रविवार, 4 नवंबर 2012

नहीं रहे बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी डॉ.जे.एस.यादव

अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त जीव वैज्ञानिक डॉ.जे.एस.यादव ने न केवल वैज्ञानिक के रूप में विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाई, बल्कि पर्यावरणविद, सामाजिक कार्यकर्ता, साहित्यकार और शिक्षाविद के रूप में भी राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।

 8 नवम्बर, 1942 को दीपावली के दिन गाँव नीरपुर में नंदलाल सिंह तहसीलदार एवं श्रीमती निहालकौर के घर जन्में डॉ.जे.एस.यादव ने राजकीय महाविद्यालय नारनौल से एफ.एस.सी और डीएवी महाविद्यालय, जालंधर से एम.एस.सी.(ऑनर्स)करने उपरान्त पंजाब विश्व-विद्यालय से पी.एच.डी. की और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में प्राणीशास्त्र विभाग में प्राध्यापक लगे। यहाँ अपने शोध कार्य को गति देते हुए आपने कोशिकानुवांशिकी के क्षेत्र के विश्वस्तर पर पहचान बनाई। उन्होंने 6 बड़े रिसर्च प्रोजेक्ट पूरे किए और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के प्रतिनिधि के रूप में 1982 में ढाई माह सोवियत रूस में कार्यरत रहे। उन्होंने स्पेन में आयोजित विश्व स्तरीय कांफे्रंस की अध्यक्षता की और राष्ट्र स्तर पर अपने विषय की अनेक संस्थाओं के अध्यक्ष रहे। उनके निर्देशन में तीन दर्जन से अधिक युवाओं ने पीएचडी और एम.फिल के शोध सम्पन्न किए। उनके 160 से भी अधिक शोध पत्र प्रकाशित हुए। उनके जनेटिक डिसआर्डर के क्षेत्र के किए गए कार्य के मध्यनजर सम्मान-स्वरूप एक डच वैज्ञानिक ने एक बीटल का नाम हाइड्रोक्स-यादवी रखा है। डॉ.यादव हिन्दी में प्रकाशित होने वाली एक मात्र शोध पत्रिका जीवन्ती के संस्थापक संपादक थे।

 वैज्ञानिक के रूप में कार्य करने के अतिरिक्त डॉ.यादव कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय में प्राणीशास्त्र विभाग के अध्यक्ष, डीन विज्ञान संकाय, दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक, डीन स्टूडैंट वैल्फेयर रहे। डॉ.यादव ने पंजाब विश्वविद्यालय की सीनेट का तीन बार लगातार चुनाव जीता और 1988 से 2000 तक लगातार पंजाब विश्वविद्यालय की सीनेट के सदस्य रहे। इसके अलावा वे पंजाब विश्वविद्यालय की सिंडिकेट, फाइनेंस बोर्ड के सदस्य भी रहे। उन्हें विश्वविद्यालय ने डेयरी, पशुपालन तथा कृषि संकाय के डीन भी बनाया। वे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की विषय समिति के सदस्य भी रहे। डॉ.यादव अनेक कालेजों के प्रबंधन से भी जुड़े थे।

 डॉ यादव देश के जाने-माने पर्यावरणविद थे, वे दयानन्द नेशनल अकादमी आफॅ एन्वायरमैंटल साईंसिज, चण्डीगढ़ के उपाध्यक्ष, परिवेश-सोसायटी फार एन्वायरमैंटल एवेयरनेस हरियाणा के अध्यक्ष तथा नेशनल वर्किंग ग्रुप आफ जनेटिक डिसआर्डर के सदस्य थे। हरियाणा में पक्षी विज्ञान के वे एकमात्र ज्ञाता थे।

 डॉ.यादव जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता भी थे। उन्होंने 1984 में जर्मनी गए भारतीय शांति दल का नेतृत्व किया था। डॉ.यादव सामाजिक न्यायमंच हरियाणा के संयोजक और यादव समाज सभा कुरुक्षेत्र के संस्थापक अध्यक्ष थे। उनके प्रयासों से कुरुक्षेत्र में यादव धर्मशाला का निर्माण हुआ है वहीँ एक चौक का नाम राव तुला राम चौक रखा गया है जिस पर राव राजा की 25 फुट ऊँची प्रतिमा स्थापित की गयी है। डॉ.यादव हरिजन सेवक संघ हरियाणा के उपाध्यक्ष भी थे। इसके अलावा भी वे दर्जनों संस्थाओं को अपने अनुभव से लाभान्वित कर रहे थे। डॉ.यादव आर्य समाज के गहरे जुड़े हुए थे और हिन्दी आंदोलन, गौरक्षा आंदोलनों में सक्रिय भूमिका उन्होंने निभाई।

 डॉ. यादव का साहित्य के क्षेत्र मे भी दखल था। वे हरियाणा प्रगतिशील लेखक संघ के प्रदेश संरक्षक रहे। उनकी करीब आधा दर्जन विभिन्न विषयों पर पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। हाल ही में उनका काव्य संग्रह अकेलेपन का डर लोकार्पित हुआ था। अभी उनकी नई कृति विविधा प्रकाशनाधीन है। स्पष्ट वक्ता, मृदुभाषी डॉ.यादव ने सदा गरीब और पिछड़ों के लिए आवाज बुलन्द की, मगर दलितों और पिछड़ों का यह मसिहा 24 अक्टूबर, 2012 को इस नश्वर संसार को अलविदा कह गया।....श्रद्धांजली !!


 -रघुविन्द्र यादव

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