आज 2 जून, 2010 के दैनिक 'हिंदुस्तान' अख़बार में सम्पादकीय पृष्ठ पर 'ब्लॉग-वार्ता : जात भी पूछो साधु की' में 'यदुकुल' की चर्चा की गई है. जाति-गणना के पक्ष में यदुकुल पर प्रकाशित लेख जाति आधारित जनगणना पर गोल मटोल जवाब क्यों को इस चर्चा में लिया गया है। गौरतलब है कि हिंदुस्तान अख़बार में पहले भी 29 अप्रैल 2009 को ‘ब्लाग वार्ता‘ के तहत रवीश कुमार ने इस ब्लाग की यदुकुल गौरव माडल और जाति की एकता शीर्षक से व्यापक चर्चा की है। 'यदुकुल' की चर्चा के लिए आभार !!
(चित्र हेतु साभार : प्रिंट मीडिया पर ब्लॉगचर्चा)
9 टिप्पणियां:
हमने भी यह चर्चा पढ़ी. यदुकुल का भी जिक्र है . सक्रियता बनी रहे ..बधाई .
चर्चा चालू आहे..लाजवाब !!
अच्छी चर्चा है न..हमारे यहाँ तो हिंदुस्तान मिलता ही नहीं.
सर अखबार में आपके ब्लॉग चर्चा के लिए आपको वधाई . आप का चिंतन वास्तव में बहुत गहन और सम सामयिक होता है. हमें आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है .
पर जाती आधारित जनगणना का मै समर्थन नहीं करता हूँ. कल मै अपने पत्नी और बच्चे ( माधव) {http://madhavrai.blogspot.com/ } को लेकर मैकडोनाल्ड गया था . मेट्रो में बैठने के समय मैंने अपने बगल की सीट पर बैठे हुवे व्यक्ति की जाति नहीं पूछी, रेस्टोरेंट में बगल के टेबल पर बैठे व्यक्ती की जाति भी नहीं पूछी . जाति वाद हमारे धर्म की एक बुराई है जो हमें मिटानी है. जैसे हंमे अपने धर्म की अन्य बुराइयों को मिटाया है , जैसे की सती प्रथा, बाल विवाह , बिधवा विवाह , कन्या वध , पर्दा प्रथा ...................... .
इसी तरह जाति प्रथा का भी उन्मूलन होना चाहिए ,
जहां तक जाति आधारित जनगणना का सवाल है , इससे कई संकट खड़े हो सकते है
जाति या यु कहे जातिवाद मूलक राजनीती को ज़िंदा रखने के लिए ही जातिवादी जनगणना हो रही है . मै एक अनुमान बता रहा हूँ , जिस दिन इस जाति जनगणना के अंतरिम आकडे आयेंगे , ओ बी सी का प्रतिशत ६० फीसदी के आसपास आयेगा . उसी दिन हिन्दुस्तान में एक नया महाभारत शरू होगा जिसमे कोई पांडव नहीं होगा बल्कि केवल कौरव ही होंगे . ओ बी सी नेता ५० फीसदी की सीमा तोड़ने के लिए आन्दोलन करेंगे , ट्रेने रोकी जायेंगी , बसे फुकी जायेंगी और देस एक अराजकता की तरफ बढ़ जाएगा . अगर आप इस बात से सहमत नहीं है तो अभी हाल का ही उदाहरण ले लिजीये . अभी पिछले साल ही राजस्थान की केवल एक जाति( गुर्जर ) ने आरक्षण के लिए पुरे राजस्थान को बंधक बना लिया था , आशा किजीये जब पूरा ओ बी सी वर्ग ही आन्दोलन में कूद पडेगा तो क्या हश्र होगा . सरकार कोई भी हो , चूले हील जायेंगी .
तो दिल थामकर इस जनगणना के interim data का इन्तेजार कीजिये , असली फिल्म तो तब शुरू होगी , ये तो टेलर था.
कहानी यही ख़तम नहीं होगी , बहुत सारे राज्यों में जहां कुछ जातियां एस सी है वो अपने आपको ओ बी सी में शामिल करने के लिए आन्दोलन करेंगी . हर जाति आरक्षण की बैसाखी पाने के लिए ओ बी सी बनना चाहेगी , शुरू होगा असली महासंग्राम .
चर्चाओं से ही कोई चीज अपने मुकाम तक पहुँचती है...
बहुत सही लिखा आपने. जिन लोगों ने जाति की आड में सदियों तक शोषण किया, आज अपने हितों पर पड़ती चोट को देखकर बौखला गए हैं. जातिवाद के पोषक ही आज जाति आधारित जनगणना के आधार पर जातिवाद के बढ़ने का रोना रो रहे हैं. इस सारगर्भित लेख के लिए आपकी जितनी भी बड़ाई करूँ कम ही होगी. अपने तार्किक आधार पर जाति-गणना के पक्ष में सही तर्क व तथ्य पेश किये हैं..साधुवाद !!
आप सभी लोगों का आभार .
@ Mrityunjaya Rai,
आप जिन बातों को उठा रहे हैं, वह पहले भी कही जा चुकी हैं. यदुकुल पर हमने इन सब मुद्दों को लेकर व्यापक सिलसिलेवार चर्चा की हैं, उन्हें पढ़ें और तार्किक आधार पर सोचें.
जाति आधारित जनगणना अनिवार्य है..बहुत सही कहा आपने. मंडल कमीशन कि सिफारिशों का भी लोगों ने विरोध किया, पर क्या हुआ. हल्ला मचाकर सच को नहीं बदला जा सकता. आज नहीं तो कल सरकार को जाति-गणना करानी ही होगी, नहीं तो गद्दी छोड़ने को तैयार रहना होगा. ८० फीसदी पिछड़ों-दलितों पर जोर नहीं चलने वाला, वे जग चुके हैं.
एक टिप्पणी भेजें