रावत नाच महोत्सव समिति द्वारा लोक संस्कृति पर केन्द्रित पत्रिका ’मड़ई’ का प्रकाशन पिछले पच्चीस वर्षों से किया जा रहा है। हिन्दी जगत के लब्धप्रतिष्ठ विद्वानों एवं लोक संस्कृति मर्मज्ञों के महत्वपूर्ण, चिंतनपरक, गंभीर आलेखों का प्रकाशन इसमें नियमित रूप से होता रहा है। भू-मंडलीकरण के इस उत्तर आधुनिक दौर में जब लोक संस्कृति के लिए साहित्य और समाज में बहुत कम स्पेस रह गया है, मड़ई लोक संस्कृति की नई सैद्धांतिकी की निर्मिति में एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रही है। उसके इस विनम्र प्रयास को सर्वत्र प्रशंसा एवं व्यापक समर्थन प्राप्त हुआ है।
’मड़ई’ के महत्व को स्वीकार करते हुए केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा एवं संगीत नाटक अकादमी, दिल्ली द्वारा इसे प्रकाशन-अनुदान दिया जाता है। उल्लेखनीय है कि पूरे देश में चर्चित लोक संस्कृति की इस अनूठी पत्रिका का वितरण पूर्णतः निःशुल्क किया जाता है।
मड़ई के संपादक डा0 कालीचरण यादव ने सूचित किया है कि इस पत्रिका को ’निस्केयर’ (नेशनल इंस्टीट्यूट आफ साइंस कम्युनिकेशन एण्ड इन्फार्मेशन रिसोर्सेस), नई दिल्ली द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मानक क्र. 2278-8352 प्रदान किया यगा है। उल्लेखनीय है कि आइ.एस.एस.एन. एक अंतर्राष्ट्रीय मानक है। इस प्रकार की अंतर्राष्ट्रीय मानक क्रमांक युक्त पत्रिका में छपे शोध-आलेख की प्रामाणिकता बढ़ जाती है। ’मड़ई’ की यह उपलब्धि निश्चित रूप से लोक संस्कृति के क्षेत्र में कार्यरत शोधार्थियों को उत्साहित करेगी।
’मड़ई’ के महत्व को स्वीकार करते हुए केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा एवं संगीत नाटक अकादमी, दिल्ली द्वारा इसे प्रकाशन-अनुदान दिया जाता है। उल्लेखनीय है कि पूरे देश में चर्चित लोक संस्कृति की इस अनूठी पत्रिका का वितरण पूर्णतः निःशुल्क किया जाता है।
मड़ई के संपादक डा0 कालीचरण यादव ने सूचित किया है कि इस पत्रिका को ’निस्केयर’ (नेशनल इंस्टीट्यूट आफ साइंस कम्युनिकेशन एण्ड इन्फार्मेशन रिसोर्सेस), नई दिल्ली द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मानक क्र. 2278-8352 प्रदान किया यगा है। उल्लेखनीय है कि आइ.एस.एस.एन. एक अंतर्राष्ट्रीय मानक है। इस प्रकार की अंतर्राष्ट्रीय मानक क्रमांक युक्त पत्रिका में छपे शोध-आलेख की प्रामाणिकता बढ़ जाती है। ’मड़ई’ की यह उपलब्धि निश्चित रूप से लोक संस्कृति के क्षेत्र में कार्यरत शोधार्थियों को उत्साहित करेगी।