग से इंजीनियरिंग में स्नातक किया और आस्ट्रेलिया के सिडनी विश्वविद्यालय से पर्यावरण अभियान्त्रिकी में स्नातकोत्तर कर राजनीति की दुनिया में अपने हाथ अजमाए

विदेश से इंजीनियरिंग की पढाई करके लौटे अखिलेश यादव ने 1999 में डिम्पल यादव से शादी करने के बाद वर्ष 2000 में कन्नौज लोकसभा से उप चुनाव लड़कर अपना राजनैतिक करियर शुरू किया कन्नौज से सांसद बने अखिलेश के विषय में राजनैतिक विशेषज्ञों की शुरूआती राय कुछ अच्छी नहीं थी, जिसका नतीजा था कि अखिलेश की पहली जीत का श्रेय उनके पिता मुलायम सिंह यादव को चला गया जिसके बाद 2004 व 2009 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश ने कन्नौज सीट पर अपना दबदबा कायम रखते हुए राजनीति के पंडितों की राय को गलत साबित कर दिया, लेकिन चुनावी दांवपेंचों में कमज़ोर अखिलेश यादव 2009 के चुनाव में फिरोजाबाद सीट से डिम्पल को जिता पाने में नाकाम साबित हुए

पत्नी डिम्पल की हार ने बदला अखिलेश का राजनैतिक नजरिया -

2009 के लोकसभा चुनाव में पत्नी डिम्पल की हार के बाद सजग हुए अखिलेश यादव ने वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की हार की समीक्षा की और पार्टी कार्यकारिणी में फेर बदल करना शुरू किया पार्टी में मौजूद पुराने दिग्गजों के बीच एक नई और युवा सोच लेकर आगे बढे अखिलेश ने 2012 के विधानसभा से पहले ही अपनी रणनीति तैयार कर चुनावी संचालन की बागडोर अपने हाथ लेली

अपनों से भी ली बुराई -

अखिलेश के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव में उतरने वाली समाजवादी पार्टी के दिग्गज अखिलेश को लेकर विश्वस्त नहीं थे सूत्रों की माने तो कई मौकों पर सीनियर नेताओं ने पार्टी मुखिया मुलायम सिंह से मिलकर अपना विरोध भी दर्ज करवाया, लेकिन चुनावी नतीजों ने साबित कर दिया कि अखिलेश यादव में अपने पिता वाली नेतृत्व क्षमता है

युवाओं की पसंद बने अखिलेश -

इंजीनियरिंग की पढाई कर राजनीति में उतरे अखिलेश फुटबाल और क्रिकेट देखना व खेलना पसंद करते है इसके साथ ही युवा विचारधारा से मेल खाती उनकी सोच और आधुनिक सूचना तकनिकी के जानकार मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश आज प्रदेश ही नहीं देशभर के युवाओं की प्रेरणा है

एक जिम्मेदार पुत्र, पति और पिता -

मुलायम सिंह यादव के पुत्र होने की जिम्मेदारी बखूबी निभाने वाले अखिलेश एक अच्छे पति और पिता के रूप में भी पहचाने जाते हैं अखिलेश दो बेटियों अदिति, टीना और बेटे अर्जुन के पिता हैं

एक मुख्यमंत्री के रूप में-

महज 38 वर्ष की उम्र में मुख्यमंत्री के तख़्त तक पहुँचने वाले उत्तर प्रदेश के पहले युवा अखिलेश के नेत्रित्व वाली सरकार ने 22 जून, 2012 को अपने 100 दिन पूरे किये अखिलेश सरकार ने जनविकास के कई महत्वपूर्ण फैसले लिए अल्प समय में ही उन्होंने अपनी अच्छी छाप छोड़ी है.

अखिलेश यादव के 39 वें जन्मदिन पर हम शुभकामनाये देते हैं इसके साथ ही ईश्वर से प्रार्थना करते है कि वह उन्हें वो शक्तियां दे जिससे वह प्रदेश की जनता की उम्मीदों को पूरा करने में कामयाब हों कर प्रदेश के सफल मुख्यमंत्री के रूप में पहचाने जाएँ