(माना जाता है कि यदुवंशी चंद्रवंशी क्षत्रिय हैं. इस चन्द्रवंश की भी कई शाखायें तथा उपशाखायें हैं. राजवत एस. सिंह द्वारा प्रस्तुत यह आलेख साभार देखें-
चन्द्रवंश की शाखायें तथा उपशाखायें
चन्द्रवंश की शाखायें तथा उपशाखायें
1.सोमवंशी क्षत्रिय -
गौत्र - अत्रि। प्रवर - तीन - अत्रि, आत्रेय, शाताआतप। वेद - यजुर्वेद। देवी - तहालक्ष्मी। नदी - त्रिवेणी।
2.यादव क्षत्रिय - चन्द्रवंश की शाखा।
गौत्र - कौन्डिय। प्रवर - तीन - कौन्डिन्य, कौत्स, स्तिमिक। देवी - जोगेश्वरी। वेद - यजुर्वेद। नदी - यमुना।
महाराजा ययाति के ज्येष्ठ पुत्र यदु के नाम से यदु वंश या यादव वंश का नामकरण हुआ। इसी काल में भगवान कृष्ण और बलराम का जन्म हुआ था।
3.भाटी या जरदम क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा।
ये लोग अपने को कृष्ण का वंशज मानते हैं। इस शाखा में कभी भाटी नाम के प्रतापी राजा हुए थे। इन्ही के नाम पर भाटी वंश चल पडा। जैसलमेर का दुर्ग इसी वंश के राजाओं ने बनवाया है।
4.जाडेजा क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा।
इस शाखा के लोग अपने को कृष्ण के पुत्र साम्ब का वंशज मानते हैं
5.तोमर क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। इन्हे तुर या तंवर भी कहते हैं।
गौत्र - गार्ग्य। प्रवर - तीन - गार्ग्य, कौस्तुभ, माण्डव्य। वेद यजुर्वेद। देवी - योगेश्वरी, चिकलाई माता।
तोमर वंश के लोग अपने को पाण्डु का वंशज मानते हैं। जन्मेजय ने नागवंश को समूल नष्ट करने का व्रत लिया था। उनके इस आचरण से नागवंश के महर्षि आस्तिक बहुत अप्रसन्न हुए। जन्मेजय ने महर्षि आस्तिक से क्षमा याचना की और प्रायश्चित के लिए यज्ञ सम्पन्न हुआ। जिसके अधिष्ठाता महर्षि तुर थे। इन्ही महर्षि तुर के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए जन्मेजय के वंशज अपने को तुर क्षत्रिय कहने लगे
डा. देव सिंह निर्वाण ने एक आलेख में तोमर क्षत्रियों की 25 शाखाओं का उल्लेख किया है।
1 सोलंकी क्षत्रिय -
गौत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, वृहस्पति, अंगीरस। वेद - यजुर्वेद। देवी - काली।
क्षत्रिय वीर
1.रावल बप्पा (कालभोज) - 734 ई० मेवाड राजय के गहलौत शासन के सूत्र्धार।
2.रावल खुमान - 753 ई०
3.मत्तट - 772 - 793 ई०
4.भर्तभट्ट -793 - 813 ई०
5.रावल सिंह - 813 - 828 ई०
6.खुमाण सिंह - 828 - 853 ई०
7.महायक - 853 - 878 ई०
8.खुमाण तृतीय - 878 - 903 ई०
9.भर्तभट्ट द्वितीय - 903 - 951 ई०
10.अल्लट - 951- 971 ई०
11.नरवाहन - 971 - 973 ई०
12.शालिवाहन - 973 - 977 ई०
13.शक्ति कुमार - 977 - 993 ई०
14.अम्बा प्रसाद - 993 - 1007 ई०
15.शुची वर्मा - 1007 - 1021 ई०
16.नर वर्मा - 1021 - 1035 ई०
17.कीर्ति वर्मा - 1035 - 1051 ई०
18.योगराज - 1051 - 1068 ई०
19.वैरठ - 1068 - 1088 ई०
20.हंस पाल - 1088 - 1103 ई०
21.वैरी सिंह - 1103 - 1107 ई०
22.विजय सिंह - 1107 - 1127 ई०
23.अरि सिंह - 1127 - 1138 ई०
24.चौड सिंह - 1138 - 1148 ई०
25.विक्रम सिंह - 1148 - 1158 ई०
26.रण सिंह - 1158 - 1168 ई०
27.क्षेम सिंह - 1168 - 1172 ई०
28.सामंत सिंह - 1172 - 1179 ई०
•
•क्षेम सिंह के दो पुत्र सामंत और कुमार सिंह। ज्येष्ठ पुत्र सामंत मेवाड की गद्दी पर सात वर्ष रहे क्योंकि जालौर के कीतू चौहान मेवाड पर अधिकार कर लिया। सामंत सिंह अहाड की पहाडियों पर चले गये। इन्होने बडौदे पर आक्रमण कर वहां का राज्य हस्तगत कर लिया। लेकिन इसी समय इनके भाई कुमार सिंह पुनः मेवाड पर अधिकार कर लिया।
•कुमार सिंह - 1179 - 1191 ई०
•मंथन सिंह - 1191 - 1211 ई०
•पद्म सिंह - 1211 - 1213 ई०
•जैत्र सिंह - 1213 - 1261 ई०
•तेज सिंह -1261 - 1273 ई०
•समर सिंह - 1273 - 1301 ई०
समर सिंह का एक पुत्र रतन सिंह मेवाड राज्य का उत्तराधिकारी हुआ और दूसरा पुत्र कुम्भकरण नेपाल चला गया। नेपाल के राज वंश के शासक कुम्भकरण के ही वंशज हैं।
•मंथन सिंह - 1191 - 1211 ई०
•पद्म सिंह - 1211 - 1213 ई०
•जैत्र सिंह - 1213 - 1261 ई०
•तेज सिंह -1261 - 1273 ई०
•समर सिंह - 1273 - 1301 ई०
समर सिंह का एक पुत्र रतन सिंह मेवाड राज्य का उत्तराधिकारी हुआ और दूसरा पुत्र कुम्भकरण नेपाल चला गया। नेपाल के राज वंश के शासक कुम्भकरण के ही वंशज हैं।
•रतन सिंह ( 1301-1303 ई० ) - इनके कार्यकाल में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौडगढ पर अधिकार कर लिया। प्रथम जौहर पदमिनी रानी ने सैकडों महिलाओं के साथ किया। गोरा - बादल का प्रतिरोध और युद्ध भी प्रसिद्ध रहा।
•राजा अजय सिंह ( 1303 - 1326 ई० ) - हमीर राज्य के उत्तराधिकारी थे पर्न्तु अवयस्क थे। इसलिए अजय सिंह गद्दी पर बैठे।
•महाराणा हमीर सिंह ( 1326 - 1364 ई० ) - हमीर ने अपनी शौर्य, पराक्रम एवं कूटनीति से मेवाड राज्य को तुगलक से छीन कर उसकी खोई प्रतिष्ठा पुनः स्थापित की और अपना नाम अमर किया महाराणा की उपाधि धारं किया। इसी समय से ही मेवाड नरेश महाराणा उपाधि धारण करते आ रहे हैं।
•महाराणा क्षेत्र सिंह ( 1364 - 1382 ई० ) -
•महाराणा लाखासिंह ( 1382 - 11421 ई० ) - योग्य शासक तथा राज्य के विस्तार करने में अहम योगदान। इनके पक्ष में ज्येष्ठ पुत्र चुडा ने विवाह न करने की भीष्म प्रतिज्ञा की और पिता से हुई संतान मोकल को राज्य का उत्तराधिकारी मानकर जीवन भर उसकी रक्षा की।
•महाराणा मोकल ( 1421 - 1433 ई० ) -
13 टिप्पणियां:
जानकारी भरी पोस्ट...आभार.
उपयोगी जानकारी देने के लिए आभार.
अच्छी जानकारी....
अच्छी एतिहासिक जानकारी
Gyan Darpan
.
वाकई अर्थपूर्ण जानकारी..सब कुछ एक में ही समेट लिया.
महत्वपूर्ण जानकारी..!!
जानकारी का आभाव हे आपके पास धन्यवाद जो लिखा उसके लिए
बहुत शानदार जानकारी
ओके
बहुत सारी भ्रांतियां।
क्यो यादव लगाने से र्शम आती थी। जो दूसरे टाइटल लगाने की आवश्यकता पड़ गयी। खाल ओढ़ लेने से हड्डियों के ढाचे नहीं बदला करते।
बहुत सारी भ्रांतियां।
Jai puruvanshi jai chandravanshi jai rawani rajputana jai jarasandh jai magdhes
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