शनिवार, 31 मार्च 2012

कन्नौज से चुनाव लड़ेंगी डिंपल यादव

कन्नौज संसदीय सीट से एक बार चुनावी मैदान में उतर सकती हैं उत्तर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की बेटर हॉफ यानी कि डिंपल यादव। अखिलेश यादव के रूख से तो यही नजर आ रहा है। वह बार-बार यही दोहरा रहे हैं कि कन्नौज की जनता तय करेगी कि वहां से कौन चुनाव लड़े। जनता की तरफ से लगातार डिंपल को संसदीय चुनाव लड़ाने के लिए हो रही मांग पर उन्होंने कहा कि जनभावनाओं के अनुरूप ही पार्टी निर्णय लेगी।

दरअसल अखिलेश यादव कन्नौज से सांसद हैं, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद उन्हें यह सीट छोड़नी पड़ेगी। इसीलिए अपनी पुश्तैनी सीट कन्नौज से डिंपल को लड़ाने की मांग ज्यादा हो रही है। यदि ऐसा होता है तो यह दूसरा अवसर होगा जब डिंपल अपने पति की छोड़ी गई सीट पर चुनाव लड़ेंगी। वो इससे पहले फिरोजाबाद से लोकसभा का उपचुनाव लड़ चुकी है।

हालांकि तब उन्हें हार का सामना करना पड़ा था लेकिन तब के औऱ अब के हालात बिल्कुल अलग है इसलिए इस बार अगर डिंपल अगर चुनाव में उतरती हैं तो यह फैसला सपा के हक में आ सकता है। वैसे मुलायम सिंह यादव इस सीट पर अपने भाई शिवपाल को चुनाव लड़ाना चाहते थे लेकिन वे इसके लिए तैयार नहीं हैं। इससे भी डिंपल के लिए चुनाव की बात हो रही है।
-राम शिव मूर्ति यादव : यदुकुल

मुलायम सिंह यादव को मिलेगा लंदन में अंतर्राष्ट्रीय जूरी पुरस्कार


उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मुलायम सिंह यादव को आगामी 28 मई को लंदन में अंतर्राष्ट्रीय जूरी पुरस्कार से नवाजा जाएगा। इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ जूरिस्ट की जारी विज्ञप्ति में हाईकोर्ट ऑफ लंदन के सेवानिवृत न्यायाधीश सर गाविन लाइटमैन ने यह जानकारी देते हुए बताया कि श्री यादव का इस पुरस्कार के लिये चयन बार और पीठ की प्रगति में बेझिझक योगदान देना है। उन्होंने कहा कि श्री यादव का विधि एवं न्याय क्षेत्र से जुड़े लोगों में भाईचारा पैदा करने में सहयोग दुनियाभर में लाजवाब है।

इस समारोह में प्रख्यात लेखक एवं एटार्नी साराह बूथ द्वारा यादव की लिखित जीवनी साहित्य भी उन्हें भेंट की जाएगी। समारोह में जॉर्डन के प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायधीशों और न्यायमूर्तियों, मंत्री, सांसद, बार पदाधिकारी और विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ता भाग लेंगे।


ज्ञातव्य है कि श्री मुलायम सिंह यादव ने विधि क्षेत्र में खासा योगदान दिया है। समाज में भाईचारे की भावना पैदाकर मुलायम सिंह यादव ने लोगों को न्‍याय दिलाने में विशेष योगदान दिया है। श्री यादव ने कई विधि विश्‍वविद्यालयों में भी खासा योगदान दिया है।

रविवार, 25 मार्च 2012

नन्हीं ब्लागर अक्षिता (पाखी) यादव को जन्मदिन पर बधाई

आज हिंदी की नन्हीं ब्लागर अक्षिता का जन्म-दिन है. ब्लागिंग जगत में अक्षिता अब किसी परिचय का मोहताज नहीं रही, आखिर ब्लागिंग के लिए उसे भारत सरकार द्वारा सर्वप्रथम सरकारी सम्मान से नवाजा जा चुका है, वहीँ भारत में सबसे कम उम्र में राष्ट्रीय बाल पुरस्कार पाने का श्रेय भी अक्षिता के खाते में दर्ज है. चर्चित बाल विज्ञानं पत्रिका चकमक ने फरवरी-२०१२ अंक में अक्षिता का सुन्दर सा शिशु-गीत भी प्रकाशित किया है तो आकाशवाणी पोर्टब्लेयर से उसका साक्षात्कार भी भी प्रसारित हो चुका है. ऐसी ही तमाम उपलब्धियों से सुवासित इस नन्हीं सी परी का आज (25 मार्च) जन्म-दिन है.


अक्षिता को जन्म-दिन पर ढेरों बधाइयाँ, प्यार और आशीर्वाद.
तुम जियो हजारों साल, साल के दिन हों पचास हजार !!

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नाम-अक्षिता (पाखी)
जन्म- 25 मार्च, 2007 (कानपुर)
मूल निवास - तहबरपुर, आजमगढ़ (यू.पी.)
मम्मी-पापा - श्रीमती आकांक्षा श्री कृष्ण कुमार यादव
अध्ययनरत - के. जी.-II,
रुचियाँ- ड्राइंग, डांसिंग, प्लेयिंग.

प्रकाशन- इंटरनेट पर ब्लागोत्सव-2010, बाल-दुनिया, नन्हा-मन, सरस पायस, ताऊजी डाट काम, युवा-मन इत्यादि एवं चकमक, टाबर टोली, अनंता, सांवली इत्यादि पत्र-पत्रिकाओं में ड्राइंग/रचनात्मक अभिव्यक्ति का प्रकाशन.

प्रसारण- आकाशवाणी पोर्टब्लेयर से ‘बाल-जगत’ कार्यक्रम में प्रसारण.

ब्लॉग :‘पाखी की दुनिया’ का 24 जून, 2009 को आरंभ. इसमें अक्षिता (पाखी) की ड्राइंग, क्रिएटिविटी, फोटो, परिवार और स्कूल की बातें, घूमना-फिरना, बाल-गीत सहित बहुत कुछ शामिल है. 82 से ज्यादा देशों में अब तक देखे/पढ़े जाने वाली ‘पाखी की दुनिया’ का 200 से ज्यादा लोग अनुसरण करते हैं. 235 से ज्यादा प्रविष्टियों से सुसज्जित इस ब्लॉग को 36,500 से ज्यादा लोगों ने पढ़ा/देखा है. दिल्ली से प्रकाशित प्रतिष्ठित राष्ट्रीय हिंदी दैनिक ‘हिन्दुस्तान‘ के अनुसार-‘अक्षिता की उम्र तो बेहद कम है, लेकिन हिन्दी ब्लागिंग में वो एक जाना-पहचाना नाम बन चुकी है। अक्षिता का ब्लाग बेहद पापुलर है और फिलहाल हिन्दी के टाॅप 100 ब्लॉगों में से एक है।'

विशेष -राजस्थान के वरिष्ठ बाल-साहित्यकार दीन दयाल शर्मा द्वारा अपनी पुस्तक ‘चूं-चूं’ के कवर-पेज पर अक्षिता (पाखी) की फोटो का अंकन. दीन दयाल शर्मा, रावेन्द्र कुमार ‘रवि’, डॉ. नागेश पांडेय ‘संजय’, एस. आर. भारती, डा. दुर्गाचरण मिश्र, द्वारा अक्षिता (पाखी) पर केन्द्रित बाल-गीतों/कविता की रचना.

सम्मान- ब्लागोत्सव -2010 में प्रकाशित रचनाओं की श्रेष्ठता के आधार पर “वर्ष की श्रेष्ठ नन्ही ब्लागर ” के रूप में सम्मानित. हिंदी साहित्य निकेतन, परिकल्पना डॉट कॉम और नुक्कड़ डॉट कॉम की त्रिवेणी द्वारा हिंदी भवन, नई दिल्ली में 30 अप्रैल, 2011 को आयोजित अन्तराष्ट्रीय ब्लाॅगर्स सम्मलेन में श्रेष्ठ नन्हीं ब्लाॅगर हेतु उत्तराखंड के मुख्यमंत्री डा0 रमेश पोखरियाल ”निशंक” द्वारा ”हिंदी साहित्य निकेतन परिकल्पना सम्मान-2010” अवार्ड.

बाल दिवस, 14 नवम्बर, 2011 को विज्ञान भवन, नई दिल्ली में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में महिला और बाल विकास मंत्री कृष्णा तीरथ द्वारा राष्ट्रीय बाल पुरस्कार-2011 से पुरस्कृत किया. अक्षिता इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाली सबसे कम उम्र की प्रतिभा है. यही नहीं यह प्रथम अवसर था, जब किसी प्रतिभा को सरकारी स्तर पर हिंदी ब्लागिंग के लिए पुरस्कृत-सम्मानित किया गया.

पत्र-पत्रिकाओं में चर्चा-दैनिक हिंदुस्तान, दैनिक भास्कर, शुक्रवार, टाबर टोली, नेशनल एक्सप्रेस, नवोदित स्वर, बाल साहित्य समीक्षा, बुलंद इण्डिया, शुभ्र ज्योत्स्ना, सांवली, सत्य चक्र, इसमासो, हिंद क्रांति, दि मारल, अयोध्या संवाद, अंडमान-निकोबार द्वीप समाचार, The Indian Express, The Echo of India, The Daily Telegrams, Andaman Sheekha, Andaman Express, Aspect इत्यादि तमाम पत्र-पत्रिकाओं में अक्षिता और ब्लॉग ‘पाखी की दुनिया’ की चर्चा.

अंतर्जाल पर चर्चा- हिंदी मीडिया.इन, स्वतंत्र आवाज़.काम, परिकल्पना, स्वर्गविभा, क्रिएटिव मंच-Creative Manch, बचपन, सरस पायस, बाल-दुनिया, बचपन, शब्द-साहित्य, रैन बसेरा, यदुकुल, Journalist Today, Akhtar Khan Akela इत्यादि तमाम वेब-पत्रिकाओं और ब्लॉगों पर चर्चा.

संपर्क - पुत्री- श्री कृष्ण कुमार यादव, निदेशक डाक सेवा, इलाहाबाद परिक्षेत्र, इलाहाबाद-211001

ई-मेल- akshita_06@rediffmail.com

ब्लॉग- http://www.pakhi-akshita.blogspot.com/ (पाखी की दुनिया)

शनिवार, 24 मार्च 2012

यदुवंश से अखिलेश यादव बने 10 वें मुख्यमंत्री



लोकतंत्र में राजनीति सत्ता को निर्धारित करती है। राजनीति में सशक्त भागीदारी ही अंतोगत्वा सत्ता में परिणिति होती है। आजादी पश्चात से ही यदुवंशियों ने राजनीति में प्रखर भूमिका निभाना आरम्भ कर दिया। भारत के संविधान निर्माण हेतु गठित संविधान सभा के सदस्य रूप में लक्ष्मी शंकर यादव (उ0प्र0) और भूपेन्द्र नारायण मंडल (बिहार) ने अपनी भूमिका का निर्वाह किया। लक्ष्मी शंकर यादव बाद में उत्तर प्रदेश सरकार में कैबेनेट मंत्री एवं उ0प्र0 कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे। संयुक्त प्रांत (अब उ0प्र0) के प्रथम यादव विधायक ठाकुर भारत सिंह यादवाचार्य (1937) रहे। भारत में यादवों का राजनीति में पदार्पण आजादी के बाद ही आरम्भ हो चुका था, जब शेर-ए-दिल्ली एवं मुगले-आजम के रूप में मशहूर चौधरी ब्रह्म प्रकाश दिल्ली के प्रथम मुख्यमंत्री (1952-1956) बने थे।

तब से अब तक उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद भारत के विभिन्न राज्यों में 10 यादव मुख्यमंत्री पद पर आसीन हो चुके हैं। हरियाणा में 1857 की क्रान्ति का नेतृत्व करने वाले राव तुलाराम के वंशज राव वीरेन्द्र सिंह हरियाणा के द्वितीय मुख्यमंत्री (24 मार्च 1967-2 नवंबर 1967) रहे। उत्तर प्रदेश में राम नरेश यादव (23 जून 1977-27 फरवरी 1979) व मुलायम सिंह यादव (5 दिसम्बर 1989-24 जून 1991, 4 दिसम्बर 1993-3 जून 1995, 29 अगस्त 2003-13 मई 2007), बिहार में बी0पी0मण्डल (1 फरवरी 1968-02 मार्च 1968), दरोगा प्रसाद राय (16 फरवरी 1970-22 दिसम्बर 1970), लालू प्रसाद यादव (10 मार्च 1990-03 मार्च 1995 एवं 4 अप्रैल 1995-25 जुलाई 1997), राबड़ी देवी (25 जुलाई 1997-11 फरवरी 1999, 9 मार्च 1999-1 मार्च 2000 एवं 11 मार्च 2000-6 मार्च 2005) एवं मध्य प्रदेश में बाबू लाल गौर (23 अगस्त 2004-29 नवंबर 2005) मुख्यमंत्री पद को सुशोभित कर यादव समाज को गौरवान्वित किया। प्रथम महिला यादव मुख्यमंत्री होने का गौरव राबड़ी देवी (बिहार) को प्राप्त है। सुभाष यादव मध्य प्रदेश के तो सिद्धरमैया कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री रहे। यादव राज्यपालों में गुजरात में महिपाल शास्त्री (2 मई 1990- 21 दिसंबर 1990) एवं हिमाचल प्रदेश व राजस्थान में बलिराम भगत (क्रमशः 11 फरवरी 1993-29 जून 1993 व 20 जून 1993-1 मई 1998) और सम्प्रति मध्य प्रदेश में राम नरेश यादव आसीन हैं.

प्रान्तीय राजनीति के साथ-साथ यदुवंशियों ने केन्द्रीय राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अंतरिम लोकसभा (1950) के सदस्य रूप में बलिराम भगत (बिहार) चुने गए तो प्रथम लोकसभा में चौधरी बदन सिंह (कांग्रेस, बदायूं, उ0प्र0), चै० रघुबीर सिंह (कांग्रेस, मैनपुरी, उ0प्र0), बलिराम भगत (कांग्रेस, बिहार) व जयलाल मंडल (कांग्रेस, बिहार) निर्वाचित हुए। यदुवंश से बलिराम भगत को लोकसभा अध्यक्ष बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ तो श्यामलाल यादव राज्यसभा के उपसभापति रहे। चौधरी ब्रह्म प्रकाश, राव वीरेन्द्र सिंह, देवनंदन प्रसाद यादव, चन्द्रजीत यादव, श्याम लाल यादव, मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, शरद यादव, हुकुमदेव नारायण यादव, बलराम सिंह यादव, बलिराम भगत, कर्नल राव राम सिंह, राम लखन सिंह यादव, सुरेश कलमाड़ी, सतपाल सिंह यादव, कांती सिंह, देवेन्द्र प्रसाद यादव, जय प्रकाश यादव, राव इन्द्रजीत सिंह,अरूण यादव इत्यादि तमाम यदुवंशी राजनेताओं ने केन्द्रीय मंत्रिपरिषद का समय-समय पर मान बढ़ाया है। राजनैतिक दलों की बात करें तो लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव एवं शरद यादव क्रमशः राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी तथा जनता दल (यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं ।

--राम शिव मूर्ति यादव : यदुकुल

बुधवार, 21 मार्च 2012

जन आकांक्षाओं के रथी : अखिलेश यादव

अभूतपूर्व जनसमर्थन, हिलोरें मारती जनाकांक्षाओं और जबर्दस्त उत्साह के बीच अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री पद की शपथ के साथ ही प्रदेश की बागडोर संभाल ली. उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के वह सबसे युवा मुख्यमंत्री हैं. इसी के साथ उनके राजनीतिक करियर में कई और कीर्तिमान जुड़ गये हैं. वर्ष 2009 में प्रदेश संगठन की कमान संभालने वाले इस युवा ने सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के मार्गदर्शन में पार्टी का चेहरा बदलने का जनता को एहसास कराया.

अंग्रेजी और कम्प्यूटर विरोध की पुरातन सोच से पार्टी को बाहर निकालकर अपने घोषणा पत्र में उन्होंने छात्रों को मुफ्त लैपटॉप देने का वायदा कर नौजवानों को जोड़ा, जिसके चलते पार्टी को बहुमत की सरकार बनाने का यह यादगार मौका मिला. वैसे समाजवादी पार्टी अपने गठन के दो दशक के भीतर ही दो बार गठबंधन की सरकार बना चुकी है किंतु इस बार बहुमत के जनादेश का यह गौरव उन्हीं (अखिलेश) के हिस्से में गया है.

सबसे कम उम्र में संसद पहुंचने, प्रदेश संगठन की बागडोर संभालने और अब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन होने की उपलब्धियां भी उनके खाते में जुड़ गई हैं. अब वह जनाकांक्षाओं के रथी बन गए हैं. चुनावी वादे उनके सामने यक्ष प्रश्न के रूप में हैं तो समय हिसाब लेने के लिए उत्सुकता के साथ सामने खड़ा है, जो उनके राजनीतिक भविष्य का इतिहास लिखेगा.

सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह भी सबसे कम उम्र के विधायक थे. उस समय उनकी पहचान समाजवादी युवा चेहरे के रूप में थी. राजनीति के इस लंबे सफर में समाजवादी खेमे में कई ऐसे मोड़ आए. पार्टी टूटी, समाजवादी बिखरे और लामबंद हुए. उस दौर में समाजवादी पुरोधा भी उत्तर प्रदेश में अपने बलबूते बहुमत की सरकार की कल्पना नहीं करते थे.

राजनीतिक उतार-चढ़ाव के बीच मुलायम सिंह ने बीसवीं सदी के अंतिम दशक (1992में) बिखरे समाजवादियों को पुन: गोलबंद कर पार्टी बनाई और समाजवादी राजनीति को आगे बढ़ाया, जिसकी परिणति आज प्रदेश में उनकी बहुमत की सरकार के रूप में सामने है. आज के इस यादगार क्षण ने समाजवादी राजनीति के इतिहास में एक नई कड़ी जोड़ दी है.

आज उत्सव का माहौल है. हमें अगस्त, 2003 का वह दिन याद आता है जब मायावती की सरकार के पतन के बाद मुलायम सिंह यादव ने प्रदेश की सत्ता संभाली थी. जनाकांक्षाएं ऐसे ही उस समय भी हिलोरें मार रही थीं. उस वक्त दिवाली मनाकर लोगों ने अपनी खुशी का इजहार किया था. आज भी कुछ वैसा ही नजारा है. उस समय भी कुशासन के खिलाफ जनसमर्थन था. आज भी मायावती की ‘भ्रष्ट’ सरकार के खिलाफ जनादेश है.

किन्तु इस बार सत्ता की कमान अखिलेश के हाथ है. वह कसौटी पर हैं. इतिहास उनके अगले कदम के इंतजार में है. यह अवसर इसलिए महत्वपूर्ण है कि यह पीढ़ीगत बदलाव है. इसकी राजनीतिक पहल सपा सुप्रीमो ने की है. उन्होंने अकाली दल नेता प्रकाश सिंह बादल की तरह खुद राजनीतिक गद्दी संभालने की बजाय इस बार आखिलेश के रूप में अपना उत्तराधिकारी तैयार किया है. अपने इस राजनीतिक फैसले से उन्होंने अन्य पार्टियों के बड़े नेताओं को नए सिरे से सोचने के लिए विवश कर दिया है.

अब अखिलेश राजनीति में अपनी दूसरी भूमिका निभा रहे हैं, इसलिए उन्हें पूर्ववर्ती सरकार की खामियों को समझते हुए रणनीति बनानी होगी. आज जन समर्थन के साथ ही राजनीतिक अनुकूलता भी उनके पक्ष में है. केंद्र की यूपीए सरकार कमजोर स्थिति में आ गई है. उसकी प्रमुख सहयोगी पार्टी तृणमूल कांग्रेस उसे अस्थिर करने में लगी हुई है. रेल बजट के बाद ममता बनर्जी ने बढ़ा किराया वापस लेने को लेकर हंगामा मचा रखा है.

अपने कोटे के रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी को हटाने की चिट्ठी प्रधानमंत्री को भेजकर उन्होंने सरकार को संकट में डाल दिया है. सरकार की छीछालेदर हो रही है. ऐसे में राष्ट्रीय क्षितिज पर सपा का राजनीतिक महत्व बढ़ गया है. कांग्रेस आशा भरी निगाह से उसकी तरफ देख रही है. उनके शपथग्रहण समारोह में कांग्रेस के प्रतिनिधि के तौर पर संसदीय कार्यमंत्री पवन बंसल और कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा की शिरकत के भी राजनीतिक मायने हैं. इसलिए उन्हें इस नाजुक राजनीतिक समय में सोच-विचार कर रणनीति तय करने की जरूरत है.

तीसरे मोर्चे का गठन और मध्यावधि चुनाव अभी केवल संभावनाएं हैं. इसलिए उन्हें अनुकूल होते राजनीतिक अवसर का लाभ प्रदेश हित में उठाने से हिचकना नहीं चाहिए. उनकी यह राजनीतिक हैसियत उत्तर प्रदेश में मिली अभूतपूर्व सफलता से है. इसलिए केंद्र की मजबूरी का फायदा प्रदेश के विकास और चुनावी वादों को पूरा करने में उठाना चाहिए. पूर्व की एनडीए सरकार को समर्थन देकर चंद्रबाबू नायडू अपने प्रदेश के लिए ज्यादा धन और परियोजनाएं ले जाने में सफल हुए थे. इसलिए, युवा मुख्यमंत्री को ऐसी राजनीतिक संभावनाओं को तलाशने में हिचक नहीं करनी चाहिए.

हमें नहीं भूलना चाहिए कि बिहार में नीतीश कुमार और पश्चिम बंगाल में तृणमूल की भी बहुमत की सरकारें हैं. दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री विशेष आर्थिक पैकेज की मांग कर रहे हैं. ये दोनों राज्य गरीबी और भुखमरी से त्रस्त हैं. तृणमूल कांग्रेस के सांसद (यूपीए का सहयोगी दल) तो बृहस्पतिवार को आर्थिक पैकेज के लिए संसद परिसर में अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन पर बैठे थे. इन दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री केंद्र से धन न मिलने का रोना रो रहे हैं. इसी तरह मायावती भी केंद्र से लड़ती रहीं और विकास कार्य हुए ही नहीं. बुंदेलखंड में गरीबी और भुखमरी के चलते किसान आत्महत्या करते रहे और मायावती इससे निपटने के लिए केंद्र का ही मुंह ताकती रहीं.

जनता के लिए जरूरी आधारभूत ढांचे के निर्माण में कोई ठोस पहल नहीं हो सकी और मायावती को जनता का कोपभाजन बनना पड़ा. सपा ने लोक-लुभावन वादे किये हैं. रोजगार कार्यालयों में पंजीयन के लिए उमड़ती भीड़, कर्जमाफी, मुफ्त बिजली तथा उपज के लिए लाभकारी मूल्य आदि वादों को लेकर नौजवान, किसान, बुनकर आदि सभी नवगठित सरकार की ओर हसरत भरी निगाह से देख रहे हैं.

इन वादों को पूरा करने के लिए लगभग 66 हजार करोड़ रुपये की जरूरत पड़ेगी जबकि सरकार का खजाना खाली है. इतना पैसा कहां से आएगा, इस अबूझ गुत्थी को कूटनीतिक ढंग से ही सुलझाया जा सकता है. इतना ही नहीं, प्रदेश की नौकरशाही राजनीतिक धड़ों में बंटी हुई है. अफसरों की पहचान उनकी कार्यक्षमता और लगन की जगह नेताओं के खास होने के रूप में होने लगी है.

यह जातिवादी राजनीति का ही दुष्परिणाम है. यही कारण है कि नौकरशाह नेताओं को इस कदर घेर लेते हैं कि उनका फोकस जनता से हट जाता है. वर्ष 2008 में राज्य ने भीषण बाढ़ की आपदा झेली थी जिसमें 731 करोड़ की संपत्ति का नुकसान हुआ था. इसके बाद भी प्रदेश सरकार ने अपनी तरफ से कोई प्रबंध नहीं किया और ऐन चुनाव के समय मई, 2011 में बाढ़ नियंतण्रपरियोजनाओं के लिए 15 हजार करोड़ रुपये के पैकेज की मांग कर दी.

इतना ही नहीं, किसानों को बिचौलियों से बचाने के लिए वर्ष 2008 में दो हजार नई मंडियां खोलने का प्रस्ताव था. पंचायती राज विभाग और ग्राम विकास विभाग की खाली पड़ी जमीन पर मंडियां बननी थीं किंतु दो साल बाद भी इस प्रस्ताव पर अमल नहीं हो सका. यह नौकरशाही के मजबूत मकड़जाल का ही नतीजा है. ऐसे में अखिलेश को पार्टी और प्रशासन को नाथने की क्षमता दिखाने की भी चुनौती है.

-रणविजय सिंह
समूह सम्पादक, राष्ट्रीय सहारा हिन्दी दैनिक

सोमवार, 19 मार्च 2012

अखिलेश यादव : इतना आसान नहीं रहा सफ़र

बेदाग छवि, मृदुभाषी, प्रगतिशील सोच और युवा मन अखिलेश यादव की इन्हीं खासियत ने सपा की तस्वीर बदल कर रख दी है. कहने को तो अखिलेश को उत्तर प्रदेश की गद्दी विरासत में मिली है लेकिन इसके पीछे जो मेहनत अखिलेश ने की है वह भी किसी से छुपी नहीं है. एक ऐसी पार्टी को जीत का सेहरा पहनाना जिसे एक साल पहले कोई उत्तर प्रदेश की जंग का हिस्सा भी नहीं मान रहा था वाकई गजब की बात है.

सबको उम्मीद है कि अखिलेश यादव के राज में सपाराज “गुण्डाराज” बनने से बचेगा और राज्य में खुशहाली आएगी. कुछ लोगों का तो यह भी मानना है कि अगर समीकरण और ठोस कार्यक्रम के साथ सही दिशा में अखिलेश ने कदम बढ़ाए तो विकास की लहर गुजरात और बिहार की तरह यूपी में भी बहेगी. हालांकि यह सिर्फ अनुमान है पर इस युवा नेता के लिए कुछ भी नामुमकिन कहना सही नहीं लगता.

उत्तर प्रदेश के सबसे कम उम्र के सीएम अखिलेश की उम्र 38 साल है. 15 मार्च को जब उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो उनकी उम्र 38 साल आठ महीने और 14 दिन थी. अखिलेश यादव की जन्म तिथि एक जुलाई 1973 है. मायावती जब पहली बार उप्र की मुख्यमंत्री बनी थीं तो उनकी उम्र 39 साल चार महीने और 18 दिन थी.

अखिलेश यादव की साफ छवि के पीछे एक वजह उनका पारिवारिक होना भी माना जाता है. अपने पिता के सबसे करीब होने के अलावा अखिलेश एक अच्छे पति और पिता भी हैं. अखिलेश यादव की बीवी का नाम डिंपल है. दोनों की शादी को करीब 12 साल हो चुके हैं. आज दोनों के तीन बच्चे हैं – अदिति, टीना और अर्जुन.

इंजीनियरिंग में डिग्री ले चुके अखिलेश को उत्तरप्रदेश में 2012 के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर समाजवादी पार्टी का प्रादेशिक अध्यक्ष बनाया गया. पार्टी की कमान संभालते ही उन्होंने तेज गति से अपने काम शुरू कर दिए.

आइए एक नजर डालें आखिर कैसे सफल हुए अखिलेश यादव:

यूथ आईकन: इस विधानसभा चुनावों में अखिलेश यादव यूथ आईकान बनकर उभरे. छात्रों को लैपटाप व टैबलेट देने के वादे ने छात्रों और युवाओं के बीच अखिलेश यादव को ‘हीरो’ बना दिया. युवाओं को अपने साथ मिलाने के लिए टेबलेट, लैपटॉप और बेरोजगारी भत्ते जैसे लुभावने वादे घोषणापत्र में शामिल करने का विचार अखिलेश का ही था. अखिलेश ने 2007 में सपा की करारी हार से सबक लिया और चुनाव की तारीख घोषित होने से पहले वे आधे उत्तरप्रदेश का दौरा कर चुके थे.

साफ और बेदाग छवि: यूं तो उत्तर प्रदेश की जनता को दागी और बाहुबली नेताओं की आदत है पर इनके बीच अखिलेश यादव जैसे साफ छवि के नेता ने अपना असर सबसे ज्यादा छोड़ा.

साफ-सुथरी छवि, सहज अंदाज और डीपी यादव जैसे माफियाओं को पार्टी में शामिल न करने जैसे कुछ फैसलों ने उन्हें जनता का हीरो बना दिया. ऊपर से पढ़े-लिखे लोगों को टिकट देकर उन्होंने नहले पर दहला खेला.

टीम का मिला सहयोग :अखिलेश यादव ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. वह अच्छी तरह जानते हैं कि अकेले काम करने से यूपी जैसे बड़े राज्य में कोई खास फायदा नहीं होगा इसीलिए उन्होंने एक बेहतरीन टीम चुनी जिसमें अधिकतर चेहरे उनकी तरह ही नए और युवा थे. रेडियो जॉकी से लेकर प्रोफेसर तक को अपनी कोर टीम में जगह देकर उन्होंने अपनी जीत को सुनिश्चित किया. आनंद भदौरिया, संजय लाठर, नावेद सिद्दीकी, अभिषेक मिश्र और सुनील यादव ‘साजन’ जैसे उच्च शिक्षा प्राप्त और कर्मठ लोगों को अपने साथ मिलाकर उन्होंने जनता को अपने शासन में सुशासन लाने का पैगाम दिया जिसे जनता ने कबूल भी किया.

साभार : जागरण जंक्शन

शनिवार, 17 मार्च 2012

अखिलेश यादव : राजनीति के गलियारे तक का सफर

उत्तर प्रदेश की 16वीं विधानसभा के चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) को पहली बार मिले पूर्ण बहुमत के नायक पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष युवा सांसद 38 वर्षीय अखिलेश यादव का सफर किसी परीकथा से कम नहीं है।

सियासी घराने की परम्पराओं और अनुशासनयुक्त संस्कारों की थाती लिये प्रदेश के नये यूथ आइकॉन अखिलेश के अपने पिता मुलायम सिंह यादव की सत्ताशीर्ष की विरासत इतनी जल्दी सम्भालने के बारे में शायद ही किसी ने सोचा होगा।

कभी राजनीति से दूर रहकर व्यवसाय करने का इरादा बनाने वाले पर्यावरण इंजीनियर अखिलेश का सियासी सफर किसी परीकथा की तरह है। चीजों को सियासत के चश्मे से नहीं देखने के आदी रहे इस 38 वर्षीय नेता ने बमुश्किल छह माह पहले प्रदेश की सियासी जलवायु में बदलाव के लिये अपनी समाजवादी क्रांतिरथ यात्रा कर प्रदेश को मथना शुरू किया।

इस दौरान अखिलेश एक ऐसे परिपक्व राजनेता के रूप में उभरे जिसने ठेठ गंवई सियासत की छवि वाली पार्टी को गांवों के चौबारों और बैठकों के साथ-साथ शहरों के ड्राइंगरूम तक भी पहुंचाया तथा अपनी पार्टी की चाल और चेहरे के साथ-साथ तकदीर भी बदल डाली।

बेहद सौम्य और संस्कारवान व्यक्ति की छवि वाले अखिलेश चुनावी समर से पहले और उसके दौरान एक मजबूत इरादे वाले दृढ़ राजनेता के तौर पर भी सामने आये। पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खां की पैरवी के बावजूद आपराधिक पृष्ठभूमि वाले राजनेता डी पी यादव को दल में शामिल नहीं करने के दृढ़ फैसले और चुनाव टिकट वितरण में मजबूत हस्तक्षेप से उनकी छवि और पक्की हो गयी।

विधानसभा चुनाव में सपा को पहली बार 224 सीटों के रूप में प्रचंड बहुमत मिलने के बाद अखिलेश को 10 मार्च को पार्टी विधायक दल ने अपना नेता चुन लिया और 15 मार्च, 2012 को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर उन्होंने प्रदेश के इतिहास में सबसे युवा वजीर-ए-आला बन नया इतिहास रच दिया।



अखिलेश का जन्म एक जुलाई 1973 को इटावा में हुआ था। उस वक्त उनके पिता मुलायम सिंह यादव प्रदेश की राजनीति में पैर जमा रहे थे। अनुशासन के पाबंद पिता मुलायम ने अखिलेश को प्रारम्भिक शिक्षा के लिए राजस्थान के धौलपुर सैनिक स्कूल भेजा, जहां से पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय से पर्यावरणीय प्रौद्योगिकी में स्नातक और ऑस्ट्रेलिया के सिडनी विश्वविद्यालय से परास्नातक की उपाधि हासिल की।

युवा अखिलेश सिडनी से पढा़ई पूरी करके पहुंचे तो राजनीति उनकी प्रतीक्षा कर रही थी और वर्ष 2000 में उन्होंने पहली बार कन्नौज लोकसभा सीट से उपचुनाव जीत कर सक्रिय राजनीति में कदम रखा। वह सीट पिता मुलायम सिंह यादव के इस्तीफे से खाली हुई थी जो 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में मैनपुरी और कन्नौज दोनों ही सीटों से चुने गये थे। उसके बाद से अखिलेश लगातार कन्नौज लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

बढ़ती उम्र और राष्ट्रीय राजनीति में बढ़ती व्यस्तता के बीच कुछ वर्षों पहले पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव ने पार्टी की प्रदेश इकाई के नेतृत्व की जिम्मेदारी नौजवान बेटे अखिलेश के कंधे पर डाल दी और उन्होंने अपनी जिम्मेदारी भी बखूबी निभाई।

राज्य की 16वीं विधानसभा के चुनाव की औपचारिक घोषणा से पहले ही अखिलेश ने कभी क्रांति रथ यात्रा तो कभी पार्टी के चुनाव चिन्ह साइकिल से युवकों और समर्थकों की यात्राएं निकाल कर पूरे प्रदेश को छान डाला।

पार्टी सूत्रों के अनुसार, प्रदेश में पार्टी को जमाने और समाजवाद का संदेश जन-जन तक पहुंचाने के लिए अखिलेश ने दस हजार किलोमीटर की यात्रााएं की और 800 से अधिक रैलियों को संबोधित किया।

सिर पर पार्टी की लाल टोपी, सफेद कुर्ते पैजामे पर काले रंग की सदरी में संयत, विनम्र मगर दृढसंकल्प भाषणों के जरिये युवा अखिलेश ने देखते ही देखते स्वयं को प्रदेश की राजनीति का सबसे जाना पहचाना चेहरा बना लिया।

प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के करिश्मे की उम्मीदों के बीच अखिलेश समर्थकों के बीच एक नयी आशा के रूप में उभरे और जब छह मार्च को विधानसभा चुनाव के लिए मतों की गिनती शुरू हुई तो दिन चढ़ने के साथ पार्टी की स्थिति निरंतर मजबूत होती गयी और शाम ढलने तक 403 सदस्यीय विधानसभा में पार्टी की 224 सीटों पर जीत के शानदार बहुमत के साथ प्रदेश के राजनीतिक आकाश में एक नये सूरज का उदय हो चुका था।

यदुकुल : राम शिव मूर्ति यादव

गुरुवार, 15 मार्च 2012

यूपी के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने अखिलेश यादव

खांटी गंवई स्वरूप में अभिजात्य छुअन लेकर नये तेवर-कलेवर के साथ अपने बलबूते उत्तर प्रदेश में पहली बार सत्ताशीर्ष पर पहुंची समाजवादी पार्टी के युवा चेहरे अखिलेश यादव और उनकी मंत्रिपरिषद के सदस्यों ने १५ मार्च, २०१२ को पद और गोपनीयता की शपथ ली। राज्यपाल बी एल जोशी ने महानगर स्थित ला मार्टीनियर कालेज मैदान में आयोजित भव्य समारोह में प्रदेश के सबसे युवा मुख्यमंत्री अखिलेश और उनके मंत्रिमण्डलीय सहयोगियों को पद और गोपनीयता का हलफ दिलाया।

अखिलेश के साथ 19 मंत्रियों ने भी कैबिनेट मंत्री पद की शपथ ली। इनमें आजम खां, शिवपाल सिंह यादव, अहमद हसन, वकार अहमद शाह, राजा अरिदमन सिंह, आनंद सिंह, अम्बिका चौधरी, रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया, बलराम यादव, अवधेश प्रसाद, ओमप्रकाश सिंह, पारसनाथ यादव, रामगोविंद चौधरी, दुर्गाप्रसाद यादव, कामेश्वर उपाध्याय, राजाराम पाण्डेय, राजकिशोर सिंह, ब्रहमाशंकर त्रिपाठी तथा शिव कुमार बेरिया शामिल हैं। इसके साथ ही अखिलेश यादव सरकार के 29 राज्य मंत्रियों ने भी शपथ ली ।

सिडनी से इंजीनियरिंग में परास्नातक 38 वर्षीय अखिलेश को सपा का चेहरा और चाल बदलकर उसे अभिजात्य का रंग दे उसे विधानसभा चुनाव में पहली बार स्पष्ट बहुमत दिलाने में बड़ी भूमिका निभाने का श्रेय दिया जा रहा है और इस नये सिलसिले को आगे बढ़ाने के लिये पार्टी आलाकमान ने सूबे की कमान भी उन्हें सौंपी है।

अखिलेश राज्य के ऐसे पहले मुख्यमंत्री हैं जिनके पिता मुलायम सिंह यादव भी इस पद पर आसीन रह चुके हैं।

बुधवार, 7 मार्च 2012

डिम्पल यादव की हार नहीं भूले अखिलेश यादव

अंतत: उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी कि सत्ता में पुनर्वापसी... युवा अखिलेश यादव के जज्बे और करिश्मे ने रंग दिखाया और मुलायम सिंह यादव के अनुभवों ने. अखिलेश यादव यूँ ही युवराज नहीं बने हैं, बल्कि इसके पीछे भी कई दास्ताँ छुपी हुई है.

पत्नी डिम्पल यादव की हार अखिलेश के जीवन में एक निर्णायक मोड़ साबित हुई, जहाँ उन्हें यह फैसला करना था कि कौन उनका सगा है और कौन पराया. अमर सिंह के चंगुल में छटपटाती सपा, जातिवाद और गुंडाराज के आरोप, मुलायम सिंह यादव का गिरता स्वास्थ्य, मायावती का सपा के प्रति तानाशाही रवैया, समर्थन के बावजूद कांग्रेस की उपेक्षा और अंतत: राहुल फैक्टर, जिसने कभी मुलायम सिंह के करीबी रहे राजबब्बर को जिताने के लिए और डिम्पल यादव को हराने के लिए खुलकर मोर्चा लिया. उसी समय अखिलेश यादव ने कहा था कि शुरुआत राहुल की तरफ से हुई है. उसके बाद अखिलेश ने अपने को मुलायम सिंह के पुत्र की बजाय एक स्वतंत्र व्यक्तित्व के रूप में उभारना आरंभ किया. शर्मीला अखिलेश सड़कों पर लोहा लेने निकल पड़ा...और अंतत: वो खुशनसीब दिन आया, जब सपा ने अपने गठन के बाद सबसे बड़ी कामयाबी हासिल की.
उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में 224 सीटों पर जीत दर्ज कर न सिर्फ एक नई इबारत लिखी, बल्कि राहुल गाँधी के नेतृतव पर प्रश्न चिन्ह भी लगा दिया. एक डिम्पल की हार राहुल को इतनी महँगी पड़ेगी, कांग्रेसियों ने भी नहीं सोचा था. अंतत:, पहली बार राहुल गाँधी को प्रेस-कांफ्रेंस कर उत्तर प्रदेश में हुई हार की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेनी पड़ी, और मुलायम-अखिलेश को बधाई देनी पड़ी. जिस सपा का तथाकथित रूप से वे घोषणा-पत्र फाड़ कर एंग्री-यंगमैन बन रहे थे और इसे गुंडों की पार्टी बता रहे थे, उसी सपा ने अखिलेश यादव के नेतृतव में वो कर दिखाया, जिसने राहुल गाँधी का भावी प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्शन पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया. बहन प्रियंका गाँधी के कन्धों पर हाथ रखकर अपने निवास पर लौटते राहुल गाँधी को यह तो एहसास हो ही गया कि वे भले ही नाम के युवराज हों, पर असली युवराज तो अखिलेश हैं, जो लोगों के दिलों पर राज कर रहे हैं !!
-राम शिव मूर्ति यादव : यदुकुल

मंगलवार, 6 मार्च 2012

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने लिखी नई इबारत


समाजवादी पार्टी की उत्तर प्रदेश में हुई ऐतिहासिक जीत ने उन सभी लोगों के मुंह पर तमाचा मारा है, जो इसे गुंडों की पार्टी कहते थे. उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में 224 सीटों पर जीत दर्ज कर एक नई इबारत लिखी. हवा-हवाई फाइव स्टार युवराज राहुल गाँधी पर धरती-पुत्र का युवराज अखिलेश यादव भारी पड़ा. इतिहास की इबारत को समझने और पढने की जरुरत है...मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव सहित सभी समाजवादियों को इस जीत पर हार्दिक बधाई. इस बार की होली हरे रंग के नाम, जो की किसानों की जिजीविषा और समृधि का प्रतीक है !!


फेसबुक पर एक यदुवंशी ने सटीक प्रतिक्रिया दी-

यादव मचलते है तो तूफान मचल जाते है,
यादव बिगड़ते है तो भूचाल आ जाते है.

ना करो कोशिश यादवो को बदलने की,
क्योकि यादव बदलते है तो इतिहास बदल जाते है.

शनिवार, 3 मार्च 2012

जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में अभिषेक यादव बने उपाध्यक्ष


जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में दो वामपंथी छात्र संगठनों के बीच सेंट्रल पैनल के पदों पर चुनावी मुकाबले में ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन ने स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया को बुरी तरह पराजित किया। जेएनयू छात्रसंघ के इतिहास में आइसा ने लगातार दूसरी बार चारों पदों अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव और संयुक्त सचिव पर जीत दर्ज की है। चार वर्ष पहले हुए चुनाव में भी आइसा को चारों पदों पर जीत हासिल हुई थी।

कैंपस में पिछले 1 मार्च से चल रही मतगणना शनिवार को पूरी हो गई। इसमें अध्यक्ष पद पर आइसा के सुचेता डे को सबसे अधिक रिकार्ड मत 2102 मिले। एसएफआई के प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार जीको दास को 751 मत मिले। डे ने इस पद पर 1351 मतों से जीत हासिल की। उपाध्यक्ष पद पर आइसा के अभिषेक कुमार यादव को 1997 मत मिले और एसएफआई के अनघा इंगोले को 1357 मत। महासचिव पद पर आइसा के रविप्रकाश को 1908 और एआईएसएफ के दुर्गेश त्रिपाठी को 989 मत। संयुक्त सचिव पद भी आइसा के खाते में गया। यहां फिरोज अहमद ने सबसे अधिक 1778 मत हासिल किए। एसएफआई के अल्तमस को 1199 मत मिले। माकपा की छात्र इकाई एसएफआई ने भाकपा समर्थित छात्र संगठन एआईएसएफ से गठबंधन भी किया था लेकिन बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा।

गौरतलब है कि विश्वविद्यालय में 2007 के बाद एक फिर से चुनाव के जरिए छात्रसंघ की बहाली हुई है.

अभिषेक यादव को यदुकुल की तरफ से हार्दिक बधाइयाँ !!