हिंदी-साहित्य को समृद्ध करने में तमाम महिलाओं ने प्रमुख भूमिका निभाई हैं, उन्हीं में से एक नाम है- डॉ. उषा यादव का. डा. उषा यादव समकालीन हिंदी साहित्य की प्रसिद्ध लेखिका हैं। वे केन्द्रीय हिंदी संस्थान आगरा, डॉ. भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, भाषा विज्ञान विद्यापीठ में भी प्राध्यापन कार्य कर चुकी हैं। वे साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था 'इन्द्रधनुष' की अध्यक्ष एवं 'प्राच्य शोध संस्थान' की सचिव भी हैं। उन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ से बाल साहित्य का सर्वोच्च सम्मान 'बालसाहित्य भारती' तथा विश्वविद्यालय स्तरीय सम्मान भी प्राप्त हुआ। मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी ने उनके उपन्यास काहे री नलिनी को 'अखिल भारतीय वीरसिंह देव' पुरस्कार प्रदान किया।
डॉ. उषा यादव वरिष्ठ बाल-साहित्यकार कानपुर निवासी चन्द्रपाल सिंह यादव मयंक की सुपुत्री एवं केआर महाविद्यालय मथुरा के पूर्व प्राचार्य तथा उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा आयोग के सदस्य डॉ. राजकिशोर सिंह की धर्मपत्नी हैं। उनकी प्रमुख रचनाएं हैं- टुकड़े टुकड़े सुख, सपनों का इन्द्रधनुष, जाने कितने कैक्टस, चुनी हुई कहानियां, सुनो जयंती, चांदी की हंसली (सभी कहानी-संग्रह), प्रकाश की ओर, एक ओर अहल्या, धूप का टुकड़ा, आंखों का आकाश, कितने नीलकंठ, कथान्तर, अमावस की रात, काहे री नलिनी (सभी उपन्यास), सपने सच हुए, हिंदी साहित्य के इतिहास की कहानी, राजा मुन्ना, अनोखा उपहार, कांटा निकल गया, लाख टके की बात, जन्म दिन का उपहार, दूसरी तस्वीर, दोस्ती का हाथ, मेवे की खीर, खुशबू का रहस्य, पारस पत्थर, नन्हा दधीचि, लाखों में एक, राधा का सपना, भारी बस्ता, तस्वीर के रंग व सांगर मंथन (सभी बाल-साहित्य).सूचना व प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा डा. उषा यादव को भारतेन्द्रु हरिश्चंद्र पुरस्कार प्रदान भी किया गया था। उनका बाल उपन्यास पारस पत्थर चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट से पुरस्कृत हुआ है। उनकी तर्पण कहानी का अंग्रेजी, सपनों का इन्द्रधनुष का उड़िया, मरीचिका कहानी का तेलगू, सुनो कहानी नानक बानी का पंजाबी भाषा में अनुवाद हुआ है। यही नहीं, राजस्थान शिक्षा परिषद की कक्षा 6 की पाठ्य पुस्तक में उनकी कहानी दीप से दीप जले पढ़ाई जाती है तो महाराष्ट्र हायर सैकेंड्री बोर्ड की नवीं कक्षा 9 के पाठ्यक्रम में ऊंचे लोग कहानी संकलित हैं.