मंगलवार, 1 जून 2010

जाति आधारित जनगणना अनिवार्य : अनुसूचित जातियों-जनजातियों की गिनती से तो जातिवाद नहीं फैला

जाति आधारित जनगणना के विपक्ष में उठाए जा रहे सवालों पर सिलसिलेवार चर्चा करें-
(1) जाति आधारित जनगणना से जातिवाद को बढ़ावा मिलेगा।

यह सोच पूर्णतया निरर्थक है। जनगणना में अनुसूचित जाति, जनजाति एवं धार्मिक अल्पसंख्यकों की गिनती सदैव से होती आ रही है, पर उससे तो कोई जातिवाद या संप्रदायवाद नहीं बढ़ा। उलटे उनके हित में कल्याणकारी योजनाएं बनाने में आसानी हुई। भारत में स्त्री-पुरुष की गणना भी अलग-अलग होती है, पर इससे लिंग-विभेद को तो बढ़ावा नहीं मिलता। दुर्भाग्यवश हमारे समाज ने अब तक जाति की गंदगी को छिपाने का ही काम किया है। निन्यानवे प्रतिशत परिवार अब भी जन्मकुंडली के अनुसार जाति और गोत्र देख कर शादियांँ करते हैं, भले वे प्रगतिशीलता का मुखौटा पहने रहें। फिर यह कहना कि जाति-गणना से जातिवाद बढ़ेगा, अतिरेक ही है।

क्या जब आजादी के बाद से जातियों की गणना नहीं हो रही थी तो जातिवाद खत्म हो गया था या जनगणना में जाति मात्र का कालम हटा देने से जातिवाद का जहर खत्म हो जाएगा ।जब तक जातिवाद का जहर नहीं खत्म होगा तब तक जाति-गणना से अगड़ापन या पिछड़ापन नहीं आता है। भारत अभी भी पिछड़ा है तो सदियों से चली आ रही इस सामाजिक विषमता के कारण जो प्रतिभाओं को कुंठित कर रही है। समाज में अभी भी व्यक्ति के चेहरे पर लगा कथित ष्निचली या पिछड़ी जातिष् का ठप्पा व्यक्ति के पूरे व्यक्तिव को ध्वस्त कर देता है। गोहना, खैरलाजी और हाल ही में मिर्चपुर जैसे कांड इसके ज्वलंत उदाहरण हंै। जहाँ राजनीतिक पार्टियाँ खुद जातीय समीकरणों के आधार पर प्रत्याशियों का चयन और चुनावी रणनीतियाँ तैयार करती हैं, शादी-विवाह जैसे मामलों में खाप पंचायतों के साथ खड़ी नजर आती हैं वहाँ जातिवार जनगणना न भी कराएँ तो समाज में जातीय जकड़बंदी को तोड़ पाना, कितना आसान होगा, कहना मुश्किल है।

(जातिवार गणना के विरोध में उठाये गए हर सवाल का जवाब क्रमश: अगले खंड में)

3 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

और जब तक जाति आधारित जनगणना खत्म नहीं होगी जातिवाद भी खत्म नहीं हो सकता.
जाति आधारित जनगणना कदापि नहीं होनी चाहिए.

Unknown ने कहा…

बहुत सही लिखा आपने. जिन लोगों ने जाति की आड में सदियों तक शोषण किया, आज अपने हितों पर पड़ती चोट को देखकर बौखला गए हैं. जातिवाद के पोषक ही आज जाति आधारित जनगणना के आधार पर जातिवाद के बढ़ने का रोना रो रहे हैं. इस सारगर्भित लेख के लिए आपकी जितनी भी बड़ाई करूँ कम ही होगी. अपने तार्किक आधार पर जाति-गणना के पक्ष में सही तर्क व तथ्य पेश किये हैं..साधुवाद !!

Shyama ने कहा…

क्या जब आजादी के बाद से जातियों की गणना नहीं हो रही थी तो जातिवाद खत्म हो गया था या जनगणना में जाति मात्र का कालम हटा देने से जातिवाद का जहर खत्म हो जाएगा..sahi sawal uthaya apne.