यह पोस्ट लिखने से मैं बचना चाह रहा था, पर परिस्थितियां ही ऐसी पैदा हो गईं कि लिखना पड़ रहा है. इधर अक्सर देख रहा हूँ कि 'यदुकुल' पर प्रकाशित पोस्ट को आर्कुट, फेसबुक इत्यादि सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों पर लोग आपने नाम से धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं. यहाँ तक कि यदुकुल का जिक्र भी नहीं करते. ऐसा करने वालों में युवा वर्ग के लोग ज्यादा हैं. यह बात समझ से परे है कि किसी सामग्री को चुराकर कट-पेस्ट कर आपने नाम से प्रकाशित करने में क्या आनंद आता है. जिस वंश में तमाम बुद्धिजीवी और लेखक भरे हुए हैं, वहाँ ऐसे चोरों से क्या सन्देश जा रहा है ? मुझे बेहद अच्छा लगता यदि कोई यादव मुझे यदुकुल के लिए सामग्री भेजता, पर यहाँ तो उलटे यदुकुल कि सामग्री कि ही चोरी की जा रही है.
बात यहीं तक नहीं है, यादवों पर केन्द्रित तमाम पत्र-पत्रिकाएं भी अब मेहनत करने और चीजों को ढूंढने की बजे 'यदुकुल' ब्लॉग से मैटर गायब करने लगी हैं. शायद उन्हें ब्लॉग का जिक्र करने में शर्म आती है कि कहीं उनकी मठैती पर ही प्रशन चिन्ह ना लग जाय. हाल ही में हमारे पास दिल्ली से एक शुभचिंतक पाठक का ई-मेल आया कि दिल्ली से प्रकाशित मासिक पत्रिका 'यादव कुल दीपिका' के फरवरी-2011 अंक में पृष्ठ संख्या 30 पर मानवता को नई राह दिखाती कैंसर सर्जन डॉ. सुनीता यादव नामक रिपोर्ट किसी यादव रक्षक एवं मंच स्मृति से साभार दिया गया है. सबसे मजेदार तो यह है कि यह रिपोर्ट यदुकुल पर 27 सितम्बर, 2010 को प्रकाशित है और इसे हू-ब-हू कापी कर 'यादव रक्षक' और 'यादव कुल दीपिका' ने प्रकाशित किया है, जो कि घोर आपत्तिजनक है. सन्दर्भ हेतु 'यादव कुल दीपिका' का वह पेज यहाँ स्कैन कर लगाया जा रहा है.
बात यहीं तक नहीं है, यादवों पर केन्द्रित तमाम पत्र-पत्रिकाएं भी अब मेहनत करने और चीजों को ढूंढने की बजे 'यदुकुल' ब्लॉग से मैटर गायब करने लगी हैं. शायद उन्हें ब्लॉग का जिक्र करने में शर्म आती है कि कहीं उनकी मठैती पर ही प्रशन चिन्ह ना लग जाय. हाल ही में हमारे पास दिल्ली से एक शुभचिंतक पाठक का ई-मेल आया कि दिल्ली से प्रकाशित मासिक पत्रिका 'यादव कुल दीपिका' के फरवरी-2011 अंक में पृष्ठ संख्या 30 पर मानवता को नई राह दिखाती कैंसर सर्जन डॉ. सुनीता यादव नामक रिपोर्ट किसी यादव रक्षक एवं मंच स्मृति से साभार दिया गया है. सबसे मजेदार तो यह है कि यह रिपोर्ट यदुकुल पर 27 सितम्बर, 2010 को प्रकाशित है और इसे हू-ब-हू कापी कर 'यादव रक्षक' और 'यादव कुल दीपिका' ने प्रकाशित किया है, जो कि घोर आपत्तिजनक है. सन्दर्भ हेतु 'यादव कुल दीपिका' का वह पेज यहाँ स्कैन कर लगाया जा रहा है.
मेरा सभी यादव बंधुओं से अनुरोध है कि कृपया इस प्रकार की चोरी को प्रोत्साहित ना करें और ना ही कोई पत्र-पत्रिका, वेबसाईट या सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट पर बनाये गए ग्रुप 'यदुकुल' पर प्रकाशित किसी सामग्री का बिना इसका कोई रिफरेन्स दिए इस्तेमाल करें. साभार इस्तेमाल किये जाने की अवस्था में इसकी सूचना हमारे ई- मेल या ब्लॉग के माध्यम से दी जाय.
आपने शुभचिंतकों और पाठकों से भी हमारा अनुरोध है कि ऐसी किसी भी चोरी को हमारे संज्ञान में लायें, ताकि इस प्रकार की दुष्प्रवृत्ति को दूर किया जा सके. यहाँ राय देवी प्रसाद ‘पूर्ण‘ जी की पंक्तियाँ याद आ रही हैं-
अंधकार है वहाँ, जहाँ आदित्य नहीं है;
मुर्दा है वह देश, जहाँ साहित्य नहीं है।
... यही बात जातियों पर भी लागू होती है. यदुवंश को समृद्ध बनाने के लिए समृद्ध लेखनी और विचारों की जरुरत है, न कि ऐसे मुर्दा लोगों की जो दूसरों के साहित्य, लेख और विचारों को चुराकर अपना कहें !!
14 टिप्पणियां:
वाकई शर्मनाक.
'यादव कुल दीपिका' और 'यादव रक्षक' पत्रिका का यह कृत्य निंदनीय है. 'यादव कुल दीपिका' के संपादक यदि हर बात का सत्यापन किये बिना मैटर छाप रहे हैं, तो यह उनकी योग्यता पर भी प्रश्नचिंह है. अच्छा हुआ आपने इस मैटर को इस मंच पर रखा, ताकि लोगों का असली चेहरा तो सामने आ सके.
माखन चोर तक की बात तो सही है, पर यह साहित्यिक और लेखन चोरी का जो रोग बढ़ रहा है, दुखद है. जाति आधारित तमाम पत्र-पत्रिकाएं इसी तरह से कट-पेस्ट कर और दूसरों की रचनाये और रिपोर्टें चुराकर अपना धंधा चला रही हैं. शायद उन्हें यह नहीं पता कि आजकल इंटरनेट इत्यादि के चलते पाठकों में जागरूकता पैदा हो गई है.
यदि यदुकुल में छपी सामग्री इतनी उपयोगी और अच्छी है कि लोग उसे फैला रहे हैं तो यदुकुल को अपने ब्लॉग पर स्पष्ट रूप से लिख दें कि इस सामग्री को कॉपी किया जा सकता है और इसका उपयोग भी किया जा सकता है। परंतु सौजन्यता का उल्लेख किया जाए। अतः अनुमति दे दी जाए। यह बात भी उल्लेखनीय है कि यदुकुल की सामग्री का उपयोग भी यादवों की पत्रिकाओं में ही किया गया है। डॉ. सुनीता की जानकारी तो पूरे हिंदुस्तान में फैलनी चाहिए। यदि यदुकुल की जानकारी सर्वत्र नहीं पहुंच सकती तो दूसरे माध्यमों का उपयोग किया जा सकता है। समाज का भला हो रहा है। होने दें। साभार का उल्लेख किया ही जाना चाहिए।
यह बिलकुल सच है कि यदुकुल में छपी सामाग्री अत्यंत उपयोगी है, समाज में अधिक से अधिक उसका प्रचार, प्रसार होना चाहिए। परन्तु सामाग्री अपने आप उपयोगी नही बन गई । उपयोगी बनाने के लिए घोर परिश्रम करना पड़ता है, एंडी चोटी का जोर लगाना पड़ता है, रात दिन एक करना पडता है. इस तरह चोरी से प्रकाशन को प्रोत्साहित किया जायेगा तो परिश्रम करने वाले बुद्धिजीवी हतोत्साहित होगे। समाज की भलाई इसी मे है कि बुद्धिजीवी वर्ग को हतोत्साहित न होने दे।
छापो, मगर पूछ कर ....
@ Dr. Dalsingar Ji,
समस्या तो यही है, लोग अपने नाम से उपयोग करना चाहते हैं. साभार नहीं.
YADAV KULDIPIKA KO SATYAPAN KAR HI KISI BHI SAMACHAR YA ANYA MATTER KO CHHAPNA HOGA.SAATH HI AGAR KOI BANDU YADAV KULDIPIKA KO KOI MATTER BHEJETE HAI TO UNHE BHI AVGAT KARANA CHAHIYE KI UKT MATTER SABHARIT HAI.KYOKI GHAR KI BAAT GHAR MAIN HI RAHI TO ACHACHA HAI.YADUKUL BLOG KO PADHNE WAALE SABHI VARG AUR JAATIYO KE LOG HAI IS PRAKAR KE LAPARVAHI HONE PAR ANYA JAATIYO KE LOG HASENGE. BADNAMI TO YADAV KI HI HOGI.HAMARE LIYE YADUKUL BLOG AUR YADAV KULDIPIKA DONO EK JAISE HAI. AGAR KISI BHI YADAV BANDU SE KOI GALTI HOTI HAI TO USE AAPAS ME BAAT KAR SULJHANE KA PRYAS KAR LENA CHAHIYE.AGAR MAHABHARAT KO SATYA MANE TO GANDHARI KA SRAPH NA LEGE.MAIN APNI DIL KI BAAT KAR RAHA HAUN. HAM YADUKUL BLOG KA SAMMAN KARTE HAI. HAMNE KEVAL APNA VICHAR LIKHA HAI.KRIPYA ISE ANYATHA NA LIYA JAAYE.
ISME KOI SANDEH NAHI HAI KI YADUKUL BLOG BAHUT HI JYADA MEHANT KAR RAHA HAI. JITNE BHI NAYE SAMACHAR AAPKO YADUKUL BLOG PAR MILTE HAI WAH KAHI BHI NAHI MIL SAKEGA. UNKI MEHNAT KA APMAN NAHI HONA CHAHIYE. YAH GHATNA PHIR NA HO ISKE LIYE AAVASHYAK HAI KI SABHI YADAV PATRIKA KO IS GHATNA SE AVGAT KARYA JAAYE KI BINA SATAYAPAN KE KOI BHI SAMACHAR NAA CHHAPE. HAME DONO PAKSHO PAR DHAYAN DENA CHAHIYE.KYA PATA PATRIKA KO SAMACHAR BHEJNE WAALE SAMPADAK KO ANDHERE ME RAKHTE HONGE.YAH BHI SATYA HAI KI PHAYADA UKT PATRIKA KE PAHTKO KO HO RAHA HAI KI UNHE JAANKARI MIL JAA RAHI HAI PAR YADUKUL BLOG PAR MEHNAT KARNE WAALO KE SAATH YE CHHAL HAI.
AGAR MERE DWARA LIKHIT BAATO SE YADUKUL BLOG SAHMAT NAA HO TO KRIPYA MAAPH KAR DENGE.MAIN TO BAS ITNA CHAHTA HUN KI YADAV EK JOOT RAHE.
यह तो कापीराइट कानून का खुला उल्लंघन है. मेहनत कोई करे और नाम कोई भुनाए. इस प्रकार की प्रवृत्ति पर तत्काल रोक लगनी चाहिए.
मेरा सभी यादव बंधुओं से अनुरोध है कि कृपया इस प्रकार की चोरी को प्रोत्साहित ना करें और ना ही कोई पत्र-पत्रिका, वेबसाईट या सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट पर बनाये गए ग्रुप 'यदुकुल' पर प्रकाशित किसी सामग्री का बिना इसका कोई रिफरेन्स दिए इस्तेमाल करें. साभार इस्तेमाल किये जाने की अवस्था में इसकी सूचना हमारे ई- मेल या ब्लॉग के माध्यम से दी जाय.
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आपकी अपील एकदम सही है. कुछ पत्र-पत्रिकाओं की हरकत के चलते सभी को बदनाम होना पड़ता है.
भंवर सिंह यादव
संपादक- यादव साम्राज्य, कानपुर
ऐसे काहिलपन के हम सख्त खिलाफ हैं. यही कारण है कि यादव समाज में बुद्धिजीवियों का घोर अभाव है. हर कोई बस दूसरे के माल को उड़कर अपना सिद्ध करना चाहता है. पर चलिए पता भी तो चला इन चोरों का.
आपने ऐसे कु-कृत्य को उजागर कर अच्छा कार्य किया. कुछ दिनों पहले मेरी एक कविता को एक पत्रिका ने दूसरे के नाम से छाप दिया तो बड़ा बुरा लगा था. मैं आपकी भावनाएं समझ सकता हूँ.
'यादव कुल दीपिका' के मार्च-2011 अंक में यदुकुल की पोस्ट 'IAS राजेश यादव को राष्ट्रीय पुरस्कार ' को हूबहू कापी कर प्रकाशित किया गया है. इसे यदुकुल से साभार दिखाने की बजाय किसी राजाराम 'राकेश' यादव, रुड़की के नाम से प्रकाशित किया गया है. 'यादव कुल दीपिका' जैसी पत्रिकाओं के पास अब कट-पेस्ट के अलावा कोई मौलिक चीज नहीं रही है, यह बड़ा क्षोभ्जनक है.
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