सोमवार, 26 दिसंबर 2011

भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा राम शिव मूर्ति यादव को ‘’डा. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2011‘‘

भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा 11-12 दिसंबर को दिल्ली के पंचशील आश्रम, झड़ोदा (बुराड़ी) में आयोजित 27 वें राष्ट्रीय दलित साहित्यकार सम्मलेन में सामाजिक न्याय सम्बन्धी लेखन, विशिष्ट कृतित्व, समृद्ध साहित्य-साधना एवं समाज सेवा हेतु श्री राम शिव मूर्ति यादव को ‘’डा. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2011‘‘ से सम्मानित किया गया। उक्त समारोह में केंद्रीय मंत्री फारुख अब्दुल्ला ने श्री यादव को यह सम्मान प्रदान किया। इस अवसर पर ओड़ीशा, महाराष्ट्र, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, केरल तथा आंध्र-प्रदेश के कलाकारों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम कर शमा बांधा.

उत्तर प्रदेश सरकार में स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी पद से सेवानिवृत्ति पश्चात तहबरपुर-आजमगढ़ जनपद निवासी श्री राम शिव मूर्ति यादव एक लम्बे समय से शताधिक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में सामाजिक विषयों पर प्रखरता से लेखन कर रहे हैं। श्री यादव की ‘सामाजिक व्यवस्था एवं आरक्षण‘ नाम से एक पुस्तक भी प्रकाशित हो चुकी है। आपके तमाम लेख विभिन्न स्तरीय पुस्तकों और संकलनों में भी प्रकाशित हैं। इसके अलावा आपके लेख इंटरनेट पर भी तमाम चर्चित वेब/ई/ऑनलाइन पत्र-पत्रिकाओं और ब्लॉग पर पढ़े-देखे जा सकते हैं। श्री राम शिव मूर्ति यादव ब्लागिंग में भी सक्रिय हैं और ”यदुकुल” (http://www.yadukul.blogspot.com/) ब्लॉग का आप द्वारा 10 नवम्बर 2008 से सतत संचालन किया जा रहा है।

इससे पूर्व श्री राम शिव मूर्ति यादव को भारतीय दलित साहित्य अकादमी, नई दिल्ली द्वारा ‘ज्योतिबाफुले फेलोशिप सम्मान-2007‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ, इलाहाबाद द्वारा ‘भारती ज्योति’ सम्मान, आसरा समिति, मथुरा द्वारा ‘बृज गौरव‘, ‘समग्रता‘ शिक्षा साहित्य एवं कला परिषद, कटनी, म0प्र0 द्वारा ’भारत-भूषण’, अम्बेडकरवादी साहित्य को प्रोत्साहित करने एवं तत्संबंधी लेखन हेतु रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इण्डिया के अध्यक्ष श्री रामदास आठवले द्वारा ‘अम्बेडकर रत्न अवार्ड 2011‘ इत्यादि से सम्मानित किया है।

भारतीय दलित साहित्य अकादमी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. सोहनपाल सुमनाक्षर ने उक्त जानकारी देते हुए बताया कि इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री डॉ॰ फारुख अब्दुल्ला, लोकसभा के उपाध्यक्ष श्री करिया मुंडा एवं अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महामंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह बतौर मुख्य अतिथि मौजूद थे । इस सम्मेलन को सुशोभित करने वाले अन्य मुख्य अतिथियों में अरुणाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल एवं चर्चित दलित साहित्यकार डॉ माता प्रसाद, दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष श्री पी॰ एल॰ पुनिया, पूर्व केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री डॉ॰ सत्य नारायण जटिया, पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं सम्प्रति राज्य सभा सांसद श्री रामविलास पासवान, दिल्ली विधान सभा उपाध्यक्ष श्री अमरीश सिंह गौतम, त्रिपुरा के शिक्षा मंत्री श्री अनिल सरकार, महाराष्ट्र के पूर्व समाज कल्याण मंत्री व सम्प्रति विधायक श्री बबनराव घोलप, आर॰ पी॰ आई॰ के अध्यक्ष व पूर्व सांसद श्री रामदास अठावले, गोवा विधानसभा के पूर्व डिप्टी स्पीकर श्री शंभुभाऊ बांडेकर, गुरु जम्भेश्वर तकनीकी यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ॰ एम॰ एल॰ रंगा, झांसी यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति प्रो॰ रमेश चन्द्र, दिल्ली की मेयर प्रो॰ रजनी अब्बी एवं लखनऊ के पूर्व मेयर डॉ दाऊजी गुप्ता सहित तमाम साहित्यकार, शिक्षाविद, संस्कृतिकर्मी,पत्रकार इत्यादि उपस्थित थे। इस सम्मेलन में देश के सभी प्रान्तों और संघ शासित प्रदेश के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। विदेशों से नेपाल, अमेरिका, ब्रिटेन, मारिशस, श्रीलंका इत्यादि देशों के प्रतिनिधियों ने भी शिरकत की ।

गोवर्धन यादव
संयोजक-राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, छिन्दवाड़ा
103 कावेरी नगर, छिन्दवाड़ा (म0प्र0)-480001

बुधवार, 21 दिसंबर 2011

मैं कोसी यादव

राजनीति का नशा भी अजीब होता है. आखिर कुर्सी भला किसे ख़राब लगती है. कई बार ऐसे जुनूनी किस्से सुनाने को मिलते हैं कि बस...! ऐसी ही एक रिपोर्ट के अनुसार के अनुसार बिहार में 1998 के संसदीय चुनाव में 'कोसी यादव' नामक व्यक्ति ने अपनी सारी संपत्ति बेच कर चुनावी अखाड़े में अपनी किस्मत आजमाने का दुस्साहस दिखाया. आज भी लोकतंत्र ऐसे ही दुस्साहसियों के भरोसे ही है और कल भी रहेगा! इसी भावभूमि पर 'सागर त्रिवेदी' ने एक बेजोड़ कविता लिखी है और इसे यहाँ पर bihardays.com से साभार प्रकाशित किया जा रहा है-

उम्र तिरपन चार बच्चे
डेढ़ एकड़ खेत दो बैल
तीन बीजू आम के झाड़
सात सीसो के, एक
कटहल का दरख़्त
उजड़ी बंसवारी में एक सेमल भी
मैं और मेरी जोड़ी के बीच
एक लम्बी जीभ, छै गज अंतड़ी फी
और एक भोथर हल, दरका ओखल
क्या करूं मैं क्या खाऊँ क्या सोचूँ क्या पोसूं

——
जीत यादव उम्र बनी तीस
सजात चालाक खरहा, नाते में
सुदूर भगिना
शहर की हर पान दूकान का थुकनिहार, चाबक
उसने राय दी छोडो चिंता छोटी, मामा ततकाल
चुनावी लहर पर छहर कर दूर निकल जाओ
पंचायत नहीं जिला परिषद् नहीं विधानसभा नहीं
दिल्ली के गोलाकार संसद में
जहाँ आदमी की असली कीमत आंकी जाती है
——-

मै कोसी यादव, बिके बीघे डेढ़
घूमने लगा छुट्टा मै घर घर
बताशा पानी दो थके मांदे को
वोट दो नेता बनाओ
खुद अपने विम्ब की छाँही को
साथ में कुत्ते लगे, लगे आवारे बीड़ी मांगने
परदे के पीछे भौजाइयों की हंसती सहानुभूति मिली
चौबे पञ्च हंसा तो एकदम अनरोक
अपमानित अहीर को हज़ार साल बाद गुस्सा आवे तो कैसे आवे
अपमानित अहीर को हज़ार साल बाद रोना भी क्यों आये, डटा रहे वो
सिर्फ कसीं कलाई की नसें
मैंने अकेले कहा कोसी जिंदाबाद
सवाल ये नहीं कि कोसी क्यों
सवाल असल ये है की कोसी क्यों नहीं?
———-

ना हम में कोई खासियत है तेज है चमक है
ना ही जीप है पैसा बन्दूक है
ना ही किसी प्यासे बटोही को कभी ठंढई पिलाया
ना ही कुम्हार चमार पर बेमानी थप्पड़ चलाया
जवार में हर कोई कोसी को जानता है
पर कोई खास कारणवश नहीं
जवार में हर पेड़ हर मेड़ हर पाठे की पहचान है
जीत कहता है मामा चुनाव लड़ो
अभी अदने हो बढाओ कदम बढ़े कद
भगिना धोखेबाज़ पहुँचे में मुस्कराता है
उस खिलंदर को नहीं मालूम
आदमी छोटा चुनाव हारने से
और छोटा नहीं हो जाता है

———–

अतीत के भगत सत का हिसाब नहीं जोड़े
साँच के लोलुप मुंशी नहीं होते थे
बेरोक सुनते आतंरिक पुकार, गुहार देते थे
बारह की उम्र में कच्छी तान
बाकी दुनियादारी सब अगल बगल झटपट फ़ेंक लेते थे
कोई बन भटके कोई तीर्थ
कोई मेले मेले घूमता हाय गुरु हाय गुरु मिलो कहाँ मिलो
कोई किसी बरगद तले पालथी मारता
तो ना बर्रे करे टस, ना हुणार करे मस्स
लगन होती थी गोह सी ज़बरदस्त, आज जैसी ढीली नहीं
चूँकि आत्मा तेज़ तर्रार होती थी

———
कोसी निरा आम – ना भक्ति, ना दया, ना क्रोध
अन्दर ना लगन ना पुकार
एक चपटा कागजी अहीर डेढ़ बीघे वाला, उम्र तिरपन
तीन पेटू बेटियां एक बीमार लड़का
जोरू जो माने मुझे दुनियादारी का चैम्पियन,
पर मैं उकसाने से कंडीडेट नहीं बना कतई, दुनिया को जीत को वहम है
सच ये है कि मेरे दिल में बसा दिल्ली का गम है
कैसे पुकारे है राजधानी मेरा नाम ‘कोसी, कोसी, कोसी’
हाय कितना मार्मिक है
हाय राम, हाय ये कौन सी लगन है
जानूं ना कि दिल्ली का लाल पथरीला हाथ, हाथ मेरे पकड़े है विनय से
या थामे उँगलियाँ अति प्रेम से, या लागे मेरा गोड़
या सरकते हैं उसके पंजे धीरे धीरे मेरे टेंटुए की ओर!

-सागर त्रिवेदी

गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा आकांक्षा यादव को ‘’डा. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2011‘‘

भारतीय दलित साहित्य अकादमी ने युवा कवयित्री, साहित्यकार एवं चर्चिर ब्लागर आकांक्षा यादव को ‘’डाॅ0 अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2011‘‘ से सम्मानित किया है। आकांक्षा यादव को यह सम्मान साहित्य सेवा एवं सामाजिक कार्यों में रचनात्मक योगदान के लिए प्रदान किया गया है। उक्त सम्मान भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा 11-12 दिसंबर को दिल्ली में आयोजित 27 वें राष्ट्रीय दलित साहित्यकार सम्मलेन में केंद्रीय मंत्री फारुख अब्दुल्ला द्वारा प्रदान किया गया.

गौरतलब है कि आकांक्षा यादव की रचनाएँ देश-विदेश की शताधिक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित हो रही हैं. नारी विमर्श, बाल विमर्श एवं सामाजिक सरोकारों सम्बन्धी विमर्श में विशेष रूचि रखने वाली आकांक्षा यादव के लेख, कवितायेँ और लघुकथाएं जहाँ तमाम संकलनो / पुस्तकों की शोभा बढ़ा रहे हैं, वहीँ आपकी तमाम रचनाएँ आकाशवाणी से भी तरंगित हुई हैं. पत्र-पत्रिकाओं के साथ-साथ अंतर्जाल पर भी सक्रिय आकांक्षा यादव की रचनाएँ इंटरनेट पर तमाम वेब/ई-पत्रिकाओं और ब्लॉगों पर भी पढ़ी-देखी जा सकती हैं. व्यक्तिगत रूप से ‘शब्द-शिखर’ और युगल रूप में ‘बाल-दुनिया’ , ‘सप्तरंगी प्रेम’ ‘उत्सव के रंग’ ब्लॉग का संचालन करने वाली आकांक्षा यादव न सिर्फ एक साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं, बल्कि सक्रिय ब्लागर के रूप में भी उन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है. 'क्रांति-यज्ञ: 1857-1947 की गाथा‘ पुस्तक का कृष्ण कुमार यादव के साथ संपादन करने वाली आकांक्षा यादव के व्यक्तित्व-कृतित्व पर वरिष्ठ बाल साहित्यकार डा0 राष्ट्रबन्धु जी ने ‘बाल साहित्य समीक्षा‘ पत्रिका का एक अंक भी विशेषांक रुप में प्रकाशित किया है।

मूलत: उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और गाजीपुर जनपद की निवासी आकांक्षा यादव वर्तमान में अपने पतिदेव श्री कृष्ण कुमार यादव के साथ अंडमान-निकोबार में रह रही हैं और वहां रहकर भी हिंदी को समृद्ध कर रही हैं. श्री यादव भी हिंदी की युवा पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर हैं और सम्प्रति अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएँ पद पर पदस्थ हैं. एक रचनाकार के रूप में बात करें तो सुश्री आकांक्षा यादव ने बहुत ही खुले नजरिये से संवेदना के मानवीय धरातल पर जाकर अपनी रचनाओं का विस्तार किया है। बिना लाग लपेट के सुलभ भाव भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें यही आपकी लेखनी की शक्ति है। उनकी रचनाओं में जहाँ जीवंतता है, वहीं उसे सामाजिक संस्कार भी दिया है।

इससे पूर्व भी आकांक्षा यादव को विभिन्न साहित्यिक-सामाजिक संस्थानों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। जिसमें भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ’भारती ज्योति’, ‘‘एस0एम0एस0‘‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार, इन्द्रधनुष साहित्यिक संस्था, बिजनौर द्वारा ‘‘साहित्य गौरव‘‘ व ‘‘काव्य मर्मज्ञ‘‘, श्री मुकुन्द मुरारी स्मृति साहित्यमाला, कानपुर द्वारा ‘‘साहित्य श्री सम्मान‘‘, मथुरा की साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘‘आसरा‘‘ द्वारा ‘‘ब्रज-शिरोमणि‘‘ सम्मान, मध्यप्रदेश नवलेखन संघ द्वारा ‘‘साहित्य मनीषी सम्मान‘‘ व ‘‘भाषा भारती रत्न‘‘, छत्तीसगढ़ शिक्षक-साहित्यकार मंच द्वारा ‘‘साहित्य सेवा सम्मान‘‘, देवभूमि साहित्यकार मंच, पिथौरागढ़ द्वारा ‘‘देवभूमि साहित्य रत्न‘‘, राजेश्वरी प्रकाशन, गुना द्वारा ‘‘उजास सम्मान‘‘, ऋचा रचनाकार परिषद, कटनी द्वारा ‘‘भारत गौरव‘‘, अभिव्यंजना संस्था, कानपुर द्वारा ‘‘काव्य-कुमुद‘‘, ग्वालियर साहित्य एवं कला परिषद द्वारा ‘‘शब्द माधुरी‘‘, महिमा प्रकाशन, दुर्ग-छत्तीसगढ द्वारा ’महिमा साहित्य भूषण सम्मान’ , अन्तर्राष्ट्रीय पराविद्या शोध संस्था, ठाणे, महाराष्ट्र द्वारा ‘‘सरस्वती रत्न‘‘, अन्तज्र्योति सेवा संस्थान गोला-गोकर्णनाथ, खीरी द्वारा श्रेष्ठ कवयित्री की मानद उपाधि. जीवी प्रकाशन, जालंधर द्वारा 'राष्ट्रीय भाषा रत्न' इत्यादि शामिल हैं.

आकांक्षा यादव को इस सम्मान-उपलब्धि पर हार्दिक बधाइयाँ !!

मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

डा. कुमार विमल : आखिर खो ही गया यदुवंश का सपूत

'यदुवंश' की तमाम ऐसी विभूतियाँ हैं, जिन्होंने उन ऊँचाइयों को छुआ है, जिन पर हम सब नाज करते हैं. ऐसे ही एक व्यक्तित्व थे- डा. कुमार विमल, जिनका पिछले दिनों देहावसान हो गया. उन पर कृष्ण कुमार यादव की एक पोस्ट साभार प्रकाशित है-


(कई बार कुछ यादें मात्र अफसोसजनक ही रह जाती हैं. अभी कुछेक माह पूर्व ही डा.कुमार विमल जी से फोन पर बात हुई थी और मैंने वादा किया था कि अपनी कुछेक पुस्तकें उन्हें सादर अवलोकनार्थ भेजूंगा. डा. कुमार विमल जी के बारे में मुझे बिहार के ही एक जज डा. राम लखन सिंह यादव जी ने बताया था. बातों ही बातों में उन्होंने उनके विराट-व्यक्तित्व और कृतित्व की भी चर्चा की थी...साथ ही बीमारी के बारे में भी. पर तब मैंने यह नहीं सोचा था कि उसके बाद जब डा. विमल जी से बात करूँगा तो वह अंतिम होगी, खैर यही नियति थी और अचानक खबर मिली कि हिंदी साहित्य के जाने-माने कवि, लेखक और आलोचक अस्सी वर्षीय डा. कुमार विमल जी इस दुनिया में 26 नवम्बर, 2011 को नहीं रहे...मेरी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि !!)


हिंदी साहित्य के जाने-माने कवि, लेखक और आलोचक अस्सी वर्षीय डा. कुमार विमल जी इस दुनिया में 26 नवम्बर, 2011 को नहीं रहे. वे एक लम्बे समय से दिल की बीमारी से पीड़ित थे. उनके परिवार में पत्नी, चार बेटियां और दो पुत्र हैं।

बहुयामी व्यक्तित्व के धनी डा. विमल हिंदी काव्य लेखन में सौंदर्यबोध के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए हमेशा याद किये जाएंगे। 12 अक्टूबर 1931 को लखीसराय जिले के पचीना गांव में जन्मे विमल ने चालीस के दशक से लेखन जगत में पदार्पण किया। आलोचना पर उनकी पुस्तक ‘मूल्य और मीमांसा’ तथा कविता संग्रह में ‘अंगार’ तथा ‘सागरमाथा’ उनकी यादगार कृतियों में शुमार हैं। उनकी हिंदी में कई कविताओं का अंग्रेजी, बांग्ला, तेलुगू, मराठी, उर्दू और कश्मीरी सहित कई विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ था।

डा. विमल का कृतित्व वाकई विस्तृत फलकों को समेटे हुए था. यही कारण था कि उन्हें राजेंद्र शिखर सम्मान सहित उत्तर प्रदेश और बिहार के कई साहित्य सम्मान प्रदान किए गए। ज्ञानपीठ समिति ने भी उन्हें विशेष लेखन का सम्मान दिया था। मगध और पटना विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक रह चुके डा. विमल कई प्रमुख संस्थाओं में भी उच्च पदों पर रहे। उन्होंने बिहार लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष, बिहार इंटरमीडिएट शिक्षा परिषद के अध्यक्ष और नालंदा खुला विश्वविद्यालय के कुलपति के पद को भी सुशोभित किया।
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डा- कुमार विमल

जन्मः- 12 अक्टूबर, 1931

साहित्यिक जीवनः- साहित्यिक जीवन का प्रारंभ काव्य रचना से, उसके बाद आलोचना में प्रवृति रम गई। 1945 से विभिन्न
प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कविता, कहानी और आलोचनात्मक लेख आदि प्रकाषित हो रहे हैं। इनकी कई कविताएं अंगे्रजी, चेक, तेलगु, कष्मीरी, गुजराती, उर्दू, बंगला और मराठी में अनुदित।

अध्यापनः- मगध व पटना विष्वविद्यालय में हिन्दी प्राध्यापक। बाद में निदेशक बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्,पटना ।
संस्थापक आद्य सचिव, साहित्यकार कलाकार कल्याण कोष परिषद्, पटना नांलदा मुक्त विष्वविद्यालय में कुलपति

अध्यक्ष :-
बिहार लोक सेवा आयोग
बिहार विष्वविद्यालय कुलपति बोर्ड
हिन्दी प्र्रगति समिति, राजभाषा बिहार
बिहार इंटरमीडियएट शिक्षा परिषद्
बिहार राज्य बाल श्रमिक आयोग

सदस्य;-
ज्ञानपीठ पुरस्कार से संबंधित हिन्दी समिति
बिहार सरकार उच्च स्तरीय पुरस्कार चयन समिति के अध्यक्ष
साहित्य अकादमी, दिल्ली, भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर और भारत सरकार के कई मंत्रालयों की हिन्दी सलाहकार समिति के सदस्य रह चुके हैं।

सम्मान;-

कई आलोचनात्मक कृतियां, पुरस्कार-योजना समिति (उत्तर प्रदेश) बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना,राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह विशेष साहित्यकार सम्मान, हरजीमल डालमिया पुरस्कार दिल्ली, सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार, आगरा तथा बिहार सरकार का डा. राजेन्द्र प्रसाद शिखर सम्मान

प्रकाशनः-
अब तक लगभग 40 पुस्तकों का प्रकाशन

महत्वपूर्ण प्रकाशनः-

आलोचना में ‘‘मूल्य और मीमांसा‘‘, ‘‘महादेवी वर्मा एक मूल्यांकन’’, ‘‘उत्तमा‘‘ ।
कविता में – ‘‘अंगार‘‘, ‘‘सागरमाथा‘‘।
संपादित ग्रंथ- गन्धवीथी (सुमित्रा नंदन पंत की श्रेष्ठ प्रकृति कविताओं का विस्तृत भूमिका सहित संपादन संकलन), ‘‘अत्याधुनिक हिन्दी साहित्य‘‘ आदि।


-कृष्ण कुमार यादव

रविवार, 4 दिसंबर 2011

चन्द्रवंश की शाखाएं तथा उपशाखाएँ

(माना जाता है कि यदुवंशी चंद्रवंशी क्षत्रिय हैं. इस चन्द्रवंश की भी कई शाखायें तथा उपशाखायें हैं. राजवत एस. सिंह द्वारा प्रस्तुत यह आलेख साभार देखें-

चन्द्रवंश की शाखायें तथा उपशाखायें


1.सोमवंशी क्षत्रिय -
गौत्र - अत्रि। प्रवर - तीन - अत्रि, आत्रेय, शाताआतप। वेद - यजुर्वेद। देवी - तहालक्ष्मी। नदी - त्रिवेणी।


2.यादव क्षत्रिय - चन्द्रवंश की शाखा।
गौत्र - कौन्डिय। प्रवर - तीन - कौन्डिन्य, कौत्स, स्तिमिक। देवी - जोगेश्वरी। वेद - यजुर्वेद। नदी - यमुना।
महाराजा ययाति के ज्येष्ठ पुत्र यदु के नाम से यदु वंश या यादव वंश का नामकरण हुआ। इसी काल में भगवान कृष्ण और बलराम का जन्म हुआ था।


3.भाटी या जरदम क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा।
ये लोग अपने को कृष्ण का वंशज मानते हैं। इस शाखा में कभी भाटी नाम के प्रतापी राजा हुए थे। इन्ही के नाम पर भाटी वंश चल पडा। जैसलमेर का दुर्ग इसी वंश के राजाओं ने बनवाया है।


4.जाडेजा क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा।
इस शाखा के लोग अपने को कृष्ण के पुत्र साम्ब का वंशज मानते हैं


5.तोमर क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। इन्हे तुर या तंवर भी कहते हैं।
गौत्र - गार्ग्य। प्रवर - तीन - गार्ग्य, कौस्तुभ, माण्डव्य। वेद यजुर्वेद। देवी - योगेश्वरी, चिकलाई माता।
तोमर वंश के लोग अपने को पाण्डु का वंशज मानते हैं। जन्मेजय ने नागवंश को समूल नष्ट करने का व्रत लिया था। उनके इस आचरण से नागवंश के महर्षि आस्तिक बहुत अप्रसन्न हुए। जन्मेजय ने महर्षि आस्तिक से क्षमा याचना की और प्रायश्चित के लिए यज्ञ सम्पन्न हुआ। जिसके अधिष्ठाता महर्षि तुर थे। इन्ही महर्षि तुर के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए जन्मेजय के वंशज अपने को तुर क्षत्रिय कहने लगे

डा. देव सिंह निर्वाण ने एक आलेख में तोमर क्षत्रियों की 25 शाखाओं का उल्लेख किया है।

1 सोलंकी क्षत्रिय -
गौत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, वृहस्पति, अंगीरस। वेद - यजुर्वेद। देवी - काली।
क्षत्रिय वीर
1.रावल बप्पा (कालभोज) - 734 ई० मेवाड राजय के गहलौत शासन के सूत्र्धार।
2.रावल खुमान - 753 ई०
3.मत्तट - 772 - 793 ई०
4.भर्तभट्ट -793 - 813 ई०
5.रावल सिंह - 813 - 828 ई०
6.खुमाण सिंह - 828 - 853 ई०
7.महायक - 853 - 878 ई०
8.खुमाण तृतीय - 878 - 903 ई०
9.भर्तभट्ट द्वितीय - 903 - 951 ई०
10.अल्लट - 951- 971 ई०
11.नरवाहन - 971 - 973 ई०
12.शालिवाहन - 973 - 977 ई०
13.शक्ति कुमार - 977 - 993 ई०
14.अम्बा प्रसाद - 993 - 1007 ई०
15.शुची वर्मा - 1007 - 1021 ई०
16.नर वर्मा - 1021 - 1035 ई०
17.कीर्ति वर्मा - 1035 - 1051 ई०
18.योगराज - 1051 - 1068 ई०
19.वैरठ - 1068 - 1088 ई०
20.हंस पाल - 1088 - 1103 ई०
21.वैरी सिंह - 1103 - 1107 ई०
22.विजय सिंह - 1107 - 1127 ई०
23.अरि सिंह - 1127 - 1138 ई०
24.चौड सिंह - 1138 - 1148 ई०
25.विक्रम सिंह - 1148 - 1158 ई०
26.रण सिंह - 1158 - 1168 ई०
27.क्षेम सिंह - 1168 - 1172 ई०
28.सामंत सिंह - 1172 - 1179 ई०

•क्षेम सिंह के दो पुत्र सामंत और कुमार सिंह। ज्येष्ठ पुत्र सामंत मेवाड की गद्दी पर सात वर्ष रहे क्योंकि जालौर के कीतू चौहान मेवाड पर अधिकार कर लिया। सामंत सिंह अहाड की पहाडियों पर चले गये। इन्होने बडौदे पर आक्रमण कर वहां का राज्य हस्तगत कर लिया। लेकिन इसी समय इनके भाई कुमार सिंह पुनः मेवाड पर अधिकार कर लिया।

•कुमार सिंह - 1179 - 1191 ई०
•मंथन सिंह - 1191 - 1211 ई०
•पद्म सिंह - 1211 - 1213 ई०
•जैत्र सिंह - 1213 - 1261 ई०
•तेज सिंह -1261 - 1273 ई०
•समर सिंह - 1273 - 1301 ई०

समर सिंह का एक पुत्र रतन सिंह मेवाड राज्य का उत्तराधिकारी हुआ और दूसरा पुत्र कुम्भकरण नेपाल चला गया। नेपाल के राज वंश के शासक कुम्भकरण के ही वंशज हैं।


•रतन सिंह ( 1301-1303 ई० ) - इनके कार्यकाल में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौडगढ पर अधिकार कर लिया। प्रथम जौहर पदमिनी रानी ने सैकडों महिलाओं के साथ किया। गोरा - बादल का प्रतिरोध और युद्ध भी प्रसिद्ध रहा।


•राजा अजय सिंह ( 1303 - 1326 ई० ) - हमीर राज्य के उत्तराधिकारी थे पर्न्तु अवयस्क थे। इसलिए अजय सिंह गद्दी पर बैठे।


•महाराणा हमीर सिंह ( 1326 - 1364 ई० ) - हमीर ने अपनी शौर्य, पराक्रम एवं कूटनीति से मेवाड राज्य को तुगलक से छीन कर उसकी खोई प्रतिष्ठा पुनः स्थापित की और अपना नाम अमर किया महाराणा की उपाधि धारं किया। इसी समय से ही मेवाड नरेश महाराणा उपाधि धारण करते आ रहे हैं।


•महाराणा क्षेत्र सिंह ( 1364 - 1382 ई० ) -


•महाराणा लाखासिंह ( 1382 - 11421 ई० ) - योग्य शासक तथा राज्य के विस्तार करने में अहम योगदान। इनके पक्ष में ज्येष्ठ पुत्र चुडा ने विवाह न करने की भीष्म प्रतिज्ञा की और पिता से हुई संतान मोकल को राज्य का उत्तराधिकारी मानकर जीवन भर उसकी रक्षा की।


•महाराणा मोकल ( 1421 - 1433 ई० ) -