सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

अश्विनी कुमार यादव को बेस्ट कलेक्टर का अवार्ड

अश्विनी कुमार यादव को गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा वर्ष 2009-2010 के लिए बेस्ट कलेक्टर का अवार्ड प्राप्त हुआ है। यह अवार्ड उन्हें जूनागढ़ के जिलाधिकारी के कार्यकाल हेतु दिया गया है. इस हेतु अश्विनी कुमार को 51,000 रूपये का नकद इनाम और जूनागढ़ जिले के लिए 20 लाख रूपये का इनाम दिया गया है. गौरतलब है कि अश्विनी कुमार को वर्ष 2007-08 के लिए भी पूर्व में बेस्ट कलेक्टर का अवार्ड दिया जा चूका है और उससे पूर्व वर्ष 2002-03 के लिए बेस्ट जिला विकास अधिकारी का अवार्ड भी प्राप्त हो चुका है.

आई. आई. टी. कानपुर से बी.टेक पश्चात् 1997 बीच के IAS अधिकारी रूप में चयनित अश्विनी कुमार कि गिनती तेज-तर्रार अधिकारीयों में होती है. स्वाभाव से नम्र और संवेदनशील अश्विनी कुमार मूलत: उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जनपद के सैदपुर क्षेत्र के निवासी हैं. उनके पिताश्री श्री राजेंद्र प्रसाद और माताश्री श्रीमती सावित्री देवी सैदपुर में नगर पंचायत अध्यक्ष का पद सुशोभित कर चुके हैं. अश्विनी कुमार के भाई समीर सौरभ उत्तर प्रदेश पुलिस में उप पुलिस अधीक्षक तो बड़े भाई पीयूष कुमार बहुराष्ट्रीय कंपनी में उप महाप्रबंधक हैं. अश्विनी कुमार चर्चित ब्लागर और लेखिका आकांक्षा यादव के बड़े भ्राता हैं.
अश्विनी कुमार जी को इस उपलब्धि पर हार्दिक बधाई और शुभकामनायें...!!

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

भ्रष्टाचारियों को सबक सिखा रहा है एक नौकरशाह : संतोष यादव


उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर जिले के जिलाधिकारी संतोष यादव की गिनती ईमानदार अधिकारियों में होती है. आजकल वह भ्रष्टाचारियों को सबक सिखा रहे हैं. इस पर 'जनसत्ता' अख़बार में प्रस्तुत रिपोर्ट यहाँ साभार प्रस्तुत है. संतोष यादव जैसे युवा जज्बे वाले अधिकारियों की बदौलत ही समाज प्रगति कर पता है. संतोष यादव को इस जज्बे के लिए बधाइयाँ !!

मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

हिन्दी में न्यायादेश लिखने वाले पटना हाईकोर्ट के प्रथम न्यायाधीश न्यायमूर्ति : राजेश्वर प्रसाद मंडल

बहुमुखी प्रतिभा के धनी और हिन्दी में न्यायादेश लिखने वाले पटना उच्च न्यायालय के प्रथम न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेश्वर प्रसाद मंडल ‘मणिराज’ यदुवंश की ही पैदाइश थे.उनका जन्म मधेपुरा जिला के गढिया में २० फरवरी १९२० को हुआ था. आपके दादा रासबिहारी मंडल सुख्यात जमींदार एवं बिहार के अग्रणी कांग्रेसी थे.रासबिहारी मंडल के तीन पुत्र भुवनेश्वरी प्रसाद मंडल, कमलेश्वरी प्रसाद मंडल तथा बिन्ध्येश्वरी प्रसाद मंडल राजनीति में सक्रिय थे.राजेश्वर पिता भुवनेश्वरी प्रसाद मंडल और माता सुमित्रा देवी के ज्येष्ठ पुत्र थे.टीएनबी कॉलेज भागलपुर से अर्थशाश्त्र में स्नातक और पटना वि०वि० से एम०ए० करने के बाद इन्होने १९४१ में पटना विधि महाविद्यालय से वकालत की डिग्री हासिल की.१९४० में आपके विवाह पटना में भाग्यमणी देवी से हुआ.

राजेश्वर प्रसाद मंडल १९४२ में वकालत पेशे से जुड़े.१९४६ तक मधेपुरा में वकालत करने के बाद ये १९४७ में मुंसिफ के पद पर गया में नियुक्त हुए.१९६६ में ये पटना हाई कोर्ट के डिप्टी रजिस्ट्रार बनाये गए तथा १९६९ में दुमका में एडीजे बने.१९७३ में हजारीबाग के जिला एवं सत्र न्यायाधीश के रूप में पदस्थापित हुए और फिर १९७९ में पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जैसे उत्कर्ष पद पर.१९८२ में अवकाश ग्रहण करने के पूर्व वे समस्तीपुर जेल फायरिंग जांच समिति के चेयरमैन नियुक्त हुए.१९९० में ये राष्ट्रीय एकता परिषद के सदस्य तथा १९९० में ही पटना उच्च न्यायालय में सलाहकार परिषद के सदस्य जज मनोनीत हुए.१० अक्टूबर १९९२ को इनके जीवन यात्रा का समापन पटना में ही हो गया.

बहुत सी महत्वपूर्ण उपलब्धियों से सजा था उनका जीवन.बहुत अच्छे खिलाड़ी ही नही,बहुत अच्छे इंसान भी थे वे.हिन्दी में न्यायादेश लिखने वाले पटना उच्च न्यायलय के प्रथम न्यायाधीश थे वे.उन्होंने हजार पृष्ठ से भी अधिक विस्तार में साहित्य-सर्जना की,जिनमे सभ्यता की कहानी,धर्म,देवता और परमात्मा, भारत वर्ष हिंदुओं का देश,ब्राह्मणों की धरती आदि ग्रंथों में वंचितों के प्रति अपनी पक्षधरता द्वारा यह प्रमाणित किया किया है.’जहाँ सुख और शान्ति मिलती है’ जैसे रोचक उपन्यास में उन्होंने पाश्चात्य की तुलना में भारतीय संस्कृति का औचित्य प्रतिपादित किया है तो ‘सतयुग और पॉकेटमारी’ कहानी संग्रह में अपनी व्यंग दक्षता का प्रमाण दिया है.’अँधेरा और उजाला’ के द्वारा उनके नाटककार व्यक्तित्व का परिचय मिलता है तो ‘चमचा विज्ञान’ से कवि प्रतिभा का.

सार रूप में कहें तो राजेश्वर प्रसाद मंडल मानवता के पुजारी,रूढियों के भंजक,प्रगतिकामी,सामाजिक परिवर्तन के शब्द-साधक मसीहा और सर्वोपरि एक नेक इंसान थे.स्व० राजेश्वर प्रसाद मंडल के दो अनुज क्रमश: श्री सुरेश चन्द्र यादव,पूर्व विधायक तथा श्री रमेश चन्द्र यादव (अधिवक्ता) थे.चार अत्मजों में क्रमश: डा० अरूण कुमार मंडल (अवकाश प्राप्त असैन्य शल्य चिकित्सक), सुधीर कुमार मंडल एवं शेखर मंडल (अमेरिका में उच्च शिक्षा प्राप्त करके वहीं के अधिवासी) तथा किशोर कुमार मंडल(पटना उच्च न्यायालय में माननीय न्यायमूर्ति) हैं. पौत्रों में डा० मनीष कुमार मंडल (सर्जन,आईजीआईएमएस), आशीष मंडल(दिल्ली में अपना व्यवसाय), जय मंडल(विदेश में क़ानून विद्) हैं और ऋषि मंडल अभी स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में अध्ययनरत हैं.अनुवंश परंपरा के रूप में आर० पी० मंडल हमारे बीच अभी भी मौजूद हैं.

20 फरवरी को स्व० राजेश्वर प्रसाद मंडल जी की जयंती पर श्रद्धा-सुमन !!

साभार : मधेपुरा टाइम्स

बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा कृष्ण कुमार यादव को डा0 अम्बेडकर राष्ट्रीय फेलोशिप अवार्ड-2010

भारतीय दलित साहित्य अकादमी ने युवा साहित्यकार एवं भारतीय डाक सेवा के अधिकारी श्री कृष्ण कुमार यादव को अपने रजत जयंती वर्ष में ‘’डा. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2010‘‘ से सम्मानित किया है। श्री यादव को यह सम्मान साहित्य सेवा एवं सामाजिक कार्यों में रचनात्मक योगदान के लिए प्रदान किया गया है। श्री कृष्ण कुमार यादव वर्तमान में अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएँ पद पर कार्यरत हैं.

सरकारी सेवा में उच्च पदस्थ अधिकारी होने के साथ-साथ साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय 33 वर्षीय श्री कृष्ण कुमार यादव की रचनाधर्मिता को देश की प्रायः अधिकतर प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में देखा-पढा जा सकता हैं। विभिन्न विधाओं में अनवरत प्रकाशित होने वाले श्री यादव की अब तक कुल 5 पुस्तकें- अभिलाषा (काव्य संग्रह), अभिव्यक्तियों के बहाने (निबन्ध संग्रह), अनुभूतियां और विमर्श (निबन्ध संग्रह) और इण्डिया पोस्टः 150 ग्लोरियस ईयर्स, क्रान्ति यज्ञः 1857 से 1947 की गाथा प्रकाशित हो चुकी हैं। प्रसिद्ध बाल साहित्यकार डाॅ0 राष्ट्रबन्धु द्वारा श्री यादव के व्यक्तित्व व कृतित्व पर ‘‘बाल साहित्य समीक्षा‘‘ पत्रिका का विशेषांक जारी किया गया है तो इलाहाबाद से प्रकाशित ‘‘गुफ्तगू‘‘ पत्रिका ने भी श्री यादव के ऊपर परिशिष्ट अंक जारी किया है। शोधार्थियों हेतु आपके जीवन पर एक पुस्तक ‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर : कृष्ण कुमार यादव‘‘ ( स0 डा0 दुर्गाचरण मिश्र) भी प्रकाशित हुई है। श्री यादव की रचनायें पचास से ज्यादा संकलनों में उपस्थिति दर्ज करा रहीं हैं और आकाशवाणी लखनऊ, कानपुर और पोर्टब्लेयर से भी उनकी रचनाएँ और वार्ता प्रसारित हो चुके हैं. श्री कृष्ण कुमार यादव ब्लागिंग में भी सक्रिय हैं और ‘शब्द सृजन की ओर‘ और ‘डाकिया डाक लाया‘ नामक उनके ब्लॉग चर्चित हैं।

ऐसे विलक्षण व सशक्त, सारस्वत सुषमा के संवाहक श्री कृष्ण कुमार यादव को इससे पूर्वे विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और प्रशासन के साथ-साथ सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘’महात्मा ज्योतिबा फुले फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान -2009‘‘, भारतीय बाल कल्याण संस्थान द्वारा ‘‘प्यारे मोहन स्मृति सम्मान‘‘, ग्वालियर साहित्य एवं कला परिषद द्वारा काव्य शिरोमणि-2009 एवं महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला‘ सम्मान, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ‘‘भारती रत्न‘‘, मध्य प्रदेश नवलेखन संघ द्वारा ‘‘साहित्य मनीषी सम्मान‘‘ व ‘‘भाषा भारती रत्न‘‘, साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी, प्रतापगढ द्वारा '' विवेकानंद सम्मान'' , महिमा प्रकाशन, दुर्ग-छत्तीसगढ द्वारा ''महिमा साहित्य भूषण सम्मान'' नगर निगम डिग्री कालेज, अमीनाबाद, लखनऊ द्वारा ‘‘सोहनलाल द्विवेदी सम्मान‘‘, अखिल भारतीय साहित्यकार अभिनन्दन समिति मथुरा द्वारा ‘‘कविवर मैथिलीशरण गुप्त सम्मान‘‘ व ‘‘महाकवि शेक्सपियर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान‘‘, अन्तर्राष्ट्रीय सम्मानोपाधि संस्थान, कुशीनगर द्वारा ‘‘राष्ट्रभाषा आचार्य‘‘ व ‘‘काव्य गौरव‘‘, इन्द्रधनुष साहित्यिक संस्था, बिजनौर द्वारा ‘‘साहित्य गौरव‘‘ व ‘‘काव्य मर्मज्ञ‘‘, दृष्टि संस्था, गुना द्वारा ‘‘अभिव्यक्ति सम्मान‘‘, छत्तीसगढ़ शिक्षक-साहित्यकार मंच द्वारा ‘‘साहित्य सेवा सम्मान‘‘, आसरा समिति, मथुरा द्वारा ‘‘ब्रज गौरव‘‘, श्री मुकुन्द मुरारी स्मृति साहित्यमाला, कानपुर द्वारा ‘‘साहित्य श्री सम्मान‘‘, मेधाश्रम संस्था, कानपुर द्वारा ‘‘सरस्वती पुत्र‘‘, खानाकाह सूफी दीदार शाह चिश्ती, ठाणे द्वारा ‘‘साहित्य विद्यावाचस्पति‘‘, उत्तराखण्ड की साहित्यिक संस्था देवभूमि साहित्यकार मंच द्वारा ‘‘देवभूमि साहित्य रत्न‘‘, सृजनदीप कला मंच पिथौरागढ़ द्वारा ‘‘सृजनदीप सम्मान‘‘, मानस मण्डल कानपुर द्वारा ‘‘मानस मण्डल विशिष्ट सम्मान‘‘, नवयुग पत्रकार विकास एसोसियेशन, लखनऊ द्वारा ‘‘साहित्यकार रत्न‘‘, महिमा प्रकाशन छत्तीसगढ़ द्वारा ‘‘महिमा साहित्य सम्मान‘‘, राजेश्वरी प्रकाशन, गुना द्वारा ‘‘उजास सम्मान‘‘ व ’’अक्षर शिल्पी सम्मान’’, न्यू ऋतम्भरा साहित्यिक मंच, दुर्ग द्वारा ‘‘ न्यू ऋतम्भरा विश्व शांति अलंकरण‘‘, राजेश्वरी प्रकाशन, गुना (म0प्र0) द्वारा ’’अक्षर शिल्पी सम्मान-2010’’ , साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा, राजस्थान द्वारा ''हिंदी भाषा भूषण-2010'' इत्यादि तमाम सम्मानों से अलंकृत किया गया है। ऐसे युवा प्रशासक एवं साहित्य मनीषी कृष्ण कुमार यादव को इस सम्मान हेतु बधाईयाँ।
गोवर्धन यादव, संयोजक-राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, छिंदवाडा 103, कावेरी नगर छिंदवाडा, मध्यप्रदेश

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

देवगिरि का यादव वंश

यादव वंश भारतीय इतिहास में बहुत प्राचीन है, और वह अपना सम्बन्ध प्राचीन यदुवंशी क्षत्रियों से मानता था। राष्टकूटों और चालुक्यों के उत्कर्ष काल में यादव वंश के राजा अधीनस्थ सामन्त राजाओं की स्थिति रखते थे। पर जब चालुक्यों की शक्ति क्षीण हुई तो वे स्वतंत्र हो गए, और वर्त्तमान हैदराबाद के क्षेत्र में स्थित देवगिरि (दौलताबाद) को केन्द्र बनाकर उन्होंने अपने उत्कर्ष का प्रारम्भ किया।

1187 ई. में यादव राजा भिल्लम ने अन्तिम चालुक्य राजा सोमेश्वर चतुर्थ को परास्त कर कल्याणी पर भी अधिकार कर लिया। इसमें सन्देह नहीं, कि भिल्लम एक अत्यन्त प्रतापी राजा था, और उसी के कर्त्तृत्व के कारण यादवों के उत्कर्ष का प्रारम्भ हुआ था। पर शीघ्र ही भिल्लम को एक नए शत्रु का सामना करना पड़ा। द्वारसमुद्र (मैसूर) में यादव क्षत्रियों के एक अन्य वंश का शासन था, जो होयसाल कहलाते थे। चालुक्यों की शक्ति क्षीण होने पर दक्षिणापथ में जो स्थिति उत्पन्न हो गई थी, होयसालों ने भी उससे लाभ उठाया, और उनके राजा वीर बल्लाल द्वितीय ने उत्तर की ओर अपनी शक्ति का विस्तार करते हुए भिल्लम के राज्य पर भी आक्रमण किया। वीर बल्लाल के साथ युद्ध करते हुए भिल्लम ने वीरगति प्राप्त की, और उसके राज्य पर जिसमें कल्याणी का प्रदेश भी शामिल था, होयसालों का अधिकार हो गया। इस प्रकार 1191 ई. में भिल्लम द्वारा स्थापित यादव राज्य का अन्त हुआ।

पर इस पराजय से यावद वंश की शक्ति का मूलोच्छेद नहीं हो गया। भिल्लम का उत्तराधिकारी जैत्रपाल प्रथम था, जिसने अनेक युद्धों के द्वारा अपने वंश के गौरव का पुनरुद्धार किया। होयसालों ने कल्याणी और देवगिरि पर स्थायी रूप से शासन का प्रयत्न नहीं किया था, इसलिए जैत्रपाल को फिर से अपने राज्य के उत्कर्ष का अवसर मिल गया। उसका शासन काल 1191 से 1210तक था। अपने पड़ोसी राज्यों से निरन्तर युद्ध करते हुए जैत्रपाल प्रथम ने यादव राज्य की शक्ति को भली-भाँति स्थापित कर लिया।

जैत्रपाल प्रथम का पुत्र सिंघण (1210-1247) था। वह इस वंश का सबसे शक्तिशाली प्रतापी राजा हुआ है। 37 वर्ष के अपने शासन काल में उसने चारों दिशाओं में बहुत से युद्ध किए, और देवगिरि के यादव राज्य को उन्नति की चरम सीमा पर पहुँचा दिया। होयसाल राजा वीर बल्लाल ने उसके पितामह भिल्लम को युद्ध में मारा था, और यादव राज्य को बुरी तरह से आक्रान्त किया था। अपने कुल के इस अपमान का प्रतिशोध करने के लिए उसने द्वारसमुद्र के होयसाल राज्य पर आक्रमण किया, और वहाँ के राजा वीर बल्लाल द्वितीय को परास्त कर उसके अनेक प्रदेशों पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। होयसाल राजा कि विजय के बाद सिंघण ने उत्तर दिशा में विजय यात्रा के लिए प्रस्थान किया। गुजरात पर उसने कई बार आक्रमण किए, और मालवा को अपने अधिकार में लाकर काशी और मथुरा तक विजय यात्रा की। इतना ही नहीं, उसने कलचुरी राज्य को परास्त कर अफ़ग़ान शासकों के साथ भी युद्ध किए, जो उस समय उत्तरी भारत के बड़े भाग को अपने स्वत्व में ला चुके थे।
कोल्हापुर के शिलाहार, बनवासी के कदम्ब और पांड्य देश के राजाओं को भी सिंघण ने आक्रान्त किया, और अपनी इन दिग्विजयों के उपलक्ष्य में कावेरी नदी के तट पर एक विजयस्तम्भ की स्थापना की। इसमें सन्देह नहीं, कि यादव राज सिंघण एक विशाल साम्राज्य का निर्माण करने में सफल हुआ था, और न केवल सम्पूर्ण दक्षिणापथ अपितु कावेरी तक का दक्षिणी भारत और विंध्याचल के उत्तर के भी कतिपय प्रदेश उसकी अधीनता में आ गए थे। सिंघण न केवल अनुपम विजेता था, अपितु साथ ही विद्वानों का आश्रयदाता और विद्याप्रेमी भी था। संगीतरत्नाकर का रचयिता सारंगधर उसी के आश्रय में रहता था। प्रसिद्ध ज्योतिषी चांगदेव भी उसकी राजसभा का एक उज्जवल रत्न था। भास्कराचार्य द्वारा रचित सिद्धांतशिरोमणि तथा ज्योतिष सम्बन्धी अन्य ग्रंथों के अध्ययन के लिए उसने एक शिक्षाकेन्द्र की स्थापना भी की थी।

सिंघण के बाद उसके पोते कृष्ण (1247-1260) ने और फिर कृष्ण के भाई महादेव (1260-1271) ने देवगिरि के राजसिंहासन को सुशोभित किया। इन राजाओं के समय में भी गुजरात और शिलाहार राज्य के साथ यादवों के युद्ध जारी रहे। महादेव के बाद रामचन्द्र (1271-1309) यादवों का राजा बना। उसके समय में 1294 ई. में [[दिल्ली] के प्रसिद्ध अफ़ग़ान विजेता अलाउद्दीन ख़िलजी ने दक्षिणी भारत में विजय यात्रा की। इस समय देवगिरि का यादव राज्य दक्षिणापथ की प्रधान शक्ति था। अतः स्वाभाविक रूप से अलाउद्दीन ख़िलज़ी का मुख्य संघर्ष यादव राजा रामचन्द्र के साथ ही हुआ। अलाउद्दीन जानता था, कि सम्मुख युद्ध में रामचन्द्र को परास्त कर सकना सुगम नहीं है। अतः उसने छल का प्रयोग किया, और यादव राज के प्रति मैत्रीभाव प्रदर्शित कर उसका आतिथ्य ग्रहण किया। इस प्रकार जब रामचन्द्र असावधान हो गया, तो अलाउद्दीन ने उस पर अचानक हमला कर दिया। इस स्थिति में यादवों के लिए अपनी स्वतंत्रता को क़ायम रखना असम्भव हो गया, और रामचन्द्र ने विवश होकर अलाउद्दीन ख़िलज़ी के साथ सन्धि कर ली। इस सन्धि के परिणामस्वरूप जो अपार सम्पत्ति अफ़ग़ान विजेता ने प्राप्त की, उसमें 600 मन मोती, 200 मन रत्न, 1000 मन चाँदी, 4000 रेशमी वस्त्र और उसी प्रकार के अन्य बहुमूल्य उपहार सम्मिलित थे। इसके अतिरिक्त रामचन्द्र ने अलाउद्दीन ख़िलज़ी को वार्षिक कर भी देना स्वीकृत किया। यद्यपि रामचन्द्र परास्त हो गया था, पर उसमें अभी स्वतंत्रता की भावना अवशिष्ट थी। उसने ख़िलज़ी के आधिपत्य का जुआ उतार फैंकने के विचार से वार्षिक कर देना बन्द कर दिया। इस पर अलाउद्दीन ने अपने सेनापति मलिक काफ़ूर को उस पर आक्रमण करने के लिए भेजा। काफ़ूर का सामना करने में रामचन्द्र असमर्थ रहा, और उसे गिरफ़्तार करके दिल्ली भेज दिया गया। वहाँ पर ख़िलज़ी सुल्तान ने उसका स्वागत किया, और उसे रायरायाओ की उपाधि से विभूषित किया। अलाउद्दीन रामचन्द्र की शक्ति से भली-भाँति परिचित था, और इसीलिए उसे अपना अधीनस्थ राजा बनाकर ही संतुष्ट हो गया। पर यादवों में अपनी स्वतंत्रता की भावना अभी तक भी विद्यमान थी।

रामचन्द्र के बाद उसके पुत्र शंकर ने ख़िलज़ी के विरुद्ध विद्रोह किया। एक बार फिर मलिक काफ़ूद देवगिरि पर आक्रमण करने के लिए गया, और उससे लड़ते-लड़ते शंकर ने 1312 ई. में वीरगति प्राप्त की। 1316 में जब अलाउद्दीन की मृत्यु हुई, तो रामचन्द्र के जामाता हरपाल के नेतृत्व में यादवों ने एक बार फिर स्वतंत्र होने का प्रयत्न किया, पर उन्हें सफलता नहीं मिली। हरपाल को गिरफ़्तार कर लिया गया, और अपना रोष प्रकट करने के लिए सुल्तान मुबारक ख़ाँ ने उसकी जीते-जी उसकी ख़ाल खिंचवा दी। इस प्रकार देवगिरि के यादव वंश की सत्ता का अन्त हुआ, और उनका प्रदेश दिल्ली के अफ़ग़ान साम्राज्य के अंतर्गत आ गया।

साभार : भारत कोश

बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

आई.ए.एस. राजेश यादव को राष्ट्रीय पुरस्कार

राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ने नई दिल्ली में 25 जनवरी को भारत के निर्वाचन आयोग के डॉयमण्ड जुबली समापन समारोह में राष्ट्रीय मतदाता दिवस पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के विशिष्ट सचिव और अजमेर के पूर्व जिला कलक्टर राजेश यादव को निर्वाचन कार्यो में सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से नवाचारों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया। पुरस्कार में उन्हें एक लाख रूपये नकद एक ट्राफी और प्रमाण पत्र दिया गया.

राजेश यादव को यह पुरस्कार जिला निर्वाचन अधिकारी अजमेर के पद पर सेवायें देते हुए चुनावी तंत्र में सुधार के लिए ऑन लाईन भुगतान सिस्टम विकसित कर उसे लागू करवाने का प्रयोग करने के लिए दिया गया है। इसके लिए उन्होंने गत लोकसभा चुनाव कार्य में लगाये गये अजमेर जिले के सभी 9211 अधिकारियों और कर्मचारियों के एकाउण्ट्स लेकर उनके टी.ए.डी.ए. बिल की राशि को उनके व्यक्तिगत खातों में एडवांस में ऑन लाईन भुगतान जमा करवाया। उन्होंने यह कार्य जिले की नॉडल बैंक के माध्यम से 32 बैको की 221 ऑन लाईन और 59 ऑफ लाईन शाखाओं के माध्यम से किया। इसी प्रकार जिला परिषद एवं पंचायतों के चुनाव तथा नगर निगम के चुनाव में ब्लॉक लेवल अधिकारियों से एस.एम.एम. पर मतदान प्रतिशत और मतगणना की जानकारी हासिल कर उसका ऑन लाईन प्रसारण करवाने जैसे प्रयोग किए। इस प्रकार सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से उन्होंने चुनावी तंत्र में सुधार के लिए अभिनव प्रयोग किए जिसके परिणाम स्वरूप भारतीय चुनाव आयोग ने अपने हीरक जंयती समापन समारोह और बेहतर चुनाव पद्धति पर आयोजित दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में सर्वश्रेष्ठ चुनाव पद्धति ईजाद करने वाले अधिकारी के रूप में राजस्थान के आई.ए.एस. अधिकारी राजेश यादव को पूरे देश से राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना।

उल्लेखनीय है कि भारत के निर्वाचन आयोग ने देश के सभी राज्यों और केन्द्रीय शासित राज्यों को पांच भागों में बांट कर इन सभी जोन से श्रेष्ठ चुनाव पद्धति पर प्रस्तुतीकरण करवाये थे। जिसमें नॉर्थ जोन से राजस्थान के राजेश यादव को सभी जोन्स में प्रथम चुना गया और उन्हें एक लाख रूपये के नकद राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा की गई। समारोह में पुरूस्कृत किये गये अन्य क्षेत्रीय जोन्स के सात अधिकारियों को 25-25 हजार रूपये का नकद पुरस्कार और ट्रॅाफी प्रदान की गई। उल्लेखनीय है कि यादव को अजमेर जिला कलक्टर महानरेगा के क्रियान्वयन का श्रेष्ठ कार्य करने के लिए गत वर्ष राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार भी मिल चुका है। यादव ने पिछले दिनों दिल्ली में मतदान दल कर्मियों के लिए ऑनलाईन भुगतान पद्धति का प्रस्तुतीकरण किया। उन्होंने इस पद्धति का सोर्स कोड भी भारत के निर्वाचन आयोग को सौंपा है, ताकि चुनावी तंत्र में सुधार के लिए ऑन लाईन भुगतान की इस पद्धति को देशभर में लागू किए जाने की कवायद हो सके।

समारोह में राष्ट्रपति के पति देवीसिंह पाटिल, केंद्रीय मंत्री विधि एवं न्यायमंत्री एम.वीरप्पा मोइली, सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्रीमती अम्बिका सोनी, साख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्री डॉ. एम.एस. गिल और पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवगोडा के साथ ही भारत के मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉ. एस.वाय. कुरेशी और देश-विदेश के जनप्रतिनिधि एवं अधिकारीगण मौजूद थे।

मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

न्यायिक और साहित्यिक क्षेत्र में सक्रिय : डा0 रामलखन सिंह यादव


यदुवंश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है. यत्र-तत्र बिखरे यदुवंशियों की प्रतिभा को एक जगह पर लाने के लिए ही 'यदुकुल' ब्लॉग आरंभ किया गया था. ऐसे ही एक बहुआयामी व्यक्तित्व हैं- डा0 रामलखन सिंह यादव, जो न सिर्फ न्यायिक क्षेत्र में अपनी प्रतिभा दिखा रहे हैं, बल्कि एक संवेदनशील साहित्यकार के रूप में भी समाज को राह दिखा रहे हैं. स्व. रामबिलास यादव और स्व. लाची देवी के सुपुत्र रूप में 2 मार्च 1956 को अपने ननिहाल पड़री बजार, भटनी, देवरिया (उ.प्र.) में जन्मे रामलखन यादव छात्र जीवन में अव्वल दर्जा के विद्यार्थी रहे और उन्होंने एम.ए.(मनोविज्ञान), पी.एच.डी., एल.एल.बी., पी.जी.डी.एच.आर. की उपाधियाँ ग्रहण कीं. जीवन के एक मोड़ पर डा. कुसुम लखन से मई 21, 1985 को बछउर देवरिया में उनका विवाह संपन्न हुआ. आपकी पत्नी सात्विक विचारों की हैं और आपको सदैव प्रोत्साहित भी करती रहती हैं. आपकी तीन संतान हैं- प्राची, मेधा एवं स्वर्ण सिंह।

डा0 रामलखन सिंह यादव की कई कृतियाँ अब तक प्रकाशित हो चुकीं हैं, जिन्हें काफी सराहना भी मिली है. इनमें दो शोध-प्रबंध (अंग्रेजी में, 2000 एवं 2005), लाजवन्ती के फूल (2005) काव्य-संग्रह,कटघरे में श्रीराम (2006) काव्य-संग्रह,टू स्वामी रामदेव (2006) काव्य-संग्रह (अंग्रेजी), उठो सिद्धार्थ (2007) काव्य-संग्रह, बिका हुआ फैसला (2008) कहानी-संग्रह,आ रही सुनामी (2009) काव्य-संग्रह,पूरी धरती अधूरे लोग (2010) संस्मरण-रिपोर्ताज का नाम प्रमुख है. इसके अलावा आपकी शीघ्र प्रकाश्य कृतियों में हमें चाहिए लाल किला (उपन्यास) और हनुमान आ गये हैं (महाकाव्य) शामिल हैं. आप कविताएं, कहानियाँ, लेख, समीक्षाएँ इत्यादि लगभग सभी विधाओं में बखूबी लिख रहे हैं. आपकी रचनाएँ देश की तमाम पत्र-पत्रिकाओं और संकलनों में समय-समय पर प्रकाशित होती रहती हैं-आज (पटना), हिंदुस्तान (पटना), आर्यावर्त (पटना), चंपारण-विचार (मोतीहारी), अक्षरगंधा (समस्तीपुर), कंचनलता (खेंतड़ीनगर, झुंझुनू), संसार (2007), अंतर्राष्ट्रीय काव्य-संग्रह, मथुरा, मंथन, स्मृतियों के सुमन, कवर्धा (छ.ग.) इत्यादि.

डा0 रामलखन सिंह यादव की साहित्यिक प्रतिभा के मद्देनजर तमाम प्रतिष्ठित संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित और अलंकृत भी किया है. इन्में लाला जगत ज्योति प्रसाद स्मृति-सम्मान, मुंगेर, 2006, स्व. हरि ठाकुर स्मृति-सम्मान, कवर्धा, छत्तीसगढ़, 2006, विद्यासागर (डी. लिट्.) की मानद उपाधि, विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, ईशीपुर, भागलपुर (बिहार), 2007, राष्ट्रीय शिखर साहित्य-सम्मान, 2008,भारतीय साहित्यकार संसद, समस्तीपुर, बिहार, राष्ट्रभाषा आचार्य, 2007 ई. राष्ट्रीय सम्मान के लिए चयनित, अखिल भारतीय साहित्यकार अभिनंदन समिति, बिहारीपुरा, मथुरा, उत्तर प्रदेश,काव्य-भूषण, 2008, पुष्पगंधा प्रकाशन, कवर्धा, छत्तीसगढ़, हिंदी का होमर, 2008, अ. भा. सा. अभिनंदन समिति, मथुरा, उत्तर प्रदेश जैसे तमाम सम्मान और मानद उपाधियाँ शामिल हैं।

स्थायी पता -डा0 रामलखन सिंह यादव, ग्रा. चकउर फकीर, पो. पिपरा दीक्षित, वाया-भटनी, जिला-देवरिया (उ.प्र.) पिन-274701

संपर्क/ संप्रतिः अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश-9,सिविल कोर्ट, पटना-800004 (बिहार)