देवभूमि उत्तराखण्ड में मंदिरों की कोई कमी नहीं है। उत्तराखण्ड में ही विश्व प्रसिद्ध श्री बदरी नाथ धाम है। जो भगवान विष्णु को समर्पित है। इसके अलावा गंगोत्री, यमनोत्री, केदारनाथ और सेम-मुखेम है। गंगोत्री से गंगा और यमनोत्री से यमुना निकलती है। केदारनाथ शिव को समर्पित है। सेम-मुखेम भगवान श्रीकृष्ण के तपोभूमि का गवाह है। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने टिहरी गढ़वाल के सेम-मुखेम नामक जगह पर कठोर तपस्या की थी। आज भी लाखों की संख्या में लोग सेम-मुखेम पहुंचते हैं।
ऐसी मान्यता है कि द्वारिका से भगवान श्रीकृष्ण तपस्या करने हेतु हिमालय की ओर चले। वे सबसे पहले उत्तराखण्ड के पौड़ी गढ़वाल पहंुचे जहां उन्होंने कुछ दिन बिताये। फिर उन्होंने स्थानीय लोगों से बताने को कहा कि कोई ऐसी जगह बताओ जो मेरे तपस्या करने योग्य हो। जहां मैं शांति से तपस्या कर सकंु। पौड़ी गढ़वाल के लोगों ने भगवान श्रीकृष्ण को बताया कि हिमालय की गोद में सेम-मुखेम जो जगह है वह आपके लिए सर्वाधिक उपर्युक्त है। भगवान श्रीकृष्ण पौड़ी गढ़वाल से सेम-मुखेम की ओर प्रस्थान कर गये। सेम-मुखेम पहंुचने पर श्रीकृष्ण ने स्थानीय राजा गंगू रमोला से दो गज जमीन की मांग की। श्रीकृष्ण ने गंगू रमोला से कहा कि उन्हें केवल दो गज जमीन चाहिए जहां वे बैठकर आराम से तपस्या कर सकें। श्रीकृष्ण साधारण वेश में थे इसलिए गंगू रमोला भगवान को पहचान नहीं सका। और जमीन देने से इन्कार कर दिया।
गंगू रमोला के पास कई भैंसे थी। जिनमें से अधिकांश दूध नहीं देती थी। इस कारण गंगू रमोला परेशान रहता था। भगवान श्रीकृष्ण के बार-बार आग्रह किये जाने पर टालने के उद्देश्य से गंगू रमोला ने कहा- मैं तुम्हें जमीन जरूर दुंगा लेकिन मेरी एक शर्त है। शर्त है कि मेरी जितनी भैंसे दूध नहीं देती हैं अगर वे दूध देना प्रारम्भ कर दें तो मैं तुम्हे जमीन उपलब्ध करवा दंूगा। श्रीकृष्ण ने कहा कि यह तो बहुत ही आसान है जाओ गौशाला में पता करो कि तुम्हारी कौन सी भैंस अब दूध नहीं देती हैं। गंगू रमोला बारी-बारी से सभी भैंस के पास जाकर जांच किया। गंगू रमोला ने पाया की अब उसकी सभी भैंसे दूध देने लग गई। गंगू रमोला ने प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण से कहा आप जहां चाहें तपस्या कर लें। आज से आप मेरे परम मित्र हैं और मेरी इस रियासत पर आपका भी अधिकार है।
जिस जगह पर भगवान श्रीकृष्ण ने तपस्या किया था आज वहां पर भव्य मंदिर है। मंदिर के भीतर एक बहुत बड़ी शीला है जिसे लोग भगवान श्रीकृष्ण का प्रतीक मानते हैं। कुछ ही दूरी पर पत्थरों पर गाय, भैंस और भगवान श्रीकृष्ण के घोड़े के पैर के निशान भी हैं। मंदिर के पास ही एक बहुत बड़ा पत्थर है जो केवल एक अंगूली लगाने से हिलता है। लेकिन अगर आप बलपूर्बक उस पत्थर को हिलाने का प्रयास करेंगे वह पत्थर नहीं हिलेगा। उपरोक्त लिखी बातें आज भी प्रत्यक्ष हैं। जिसे कोई भी जाकर देख सकता है।
Way to Sem-Mukhem
1.Haridwar-Rishikesh-New Tehri-Lambgaon-SemMukhem
-- राजाराम राकेश, टिहरी गढ़वाल
ऐसी मान्यता है कि द्वारिका से भगवान श्रीकृष्ण तपस्या करने हेतु हिमालय की ओर चले। वे सबसे पहले उत्तराखण्ड के पौड़ी गढ़वाल पहंुचे जहां उन्होंने कुछ दिन बिताये। फिर उन्होंने स्थानीय लोगों से बताने को कहा कि कोई ऐसी जगह बताओ जो मेरे तपस्या करने योग्य हो। जहां मैं शांति से तपस्या कर सकंु। पौड़ी गढ़वाल के लोगों ने भगवान श्रीकृष्ण को बताया कि हिमालय की गोद में सेम-मुखेम जो जगह है वह आपके लिए सर्वाधिक उपर्युक्त है। भगवान श्रीकृष्ण पौड़ी गढ़वाल से सेम-मुखेम की ओर प्रस्थान कर गये। सेम-मुखेम पहंुचने पर श्रीकृष्ण ने स्थानीय राजा गंगू रमोला से दो गज जमीन की मांग की। श्रीकृष्ण ने गंगू रमोला से कहा कि उन्हें केवल दो गज जमीन चाहिए जहां वे बैठकर आराम से तपस्या कर सकें। श्रीकृष्ण साधारण वेश में थे इसलिए गंगू रमोला भगवान को पहचान नहीं सका। और जमीन देने से इन्कार कर दिया।
गंगू रमोला के पास कई भैंसे थी। जिनमें से अधिकांश दूध नहीं देती थी। इस कारण गंगू रमोला परेशान रहता था। भगवान श्रीकृष्ण के बार-बार आग्रह किये जाने पर टालने के उद्देश्य से गंगू रमोला ने कहा- मैं तुम्हें जमीन जरूर दुंगा लेकिन मेरी एक शर्त है। शर्त है कि मेरी जितनी भैंसे दूध नहीं देती हैं अगर वे दूध देना प्रारम्भ कर दें तो मैं तुम्हे जमीन उपलब्ध करवा दंूगा। श्रीकृष्ण ने कहा कि यह तो बहुत ही आसान है जाओ गौशाला में पता करो कि तुम्हारी कौन सी भैंस अब दूध नहीं देती हैं। गंगू रमोला बारी-बारी से सभी भैंस के पास जाकर जांच किया। गंगू रमोला ने पाया की अब उसकी सभी भैंसे दूध देने लग गई। गंगू रमोला ने प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण से कहा आप जहां चाहें तपस्या कर लें। आज से आप मेरे परम मित्र हैं और मेरी इस रियासत पर आपका भी अधिकार है।
जिस जगह पर भगवान श्रीकृष्ण ने तपस्या किया था आज वहां पर भव्य मंदिर है। मंदिर के भीतर एक बहुत बड़ी शीला है जिसे लोग भगवान श्रीकृष्ण का प्रतीक मानते हैं। कुछ ही दूरी पर पत्थरों पर गाय, भैंस और भगवान श्रीकृष्ण के घोड़े के पैर के निशान भी हैं। मंदिर के पास ही एक बहुत बड़ा पत्थर है जो केवल एक अंगूली लगाने से हिलता है। लेकिन अगर आप बलपूर्बक उस पत्थर को हिलाने का प्रयास करेंगे वह पत्थर नहीं हिलेगा। उपरोक्त लिखी बातें आज भी प्रत्यक्ष हैं। जिसे कोई भी जाकर देख सकता है।
Way to Sem-Mukhem
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-- राजाराम राकेश, टिहरी गढ़वाल