मंगलवार, 31 अगस्त 2010

प्रतिभाशाली सुनयना यादव ने जीती बिल गेटस स्पर्धा

कहते हैं प्रतिभा को पंख होते हैं, बस उचित अवसर मिलना चाहिए. हरियाणा के हिसार जिले में हांसी के पास मिलकपुर की 18 वर्षीय प्रतिभाशाली छात्रा सुनयना यादव ने अमेरिका की गेट्स मिलियन स्कॉलर प्रतियोगिता 2010 में सर्वोच्च स्थान पाया है। अब सुनयना की डायरेक्टोरेट तक की शिक्षा का खर्च बिल गेटस फाउंडेशन वहन करेगा। सुनयना यादव ने पांचवीं तक की शिक्षा गांव मिलकपुर में पूरी की। उसके बाद वे अपने परिवार के साथ अमेरिका चली गई। वहां पर सुनयना के पिता राजेन्द्र यादव एक फर्म में इंजीनियर के पद पर कार्यरत हैं। सुनयना ने जूनियर ग्रेजुएट (भारतीय शिक्षा अनुसार 12वीं) की परीक्षा तक की पढ़ाई की है तथा अप्रैल 2010 में उसने बिल गेटस फाउंडेशन द्वारा आयोजित 2001 गेटस मिलियन स्कॉलर के तहत प्रवेश परीक्षा दी थी, जिसमें वह टॉप पर रही। गौरतलब है कि इस परीक्षा में मे 20हजार 500 विद्यार्थियों ने लिया, जिनमें से 1000 विद्याथियों को चुना गया। सुनयना उन सभी में टॉप रही।

उल्लेखनीय है कि वर्ष 1999 से बिल गेट्स फांउडेशन प्रतिभावान विद्यार्थियों को आर्थिक सहायता दे रहा है। परीक्षा का आयोजन 12 की परीक्षा के बाद होता है तथा 10 वषों तक डॉयरेक्टेरेट तक की शिक्षा का खर्च फांउडेशन वहन करता है। इसके तहत फाउंडेशन प्रतिवर्ष 1.6 बिलियन डालर बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करती है। गौरतलब है कि इससे पहले सुनयना की बड़ी बहन शिक्षा यादव ने भी दो वर्ष नासा में बिल गेटस फाउंडेशन स्कॉलरशिप के तहत नासा में प्रवेश पाया था। शिखा अब एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही है। सुनयना यादव का इरादा अमेरिका के टैक्सास राज्य में स्थापित यूनिर्वसिटी आफ टैक्सास में एमबीए की शिक्षा प्राप्त करने का है, जिसका खर्चा संस्था वहन करेगी।

यदुकुल की तरफ से सुनयना यादव को उज्जवल भविष्य हेतु बधाइयाँ !!

रविवार, 29 अगस्त 2010

'पीपली लाइव' से चर्चा में हैं रघुबीर यादव

सफलता-असफलता जिंदगी में लगी रहती हैं. जरुरत उनसे उबर कर अपने कार्य पर ध्यान देने की है. रघुबीर यादव का तो यही मानना है. आजकल पीपली लाइव फिल्म से चर्चा में आये, बंधी बंधाई जिंदगी से इत्तेफाक नहीं रखने वाले अभिनेता रघुवीर यादव का कहना है कि पीपली लाइव जैसी फिल्में सिनेमाई भाषा को बदल रही है और उनका मानना है कि किसी फिल्म की पटकथा ही उसकी असली हीरो होती है।

पिछले दिनों अपनी फिल्म के प्रचार के सिलसिले में राजधानी आए रघुवीर यादव ने कहा, भारतीय सिनेमा से पारसी थिएटर का प्रभाव पूरी तरह से नहीं समाप्त नहीं हुआ है। मगर पीपली लाइव जैसी फिल्में एक गांव की जिंदगी, महात्वाकांक्षा और द्वंद्व को प्रभावी तरीके से लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करती हैं और इस तरह की फिल्में सिनेमा की एक नई भाषा गढ़ती हैं।

उन्होंने कहा, दरअसल किसी फिल्म की असली हीरो उसकी पटकथा होती है। हमारे यहां अभिनेता चरित्र नहीं निभाते है बल्कि हीरो की आभा में चरित्र विलुप्त हो जाता है। हर फिल्म में दर्शकों को किसी अभिनेता का अलग-अलग चरित्र होने के बावजूद एक ही व्यक्ति नजर आता है।

1985 में फिल्म मैसी साहब के लिए दो अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार पाने वाले अभिनेता ने कहा, फिल्म उद्योग में भाई भतीजावाद हावी है, लेकिन इससे थिएटर से आने वाले कलाकारों को दिक्कत नहीं होती।

फिल्मी गांवों के बारे में यादव ने कहा कि गांव को दिखाने के लिए जरूरी है कि इसे अंदर से महसूस किया जाए। बुंदेलखंडी के लोकगीत महंगाई डायन.. को कई लोग भोजपुरी का समझ लेते है। इसलिए इसकी लोक परंपरा की समझ भी बेहद जरूरी है।

अपनी भविष्य की योजना के बारे में यादव ने कहा, जिंदगी इतनी छोटी है कि किसी मुद्दे या लाइन के बारे में सोच ही नहीं पाता हूं। मेरी इस साल के अंत तक दो फिल्में कुसर प्रसाद का भूत और खुला आसमान आने वाली है।

अभिनय को पेशा बनाने के बारे में उन्होंने कहा कि संगीत सीखने निकला था लेकिन एक्टिंग गले पड़ गई। अब लगता है इससे अच्छा कोई और पेशा नहीं हो सकता क्योंकि इसमें दूसरे की जिंदगी जीने का मौका मिलता है। किसी अनजान व्यक्ति की रूह से गुजरना और उसकी तकलीफ को महसूस करने का अलग ही मजा है।

फिल्म की सफलता के बारे में उन्होंने कहा कि इसके लिए निर्माता निर्देशक की नीयत और ईमान अधिक मायने रखती है। उन्होंने कहा, बेइमानी वहां से शुरू होती है जब आप फिल्म को व्यावसायिक सफलता की दृष्टि से बनाना शुरू करते हैं।

फिल्म के गाने महंगाई डायन को लेकर उठे विवाद के बारे में उन्होंने कहा, आमिर खान सुलझी हुई तबियत के व्यक्ति हैं और लोकप्रियता के लिए किसी तरह के हथकंडे अपनाने वाले नहीं हैं बल्कि वह कहानी की ताकत पर यकीन करते हैं।

आमिर के बारे में यादव ने कहा कि वह पटकथा से लेकर अभिनय तक हर पहलू पर नजर रखते हैं। वह सहयोगी कलाकारों की सुनने वाले शख्स है उन पर अपनी चीजें थोपने वाले नहीं है। किस चरित्र से उनके अंदर के अभिनेता को संतुष्टि मिली, इस पर यादव ने कहा, मुझे अभी तक किसी किरदार से संतुष्टि नहीं मिली है और मेरी कामना है कि मुझे कभी संतुष्टि न मिले। मुझे हर किरदार को निभाने के बाद उसमें कमियां नजर आने लगती हैं।

वर्तमान समय के सबसे अच्छे अभिनेता के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, नसीर और ओम पुरी का नाम लिया जा सकता है। लेकिन मुझे सही मायने में बच्चे बेहतर अभिनेता नजर आते हैं, जिनमें किसी तरह की कोई लाग लपेट नहीं होती।

आस्कर तक भारतीय फिल्मों के नहीं पहुंच पाने के बारे में उन्होंने कहा, इसका बड़ा कारण यह है कि हमारे यहां क्वालिटी फिल्मों का निर्माण नहीं होता है और इसका गणित ही एकदम अलग है। ..और कुछ बेहतरीन फिल्में बनती है, लेकिन वे वहां तक पहुंच नहीं पाती है।

साभार : जागरण

शनिवार, 28 अगस्त 2010

नारी सशक्तिकरण की पर्याय : फूलबासन यादव

महिलाएं आज न सिर्फ सशक्त हो रही हैं, बल्कि लोगों को भी सशक्त बना रही हैं. ऐसी ही एक महिला है-श्रीमती फूलबासन यादव.श्रीमती फूलबासन यादव राजनांदगांव जिले के ग्राम सुकलदैहान की निवासी हैं। उन्होंने ग्रामीण महिलाओं के बीच सामाजिक चेतना जाग्रत कर उनके आर्थिक विकास के लिए जिला प्रशासन का सहयोग लेकर जिले में ग्यारह हजार से अधिक महिला स्व-सहायता समूहों के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने इन महिला समूहों के माध्यम से लगभग साढ़े छह सौ गांवों में बाल विवाह, दहेज और शराब जैसी सामाजिक बुराईयों पर अंकुश लगाने के लिए जन-जागरण का ऐतिहासिक कार्य किया। छत्तीसगढ़ सरकार ने महिला सशक्तिकरण के लिए श्रीमती फूलबासन यादव के रचनात्मक कार्यों को देखते हुए उन्हें वर्ष 2004 में राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर मिनी माता अलंकरण से सम्मानित किया था। राजधानी रायपुर में आयोजित 'राज्योत्सव' में मुख्य अतिथि पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के हाथों उन्हें राज्य स्तरीय इस प्रतिष्ठित सम्मान से नवाजा गया था। इसी कड़ी में श्रीमती यादव को वर्ष 2008 में उप राष्ट्रपति श्री हामिद अंसारी के हाथों जमनालाल बजाज अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।

श्रीमती यादव को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर 9 मार्च, 2010 को नई दिल्ली में राष्ट्रपति राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने भी विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में महिला सशक्तिकरण की दिशा में उल्लेखनीय योगदान के लिए 'राष्ट्रीय स्त्री शक्ति' के अंतर्गत कन्नगी एवार्ड से भी सम्मानित किया . गौरतलब है कि केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा स्त्री शक्ति पुरस्कार योजना के तहत देश की प्रसिध्द महिलाओं के नाम पर अलग-अलग एवार्ड दिए जाते हैं। राष्ट्रपति ने श्रीमती यादव को वर्ष 2009 के इस एवार्ड के अंतर्गत तीन लाख रूपए की सम्मान राशि और प्रशस्ति पत्र भेंटकर बधाई और शुभकामनाएं दी।

शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

मूल्यों में विश्वास के प्रतीक राजनेता : राम नरेश यादव

उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ राजनेता रामनरेश यादव ने अपना 83वां जन्मदिन सदैव की तरह बड़ी सादगी से मनाया। इस मौके पर भारी संख्या में शुभचिंतकों और समर्थकों ने फूल-मालाएं और गुलदस्ते भेंट कर रामनरेश यादव 'बाबू जी' के दीर्घजीवी होने की कामनाएं कीं। कांग्रेस विधान मंडल दल के नेता प्रमोद तिवारी, कांग्रेस सांसद पीएल पुनिया, पूर्व राज्यपाल माता प्रसाद, कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह, रामकृष्ण द्विवेदी, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सूर्यप्रताप शाही, सिराज मेहंदी सहित अनेक नेता, नौकरशाह और सामाजिक क्षेत्र के लोग भी रामनरेश यादव को जन्मदिन की बधाई देने पहुंचे। दिनभर उन्हें बधाईयां देने आने वालों का तांता लगा रहा। लोगों ने उन्हें फोन पर बधाईयां दीं। सवेरे घर पर सुंदरकाण्ड का पाठ हुआ और शाम को आवास पर ही काव्य गोष्ठी, मुशायरा जैसे विभिन्न कार्यक्रम भी आयोजित किए गए। वक्ताओं ने उनके व्यक्तित्व की लोकगीतों और विचारों के माध्यम से खुले दिल से सराहना करते हुए उनके प्रशासनिक और राजनीतिक जीवन की उपलब्धियों की चर्चा की।

लखनऊ का माल एवेन्यू बड़े-बड़े सत्ताधीशों और राजनेताओं से आबाद है। राजधानी का यह पॉश इलाका ज़हन में आते ही एहसास होता है कि इस अतिविशिष्ट क्षेत्र में हर कोई फाइव स्टार जीवनशैली से समृद्ध है। मेरे एक सहयोगी को वहां जाना था-सो उसके आग्रह पर मैं भी उसके साथ एक मॉल ऐवेन्यू पहुंचा जहां गेंदे के फूलों से सजे गेट के बाहर और भीतर का अत्यंत सादगी भरा नजारा देख मैने खुद से प्रश्न किया कि एक राजनेता और इतनी सादगी? जीहां! यह घर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रामनरेश यादव का था जिनका कि 83 वां जन्मदिन था और उनके प्रशंसक शुभचिंतक, राजनेता रिश्ते-नातेदार सवेरे से ही आ जा रहे थे। बूंदी का लड्डू और एक गिलास पानी लेने के बाद मैं भी जन्मदिन की बधाई देने के लिए आगे बढ़ा। मेरा अभिवादन स्वीकार करते हुए उन्होंने भारी संख्या में मौजूद शुभचिंतकों की फूल मालाओं और गुलदस्तों को सीने से लगाया। राजनेताओं के जन्मदिन और उनकी छोटी-मोटी पार्टियां ही पूरे शहर और रास्तों को सर पर उठा लेती हैं, ये तो फिर भी राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इतने बड़े राजनेता का सादगी से भरा जन्मदिन उन राजनेताओं के लिए बहुत बड़ी नसीहत है जिनका जन्मदिन नोटों की थैलियों और रैलियों में बदल चुका है। रामनरेश यादव जब देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान थे तो वे अपने जन्मदिन या घर में किसी मांगलिक कार्य पर अत्यंत गरीब लोगों के बीच बैठकर अपने जीवन की जनसामान्य के लिए उपयोगिता का आकलन करते थे। आज भी उन्हें वैसा ही देखा जा रहा है।

आजमगढ़ के गांव आंधीपुर (अम्बारी) में एक साधारण किसान परिवार में जन्मे रामनरेश यादव एक शिक्षक और एक अधिवक्ता के रूप में सामाजिक रूप से प्रगति करते हुए आगे चलकर एक ईमानदार और मूल्यों की राजनीति करने वाले आम आदमी के मददगार और एक दिग्गज राजनीतिज्ञ कहलाए। सही मायनों में उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व का कोई मुकाबला नही है उत्तर प्रदेश की राजनीति में दिग्गजों के बीच एक दिग्गज राजनीतिज्ञ का खिताब आज भी उनके पास है, बस फर्क इतना है कि आज के कई बड़े कहलाए जा रहे राजनेता माफियाओं, गुंडों और बदमाशों के नेता/सरगना कहे जाते हैं और रामनरेश यादव एक आम आदमी के और मूल्यों आधारित राजनीति के साथ चलने वाले नेता माने जाते हैं। भीड़ एवं सुरक्षा कर्मियों के घेरे में चौबीस घंटे रहने की महत्वकांक्षा उन पर कभी भी भारी नहीं पड़ सकी। जो लोग रामनरेश यादव के सामाजिक और राजनीतिक जीवन से परिचित हैं वे इन लाइनों से जरूर सहमत होंगे। उद्योगपतियों की तरह अरबपति या खरबपति राजनेता बनने की होड़ में शामिल राजनेताओं से यदि रामनरेश यादव की तुलना की जाए तो सभी जानते हैं कि उन्होंने अकूत दौलत को छोड़कर नैतिक मूल्यों को अपनी पूंजी बनाया है वे अन्य नेताओं की तरह धनसंपदा के पीछे नही भागे, यही कारण है कि अपने राजनीतिक जीवन में वे कई बार उपेक्षा के शिकार भी हुए हैं। कहने वाले कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास जो कद्दावर नेता हैं या जिन्हें वज़नदार नेता कहा जाता है उनमें रामनरेश यादव का पड़ला काफी भारी है।

चकाचौंध भरे राजनेताओं के घरों पर ऐसे मौको पर जो प्रायोजित हलचल देखी जाती है वह यहां हमेशा सादगी के रूप में देखी गई है। उनसे मिलने आने वालों में जो लोग हैं रामनरेश यादव उनसे आत्मीयता और सम्मान से मिलते हैं और जैसा कि हर राजनेता के साथ होता है- जिस आगुंतक के प्रति पहले से जो भावनाएं रिश्ता एवं लगाव हो वह वहां उतना ही निकटता से प्यार-सम्मान और सौगात पाता है। उनके एक माल ऐवेन्यू पर आज के राजनेताओं जैसी भव्यता का भौंडा प्रदर्शन नहीं है या यह कहिए कि ऐसा जश्न नहीं है जो दूसरों को भीतर से चिढ़ाता हो। पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते उनको यहां एक बंगला आजीवन आवंटित है-उसमें भी उन्होंने कोई ऐसा अतिरिक्त निर्माण नहीं कराया जो शान और शौकत या रौब का एहसास कराता हो। एक लंबे समय से रामनरेश यादव का यह सरकारी बंगला इसी सच्चाई की गवाही देता है। जिन्हें उनका जन्मदिन मालूम है वे सवेरे से ही आ रहे हैं और जलपान के साथ अपने नेता का आशीर्वाद या अभिवादन ले रहे हैं।

रामनरेश यादव का समाजवादी आंदोलन और भारतीय राजनीति में हमेशा विशिष्ट स्थान रहा है। उन्होंने दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और गरीबों के दुख-दर्द को बहुत करीब और गहराई से समझा है, डॉ लोहिया की विचारधारा से प्रेरित होने के नाते उनमें किसी के लिए तनिक भी भेदभाव नहीं दिखाई देता है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी से निकले रामनरेश यादव प्रसिद्ध समाजवादी चिंतक एवं विचारक आचार्य नरेंद्र देव के प्रभाव में रहे हैं। पंडित मदनमोहन मालवीय और भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के भारतीय दर्शन से उनका सामाजिक जीवन काफी प्रभावित है।

अपने 55 वर्ष के राजनीतिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए रामनरेश यादव कहते हैं कि कांग्रेस को छोड़ कोई भी दूसरी पार्टी देश की एकता-अखण्डता, राष्ट्रीय प्रतिबद्धता और जनकल्याण पर ध्यान नहीं दे रही है। उन्होंने इसीलिए राजीव गांधी के नेतृत्व में और कांग्रेस के सिद्धांतों में आस्था व्यक्त करने के पूर्व 12 अप्रैल 1989 को स्वेच्छा से राज्यसभा की सदस्यता के साथ-साथ विभिन्न पदों से त्याग-पत्र देकर कांग्रेस में शामिल होने की घोषणा की थी। वे कहते हैं कि कांग्रेस ही एक ऐसी पार्टी है जो सिद्धांतों में आस्था रखकर देश को अंदर और बाहर समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष लोकतंत्रीय व्यवस्था की संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकती है। उनका कहना है कि देश को एक स्थिर और सक्षम सरकार की जरूरत है जो कांग्रेस ही दे सकती है, खिचड़ी और लंगड़ी सरकार से अब देश का भला होने वाला नहीं है। कांग्रेस के अलावा कोई दूसरा दल नहीं है जो देश को एक मजबूत सरकार दे सके।

साभार : स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

मंगलवार, 24 अगस्त 2010

वृक्षों को रक्षा-सूत्र बंधकर रक्षाबंधन मनाती : सुनीति यादव

रक्षाबंधन का पर्व करीब है। (24 अगस्त). यह सिर्फ भाई -बहन से जुड़ा नहीं बल्कि मानवता की रक्षा से भी जुड़ा हुआ है. हममें से तमाम लोग अपने स्तर पर मानवता को बचने हेतु पर्यावरण संरक्षण में जुटे हुए हैं। इन्हीं में से एक हैं- जीवन के समानांतर ही जल, जमीन और जंगल को देखने वाली ग्रीन गार्जियन सोसाइटी की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर सुनीति यादव। पिछले कई वर्षों से पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कार्य कर रही एवं छत्तीसगढ़ में एक वन अधिकारी के0एस0 यादव की पत्नी सुनीति यादव सार्थक पहल करते हुए वृक्षों को राखी बाँधकर वृक्ष रक्षा-सूत्र कार्यक्रम का सफल संचालन कर नाम रोशन कर रही हैं। इस सराहनीय कार्य के लिए उन्हें ‘महाराणा उदय सिंह पर्यावरण पुरस्कार, स्त्री शक्ति पुरस्कार 2002, जी अस्तित्व अवार्ड इत्यादि पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। सुनीति यादव द्वारा वृक्ष रक्षा-सूत्र कार्यक्रम चलाये जाने के पीछे एक रोचक वाकया है। वर्ष 1992 में उनके पति जशपुर में डी0एफ0ओ0 थे। वहां प्राइवेट जमीन में पांच बहुत ही सुन्दर वृक्ष थे, जिन्हें भूस्वामी काटकर वहां दुकान बनाना चाहता था। उसने इन पेड़ों को काटने के लिए जिलाधिकारी को आवेदन कर रखा था। अपने पति द्वारा जब यह बात सुनीति यादव को पता चली तो उनके दिमाग में एक विचार कौंध गया। राखी पर्व पर कुछ महिलाओं के साथ जाकर उन्होंने उन पांच वृक्षों की विधिवत पूजा की और रक्षा सूत्र बांध दिया। देखा-देखी शाम तक आस-पास के लोगों द्वारा उन वृक्षों पर ढेर सारी राखियां बंध गई। फिर भूस्वामी को इन वृक्षों का काटने का इरादा ही छोड़ना पड़ा और गांव वाले इन पेड़ों को पांच भाई के रूप में मानने लगे। इससे उत्साहित होकर सुनीति यादव ने हर गांव में एक या दो विशिष्ट वृक्षों का चयन कराया तथा वर्ष 1993 में राखी के पर्व पर 17000 से अधिक लोगों ने 1340 वृक्षों को राखी बांधकर वनों की सुरक्षा का संकल्प लिया और इस प्रकार वृक्ष रक्षा सूत्र कार्यक्रम चल निकला। बस्तर के कोंडागांव इलाके में वृक्ष रक्षा सूत्र अभियान के तहत एक वृक्ष को नौ मीटर की राखी बांधी गई।


याद कीजिए 70 के दशक का चिपको आन्दोलन। सुनीति का मानना है कि चिपको आन्दोलन वन विभाग की नीतियों के विरूद्ध चलाया गया था जबकि वृक्ष रक्षा सूत्र वन विभाग एवं जनता का सामूहिक अभियान है, जिसे समाज के हर वर्ग का समर्थन प्राप्त है। यह सुनीति यादव की प्रतिबद्वता ही है कि वृक्ष रक्षा सूत्र कार्यक्रम अब देश के नौ राज्यों तक फैल चुका है। सुनीति इसे और भी व्यापक आयाम देते हुए ‘‘पौध प्रसाद कार्यक्रम‘‘ से जोड़ रही हैं। इसके लिए वे देश के सभी छोटे-बड़े धार्मिक प्रतिष्ठानों से सम्पर्क कर रही हैं कि वे भक्तों को प्रसाद के रूप में पौधे बांटे, ताकि वे उन पौधों को श्रद्धा के साथ लगायें, पालें-पोसें और बड़ा करें। यही नहीं आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण वृक्ष प्रजातियों, वनौषधियों के बीज पैकेट भी प्रसाद के रूप में बांटे जा रहे हैं। सुनीति यादव का मानना है कि वृक्ष भगवान के ही दूसरे रूप हैं। जब वह कहती हैं कि भगवान शिव की तरह वृक्ष सारा विषमयी कार्बन डाई आक्साइड पी जाते हैं और बदले में जीवन के लिए जरूरी आक्सीजन देते हैं, तो लोग दंग रह जाते हैं। सुनीति यादव का स्पष्ट मानना है कि-‘‘ईश्वर ने हम सभी को पृथ्वी पर किसी न किसी उद्देश्य के लिए भेजा है। आइए, उसके सपनों को साकार करें। धरती पर हरियाली को सुरक्षित रखकर हम जिन्दगी को और भी खूबसूरत बनाएंगे, कच्चे धागों से हरितिमा को बचाएंगे। ताज और मीनार हमारे किस काम के, जब पृथ्वी की धड़कन ही न बच सके। कल आने वाली पीढ़ी को हम क्या सौगात दे सकेंगे? आइए, रक्षाबंधन के इस पर्व पर हम भी ढेर सारे पौधे लगाएं और लगे हुए वृक्षों को रक्षा-सूत्र बंधकर उन्हें बचाएं।‘‘


आप सभी को रक्षा-बंधन पर्व पर ढेरों शुभकामनायें !!

साभार : आकांक्षा यादव : शब्द-शिखर

मंगलवार, 10 अगस्त 2010

प्रशासन और साहित्य के ध्वजवाहक : कृष्ण कुमार यादव

एक समय ऐसा भी था जब सभी क्षेत्रों-वर्गों में साहित्यकारों-रचनाकारों की बड़ी संख्या होती थी। वर्तमान समाज में दूरदर्शनी संस्कृति के चलते पठन-पाठन से दूर मात्र येनकेन धनोपार्जन मुख्य उद्देश्य बन चुका है। रायबरेली के दौलतपुर ग्राम में जन्मे आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी झाँसी में रेलवे विभाग में सेवारत होते हुए भी अनवरत् साहित्यिक लेखन करते रहे और अन्ततः हिन्दी साहित्य में ‘द्विवेदी युग‘ नाम से मील के पत्थर बने। साहित्य की ऐतिहासिक पत्रिका ‘सरस्वती‘ का सम्पादन उन्होंने कानपुर के जूही मोहल्ले में किया।

इसी संदर्भ में दो घटनाओं की चर्चा बिना यह बात अपूर्ण रहेगी। हिन्दी साहित्य के भीष्म पितामह तथा तमाम साहित्यकारों के निर्माता पद्मविभूषण पं0 श्री नारायण चतुर्वेदी ने लंदन में प्राचीन इतिहास से एम0ए0 किया। उनकी पहली कृति-'महात्मा टाल्सटाय' सन् 1917 में प्रकाशित हुई। इनके पिता पं0 द्वारिका प्रसाद चतुर्वेदी ने भी विदेशी शासन काल में राजकीय सेवा में रहते हुए गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्ज द्वारा भारतीयों के साथ चालाकी से किये गये योजनापूर्वक षडयन्त्र का यथार्थ चित्रण करते हुए एक ग्रंथ लिखा। नतीजन, अंग्रेजी शासन ने बौखला कर उन्हें माफी माँगने पर बाध्य किया पर ऐसे समय में उन्होंने इस्तीफा देकर अपनी देशभक्ति का प्रमाण दिया। उनके सुपुत्र जीवनपर्यन्त शिक्षा विभाग, सूचना विभाग तथा उपनिदेशक आकाशवाणी के उच्च प्रशासनिक पदों पर रहते हुए अनेकों पुस्तकों की रचना के अलावा अवकाश ग्रहण पश्चात भी लगभग चार दशकों तक विभिन्न प्रकार से हिन्दी की सेवा एवं ‘सरस्वती‘ का सम्पादन आदि सक्रिय रूप से करते रहे। उन्होंने अपने सेवाकाल में हिन्दी के अनेक शलाका-पुरूष निर्माण किये जो साहित्य की विभिन्न विधाओं के प्रकाश स्तम्भ बने। इसी प्रकार उच्चतर प्रशासनिक सेवा आई0सी0एस0 (अब परिवर्तित होकर आई0ए0एस0) उत्तीर्ण करके उत्तर प्रदेश कैडर के अन्तिम अधिकारी डा0 जे0डी0 शुक्ल प्रदेश के अनेक शीर्षस्थ पदों पर सफल प्रशासनिक अधिकारी होते हुए भी हिन्दी तथा तुलसीदास के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित थे। उनके ऊपर लेख, अन्त्याक्षरी तथा हिन्दी साहित्य सम्मेलनों में वे सक्रिय होकर भाग लेते रहे।

हिन्दी साहित्य के प्रति दीवानगी विदेशियों में भी रही है। इटली के डा0 लुइजि पियो तैस्सीतोरी ने लोरेंस विश्वविद्यालय से सन् 1911 में सर्वप्रथम ‘तुलसी रामायण और वाल्मीकि रामायण का तुलनात्मक अध्ययन‘ पर शोध करके हिन्दी में डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। वे इटली की सेना में भी सेवारत रहे। तत्पश्चात भारत में जीवनपर्यन्त रहकर इस विदेशी शंकराचार्य ने अनेक कृतियाँ लिखीं जिसमें ‘शंकराचार्य और रामानुजाचार्य का तुलसी पर प्रभाव‘ ‘वैसवाड़ी व्याकरण का तुलसी पर प्रभाव‘ प्रमुख हैं। यहाँ रहकर वह हिन्दी में बोलते और पत्र-व्यवहार भी भारत में हिन्दी में ही करते थे। डा0 तैस्सीतोरी पुरातत्व के प्रति भी लगाव होने से राजस्थान में ऊँट की सवारी करके जानकारी अर्जित करते रहे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि हिन्दी का यह विदेशी निष्पृह सेवक मात्र 32 वर्ष की अल्पायु में ‘बीकानेर‘ में स्वर्ग सिधार गया। उसकी समाधि बीकानेर में तथा विश्व में सर्वप्रथम इनकी प्रतिमा की स्थापना ‘तुलसी उपवन‘ मोतीझील, कानपुर में करने इटली के सांस्कृतिक दूत प्रो0 फरनान्दो बरतोलनी आये। उन्होंने प्रतिमा स्थापना के समय आश्चर्यमिश्रित शब्दों में कहा कि हमारे देश में भी नहीं मालूम है कि हमारे देश का यह युवा इण्डिया की राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रथम शोधार्थी है। डा0 तैस्सीतोरी ने विश्वकवि तुलसीदास को वाल्मीकि रामायण का अनुवादक न मानते हुए सर्वप्रथम उनको स्वतन्त्र रचनाकार के रूप में सिद्ध किया।

तीस वर्षीय युवा अधिकारी श्री कृष्ण कुमार यादव पर लिखते समय उपरोक्त घटनाक्रम स्मरण हो आये। वर्तमान प्रशासनिक अधिकारियों से तद्विषयक चर्चा करने पर वह ‘समयाभाव‘ कहते हुए साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक कार्यों के प्रति अभिरुचि नहीं रखते हैं। जिन कंधों के ऊपर राष्ट्र का नेतृत्व टिका हुआ है, यदि वे ही समयाभाव की आड़ में साहित्य-संस्कृति की अपनी सुदृढ़ परम्पराओं की उपेक्षा करने लगें तो राष्ट्र की आगामी पीढ़ियाँ भला उनसे क्या सबक लेंगीं? पर सौभाग्यवश अभी भी प्रशासनिक व्यवस्था में कुछ ऐसे अधिकारी हैं जो अपनी प्रशासनिक जिम्मेदारियों के साथ-साथ साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक जिम्मेदारियों को भी बखूबी समझते हैं और इसे अपने दायित्वों का ही एक अंग मानकर क्रियाशील हैं।


ऐसे अधिकारियों के लिए पद की जिम्मेदारियां सिर्फ कुर्सी से नहीं जुड़ी हुई हैं बल्कि वे इसे व्यापक आयामों, मानवीय संवेदनाओं और अनुभूतियों के साथ जोड़कर देखते हैं। भारतीय डाक सेवा के अधिकारी श्री कृष्ण कुमार यादव ऐसे ही अधिकारियों में से हैं। प्रशासन में बैठकर भी आम आदमी के मर्म और उसके जीवन की जद्दोजहद को जिस गहराई से श्री यादव छूते हैं, वह उन्हें अन्य अधिकारियों से अलग करती है। जीवन तो सभी लोग जीते हैं, पर सार्थक जीवन कम ही लोग जीते हैं। नई स्फूर्ति, नई ऊर्जा, नई शक्ति से आच्छादित श्री यादव प्रख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन की इस उक्ति के सार्थक उदाहरण हैं कि-‘‘सिर्फ सफल होने की कोशिश न करें, बल्कि मूल्य-आधारित जीवन जीने वाला मनुष्य बनने की कोशिश कीजिए।‘‘ आपके सम्बन्ध में काव्य-मर्मज्ञ एवं पद्मभूषण श्री गोपाल दास ‘नीरज‘ जी के शब्द गौर करने लायक हैं- ‘‘कृष्ण कुमार यादव यद्यपि एक उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारी हैं, किन्तु फिर भी उनके भीतर जो एक सहज कवि है वह उन्हें एक श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में प्रस्तुत करने के लिए निरन्तर बेचैन रहता है। उनमें बुद्धि और हृदय का एक अपूर्व सन्तुलन है। वो व्यक्तिनिष्ठ नहीं समाजनिष्ठ साहित्यकार हैं जो वर्तमान परिवेश की विद्रूपताओं, विसंगतियों, षडयन्त्रों और पाखण्डों का बड़ी मार्मिकता के साथ उद्घाटन करते हैं।’’

प्रशासन के साथ साहित्य में अभिरुचि रखने वाले श्री कृष्ण कुमार युवा पीढ़ी के अत्यन्त सक्रिय रचनाकार हैं। पदीय दायित्वों का निर्वाहन करते हुए और लोगों से नियमित सम्पर्क-संवाद स्थापित करते हुए जो बिंब उनके मन-मस्तिष्क पर बनते हैं, उनकी कलात्मक अभिव्यंजना उनकी साहित्यिक रचनाओं में स्पष्ट देखी जा सकती है। इन विलक्षण रचनाओं के गढ़ने में उनकी संवेदनशीलता, सतत् काव्य-साधना, गहन अध्ययन, चिंतन-अवचिंतन, अवलोकन, अनुभूतियों आदि की महत्वपूर्ण भूमिका है। बकौल प्रो0 सूर्य प्रसाद दीक्षित- ’’कृष्ण कुमार यादव न किसी वैचारिक आग्रह से प्रतिबद्ध हैं और न किसी कलात्मक फैशन से ग्रस्त हैं। उनका आग्रह है- सहज स्वाभाविक जीवन के प्रति और रचनाओं में उसी के यथावत अकृत्रिम उद्घाटन के प्रति।’’ यही कारण है कि मुख्यधारा के साथ-साथ बाल साहित्य से भी रचनात्मक जुड़ाव रखने वाले श्री यादव की अल्प समय में ही दो निबन्ध संग्रह ’’अभिव्यक्तियों के बहाने’’ व ’’अनुभूतियाँ और विमर्श’’, एक काव्य संग्रह ’’अभिलाषा’’, 1857-1947 की क्रान्ति गाथा को सहेजती ’’क्रान्ति-यज्ञ’’ एवं भारतीय डाक के इतिहास को कालानुक्रम में समेटती ’’इण्डिया पोस्ट: 150 ग्लोरियस ईयर्स’’ सहित कुल पाँच पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। अपने व्यस्ततम शासकीय कार्यों में साहित्य या रचना-सृजन को बाधक नहीं मानने वाले श्री यादव की रचनाएँ देश की तमाम प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं और सूचना-संजाल के इस दौर में तमाम अन्तर्जाल पत्रिकाओं- सृजनगाथा, अनुभूति, अभिव्यक्ति, साहित्यकुंज, साहित्यशिल्पी, रचनाकार, हिन्दी नेस्ट इत्यादि में नियमित रूप से प्रकाशित हो रही हैं। श्री यादव स्वयं अंतर्जाल पर 'शब्द सृजन की ओर' और 'डाकिया डाक लाया' नामक ब्लॉगों का सञ्चालन भी करते हैं. आकाशवाणी लखनऊ, कानपुर और पोर्टब्लेयर से कविताओं, वार्ता, परिचर्चा इत्यादि के प्रसारण के साथ-साथ 50 से अधिक प्रतिष्ठित संकलनों में विभिन्न विधाओं में उनकी सशक्त रचनाधर्मिता के दर्शन होते हैं। प्रशासन के साथ-साथ उनकी विलक्षण रचनाधर्मिता के मद्देनजर कानपुर से प्रकाशित ’’बाल साहित्य समीक्षा’’ (स0 : डा0 राष्ट्रबंधु) एवं इलाहाबाद से प्रकाशित ’’गुफ्तगू'' पत्रिकाओं ने उनके व्यक्तित्व-कृतित्व पर विशेषांक जारी किये हैं। यही नहीं उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को समेटती और एक साहित्यिक व्यक्तित्व के रूप में उनके योगदान को परिलक्षित करती , दुर्गाचरण मिश्र द्वारा सम्पादित पुस्तक ’’बढ़ते चरण शिखर की ओर: कृष्ण कुमार यादव’’ भी प्रकाशित हो चुकी है.

निश्चिततः ऐसे में उनकी रचनाधर्मिता ऐतिहासिक महत्व की अधिकारी है। प्रशासनिक पद पर रहने के कारण वे जीवन के यथार्थ को बहुत बारीकी से महसूस करते हैं। उनकी कविताओं में प्रकृति चित्रण और जीवन के श्रृंगार के साथ-साथ राष्ट्रीय चेतना और सामाजिक सरोकारों से भरपूर जीवन का यथार्थ और भी मन को गुदगुदाता है। प्रसिद्ध साहित्यकार डा0 रामदरश मिश्र लिखते हैं कि- ’’कृष्ण कुमार की कविताएं सहज हैं, पारदर्शी हैं, अपने समय के सवालों और विसंगतियों से रूबरू हैं। इनकी संवेदनशीलता अपने भीतर से एक मूल्यवादी स्वर उभारती है।’’ वस्तुतः एक प्रतिभासम्पन्न, उदीयमान् नवयुवक रचनाकार में भावों की जो मादकता, मोहकता, आशा और महत्वाकांक्षा की जो उत्तेजना एवं कल्पना की जो आकाशव्यापी उड़ान होती है, उससे कृष्ण कुमार जी का व्यक्तित्व-कृतित्व ओत-प्रोत है। ‘क्लब कल्चर‘ एवं अपसंस्कृति के इस दौर में एक युवा प्रशासनिक अधिकारी की हिन्दी-साहित्य के प्रति ऐसी अटूट निष्ठा व समर्पण शुभ एवं स्वागत योग्य है। ऐसा अनुभव होता है कि महापंडित राहुल सांकृत्यायन के जनपद आज़मगढ़ की माटी का प्रभाव श्री यादव पर पड़ा है।

श्री कृष्ण कुमार यादव अपनी कर्तव्यनिष्ठा में ऊपर से जितने कठोर दिखाई पड़ते हैं, वह अन्तर्मन से उतने ही कवि-हृदय के कोमल व्यक्तित्व वाले हैं। स्पष्ट सोच, पारखी दृष्टिकोण एवम् दृढ़ इच्छाशक्ति से भरपूर श्री यादव जी की जीवन संगिनी श्रीमती आकांक्षा यादव भी संस्कृत विषय की प्रखर प्रवक्ता एवं विदुषी कवयित्री व लेखिका हैं, सो सोने में सुहागा की लोकोक्ति स्वतः साकार हो उठती है। सुविख्यात समालोचक श्री सेवक वात्स्यायन इस साहित्यकार दम्पत्ति को पारस्परिक सम्पूर्णता की उदाहृति प्रस्तुत करने वाला मानते हुए लिखते हैं - ’’जैसे पंडितराज जगन्नाथ की जीवन-संगिनी अवन्ति-सुन्दरी के बारे में कहा जाता है कि वह पंडितराज से अधिक योग्यता रखने वाली थीं, उसी प्रकार श्रीमती आकांक्षा और श्री कृष्ण कुमार यादव का युग्म ऐसा है जिसमें अपने-अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व के कारण यह कहना कठिन होगा कि इन दोनों में कौन दूसरा एक से अधिक अग्रणी है।’’

श्री यादव की कृतियों पर समीक्षक ही अपने विचार व्यक्त करने की क्षमता रखते हैं पर इतने कम समय में उन्होंने साहित्यिक एवं प्रशासनिक रूप में अपनी एक अलग पहचान बनाई है, जो विरले ही देखने को मिलती हैं। प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती, अस्तु प्रशासकीय व्यस्तताओं के मध्य विराम समय में उनकी सरस्वती की लेखनी सतत् चलती रहती है। यही नहीं, वह दूसरों को भी उत्साहित करने में सक्रिय योगदान देते रहते हैं। उनकी पुस्तक ’’अनुभूतियाँ और विमर्श’’ के कानपुर में विमोचन के दौरान पद्मश्री गिरिराज किशोर जी के शब्द याद आते हैं- ’’आज जब हर लेखक पुस्तक के माध्यम से सिर्फ आपने बारे में बताना चाहता है, ऐसे में कृष्ण कुमार जी की पुस्तक में तमाम साहित्यकारों व मनीषियों के बारे में पढ़कर सुकून मिलता है और इस प्रकार युवा पीढ़ी को भी इनसे जोड़ने का प्रयास किया गया है।’’ मुझे ऐसा अनुभव होता है कि ऐसे लगनशील व कर्मठ व्यक्तित्व वाले श्री कृष्ण कुमार यादव पर साहित्य मनीषी कविवर डा0 अम्बा प्रसाद ‘सुमन’ की पंक्तियाँ उनके कृतित्व की सार्थकता को उजागर करती हैं-चरित्र की ध्वनि शब्द से ऊँची होती है/कल्पना कर्म से सदा नीचे होती है/प्रेम जिहृI में नहीं नेत्रों में है/नेत्रों की वाणी की व्याख्या कठिन है/मौन रूप प्रेम की परिभाषा कठिन है /चरित्र करने में है कहने में नहीं/चरित्र की ध्वनि शब्द से ऊँची होती है।

डा0 बद्री नारायण तिवारी, संयोजक- राष्ट्रभाषा प्रचार समिति-वर्धा, उत्तर प्रदेश
पूर्व अध्यक्ष-उ0प्र0 हिन्दी साहित्य सम्मेलन, संयोजक-मानस संगम
38/24, शिवाला, कानपुर (उ0प्र0)-208001

(कृष्ण कुमार यादव के जन्मदिवस,10 अगस्त पर श्री बद्री नारायण तिवारी जी का यह लेख साभार प्रकाशित. चित्र में कृष्ण कुमार और तिवारी जी साथ दिख रहे हैं. )