आज महिलाएं हर क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रहीं हैं। राजनीति, प्रशासन, साहित्य, कला, उद्योग, मीडिया हर क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। कुछ कार्य ऐसे भी हैं, जिन्हें प्रारम्भ में महिलाओं के योग्य नहीं समझा गया। पर अपने कौशल की बदौलत महिलाएं आज उन क्षेत्रों में भी सफलता के परचम फहरा रहीं हैं। उन्हीं में एक हैं- भारत की प्रथम महिला ट्रेन चालक सुरेखा(भोंसले)यादव। महाराष्ट्र के सतारा जिले में एक किसान परिवार में जन्मीं सुरेखा ने विद्युत अभियांत्रिकी में पत्रोपाधि पाठ्यक्रम 1986 में पूरा किया। रोजगार के विज्ञापन देखते हुए एक दिन उनकी निगाह रेलवे के सहायक इंजन ड्राइवर की रिक्ति पर पड़ी, जिसके लिए न्यूनतम योग्यता विद्युत अभियांत्रिकी में पत्रोपाधि थी। बस फिर क्या था, सुरेखा ने आवेदन कर दिया। सफलता पश्चात तीन वर्षों तक उन्हें विभिन्न परीक्षणों के दौर से गुजरना पड़ा। फिर अन्ततः जब नियुक्ति मिली तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा, आखिर वह ट्रेन का इंजन चलाने वाली देश की ही नहीं बल्कि एशिया महादीप की प्रथम महिला ड्राइवर बन चुकी थीं। प्रारम्भ में कुछ समस्याएं अवश्य आईं परन्तु आत्मविश्वास ने उन्हें आगे बढ़ाया। उनके साथी पुरूषों ने इस काम के खतरों की बात की लेकिन उनका निश्चय देखकर वे सब उनकी मदद करने लगे। इस तरह सुरेखा की गाड़ी पटरी पर दौड़ने लगी।
सुरेखा के इस काम से उनके पारिवारिक जीवन पर भी असर पड़ा है। उनके काम के घंटे तो अनिश्चित हैं ही, पुलिस विभाग में काम कर रहे पति के काम का समय भी निश्चित नहीं है। लेकिन बच्चे और पति उन्हें पूरा सहयोग देते हैं। उनके बच्चों के स्कूल ने उन अभिभावकों को सम्मानित करने का आयोजन किया जो विशिष्ट कार्य कर रहे हों। बच्चों ने उनका नाम दे दिया। मंच पर जब वह सम्मानित हो रही थीं तो बच्चे जोरदार तालियाँ बजा रहे थे। वर्ष 2000 में उन्हें उपनगरीय लोकल गाड़ियों का ड्राइवर बनाया गया। पर सुरेखा की मंजिलें तो अभी और भी हैं। उन्हें पैसेंजर गाड़ी का ड्राइवर बनना है, फिर घाट पार करने वाले इंजन का ड्राइवर और फिर लंबी दूरी वाले मेल और एक्सप्रेस का ड्राइवर। सुरेखा को अपने कौशल पर पूर्ण विश्वास है और निश्चिततः ट्रेन की गति के साथ-साथ उनके जीवन की गाड़ी भी अपनी पटरी पर सरपट दौड़ती रहेगी।
सुरेखा के इस काम से उनके पारिवारिक जीवन पर भी असर पड़ा है। उनके काम के घंटे तो अनिश्चित हैं ही, पुलिस विभाग में काम कर रहे पति के काम का समय भी निश्चित नहीं है। लेकिन बच्चे और पति उन्हें पूरा सहयोग देते हैं। उनके बच्चों के स्कूल ने उन अभिभावकों को सम्मानित करने का आयोजन किया जो विशिष्ट कार्य कर रहे हों। बच्चों ने उनका नाम दे दिया। मंच पर जब वह सम्मानित हो रही थीं तो बच्चे जोरदार तालियाँ बजा रहे थे। वर्ष 2000 में उन्हें उपनगरीय लोकल गाड़ियों का ड्राइवर बनाया गया। पर सुरेखा की मंजिलें तो अभी और भी हैं। उन्हें पैसेंजर गाड़ी का ड्राइवर बनना है, फिर घाट पार करने वाले इंजन का ड्राइवर और फिर लंबी दूरी वाले मेल और एक्सप्रेस का ड्राइवर। सुरेखा को अपने कौशल पर पूर्ण विश्वास है और निश्चिततः ट्रेन की गति के साथ-साथ उनके जीवन की गाड़ी भी अपनी पटरी पर सरपट दौड़ती रहेगी।
14 टिप्पणियां:
आज महिलाएं हर क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रहीं हैं। ऐसे में ट्रेन-चालक के रूप में सुरेखा जी का हौसला काबिले-तारीफ है.इस नवीन पोस्ट के लिए बधाई.
तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा, आखिर वह ट्रेन का इंजन चलाने वाली देश की ही नहीं बल्कि एशिया महादीप की प्रथम महिला ड्राइवर बन चुकी थीं....वाह, अति सुन्दर...ढेरों बधाइयाँ .
aapne bahut hi acchi jaankaari di hai.surekha ji vastaw me kaabiletaarif hai.
आप के द्वारा दी जा रहीं जानकारिय़ाँ महत्वपूर्ण है।
वाह !! बहुत सुंदर....उन्हें ढेरो बधाइयां।
पर सुरेखा की मंजिलें तो अभी और भी हैं। उन्हें पैसेंजर गाड़ी का ड्राइवर बनना है, फिर घाट पार करने वाले इंजन का ड्राइवर और फिर लंबी दूरी वाले मेल और एक्सप्रेस का ड्राइवर। ....तभी तो कहा गया है सपने व्यक्ति को जिन्दा रखते हैं.
मेरा सौभाग्य होगा यदि कभी मैं उस ट्रेन में बैठूं, जिसे सुरेखा यादव ड्राइव करती हैं.
व्यक्ति के अन्दर आत्मविश्वास और सहस हो तो वह क्या नहीं कर सकता है. सुरेखा यादव इसकी ज्वलंत उदाहरण हैं...बधाई !!
महिलाओं को कम ना आंकें, अब वे ट्रेन के साथ-साथ जहाज भी चलाती हैं.
Very-Very Congratulations on this grand succes.
कुछ कार्य ऐसे भी हैं, जिन्हें प्रारम्भ में महिलाओं के योग्य नहीं समझा गया। पर अपने कौशल की बदौलत महिलाएं आज उन क्षेत्रों में भी सफलता के परचम फहरा रहीं हैं...तभी तो चारों तरफ नारी-सशक्तिकरण की गूंज है.
..आगे-आगे देखिये, होता क्या है.
Yadukul par nai rachnaon ka intzar....!!!
महिला दिवस पर युवा ब्लॉग पर प्रकाशित आलेख पढें और अपनी राय दें- "२१वी सदी में स्त्री समाज के बदलते सरोकार" ! महिला दिवस की शुभकामनाओं सहित...... !!
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