सवाल : वैसे तो भगवान कृष्ण धर्म की बात करते हैं लेकिन महाभारत के युद्ध में उन्होंने खुद छल और अधर्म का इस्तेमाल क्यों किया?
जवाब : महाभारत के युद्ध को केवल दो राज्यों या राजाओं का युद्ध न होकर अच्छाई और बुराई का युद्ध कहा जा सकता है। कौरवों ने इस युद्ध से बहुत पहले ही अधर्म और छल-कपट से पांडवों को खत्म करने की साजिश शुरू कर दी थी, चाहे वह भीम को जहर खिलाकर पानी में डुबोने की कोशिश हो या लाक्षागृह को आग लगाकर पांडवों को मारने का षडयंत्र। जब इससे भी बात न बनी तो उन्होंने जुए का ऐसा खेल रचा जो पांडवों को पूरी तरह खत्म कर दे। इस अनीति और अधर्म के खात्मे के लिए कृष्ण से धर्म की अपेक्षा करना बेमायने है। भगवान कहते हैं कि जो वो कर रहे हैं, वह अधर्म है और जो हम कर रहे हैं, वह भी अधर्म है लेकिन हममें और उनमें फर्क यह है कि हम यह सब धर्म की रक्षा के लिए कर रहे हैं। धर्म की रक्षा करने की यह महान इच्छा ही हमें धर्म-अधर्म के बंधनों से मुक्त कर देती है। कृष्ण कभी नहीं कहते कि वह जो कर रहे हैं, वह सही है लेकिन वह यह जरूर कहते हैं कि वह जिस उद्देश्य से यह कर रहे हैं, वह बिल्कुल सही है।
सवाल : कृष्ण माखन चुराते हैं और गोपियों के कपड़े उठा लेते हैं। ऐसे में उन्हें योगी कैसे कह सकते हैं?
जवाब : यह आश्चर्य की बात है कि जो कृष्ण माखन चुराता है, गोपियों के कपड़े लेकर छुप जाता है, वह गीता का गंभीर योगी कैसे हो जाता है। यही कृष्ण के व्यक्तित्व की निजता है। यही वह विशेषता है जिससे कृष्ण हमारे इतने नज़दीक लगते हैं। कृष्ण इन विरोधों से मिलकर ही बने हैं। हमारा सारा जीवन ही विरोधों पर खड़ा है लेकिन इन विरोधों में एक लय है, एक प्रवाह है। सुख-दुख, बचपन-बुढ़ापा, रोशनी-अंधेरा, जन्म-मृत्यु ये सब विरोधी बातें हैं लेकिन एक लय में बंधे होते हैं। इसी लय में जीवन संभव होता है और इस संतुलन को साधने का संदेश देता है कृष्ण चरित्र।
सवाल : कृष्ण ने राधा से प्रेम किया लेकिन विवाह नहीं किया?
जवाब : कृष्ण जीवन के इस प्रसंग को लेकर तरह-तरह के तर्क और कहानियां सुनने को मिलती हैं। श्रीकृष्ण के गुरु गर्गाचार्य जी द्वारा रचित गर्ग संहिता में वर्णन मिलता है कि राधा-कृष्ण का विवाह हुआ था। आध्यात्मिक स्तर पर प्रेम की बात करने वालों के अनुसार एक विवाह न करने को लेकर यह सवाल खुद राधा ने भगवान कृष्ण से किया कि आपने मुझसे विवाह क्यों नही किया। इस पर कृष्ण बोले कि विवाह तो दो अलग-अलग मनुष्यों के बीच होता है और मैं और तुम अलग नहीं हैं। ऐसे में हमें विवाह की क्या जरूरत! तार्किकता से बात करने वाले कहते हैं कि कृष्ण से जुड़े प्रामाणिक ग्रंथों जैसे महाभारत या भागवत पुराण में राधा के नाम का उल्लेख ही नहीं मिलता और राधा नाम के चरित्र को भक्तिकाल में ही ज्यादा विस्तार मिला। राधा-कृष्ण की भक्ति की शुरुआत निम्बार्क संप्रदाय, वल्लभ-संप्रदाय, राधावल्लभ संप्रदाय, सखीभाव संप्रदाय आदि ने की।
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