रविवार, 31 अगस्त 2014

जब असली जीवन की 'मर्दानी' बनीं ममता यादव

'मर्दानी' फिल्म आजकल चर्चा में है। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के ऊपर लिखी सुभद्रा कुमारी चौहान की पंक्तियाँ  'खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झाँसी वाली रानी थी' भला किसे न याद होंगी। बदलते वक़्त और परिप्रेक्ष्य के साथ इस प्रकार की तमाम घटनाएँ सामने आती हैं तो अनायास ही लोगों के मुँह से निकला पड़ता है -खूब लड़ी मर्दानी।

अपने देश भारत के तमाम अंचलों  में महिलाओं पर हो रहे जुल्म-ओ-सितम के बीच भय और आतंक के साए में सांस ले रही महिलाओं ने खुद पर भरोसा करना सीख लिया है। इन सबके बीच मेरठ की एक दिलेर महिला ममता यादव नई मिसाल बनकर उभरी हैं। मेरठ के  सिविल लाइन क्षेत्र में 19 अगस्त, 2014 को कचहरी पुल के पास  अपनी अस्मिता और पति की रक्षा के लिए ममता ने हमलावर युवकों की पिटाई कर डाली थी। इस दौरान पुलिस  तमाशबीन बनी रही तो कुछ लोग नैतिकता का प्रवचन झाड़ रहे थे। जब वह लोगों से अपील कर रही थी, तो इन युवकों में से कुछ युवक अश्लील टिप्पणियां भी कर रहे थे और कुछ उनकी फोटो और वीडियो उतारने में लगे हुए थे।  

वस्तुत:  कार में सवार कुछ मनचले, बाइक पर पति के साथ जा रही युवती ममता यादव पर छींटाकशी करते चल रहे थे। इसी दौरान मनचलों ने कार बाइक में भिड़ा दी। जब बाइक सवार पति-पत्नी ने इसका विरोध किया तो मनचलों ने गाली- गलौज करते हुए पति पर हमला बोल दिया। यह सब देख युवती असहज हो गई। आसपास नजर घुमाकर देखा, तो पूरी भीड़ बेजान नजर आई। बुजदिल जमाने में उसे कोई अपना नहीं लगा। पास में खड़े पुलिस के जवानों में भी कोई हरकत नहीं हुई। लफंगों के हाथ से पिट रहे अधेड़ व्यक्ति को छुड़ाने के लिए कोई हाथ आगे नहीं बढ़ा। बेशर्मी की हद तो तब पार हो गई जब कइयों ने मारपीट सीन पर अपने मोबाइल के कैमरे की फ्लैश डालनी शुरू कर दी। ऐसे में भय की आबोहवा में कायर होते जा रहे समाज का घिनौने चेहरे ने युवती के अंदर हौसला भर दिया। उसने ताल ठोंकी और आधा दर्जन लड़कों से अकेले मुकाबला करते हुए उन्हें भागने पर मजबूर किया। लफंगे युवाओं ने ममता यादव  पर काबू जमाने की भरपूर कोशिश की, किंतु नारी की शक्ति और स्वाभिमान ने उनके पैर उखाड़ दिए। मामला बिगड़ता देख जब भी युवाओं ने भागने का प्रयास किया तो ममता  ने उनका रास्ता रोक लिया। तमाशबीन व जड़ हो चुकी भीड़ भी दृश्य को देख शर्मसार हो गई। कइयों ने बाद में ममता  के समर्थन में आवाज ऊंची करने की कोशिश की, जिसे उन्होंने  ने डांटकर चुप करा दिया। तमाशबीन लोगों के बीच घायल अवस्था में ही वे घर लौट आए। ममता ने कहा कि वे विक्टोरिया पार्क स्थित बिजली विभाग कार्यालय में बिल जमा कराने के लिए 23 हजार रुपये लेकर जा रहीं थीं। पैसे तो बच गए, लेकिन पति को बचाने की जद्दोजहद में उनकी चेन टूट गई। ममता यादव एलआइसी की एजेंट है और उनके पति कपड़े का व्यवसाय करते हैं। बहरहाल, लफंगों के आतंक से भयभीत भीड़ को ममता ने बहादुरी से अन्याय के खिलाफ लडऩे का संदेश दिया। लगे हाथ पुलिस को आइना दिखाया।

इस घटना के समय ममता ने हिम्मत तो दिखाई, पर इससे  वह बेहद घबराई भी हुई थीं। उन्हें  डर था कि उनके सामने आने के बाद हमलावर उनके घर तक नहीं पहुंच जाए। इसलिए वह तीन दिन से घर में चुप बैठी थीं। ममता की बड़ी बहन शशि यादव को जब पूरी घटना का पता चला तो वे दिल्ली से मेरठ पहुंचीं और ममता को मीडिया के सामने आने व पुलिस में अपनी ओर से शिकायत देने के लिए तैयार कराया। घटना के तीन दिन बाद 23 अगस्त को अंतत : तमाम झिझक को ताक पर रखकर ममता  मीडिया से मुखातिब हुई और पूरे वाकये को दोहराया। ऐसे में  अकेले दम कई युवाओं को धूल चटाने वाली ममता यादव के जज्बे की खबर राष्ट्रीय स्तर पर अख़बारों और तमाम  टीवी चैनलों की सुर्खियां बन गई।  ममता ने इस मामले की लिखित शिकायत पुलिस में की है। सामान्य सी जिंदगी जी रही ममता हाल-फिलहाल कैमरे की चकाचौंध और अखबारनवीसों के सवालों से घिरी हैं। यहाँ तक कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के आदेश पर जिले के आला अफसरान ने ममता यादव के घर जाकर उन्हें एक लाख रुपये का चेक सौंपा। ममता का कहना है कि वह चाहती है कि हमलावरों को कड़ी से कड़ी सजा मिले, जिससे समाज में संदेश जाए कि ऐसे बदमाशों के सामने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने की बजाए उनका सामना करना चाहिए।

हमलावरों के ग्रुप से अकेली लड़ने वाली साहसी महिला ममता यादव ने रविवार को साफ कहा है कि मुझे इनाम नहीं, न्याय चाहिए।ममता ने कहा कि मैं किसी व्यक्ति या पार्टी विशेष नहीं बल्कि व्यवस्था के खिलाफ बोल रही हूं। रविवार को महिला की तरफ से भी पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर ली है और उसका मेडिकल भी करा दिया है। ममता ने कहा कि यदि मुझे तीन दिनों में न्याय नहीं मिला तो जान देने से भी नहीं हिचकूंगी। मीडिया से बातचीत में  ममता यादव ने पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहा कि तीन दिन के बाद रविवार शाम को उनकी तहरीर रिसीव की गई। इसके बाद सीओ ने उनका मेडिकल परीक्षण कराया जिसमें उनके हाथ में फैक्चर आया है।ममता ने कहा कि मैं और मेरा परिवार खौफ में जी रहे हैं। चार आरोपियों में से अभी केवल एक ही आरोपी गिरफ्तार हुआ है।  ऐसे में मैं कैसे खुद को सुरक्षित महसूस कर सकती हूं। ममता ने कहा कि मैं किसी भी पार्टी पर अंगुली नहीं उठा रही हूं। बस न्याय मांग रही हूं। ममता ने कहा कि मेरे पति की जिंदगी पर खतरा मंडराया तो मैं हमलावरों से जा भिड़ी। मैंने भीड़ से मदद मांगी लेकिन कोई आगे नहीं आया था। मुझे सरकारी इनाम नहीं बल्कि न्याय चाहिए।अपने सम्मान की रक्षा करना अपराध नहीं है। ममता ने कहा कि मैंने जो किया, वह वक्त की नजाकत थी। हर इज्जतदार महिला को वही करना चाहिए जो मैंने किया। 

 .............पर यह लड़ाई तो अभी अधूरी है क्योंकि अब ममता यादव इंसाफ के लिए व्यवस्था से लड़ रही हैं !!
साभार : आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 
http://www.shabdshikhar.blogspot.in/

मंगलवार, 26 अगस्त 2014

रोहित कुमार यादव बने दिल्ली के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफंस कॉलेज के अध्यक्ष

आईएएस की परीक्षा में सी-सैट के बहाने भले ही हिंदी को नजरअंदाज कर अंग्रेजी को बढ़ावा दिया जा रहा हो और सामाजिक न्याय की अवधारणा को कुंद किया जा रहा हो, पर दिल्ली विश्वविद्यालय  के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफंस कॉलेज में 24 अगस्त 2014 को वहाँ माली का कार्य करने वाले व्यक्ति के बेटे रोहित कुमार यादव ने छात्र संघ अध्यक्ष का चुनाव जीतकर इतिहास रचा है। खास बात यह है कि जहां हर कोई ऑक्सफर्ड एक्सेंट की अंग्रेजी में बात करता हो वहां रोहित ने अपना चुनाव प्रचार हिंदी में किया। रोहित के पिता कॉलेज में ही माली का काम करते हैं।यह चुनाव कई मायनों में काफी प्रतिष्ठित माना जाता है, क्योंकि शशि थरूर भी सेंट स्टीफेंस कॉलेज के प्रेसीडेंट रह चुके हैं और सलमान खुर्शीद ये चुनाव हार गए थे।

स्टीफंस में पढ़ना किसी भी स्टूडेंट के लिए सपने की तरह होता है। देश के सबसे प्रतिष्ठित माने जाने वाले इस कॉलेज में इस साल के सीबीएसई टॉपर सार्थक का नाम भी ऐडमिशन के लिए वेटिंग लिस्ट में था। रोहित इतिहास से बीए कर रहे हैं। 12वीं तक की पढ़ाई उन्होंने इलाहाबाद से की है।

रोहित का कहना है कि उन्होंने प्रेसिडेंशियल डिबेट के दौरान भी हिन्दी में ही बात की थी। उन्होंने स्टूडेंट्स से कहा कि मैं आपके हक और समस्याओं के लिए आवाज उठाना चाहता हूं, हमारा अजेंडा वही है जो छात्रों से जुड़ा हो। इसके जवाब में तालियों की गड़गड़ाहट के साथ स्टूडेंट्स ने स्वागत किया। कॉलेज के इतने सालों के इतिहास में यह पहला मौका था जब किसी स्टूडेंट ने हिन्दी में चुनाव प्रचार किया हो।

डूटा प्रेजिडेंट और सेंट स्टीफंस में गणित की प्रफेसर नंदिता नारायण ने रोहित की जीत पर कहा कि कॉलेज स्टाफ के बच्चों को ऐडमिशन मिल जाता है। रोहित जैसे स्टूडेंट्स अब पूरे आत्मविश्वास के साथ आगे आ रहे हैं और बराबर की भागीदारी निभा रहे हैं यह देखना हमारे लिए सुखद है।

रोहित ने अपनी जीत का श्रेय कॉलेज के दोस्तों और प्रिंसिपल को दिया। जिन्होंने चुनाव लड़ने के उसके फैसले का न सिर्फ स्वागत किया बल्कि हर संभव मदद भी की। रोहित के दोस्तों ने चुनाव प्रचार के दौरान उसकी बातों को अंग्रेजी में लिख कर स्टूडेंट्स तक पहुंचाया। इस जीत के बाद रोहित का कहना है कि मेरे लिए यह गर्व का विषय है, लेकिन मैं चाहता हूं कि चुनाव जीतने के बाद स्टूडेंट्स के हक की आवाज उठा सकूं।

सेंट स्टीफेंस कॉलेज के बारे में आमतौर पर धारणा है कि यहां अंग्रेजियत और इलीटिसिज्म बहुत ज्यादा हावी है। इस कॉलेज ने राष्ट्रपति रह चुके फखरुद्दीन अली अहमद, कपिल सिब्बल, चंदन मित्रा, पुलक चटर्जी जैसे कई ताकतवर नेता और नौकरशाह दिए हैं। यहां दाखिले के लिए 95 परसेंट से ज्यादा नंबर के साथ इंटरव्यू में पास होना ज़रूरी है। लेकिन हाल के दिनों में सुल्तानपुर के सेंट्रल स्कूल से पढ़े वैभव, मुंबई की श्रेया सिन्हा, लखनऊ की फालगुनी तिवारी और अशोक वर्द्धन जैसे स्टूडेंटस ने कॉलेज की इस छवि या धारणा को तोड़ने की ठानी।

रोहित यादव के पीछे बीए थर्ड ईयर की यही टीम है, जिसने सेंट स्टीफेंस कॉलेज के तमाम स्टूडेंट के जेहन को बदला। तभी तो 21 अगस्त को सेंट स्टीफेंस के ओपेन कोर्ट के नाम से होने वाली प्रेसीडेंशियल स्पीच में जब 22 साल के सांवले रंग और दरम्याने कद के इस  लड़के ने एक हज़ार स्टूडेंटस के सामने हिंदी में कहा कि मेरा एजेंडा वहीं है, जो आप की ज़रूरत है.. तो तालियों की गड़गड़ाहट देर तक गूंजती रही। खुद वैभव मानते हैं कि रोहित के खिलाफ लड़ रहे कुछ लोगों ने उसके हिन्दी बोलने और गरीब परिवार को मुद्दा बनाया। लेकिन उसके काम को देखते हुए कॉलेज ने इस बदलाव की बयार के साथ बहना मंजूर किया। खुद श्रेया सिन्हा कहती हैं कि कॉलेज के प्रिंसीपल थंपू सर ने भी रोहित का आत्म विश्वास बढ़ाया।

रोहित कुमार यादव जैसे छात्र का अध्यक्ष बनना ये भरोसा भी दिलाता है कि नई पीढ़ी जात−पात, अमीरी गरीबी के फर्क को फेंक कर समानता के आधार पर तरक्की करने की हिमायती है।

सोमवार, 18 अगस्त 2014

योगी श्रीकृष्ण के चरित्र में विरोधाभास क्यों


कृष्ण को संपूर्ण अवतार माना जाता है, लेकिन फिर भी उनके जीवन से जुड़े कई ऐसे सवाल हैं, जिन्हें लेकर मन में अक्सर दुविधा रहती है। आइए जानें ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब : 

सवाल : वैसे तो भगवान कृष्ण धर्म की बात करते हैं लेकिन महाभारत के युद्ध में उन्होंने खुद छल और अधर्म का इस्तेमाल क्यों किया? 

जवाब : महाभारत के युद्ध को केवल दो राज्यों या राजाओं का युद्ध न होकर अच्छाई और बुराई का युद्ध कहा जा सकता है। कौरवों ने इस युद्ध से बहुत पहले ही अधर्म और छल-कपट से पांडवों को खत्म करने की साजिश शुरू कर दी थी, चाहे वह भीम को जहर खिलाकर पानी में डुबोने की कोशिश हो या लाक्षागृह को आग लगाकर पांडवों को मारने का षडयंत्र। जब इससे भी बात न बनी तो उन्होंने जुए का ऐसा खेल रचा जो पांडवों को पूरी तरह खत्म कर दे। इस अनीति और अधर्म के खात्मे के लिए कृष्ण से धर्म की अपेक्षा करना बेमायने है। भगवान कहते हैं कि जो वो कर रहे हैं, वह अधर्म है और जो हम कर रहे हैं, वह भी अधर्म है लेकिन हममें और उनमें फर्क यह है कि हम यह सब धर्म की रक्षा के लिए कर रहे हैं। धर्म की रक्षा करने की यह महान इच्छा ही हमें धर्म-अधर्म के बंधनों से मुक्त कर देती है। कृष्ण कभी नहीं कहते कि वह जो कर रहे हैं, वह सही है लेकिन वह यह जरूर कहते हैं कि वह जिस उद्देश्य से यह कर रहे हैं, वह बिल्कुल सही है। 

सवाल : कृष्ण माखन चुराते हैं और गोपियों के कपड़े उठा लेते हैं। ऐसे में उन्हें योगी कैसे कह सकते हैं? 

जवाब : यह आश्चर्य की बात है कि जो कृष्ण माखन चुराता है, गोपियों के कपड़े लेकर छुप जाता है, वह गीता का गंभीर योगी कैसे हो जाता है। यही कृष्ण के व्यक्तित्व की निजता है। यही वह विशेषता है जिससे कृष्ण हमारे इतने नज़दीक लगते हैं। कृष्ण इन विरोधों से मिलकर ही बने हैं। हमारा सारा जीवन ही विरोधों पर खड़ा है लेकिन इन विरोधों में एक लय है, एक प्रवाह है। सुख-दुख, बचपन-बुढ़ापा, रोशनी-अंधेरा, जन्म-मृत्यु ये सब विरोधी बातें हैं लेकिन एक लय में बंधे होते हैं। इसी लय में जीवन संभव होता है और इस संतुलन को साधने का संदेश देता है कृष्ण चरित्र। 

सवाल : कृष्ण ने राधा से प्रेम किया लेकिन विवाह नहीं किया? 

जवाब : कृष्ण जीवन के इस प्रसंग को लेकर तरह-तरह के तर्क और कहानियां सुनने को मिलती हैं। श्रीकृष्ण के गुरु गर्गाचार्य जी द्वारा रचित गर्ग संहिता में वर्णन मिलता है कि राधा-कृष्ण का विवाह हुआ था। आध्यात्मिक स्तर पर प्रेम की बात करने वालों के अनुसार एक विवाह न करने को लेकर यह सवाल खुद राधा ने भगवान कृष्ण से किया कि आपने मुझसे विवाह क्यों नही किया। इस पर कृष्ण बोले कि विवाह तो दो अलग-अलग मनुष्यों के बीच होता है और मैं और तुम अलग नहीं हैं। ऐसे में हमें विवाह की क्या जरूरत! तार्किकता से बात करने वाले कहते हैं कि कृष्ण से जुड़े प्रामाणिक ग्रंथों जैसे महाभारत या भागवत पुराण में राधा के नाम का उल्लेख ही नहीं मिलता और राधा नाम के चरित्र को भक्तिकाल में ही ज्यादा विस्तार मिला। राधा-कृष्ण की भक्ति की शुरुआत निम्बार्क संप्रदाय, वल्लभ-संप्रदाय, राधावल्लभ संप्रदाय, सखीभाव संप्रदाय आदि ने की। 

कृष्ण भोग, कृष्ण त्याग, कृष्ण तत्व ज्ञान है


कृष्ण उठत कृष्ण चलत कृष्ण शाम भोर है, 
कृष्ण बुद्धि कृष्ण चित्त कृष्ण मन विभोर है।

कृष्ण रात्रि कृष्ण दिवस कृष्ण स्वप्न शयन है, 
कृष्ण काल कृष्ण कला कृष्ण मास अयन है।

कृष्ण शब्द कृष्ण अर्थ कृष्ण ही परमार्थ है, 
कृष्ण कर्म कृष्ण भाग्य कृष्णहि पुरुषार्थ है।

कृष्ण स्नेह कृष्ण राग कृष्णहि अनुराग है, 
कृष्ण कली कृष्ण कुसुम कृष्ण ही पराग है।

कृष्ण भोग कृष्ण त्याग कृष्ण तत्व ज्ञान है, 
कृष्ण भक्ति कृष्ण प्रेम कृष्णहि विज्ञान है।

कृष्ण स्वर्ग कृष्ण मोक्ष कृष्ण परम साध्य है,
कृष्ण जीव कृष्ण ब्रह्म कृष्णहि आराध्य है।

जय श्री कृष्ण....!!

!! कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाइयाँ !!

(  सन्देश के रूप में  प्राप्त श्रीकृष्ण-काव्य आप सभी के साथ साभार शेयर कर रहा हूँ. इसके स्रोत या रचयिता का नाम पता हो तो जरूर बताइयेगा )


शुक्रवार, 1 अगस्त 2014

निदेशक डाक सेवाएं कृष्ण कुमार यादव को सेवा में पदोन्नति

इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं कृष्ण कुमार यादव को भारत सरकार ने सेलेक्शन ग्रेड में पदोन्नत किया है। भारतीय डाक सेवा के 2001 बैच के अधिकारी कृष्ण कुमार यादव वर्तमान में जूनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड में थे और अब उन्हें भारत सरकार ने पे बैंड-4 में नान फंक्शनल सेलेक्शन ग्रेड (वेतनमान-रू 37,400-67,000, ग्रेड पे-8700) में पदोन्नत किया है।  कृष्ण कुमार यादव सहित उनके बैच के सभी 9 अधिकारियों को यह पदोन्नति 1 जनवरी 2014 से दी गयी है। 

कृष्ण कुमार यादव भारतीय डाक सेवा के लोकप्रिय अधिकारियों में गिने जाते हैं। उन्होंने भारतीय डाक सेवाओं को आम जन में और ज्यादा उपयोगी बनाने के लिए सतत् प्रयास किए हैं। उनका विभिन्न विषयों पर साहित्य लेखन बहुत सशक्त है, जिसके लिए उनको कई प्रतिष्ठित सम्मान भी मिले हैं। उन्होंने अपने मूल कार्य क्षेत्र में भी हिंदी के उपयोग और विकास में बेहतर योगदान दिया है। कृष्ण कुमार यादव के पिताश्री श्रीराम शिवमूर्ति यादव भी हिंदी साहित्य के क्षेत्र में एक नाम हैं।  इनकी पत्नी श्रीमती आकांक्षा यादव जहाँ  हिंदी साहित्य, लेखन और ब्लागिंग में बखूबी सक्रिय हैं, वहीँ  इनकी पुत्री अक्षिता (पाखी) भी एक नवोदित ब्लागर है। कृष्ण कुमार यादव की कार्यप्रणाली में उच्चकोटि की रचनात्मकता और व्यवहार कुशलता देखने को मिलती है।