एक ऐसे दौर में जहाँ तमाम पत्र-पत्रिकाएं संसाधनों के अभाव में दम तोड़ रही हैं, वहाँ किसी व्यक्ति द्वारा न सिर्फ अपने दम पर लगभग 250-300 पृष्ठों की पत्रिका का वार्षिक प्रकाशन बल्कि पूरे देश में इसका निशुल्क वितरण चौंकाता है। पर पिछले 9 वर्षों से मड़ई पत्रिका का कुशल संपादन कर रहे श्री कालीचरण यादव ने यह कर दिखाया है. रावत नाच महोत्सव समिति बिलासपुर, छत्तीसगढ़ के संयोजक रूप में वह न सिर्फ इस पत्रिका का खूबसूरती से संपादन कर रहे हैं बल्कि इस समिति के बैनर तले यादव छात्र-छात्रों को पुरस्कृत/सम्मानित भी कर रहे हैं. जहाँ बड़े नगरों में हो रहे छोटे-छोटे कार्यक्रम पेज थ्री की खबर बनकर सुर्खियाँ बटोरते हैं, वहाँ कालीचरण जी का यह विनम्र प्रयास दीपक की भाँति समाज को राह दिखता है. मड़ई पत्रिका में देश के विभिन्न अंचलों की लोक-संस्कृति को सहेजते लेख बहुत कुछ अनकहा कह जाते हैं. दुर्भाग्य से पाश्चात्य संस्कृति की चकाचौंध में हम अपनी संस्कृति, उसकी लोकरंजकता, समृद्ध विरासतों को जिस प्रकार उपेक्षित कर रहे हैं, उसके चलते कहीं हमारा अस्तित्त्व ही खतरे में न पड़ जाये. इस संक्रमणकालीन झंझावात के बीच "लोक के रेखांकन का विनम्र प्रयास" करती मड़ई पत्रिका के सार्थक संपादन हेतु कालीचरण यादव की जितनी भी प्रशंसा की जाय, कम होगी.
संपर्क : कालीचरण यादव, बनियापारा, जूना विलासपुर, छत्तीसगढ़- 495001
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16 घंटे पहले
7 टिप्पणियां:
लोक संस्कृति को सहेजती इस पत्रिका के बारे में जानकारी पाकर अच्छा लगा...आज ऐसे ही ब्लोग्स की जरुरत है, जो ऐसे सार्थक पहल को सामने ला सकें.
मड़ई पत्रिका मैंने पढ़ी है. वाकई इसका प्रकाशन और निःशुल्क वितरण संपादक की प्रतिबद्धता को दर्शाता है.
Really Interesting..........!!!
Sarahniya prayas hai.
अपने दम पर लगभग 250-300 पृष्ठों की पत्रिका का वार्षिक प्रकाशन बल्कि पूरे देश में इसका निशुल्क वितरण...Really surprising and wonder.
मड़ई पत्रिका में देश के विभिन्न अंचलों की लोक-संस्कृति को सहेजते लेख बहुत कुछ अनकहा कह जाते हैं...Badhai.
डा० कालीचरण यादव द्वारा संपादित मड़ई पत्रिका लोक साहित्य की एक अतिमह्त्वपूर्ण पत्रिका है। पत्रिका के कई अंक मैंने देखे हैं, ऐसी शोधपरक लोक साहित्य की सम्पूर्ण पत्रिका कोई दूसरी नहीं है।
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