शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

एवरेस्ट की चढ़ाई ने जीने का सलीका सिखाया : संतोष यादव

संतोष यादव भारत की जानी-मानी पर्वतारोही हैं। वह माउन्ट एवरेस्ट पर दो बार चढ़ने वाली विश्व की प्रथम महिला हैं। इसके अलावा वे कांगसुंग (Kangshung) की तरफ से माउंट एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक चढ़ने वाली विश्व की पहली महिला भी हैं।उन्होने पहले मई 1992 में और तत्पश्चात मई सन् 1993 में एवरेस्ट पर चढ़ाई करने में सफलता प्राप्त की। संतोष यादव का जन्म सन 1969 में हरियाणा के रेवाड़ी जनपद के में हुआ था। उन्होने महारानी कालेज, जयपुर से शिक्षा प्राप्त की है। सम्प्रति वह भारत-तिब्बत सीमा पुलिस में एक पुलिस अधिकारी हैं। उन्हें सन 2000 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया है।

संतोष यादव ने दो बार माउंट एवेरस्ट की दुर्गम चढ़ाई पर अपनी जीत दर्ज करते हुए तिरंगे का परचम लहराया है. ज़िन्दगी में मुश्किलों के अनगिनत थपेड़ों की मार से भी वह विचलित नहीं हुईं और अपनी इस हिम्मत की बदौलत माउंट एवरेस्ट की दो बार चढाई करने वाली विश्व की पहली महिला बनीं. उनके इस अदम्य साहस के लिए उन्हें साल २००० में पद्मश्री से सम्मानित किया गया. हिमालय की चोटी पर पहुँचने का एहसास क्या होता है, इसे संतोष यादव ने दो बार जिया है. 'ऑन द टॉप ऑफ़ द वर्ल्ड' जुमले का प्रयोग हम अक्सर करते हैं पर इसके सार को असल मायनो में संतोष ने समझा. वह भी आज से डेढ़ दशक पहले. अरावली की पहाड़ियों पर चढ़ते हुए कामगारों से प्रेरणा लेकर उन्होंने ऐसा करिश्मा कर दिखाया, जिसकी कल्पना खुद उन्होंने कभी नहीं की थी. हरियाणा के रेवाड़ी जिले के एक छोटे से गाँव से निकल कर, बर्फ से ढके हुए हिमालय के शिखर का आलिंगन करने के यादगार लम्हे तक का सफ़र संतोष यादव के लिए कितने उतार चढ़ाव भरा रहा, यह जानने की एक कोशिश (साभार-हिन्दीलोक) --

-जीवन के किस मोड़ पर आपने यह महसूस किया कि मैं माउंट एवरेस्ट जैसी दुर्गम चढ़ाई कर सकती हूँ?

यह बात साल १९९२ की है, जब हिमालय की चढ़ाई के लिए मेरा चयन हुआ। यह सोच कर अब भी मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं. मेरा चयन होने मात्र से मेरे मन में ख्याल आया कि मैं भी एवरेस्ट की चढ़ाई कर सकती हूँ... मैं एक बहुत साधारण परिवार से हूँ. कभी ऐसा सोचा नहीं था कि इतना मुश्किल काम मैं कर पाऊँगी. खासकर माउंट एवरेस्ट की चढाई जैसा कठिन अभियान मेरे लिए सोच पाना भी उस वक़्त मुश्किल था. हालाँकि मेरे अन्दर बहुत आत्मविश्वास रहता है लेकिन मैं अति आत्मविश्वास खुद में कभी नहीं आने देती. चयन हुआ क्यूंकि उसके बारे में मैंने बहुत पढ़ा था और ट्रेनिंग भी ली थी उत्तरकाशी नेहरु माउंटइनीयारिंग महाविद्यालय से, जिसका निश्चित रूप से मुझे फायदा मिला. मुझे लोगों ने तब बहुत हतोत्साहित किया था. शुरुआत के कुछ दिनों में लोगों का नजरिया मुझे लेकर यह रहा कि 'ये भी ट्रेनिंग करेगी?' लेकिन मुझमे बहुत हिम्मत थी, मैं मानती हूँ. क्यूंकि चढ़ाई करने से पहले मुझे परिवार की ओर से भी खासी मुश्किलात थीं.

-आपके परिवार से विरोध के बावजूद जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा क्या रही?

परिवार से विरोध था इसलिए मैं अन्दर से बहुत टूटा हुआ महसूस करती थी। उस वक़्त सिर्फ मेरी हिम्मत मेरे साथ थी. खासकर माँ बाप जो आपको इतना प्यार करते हैं, उनका दिल भी नहीं दुखाना चाहती थी. मेरे माँ बाप भी मजबूर थे. जिस तरह से मेरे सामने एवरेस्ट का पहाड़ था, उनके सामने भी समाज का इतना बड़ा पहाड़ था. वह भी हरियाणा जैसे राज्य में मैं पली बढ़ी जहाँ लड़कियों को बंदिशों में रखा जाता है. आज की स्थिति थोड़ी अलग है. लेकिन जब मैं पढ़ रही थी, तब मेरे पिताजी को कहा जाता था 'राम सिंह तू बावडा हो गया है के... छोरी को इतना पढ़ा के, के करेगा.' मैं उन दिनों आईएएस की तैयारी कर रही थी. पिताजी को लोग बोलते थे "इतना पढ़ रही है छोरी, छोरा भी न मिलेगा पढ़ा लिखा." लाडली मैं बहुत थी घरवालों की. इसलिए मेरे अन्दर बहुत हिम्मत थी. और यह बात हर माँ-बाप से मैं कहूँगी कि जितना आप अपने बच्चों को प्यार करेंगे उतना उनके अन्दर हिम्मत और आत्मविश्वास बढ़ेगा.

-तकनीक और कौशल ही इंसान को ऊंचाई तक नहीं ले जा सकती। इसके लिए शिक्षा भी ज़रूरी है. इस बात से आप कितनी सहमत हैं ?
पढ़ाई और खेल दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। यदि आपकी शिक्षा अच्छी नहीं है तो आप किसी भी क्षेत्र में बेहतर नहीं कर पाएँगे. खेल को मैंने बहुत ही शिक्षात्मक ढ़ंग से लिया है. इसमें बहुत समय प्रबंधन की ज़रूरत है. मैं यह नहीं कहूँगी कि माउंटइनीयारिंग के कारण मैं पूरी तरह से आईएएस में चयनित नहीं हो पाई. बल्कि मुझे लगता है कि मेरी पढ़ाई ने मुझे बहुत फायदा पहुँचाया है. मैं बहुत ही लाड़ प्यार और नाजुकता से पली बढ़ी और स्पोर्ट्स पर्सन मैं शुरुआत से नहीं थी. मेरे अन्दर एक जिज्ञासा थी कि बर्फ से ढके पहाड़ और हिमालय कैसे लगते होंगे! इस सोच से मैं रोमांचित हो जाती थी. अपने इस सपने को साकार करने की चाह से मैंने एवरेस्ट की चढाई की. जब मैं वहां गई तो ऋषिकेश में हम सभी प्रशिक्षुओं का हमारे इंस्टिट्यूट वालों ने स्वागत किया. ट्रेनिंग के दौरान मेरा नंबर धूप में पड़ गया और मैं धूप में लाल हो गयी थी. मेरी पतली काया को देखकर प्रशिक्षकों ने मेरी ट्रेनिंग को लेकर शंका जताई. धीरे धीरे मैंने अपना प्रशिक्षण पूरा किया और समापन के समय मुझे भी यह देखकर आर्श्चय हुआ कि मेरा प्रदर्शन सबसे अच्छा आँका गया. मैं क्लिप ऑन क्लाइम्बिंग बड़ी ही फुर्ती से कर लेती थी और सब देखते थे कि आखिर ये इतनी जल्दी करती कैसे है. असल में मैं तकनीक को कार्य करने के साथ साथ बहुत अच्छे से समझती भी रहती थी. जल्दबाजी कभी नहीं करती थी. देखती थी, रास्ते को याद करती थी उसके बाद कोशिश करती थी. मैं खुद से यह सवाल भी करती रहती थी 'मैंने ये कर लिया, मैं यह कर गई?' फिर मुझे उसका जवाब मिलता था क्यूंकि मैंने इस तकनीक का इस्तेमाल इसमें किया.

-जिस ट्रेनिंग का आप हिस्सा रहीं, उसमे किन बातों पर ख़ास ध्यान रखना पड़ता था?

मानसिक और शारीरिक तौर पर सतर्क रहना पड़ता था। भोर सुबह उठना भी मेरे लिए फायदेमंद रहा. तीन बजे सवेरे हम उठ जाते थे और तैयार हो के साढ़े तीन बजे तक कैंप से निकल जाना होता था. क्यूंकि जितनी जल्दी हम चढ़ाई शुरू करेंगे उतना जीवन का खतरा कम है. माउंटइनीयारिंग में देरी जीवन के लिए खतरनाक साबित हो सकती है. ग्लेशिअर्स और बर्फ की दरारें इतनी चौड़ी होती हैं कि कभी कभी समझ में नहीं आता कि किस तरह से उसे पार किया जाए. कभी कभी नज़रंदाज़ भी करना होता है बर्फानी तूफानों को. हमे हर पल को बड़ी नाजुकता और संतुलित ढ़ंग से बिना आवाज़ किये आगे बढ़ना पड़ता था.

-उन्तीस हज़ार फीट की ऊंचाई पर अनेक बाधाएं आपके रास्ते में आई होंगी। कोई ऐसा वाक्या आपको याद है जिसने आपको अन्दर तक हिला दिया हो?

कई बार तो ऐसा हुआ कि मुझे उठा के बर्फानी तूफानों ने दूर तक फेंका है। कंचनजंघा की चढाई के वक़्त मुझे याद है कि बात लगभग तय हो चली थी कि मैं जिंदा नहीं बचूंगी. मैं नेपाल की तरफ लटक गयी थी क्यूंकि तूफ़ान ने मुझे पूरे वेग से उड़ा लिया था. मैं पेंडुलम की तरह लटकी हुई थी और उस समय मैंने अपने आप को मजबूती से रस्सी में बांधे रखा. साथ ही मेरे दो साथी जिसमे में एक फुदोर्जे थे, उन्हें भी तूफ़ान उड़ा ले गया था. यह देखकर मुझे थोड़ी घबराहट ज़रूर हुई लेकिन उस वक़्त मुझे मेरे मानसिक संतुलन ने बचाया. मैं हमेशा यह कहती हूँ कि जब भी इंसान परेशानी में आता है उसे अपने मानसिक संतुलन को नहीं खोना चाहिए. पहला हिम्मत और दूसरा मानसिक संतुलन ही आपका सबसे बड़ा हथियार है. इससे मुझे यह सीखने को मिला कि मानसिक संतुलन बड़ी ऊंची चीज़ है. अगर वो आप बनाये रखेंगे तो डर भय सब दूर हो जाते हैं और आप अच्छे से सोच के, दिमाग का इस्तेमाल करते हुए सही फैसला ले पाएँगे. मैं ऐसी परिस्थितियों से कई बार गुज़र चुकी हूँ.

-योजनाओं और सिद्धांतों को आप किस हद तक महत्वपूर्ण मानती हैं?

मैंने बचपन से लेकर अपना अभी तक का जीवन काल एक कुशल योजना के तहत बिताया है। यदि मैं ऐसा नहीं करती तो शायद यहाँ तक का सफ़र तय कर पाना मेरे लिए मुश्किल रहता. यह मैंने इसलिए समझ लिया था क्यूंकि मैं बहुत सुरक्षित क्लाइम्बर हूँ. बहुत ज़रूरी भी है क्यूंकि जब भी आप कोई रिस्क लेते हैं तो सुरक्षा का आपको पूरा ध्यान रखना होता है. मैं सिद्धांतों को बहुत मानती हूँ. चाहे वो जीवन के सिद्धांत हों या खेल के. यदि आप उसको सही रूप से निभाएँगे तो मेरे ख्याल से आप कभी मार नहीं खाएँगे. माउंटइनीयारिंग में अधिकतर आपकी सुरक्षा आपके ही हाथों में है. क्यूंकि बाहर मौसम ख़राब है तो आपने क्या फैसला लिया ऐसे में, किस वक़्त कहाँ जाना है, अचानक फंस भी गए तो आपके जो सिखाये हुए सिद्धांत हैं उसका पालन कीजिये. आपके मानसिक संतुलन को न खोएं. दूसरी बात है कि आप पूरी तैयारी से जाएँ. मैंने महसूस किया है कि तैयारी में कोताही जीवन के रिस्क का कारन बन सकती है. क्यूंकि माउंटइनीयारिंग के सिद्धांत के अनुसार आप सुबह में ही चढाई करें. बारह बजे के बाद यह उम्मीद मत कीजिये कि आपको मौसम अच्छा मिलेगा और आप सही सलामत अपने कैंप वापस पहुंचेंगे. बारह बजे के तुंरत बाद वापस आ जाएँ. दो बजे तक तो रिस्क लेने की बात है. अगर मौसम साफ़ रहे तो भी. क्यूंकि किस वक़्त मौसम ख़राब हो जाये ये मालूम नहीं.

-जिस जीवन मरण की स्थिति को आपने चढाई के दौरान जिया, उसे आप असल ज़िन्दगी में कैसे लागू करती हैं?

ये बहुत अच्छी बात आपने पूछी। इससे जीवन को जीने का बहुत अच्छा अनुभव आपको मिलता है. क्यूंकि जब भी आपके जीवन में परेशानी आती है तो उसको किस ढ़ंग से सँभालते हुए आगे बढ़ना है, उस परेशानी को किस तरीके से सुलझाना है, यह भी एक चुनौती है, जिसे सुलझाने की समझ मुझे अपने उन्ही अनुभवों से मिली.

-आपने एवरेस्ट की मुश्किल चढाई के साथ आईएएस की कठिन परीक्षा पर भी विजय पाई। इन दोनों अभियान के इतर घर परिवार की ज़िम्मेदारी को आप किस तरह निभाती हैं?

अपनी ज़िम्मेदारी को हर स्तर पे समझना ज़रूरी है। मुझे याद है कि मेरे स्नातक के समय में मैंने किसी से कहा था कि आपका जो व्यवहार है वही आपकी कसौटी है. हर जगह आपका व्यवहार उसके अनुरूप होना चाहिए. मैं दो बच्चों की माँ हूँ और मैं अपने दोनों बच्चों का पालन पोषण खुद करती हूँ. माँ बनना अपने आप में बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी की बात है. सही पालन पोषण और सही संस्कार देना, गलत चीज़ों से दूर रखना एक अभियान है. अति नहीं करनी चाहिए लेकिन सहज रूप से होना चाहिए ताकि बच्चे को पता भी न चले और उसका ख्याल भी रहे. यह बहुत ज़रूरी है. मेरी कोशिश रहेगी और इसकी मैं सरकार और कारपोरेट सेक्टर से अनुरोध करने वाली हूँ कि महिला कर्मचारियों को ख़ास तवज्जो दी जाये. राष्ट्र को अच्छा नागरिक देने वाली एक गर्भवती स्त्री/माँ को कुछ ज्यादा छुट्टियाँ होनी ही चाहिए. कम से कम तब तक जब तक बच्चा माँ पर आश्रित है. उससे बच्चे को बहुत सहारा मिलता है.

-आप अपनी इस ऊर्जा और अनुभवों की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या मानती हैं?

मुझे सबसे बड़ी चीज़ इससे 'इंसानियत' सीखने को मिली। इतने बड़े ब्रम्हांड में इतना छोटा है इंसान. यह बात महसूस होती थी कि हमें एक जीवन मिला है इंसान के रूप में. हम नहीं जानते कि अगला जीवन किस रूप में मिलेगा. इसलिए जो जीवन है उसे अच्छे से जीना चाहिए. हर एक के साथ अच्छा व्यवहार करके और मदद करके. व्यवहार सिर्फ इंसान के साथ नहीं होता. जीवन में हर एक के सामने हर तरह की कठिनाइयाँ आती हैं. उस समस्या का डट के और हिम्मत से मुकाबला करते हुए समाधान करना चाहिए. दूसरी बात, हम अक्सर यह कहते हैं कि हमारे किस्मत में यह नहीं. गलत है. बचपन से लेकर मैंने अभी तक के जीवन काल में देखा है कि मैंने शिक्षा हासिल की जिसके लिए मैंने बहुत संघर्ष किया. उसके बाद मेरी शादी दसवीं क्लास में हुई. मैं रोती रही और तब मैंने यह जिद्द की कि मुझे हॉस्टल जाना है क्यूंकि मैं जानती थी कि यहाँ रही तो मैं जीवन में शायद आगे न बढ़ पाऊं. हालाँकि मुझे बहुत तकलीफ हुई और माँ पिताजी की भी बहुत याद आती थी. लेकिन मैंने अपनी किस्मत का खुद निर्माण किया.

-एक महिला होने के नाते क्या इस अभियान में ख़ास परेशानियों से आपको दो चार होना पड़ा?

मुझे याद है साल १९९३ में मुझे चढाई से पहले हुए स्वास्थ जांच में फ़ेल कर दिया गया था। डॉक्टर को पता ही नहीं था कि मैं पहले ही एवरेस्ट की चढाई कर चुकी हूँ. मेरे फेंफडे बहुत छोटे बताये गए थे जांच में, इसलिए उन्होंने सलाह दी कि मेरा कैंप में न जाना ही अच्छा रहेगा. फिर मेरे एक साथी क्लाइम्बर ने डॉक्टर को मेरा परिचय दिया. मुझे टीम में रखने में हमेशा सुरक्षा के नज़रिए से सही माना गया. मैं सिर्फ एक महिला की हैसियत से नहीं बल्कि ज्यादातर महिला अभियान दल की लीडर की भूमिका में रही. मैंने कभी ऐसा महसूस नहीं किया कि मैं ये काम इसलिए नहीं करुँगी क्यूंकि मैं महिला हूँ. दीवार फान्दनी होती थी, रस्सा चढ़ना, ऊपर से आग निकल रही होती थी और मैं नीचे से रेंगती हुई निकल जाती थी. इन सारे कामों को मैंने किया हुआ है. अन्दर से कुछ करने की इच्छा शक्ति मेरे अन्दर बहुत प्रबल थी. मैं मानती हूँ कि इंसान को हमेशा जिज्ञासु रहना चाहिए. यह बहुत ज़रूरी है. जानने की इच्छा से आपको बहुत कुछ सीखने को मिलता है.

-जीवन की इस चढाई में और किन योजनाओं को अंजाम देने की ख्वाहिश है?

फिलहाल तो माँ का रोल अदा कर रही हूँ. बच्चों को पालना भी बहुत महत्वपूर्ण और ज़िम्मेदारी भरा काम है. जीवन में बहुत सारे उद्देश्य हैं. डेस्टिनी और किस्मत दोनों एक दूसरे के बहुत करीब हैं लेकिन अलग हैं. यदि भाग्य में कोई चीज़ लिखी है लेकिन उसे पाने के लिए आप कर्म ही नहीं करेंगे तो उसका कोई मतलब नहीं. मैं पहाड़ी इलाके से नहीं आती हूँ. हमारे हरयाणा के लोग तो पहाड़ देख के बहुत डरते हैं. इतनी ऊंचाई में और ठंडे मौसम में मेरे लिए सांस ले पाना भी मुश्किल था लेकिन मैंने अपनी इच्छा शक्ति से उसे हासिल किया इसलिए ताजिंदगी खुद को पर्यावरण से जुड़ा हुआ देखना चाहती हूँ और इसके बचाव के लिए काम करती रहूंगी. क्यूंकि प्रकृति को मैंने भगवान् माना है और अगर आप इसकी इज्ज़त करेंगे तो ये आपकी इज्ज़त करेगी वरना तमाम सुरक्षा उपकरणों के साथ भी आप अपना बचाव नहीं कर पाएँगे.

सोमवार, 23 नवंबर 2009

समाजवादी चिंतक राम सेवक यादव की पुण्य तिथि पर नमन !!

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद में जन्मे राम सेवक यादव ने छोटी आयु में ही राजनैतिक-सामाजिक मामलों में रूचि लेनी आरम्भ कर दी थी। लगातार दूसरी, तीसरी और चौथी लोकसभा के सदस्य रहे राम सेवक यादव लोक लेखा समिति के अध्यक्ष, विपक्ष के नेता एवं उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य भी रहे। समाज के पिछड़े वर्ग के उद्धार के लिए प्रतिबद्ध राम सेवक यादव का मानना था कि कोई भी आर्थिक सुधार यथार्थ रूप तभी ले सकता है जब उससे भारत के गाँवों के खेतिहर मजदूरों की जीवन दशा में सुधार परिलक्षित हो। इस समाजवादी राजनेता के अप्रतिम योगदान के मद्देनजर 2 जुलाई 1997 को उन पर डाक टिकट जारी किया गया। जन नायक समाजवादी चिंतक स्वर्गीय राम सेवक यादव को यह गौरव प्राप्त है कि वे प्रथम यादव विभूति थे, जिन पर डाक टिकट जारी किया गया।

स्वर्गीय राम सेवक यादव की पुण्य तिथि पर २२ नवम्बर को उनकी जन्म-कर्म स्थली बाराबंकी में श्रद्धाजंलि अर्पित की गयी। चेतना स्थल पर श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुये विधायक अरविन्द सिंह गोप ने कहा कि स्वर्गीय रामसेवक यादव आज हम लोगो के लिये प्रेरणादायी है। उनके विचारों और रास्तों पर चलने की आज सख्त आवश्यकता है। श्रद्धाजंलि अर्पित करने वालों में विधान परिषद सदस्य अरविन्द कुमार यादव, स्वर्गीय राम सेवक यादव के पुत्र अमिताभ सिंह यादव, पुत्र वधु ऊषा यादव समेत कई लोग मौजूद रहे।

-:जीवन वृत्तः-
जन्म - २ जुलाई १९२६
देहावसान - २२ नवम्बर १९७४
जन्म-स्थल- ग्राम- ताला रुकुनुद्‌दीनपुर, पत्रालय- थलवारा, तहसील हैदरगढ, जनपद, बराबंकी (उ०प्र०)
पिता- राम गुलाम यादव
माता- ननका देवी यादव
शिक्षा- हाई स्कूल- १९४५, राजकीय इण्टर कालेज, बाराबंकी इण्टरमीडिएट- १९४७, कान्य कुब्ज कालेज, लखनऊ स्नातक- १९४९, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ विधिस्नातक- १९५१, लखनऊ विश्वविद्यालय
व्यवसाय - १९५२ ई० से १९५६ तक वकालत

-:राजनैतिक-वृत्त :-
१९४६-१९५१ - काग्रेस से सम्बद्ध
१९४६-१९५१ - जनपदीय प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के प्रभारी
१९५२-१९५६ - प्रदेशीय प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के संयुक्त सचिव
१९५२-१९५६ - प्रदेशीय प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के संयुक्त सचिव
१९५७-१९६२ - लोकसभा सद्स्य (बाराबंकी)
१९६२-१९६७ - लोकसभा सद्स्य (दूसरी बार)
१९६७-१९७१ - लोकसभा सद्स्य (तीसरी बार)
- अखिल भारतीय संयुक्त सोद्गालिस्ट पार्टी के महासचिव
१९७४ - उत्तर प्रदेश विधान सभा सदस्य (रुदौली)
- उपनेता विपक्ष एवं अध्यक्ष लोक लेखा समिति

-: सामाजिक अवदान :-
१. सामाजिक बुराईयों के प्रति सतत संघर्ष
२. समाज के असहाय व दुर्बल वर्ग के विशेष हित साधक उत्थान के लिए सतत प्रयत्नशील
३. समाजवादी समतामूलक समाज रचना के लिए आजीवन समर्पण

जन नायक समाजवादी चिंतक स्वर्गीय राम सेवक यादव जी की पुण्यतिथि पर पुनीत स्मरण !!

बुधवार, 11 नवंबर 2009

दिनेशलाल यादव निरहुआ - सफलता के आकाश पर नई उडान

भोजपुरी सिनेमा के सुपर स्टार दिनेशलाल यादव निरहुआ अब क्षेत्रिय सिनेमा की सीमाएं लांघ कर राष्ट्रीय सिनेमा की मुख्य धारा में आ रहे है। इस कोशिश का पहला कदम उनका नया म्यूजिक अलबम 'हे अम्बे तेरा प्यार चाहिए' है । टी. सीरिज द्वारा जारी इस नए अलबम के सारे गीत हिन्दी में है । नौ में से पांच गीत दिनेशलाल यादव के स्वर में हैं और इन गीतों के गीतकार प्यारेलाल यादव है।'' भोजपुरी में टी. सीरिज से अब तक मेरे साठ से अधिक अलबम आ चुके ह किन्तु हिन्दी में यह मेरा पहला प्रयास है ।''
दिनेशलाल यादव बताते हुए स्पष्ट करते है ''मैं काफी समय से इस बात का प्रतीक्षा में था कि कंपनी मुझे अपने किसी हिन्दी अलबम के लिए गाने का प्रस्ताव देगी और इस नए अलबम से मुझे यह अवसर मिल गया है । हिन्दी में गाने की मेरी इच्छा इसलिए भी थी कि मेरे जो प्रशंसक भोजपुरी ठीक से नहीं समझ पाते वे हिन्दी में सुन कर समझ सकें । चूंकि देश - विदेश में मेरे लाखों करोडों प्रशंसकों को मेरी गायकी और शैली का एक खास अंदाज पसंद आता है, इसीलिए मैंने हिन्दी में गाते समय भी अपना वही अंदाज और वही शैली प्रयोग की है । मुझे मालूम है कि हिन्दी में एक से एक योग्य और मंजे गायक मौजूद है और उनके बीच अपनी जगह बनाना आसान काम नहीं है किन्तु मैं कोशिश तो कर ही सकता हूं । ''अलबम 'हे अम्बे तेरा प्यार चाहिए' नवरात्री के अवसर पर जारी एक सामयिक अलबम है । इसीलिए अलबम के सभी नौ गानों का वीडियो भी बनाया जा रहा है ।

इधर अभिनेता के रुप में निरहुआ की पारी हर नई फिल्म के साथ मजबूत होती जा रही है । हाल ही में प्रदर्शित निरहुआ की चार नई फिल्मों 'निरहुआ चलल ससुराल', 'लागल रहा राजा जी ''विधाता 'और' खिलाडी न.1' ने एक साथ प्रदर्शन के सौ दिन पूरे किए है और ये भोजपुरी सिनेमा में किसी भी अभिनेता का नया रेकार्ड है। ''मेरी अभिनेता के रुप में अब तक 15 फिल्में प्रदर्शित हो चुकी हैं और आम दर्शक मुझे एक आदमी के पात्र में ही देखना पसंद करते ह । इसीलिए आज भी मैं अपनी मिट्टी और अपनी जमीन से जुडे पात्रों को ही निभा रहा हूं । यह सिलसिला पहली फिल्म 'चलत मुसाफिर मोह लियो रे' से ही चल रहा है । दूसरी फिल्म 'हो गइलबा प्यार ओढनिया वाली से' जब हिट हुई तब भी मैंने अपना ट्रेक नहीं बदला। आज मैं अभिनेता के रुप में सफलता की मंजिले तय करते समय भी इस संबंध में बहुत सतर्क और सावधान हूं । सफलता और लोकप्रियता के आकाश को छू लेने के बावजूद अपने पांवों को जमीन से जोडे रखा हैं । एक - एक फिल्म बहुत ही सोच समझ कर लेता हूं । अब तक जो भी भूमिकाएं की हैं उनमें से किसी को भी दोहराया नहीं है । अब तक जितनी फिल्में की हैं उनसे चार गुना अधिक फिल्में छोडी हैं । मैं अभिनय के प्रति पूरी तरह समर्पित हूं ।''

वास्तव में अभिनय के प्रति पूर्ण समर्पण की यह भावना हाल ही में उस समय भी सामने आ गई जब नई फिल्म ' नरसंहार ' के लिए निरहुआ ने अपने सिर के बालों का बलिदान दे दिया । इस फिल्म की भूमिका को सशक्त स्वाभाविक और जीवंत बनाने के लिए अपने सुन्दर और लंबे बालों को कटवा दिया ।'' इस फिल्म के लिए मुझे दस फिल्में छोडना पड । क्योंकि बाल कटाने के बाद मैं ' नरसंहार ' के अलावा अन्य किसी फिल्म की शूटिंग नहीं कर सकता था ।' नरसंहार' यू पी -बिहार में आज के दौर की एक जवलन्त समस्या पर आधारित है । हर दिन कहीं न कहीं सामूहिक हत्याएं होती रहती हैं । इसी जवलन्त समस्या की पृष्ठभूमि में ' नरसंहार 'की कहानी लिखी गई है । फिल्म के हीरो के संपूर्ण परिवार की हत्या कर दी जाती है । किस्मत से हीरो बुरी तरह घायल हो कर भी बच जाता है । उसी दशा में सिर मुंडवा कर वह अपने प्रियजनों का दाहसंस्कार करता है और इसी दाह संस्कार की ज्वाला के साथ ही साथ परिवार के हत्यारों से बदला भी लेता है ।' नरसंहार 'मेरी अब तक प्रदर्शित सभी फिल्मों बिल्कुल अलग एक एक्शन इमोशन से भरपूर विचारोंत्तेजक फिल्म है ।''

निरहुआ की शीघ्र आने वाली फिल्में ' रंग दे बसंती चोला ' और ' 'हम है बाहुबली 'ह । इनके अलावा ' निरहुआ तांगेवाला ', 'चलनी के चालल दुल्हा' , 'हो गई नी दीवाना तोहरे प्यार में ', ' दीवाना ', 'प्रतिज्ञा' और ' अमर -अकबर - अंथनी 'सेट पर निर्माणाधीन है ।' चलनी के चालल दुल्हा 'के साथ निरहुआ ने निर्माता के रुप में भी नयी उडान भर ली है और इस फिल्म के निर्माण के साथ अपने छोटे भाई प्रवेशलाल यादव को भी अभिनेता बना दिया है ।'' अपनी निर्माण संस्था 'निरहुआ एंटरटेनमेंट 'को आरंभ करने के पीछे मेरा एक ही लक्ष्य है कि मैं ऐसी अच्छी और स्तरीय फिल्में बनाऊं जो भोजपुरी सिनेमा को और उं'चा स्तर दे सकें । हमारी कंपनी फिल्म निर्माण के साथ म्यूजिक अलबम भी बनाएगी । अभी तो भोजपुरी फिल्मों की ही योजना है । भविष्य में कंपनी हिन्दी फिल्मों का निर्माण भी करेगी । किन्तु अभी कुछ निश्चित नहीं है । क्योंकि अभी तो कंपनी ने निर्माण के पथ पर अपना पहला ही कदम रखा है । यह कदम भविष्य में कंपनी को कहां ले जाएंगे अभी कहना संभव नहीं है ।''आजकल निरहुआ के अभिनय की उडान दक्षिण भारतीय सिनेमा के आकाश तक पहुंच गई है । वे दक्षिण भारत में बन रही भोजपुरी फिल्म के लिए डांस और एक्शन की विशेष ट्रेंनिग ले रहे ह । उनकी दो फिल्में जो हैदराबाद में शूट हुई है वहीं तेलगू में डब होकर चल रही है ।

इधर निरहुआ ने बिहार के बाढ पीडित लोगों के लिए अपनी एक फिल्म का पारिश्रमिक 50 लाख रुपए दान देने की घोषणा की है । शीघ्र ही निरहुआ अपनी एक फिल्म के प्रीमियर हेतु बिहार जाएंगे और अपने हाथों से बाढ पीडितों को इस राशि से आवश्यक्ता अनुसार सहायता देंगे । निरहुआ का यह प्रयास इस बात का प्रमाण है कि वे केवल सिनेमा के पर्दे पर ही नहीं बल्कि समाज के कैनवस पर भी एक सच्चे हीरो हैं ।
साभार प्रस्तुतिः राजकुमार/ http://www.khabarexpress.com/

रविवार, 8 नवंबर 2009

नवोदित रचनाकार : सुनीता यादव

नाम- सुनीता यादव / पति- श्री प्रेम यादव /जन्मतिथि - १२-११-१९७१स्थल- ब्रह्मपुर, उड़ीसा/शिक्षा- बी। ए. (आनर्स) (हिन्दी),खालिकोट कॉलेज ,ब्रह्मपुरएम.ए(हिन्दी),एम.फिल(हिंदी) (हैदराबाद विश्वविद्यालय)अनुवाद डिप्लोमा(दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा,खैराताबाद,हैदराबाद),बी.एड॰ (भारतीय शिक्षा परिषद्,लखनऊ)/रुचि- लेखन ( कविता, संस्मरण, नाटक, बाल-साहित्य-सृजन), पुस्तकें पढ़ना, गायन, तैराकी, मुसाफिरी व चित्रकला, हिन्दी व उड़िया के प्रति प्रेम के अलावा तेलुगु, बंगला, असमिया, मराठी व अंग्रेजी भाषाओं के प्रति लगावकार्य- १९९५ से १९९७ तक असाम में सांगी ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्रीज ( हैदराबाद) के पेपर विभाग जोगिगोपा में वेलफेयर ऑफिसर,सन २००० से स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ऑफिसर्स असोसिअशन पब्लिक स्कूल ,औरंगाबाद,महाराष्ट्र में शिक्षिका के रूप मेंकार्यरत,२००६ से (२०११ तक) महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा ,पुणे-औरंगाबाद विभाग के विभागीय मनोनीत सदस्यसम्मान:महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा ,पुणे द्वारा आदर्श शिक्षक पुरस्कार (२००४)जॉर्ज फेर्नादिश पुरस्कार(२००६)राज्यस्तरीय भाषा भूषण पुरस्कार (२००८)अन्य:महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा पुणे-औरंगाबाद विभाग द्वारा आयोजित बीड़ जिला चुनिन्दा हिन्दी अध्यापक कार्यकर्ताओं के मार्गदर्शक के रूप में चयनित, केंद्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा आयोजित हिन्दी नव लेखक शिविरों में कविता पाठ, आकाशवाणी औरंगाबाद से भी कविताओं का प्रसारण, अंतर्राज्यीय (महाराष्ट्र तथा गुजरात) हिन्दी भाषण प्रतियोगिता में परीक्षक के रूप में चयनित (2006), परिचर्चायों में भागीदारी, गायन में अनेक पुरस्कारों से पुरस्कृत, २००५ में कत्थक नृत्यांगना कु।पार्वती दत्ता द्वारा आयोजित विश्व नृत्य दिवस कार्यक्रम का संचालन।
सम्पर्क-sunitay4u@gmail.com

रविवार, 1 नवंबर 2009

पंचायत राज पर कार्य हेतु लोकनाथ यादव सम्मानित

कहते हैं जज्बा हो तो उम्र भी बाधा नहीं बनती. अब 83 वर्षीय लोकनाथ सिंह यादव जी को ही लीजिये, कानपुर निवासी इस अनूठे व्यक्तित्व को पंचायत राज पर 50 साल से अधिक समय तक विशिष्ट कार्य करने के लिए पिछले दिनों विज्ञान भवन दिल्ली में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वर्ण पदक प्रदान कर सम्मानित किया। इस अवसर पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी उपस्थित थीं। लोक नाथ सिंह यादव जी लम्बे समय से लोक सेवा व राजनीति में सक्रिय रहे हैं।...यदुकुल की तरफ से आपके स्वस्थ एवं दीर्घायु जीवन की कामना और ढेरों बधाइयाँ !!