बुधवार, 21 मार्च 2012

जन आकांक्षाओं के रथी : अखिलेश यादव

अभूतपूर्व जनसमर्थन, हिलोरें मारती जनाकांक्षाओं और जबर्दस्त उत्साह के बीच अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री पद की शपथ के साथ ही प्रदेश की बागडोर संभाल ली. उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के वह सबसे युवा मुख्यमंत्री हैं. इसी के साथ उनके राजनीतिक करियर में कई और कीर्तिमान जुड़ गये हैं. वर्ष 2009 में प्रदेश संगठन की कमान संभालने वाले इस युवा ने सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के मार्गदर्शन में पार्टी का चेहरा बदलने का जनता को एहसास कराया.

अंग्रेजी और कम्प्यूटर विरोध की पुरातन सोच से पार्टी को बाहर निकालकर अपने घोषणा पत्र में उन्होंने छात्रों को मुफ्त लैपटॉप देने का वायदा कर नौजवानों को जोड़ा, जिसके चलते पार्टी को बहुमत की सरकार बनाने का यह यादगार मौका मिला. वैसे समाजवादी पार्टी अपने गठन के दो दशक के भीतर ही दो बार गठबंधन की सरकार बना चुकी है किंतु इस बार बहुमत के जनादेश का यह गौरव उन्हीं (अखिलेश) के हिस्से में गया है.

सबसे कम उम्र में संसद पहुंचने, प्रदेश संगठन की बागडोर संभालने और अब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन होने की उपलब्धियां भी उनके खाते में जुड़ गई हैं. अब वह जनाकांक्षाओं के रथी बन गए हैं. चुनावी वादे उनके सामने यक्ष प्रश्न के रूप में हैं तो समय हिसाब लेने के लिए उत्सुकता के साथ सामने खड़ा है, जो उनके राजनीतिक भविष्य का इतिहास लिखेगा.

सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह भी सबसे कम उम्र के विधायक थे. उस समय उनकी पहचान समाजवादी युवा चेहरे के रूप में थी. राजनीति के इस लंबे सफर में समाजवादी खेमे में कई ऐसे मोड़ आए. पार्टी टूटी, समाजवादी बिखरे और लामबंद हुए. उस दौर में समाजवादी पुरोधा भी उत्तर प्रदेश में अपने बलबूते बहुमत की सरकार की कल्पना नहीं करते थे.

राजनीतिक उतार-चढ़ाव के बीच मुलायम सिंह ने बीसवीं सदी के अंतिम दशक (1992में) बिखरे समाजवादियों को पुन: गोलबंद कर पार्टी बनाई और समाजवादी राजनीति को आगे बढ़ाया, जिसकी परिणति आज प्रदेश में उनकी बहुमत की सरकार के रूप में सामने है. आज के इस यादगार क्षण ने समाजवादी राजनीति के इतिहास में एक नई कड़ी जोड़ दी है.

आज उत्सव का माहौल है. हमें अगस्त, 2003 का वह दिन याद आता है जब मायावती की सरकार के पतन के बाद मुलायम सिंह यादव ने प्रदेश की सत्ता संभाली थी. जनाकांक्षाएं ऐसे ही उस समय भी हिलोरें मार रही थीं. उस वक्त दिवाली मनाकर लोगों ने अपनी खुशी का इजहार किया था. आज भी कुछ वैसा ही नजारा है. उस समय भी कुशासन के खिलाफ जनसमर्थन था. आज भी मायावती की ‘भ्रष्ट’ सरकार के खिलाफ जनादेश है.

किन्तु इस बार सत्ता की कमान अखिलेश के हाथ है. वह कसौटी पर हैं. इतिहास उनके अगले कदम के इंतजार में है. यह अवसर इसलिए महत्वपूर्ण है कि यह पीढ़ीगत बदलाव है. इसकी राजनीतिक पहल सपा सुप्रीमो ने की है. उन्होंने अकाली दल नेता प्रकाश सिंह बादल की तरह खुद राजनीतिक गद्दी संभालने की बजाय इस बार आखिलेश के रूप में अपना उत्तराधिकारी तैयार किया है. अपने इस राजनीतिक फैसले से उन्होंने अन्य पार्टियों के बड़े नेताओं को नए सिरे से सोचने के लिए विवश कर दिया है.

अब अखिलेश राजनीति में अपनी दूसरी भूमिका निभा रहे हैं, इसलिए उन्हें पूर्ववर्ती सरकार की खामियों को समझते हुए रणनीति बनानी होगी. आज जन समर्थन के साथ ही राजनीतिक अनुकूलता भी उनके पक्ष में है. केंद्र की यूपीए सरकार कमजोर स्थिति में आ गई है. उसकी प्रमुख सहयोगी पार्टी तृणमूल कांग्रेस उसे अस्थिर करने में लगी हुई है. रेल बजट के बाद ममता बनर्जी ने बढ़ा किराया वापस लेने को लेकर हंगामा मचा रखा है.

अपने कोटे के रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी को हटाने की चिट्ठी प्रधानमंत्री को भेजकर उन्होंने सरकार को संकट में डाल दिया है. सरकार की छीछालेदर हो रही है. ऐसे में राष्ट्रीय क्षितिज पर सपा का राजनीतिक महत्व बढ़ गया है. कांग्रेस आशा भरी निगाह से उसकी तरफ देख रही है. उनके शपथग्रहण समारोह में कांग्रेस के प्रतिनिधि के तौर पर संसदीय कार्यमंत्री पवन बंसल और कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा की शिरकत के भी राजनीतिक मायने हैं. इसलिए उन्हें इस नाजुक राजनीतिक समय में सोच-विचार कर रणनीति तय करने की जरूरत है.

तीसरे मोर्चे का गठन और मध्यावधि चुनाव अभी केवल संभावनाएं हैं. इसलिए उन्हें अनुकूल होते राजनीतिक अवसर का लाभ प्रदेश हित में उठाने से हिचकना नहीं चाहिए. उनकी यह राजनीतिक हैसियत उत्तर प्रदेश में मिली अभूतपूर्व सफलता से है. इसलिए केंद्र की मजबूरी का फायदा प्रदेश के विकास और चुनावी वादों को पूरा करने में उठाना चाहिए. पूर्व की एनडीए सरकार को समर्थन देकर चंद्रबाबू नायडू अपने प्रदेश के लिए ज्यादा धन और परियोजनाएं ले जाने में सफल हुए थे. इसलिए, युवा मुख्यमंत्री को ऐसी राजनीतिक संभावनाओं को तलाशने में हिचक नहीं करनी चाहिए.

हमें नहीं भूलना चाहिए कि बिहार में नीतीश कुमार और पश्चिम बंगाल में तृणमूल की भी बहुमत की सरकारें हैं. दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री विशेष आर्थिक पैकेज की मांग कर रहे हैं. ये दोनों राज्य गरीबी और भुखमरी से त्रस्त हैं. तृणमूल कांग्रेस के सांसद (यूपीए का सहयोगी दल) तो बृहस्पतिवार को आर्थिक पैकेज के लिए संसद परिसर में अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन पर बैठे थे. इन दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री केंद्र से धन न मिलने का रोना रो रहे हैं. इसी तरह मायावती भी केंद्र से लड़ती रहीं और विकास कार्य हुए ही नहीं. बुंदेलखंड में गरीबी और भुखमरी के चलते किसान आत्महत्या करते रहे और मायावती इससे निपटने के लिए केंद्र का ही मुंह ताकती रहीं.

जनता के लिए जरूरी आधारभूत ढांचे के निर्माण में कोई ठोस पहल नहीं हो सकी और मायावती को जनता का कोपभाजन बनना पड़ा. सपा ने लोक-लुभावन वादे किये हैं. रोजगार कार्यालयों में पंजीयन के लिए उमड़ती भीड़, कर्जमाफी, मुफ्त बिजली तथा उपज के लिए लाभकारी मूल्य आदि वादों को लेकर नौजवान, किसान, बुनकर आदि सभी नवगठित सरकार की ओर हसरत भरी निगाह से देख रहे हैं.

इन वादों को पूरा करने के लिए लगभग 66 हजार करोड़ रुपये की जरूरत पड़ेगी जबकि सरकार का खजाना खाली है. इतना पैसा कहां से आएगा, इस अबूझ गुत्थी को कूटनीतिक ढंग से ही सुलझाया जा सकता है. इतना ही नहीं, प्रदेश की नौकरशाही राजनीतिक धड़ों में बंटी हुई है. अफसरों की पहचान उनकी कार्यक्षमता और लगन की जगह नेताओं के खास होने के रूप में होने लगी है.

यह जातिवादी राजनीति का ही दुष्परिणाम है. यही कारण है कि नौकरशाह नेताओं को इस कदर घेर लेते हैं कि उनका फोकस जनता से हट जाता है. वर्ष 2008 में राज्य ने भीषण बाढ़ की आपदा झेली थी जिसमें 731 करोड़ की संपत्ति का नुकसान हुआ था. इसके बाद भी प्रदेश सरकार ने अपनी तरफ से कोई प्रबंध नहीं किया और ऐन चुनाव के समय मई, 2011 में बाढ़ नियंतण्रपरियोजनाओं के लिए 15 हजार करोड़ रुपये के पैकेज की मांग कर दी.

इतना ही नहीं, किसानों को बिचौलियों से बचाने के लिए वर्ष 2008 में दो हजार नई मंडियां खोलने का प्रस्ताव था. पंचायती राज विभाग और ग्राम विकास विभाग की खाली पड़ी जमीन पर मंडियां बननी थीं किंतु दो साल बाद भी इस प्रस्ताव पर अमल नहीं हो सका. यह नौकरशाही के मजबूत मकड़जाल का ही नतीजा है. ऐसे में अखिलेश को पार्टी और प्रशासन को नाथने की क्षमता दिखाने की भी चुनौती है.

-रणविजय सिंह
समूह सम्पादक, राष्ट्रीय सहारा हिन्दी दैनिक

4 टिप्‍पणियां:

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

बिलकुल बेबाक लिखा है। समय मिले तो इसे देखने का कष्ट करें-

http://krantiswar.blogspot.in/2012/03/blog-post_16.html

India Darpan ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
इंडिया दर्पण की ओर से शुभकामनाएँ।

KK Yadav ने कहा…

Ummiden badhna swabhavik bhi hai..

Unknown ने कहा…

अखिलेश यादव उर्जावान हैं, उत्तर प्रदेश को उनसे काफी आशाएं हैं...बधाई उनके मुख्यमंत्री बनने पर.