जाति आधारित जनगणना के विपक्ष में उठाए जा रहे सवालों पर सिलसिलेवार चर्चा करें-
भारत में 1931 के बाद जाति-आधारित जनगणना नहीं की गई और अंग्रेजों ने भी इसे सामाजिक वैमनस्य बढ़ाने वाला बताया।
भारत में प्रथम स्थायी जनगणना 1881 में हुई। 1931 तक अंग्रेजों ने जाति-आधारित जनगणना ही की। 1941 में द्वितीय विश्वयुद्ध के चलते जनगणना व्यापक रूप में नहीं हो सकी, अतः जाति आधारित जनगणना नहीं की जा सकी। स्वतंत्र भारत की सरकार ने 1951 व उसके बाद जाति-आधारित जनगणना नहीं कराई, जिसकी कि अब माँग की जा रही है। यहाँ यह भी जोड़ना जरुरी है कि भारत सरकार का राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन अपने प्रतिवेदन में कल्याणकारी योजनाओं हेतु विभिन्न जाति-वर्गाें की अनुमानित गणना करता है। मसलन इस संगठन ने अपने 61वें दौर ;2004.05द्ध में अन्य पिछड़ा वर्ग के 41 फीसदी होने का अनुमान व्यक्त किया था।
(जातिवार गणना के विरोध में उठाये गए हर सवाल का जवाब क्रमश: अगले खंड में)
3 टिप्पणियां:
जब तक जाति आधारित जनगणना खत्म नहीं होगी जातिवाद भी खत्म नहीं हो सकता.
जाति आधारित जनगणना कदापि नहीं होनी चाहिए.
Bahut sahi bat batai apne.sach ko swikarna hoga.
बहुत सही लिखा आपने. जिन लोगों ने जाति की आड में सदियों तक शोषण किया, आज अपने हितों पर पड़ती चोट को देखकर बौखला गए हैं. जातिवाद के पोषक ही आज जाति आधारित जनगणना के आधार पर जातिवाद के बढ़ने का रोना रो रहे हैं. इस सारगर्भित लेख के लिए आपकी जितनी भी बड़ाई करूँ कम ही होगी. अपने तार्किक आधार पर जाति-गणना के पक्ष में सही तर्क व तथ्य पेश किये हैं..साधुवाद !!
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