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आम पत्रिकाओं की लीक से हटकर यह एक प्रयोगधर्मी पत्रिका है जिसका आभास संपादकीय में मिलता है। अपने नाम को सार्थक करती इस पत्रिका में विभिन्न भारतीय भाषाओं के सांस्कृतिक, लौकिक एवं व्याकरणगत पक्षों पर गंभीर अनुशीलन प्रस्तुत किया गया है। वस्तुतः ‘राष्ट्रसेतु‘ भाषाओं के मध्य सेतु निर्माण का स्तुत्य कार्य कर एक सुदृढ़ राष्ट्र की अवधारणा को पुष्ट कर रही है जिसके लिए संपादक जगदीश यादव बधाई के पात्र हंै। अपने इस सारस्वत अभीष्ट की ओर संपादकीय आलेख में खुलासा किया गया है जिसकी पुष्टि, पत्रिका में समाहित सामग्री का अवलोकन करने से हो जाती है।
संपर्क- जगदीश यादव, मिश्रा भवन, आमानाका, रायपुर (छत्तीसगढ़)