मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

विश्व पुस्तक मेला, नई दिल्ली में लोकार्पित हुई कृष्ण कुमार यादव की पुस्तक ’16 आने 16 लोग’


इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं एवं लेखक व साहित्यकार कृष्ण कुमार यादव की किताब ’’16 आने 16 लोग’’ का विमोचन नई दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेला में किया गया। किताब का विमोचन करते हुए वरिष्ठ आलोचक एवं कवि ओम निश्चल ने कहा कि साहित्य की संवेदना और प्रशासनिक दायित्व का जीवंत मिश्रण कृष्ण कुमार यादव की लेखनी में बखूबी मिलता है। इस किताब में साहित्य-कला और संस्कृति के क्षेत्र की 16 महान विभूतियों के पुनर्पाठ के बहाने श्री यादव ने उन्हें समकालीन सरोकारों के साथ व्याख्यायित किया है, जो इस किताब को महत्वपूर्ण बनाती है। 

महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय विश्विद्यालय, वर्धा से पधारे बहुवचन के संपादक अशोक मिश्र ने कहा कि इस संग्रह में शामिल सभी लेखक अपने समय के सशक्त स्तम्भ रहे हैं और समय-समय पर कृष्ण कुमार ने विभिन्न स्तम्भों में इन विभूतियों पर प्रकाशित अपने आलेखों को जिस तरह एक पुस्तक में गूँथा है, वह इस पुस्तक को शोधार्थियों के लिए भी महत्वपूर्ण बनाती है। 

वरिष्ठ लेखिका पुष्पिता अवस्थी ने इस बात को उद्धृत किया कि किताब में अमृता प्रीतम और कुर्रतुल ऐन हैदर जैसी लेखिकाओं केे बहाने महिला साहित्यकारों के अवदान को शामिल करके उन मुद्दों को भी उठाया गया है जो आज नारी विमर्श की पडताल करते हैं। 

नेशनल बुक ट्रस्ट में संपादक लालित्य ललित ने कहा कि पुनर्पाठ की परम्परा में पुस्तक में शामिल साहित्यकारों के साथ संवेदनात्मक सहजता व अनुभवीय आत्मीयता जोडते हुए कृष्ण कुमार ने उनका सटीक विश्लेषण किया है। 

इस अवसर पर कृष्ण कुमार यादव ने अपनी सृजनधर्मिता के आयामों पर प्रकाश डाला। उन्होंने किताब के बारे मेें बताया कि इसमें रवीन्द्रनाथ टैगोर, नागार्जुन, निराला, प्रेमचंद, राहुल सांकृत्यायन, गणेश शंकर विद्यार्थी, अज्ञेय, कमलेश्वर, मनोहर श्याम जोशी, अहमद फराज, कैफी आजमी, अमृता प्रीतम और कुर्रतुल ऐन हैदर जैसी अमर शख्सियतों के अलावा वर्तमान समय में सक्रिय अब्दुल रहमान राही, कुंवर नारायण, गोपालदास नीरज के अवदानों की भी चर्चा की गयी है। 

इस अवसर पर चर्चित कवि मदन कश्यप, दूसरी परम्परा के संपादक सुशील सिद्धार्थ इत्यादि ने भी विचार व्यक्त किए।  कार्यक्रम का संयोजन हिन्द युग्म के शैलेश भारतवासी द्वारा किया गया।

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

सुर्खियों में क्रिकेटर कुलदीप यादव

उसे देखकर शेन वार्न का धोखा हो जाता है। दोनों का बॉलिंग एक्शन एक ही जैसा है। बस वार्न दाएं हाथ से लेग स्पिन करते हैं और कुलदीप यादव बाएं हाथ से चाइनामैन। वार्न उसके गुरु रहे हैं। अठारह साल के कुलदीप यादव की बॉलिंग के चर्चे क्रिकेट की दुनिया में होने लगे हैं।

शारजाह में चल रहे अंडर-19 एशिया कप में भी वे खेल रहे हैं। अभी तक युवाओं के 18 वनडे इंटरनेशनल मैचों में उसने 34 विकेट लिए हैं। श्रीलंका अंडर-19 के खिलाफ दो टेस्ट मैचों में 14 विकेट और घरेलू क्रिकेट के इस सीजन में उत्तर प्रदेश की युवा टीम से खेलते हुए 6 मैचों में 53 विकेट।

हाल की आईपीएल नीलामी में कोलकाता नाइटराइडर्स ने उसकी बोली 40 लाख रुपए लगाई। पिछले सीजन में मुंबई इंडियंस ने रिजर्व खिलाडिय़ों में रखा था। लेकिन नेट प्रैक्टिस में उसकी गेंदों के सामने सचिन तेंदुलकर भी चकरा गए थे।

1960 में हैदराबाद से खेलने वाले मुमताज हुसैन देश के पहले चाइनामैन गेंदबाज थे। लेकिन वे केवल फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेले और दो साल बाद वे परंपरागत तरीके से बॉलिंग करने लगे। उसके बाद से कुलदीप पहले चाइनामैन हैं। हाल के सालों में दक्षिण अफ्रीका का पॉल एडम, ऑस्ट्रेलिया के ब्रैड हॉग और साइमन कैटिच ही चाइनामैन बॉलर्स हुए हैं। इससे पहले ऑस्ट्रेलिया के माइकल बीवन और वेस्ट इंडीज़ के गैरी सोबर्स भी चाइनामैन बॉलिंग ही करते थे।

क्या है चाइनामैन 

जिस एक्शन से दाएं हाथ के गेंदबाज लेगस्पिन करते हैं उसी एक्शन से अगर बाएं हाथ का बॉलर करता है तो उसे चाइनामैन कहते हैं। इस तरह के पहले बॉलर वेस्ट इंडीज के एलिस एचांग थे जो दरअसल चीनी मूल के थे। इसीलिए इस बॉल को चाइनामैन डिलीवरी कहा गया।

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अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में ‘चाइनामैन’ गेंदबाज यदा कदा ही नजर आते हैं तो ऐसे में भारतीय स्पिन गेंदबाजी की नयी सनसनी कानपुर के कुलदीप यादव ने इस अनूठी कला से पूरी दुनिया का ध्यान बरबस अपनी तरफ खींच लिया है। क्रिकेट में आफ स्पिनर, लेग स्पिनर और लेफट आर्म स्पिनर तो तमाम देशों में खेलते नजर आते हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यदि इतिहास में नजर डाली जाये तो मुश्किल से आठ दस चाइनामैन गेंदबाज ही याद आ पायेंगे। 

दक्षिण अफ्रीका के पाल एडम्स, आस्ट्रेलिया के माइकल बेवन, ब्रैड होग और साइमन कैटिच तथा वेस्टइंडीज के दिग्गज आलराउंडर गैरी सोबर्स कुछ ऐसे गेंदबाज थे जो चाइनामैन शैली की गेंदबाजी किया करते थे। हालांकि सोबर्स नियमित चाइनामैन गेंदबाज नहीं थे, लेकिन वह अपनी गेंदबाजी में ऐसी गेंदों का मिश्रण करते थे। 

भारतीय अंडर-19 टीम के गेंदबाज कुलदीप ने अंडर-19 विश्वकप टूर्नामेंट में स्काटलैंड के खिलाफ हैट्रिक सहित चार विकेट झटके और अपनी चाइनामैन गेंदबाजी के कारण वह एक झटके में ही सुर्खियों में आ गये। वह अंडर-19 विश्वकप में हैट्रिक लेने वाले पहले भारतीय गेंदबाज बने। 

कानपुर में एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे कुलदीप यादव की चाइनामैन शैली ने बरबस ही विशेषज्ञों को इतिहास के पन्ने पलटने और ऐसे गेंदबाजों को ढूंढने पर मजबूर किया है जो इस शैली की गेंदबाजी किया करते थे। 

चाइनामैन गेंदबाजी के लिये माना जाता है कि इसका जन्म 1933 में ओल्ड ट्रेफर्ड में वेस्टइंडीज और इंगलैंड के बीच खेले गये मैच के दौरान हुआ था। चीनी मूल के खिलाड़ी एलिस पस एचोंग लेफट आर्म स्पिनर थे और उस समय वेस्टइंडीज की ओर से खेला करते थे। कहा जाता है कि एचोंग ने अपनी एक गेंद पर दाहिने हाथ के बल्लेबाज वाल्टर राबिन्स को इस कदर चौंकाया था कि वह स्टम्प हो गये थे। पवेलियन लौटते समय राबिन्स ने अंपायर से कहा था कि इस ‘चाइनामैन’ ने उन्हें छका दिया। उसके बाद से ही ऐसी गेंदबाजी को चाइनामैन कहा जाने लगा। दरअसल चाइनामैन गेंदबाजी लेफट आर्म स्पिनर की लेग स्पिन गेंदबाजी है जो टप्पा पड़ने के बाद अंदर की ओर आती है। इसमें गेंदबाज अपनी कलाइयों का इस्तेमाल कर गेंद को स्पिन कराता है जिसके कारण वह लेफट स्पिन गेंदबाज से अलग होता है।



सोमवार, 17 फ़रवरी 2014

विश्व हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान द्वारा कृष्ण कुमार यादव ‘’साहित्य गौरव‘‘ से सम्मानित

विश्व हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान ने इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएँ एवं युवा साहित्यकार और ब्लागर श्री कृष्ण कुमार यादव को हिन्दुस्तानी एकेडमी, इलाहाबाद में 16 फरवरी 2014 को आयोजित 11वें साहित्य मेला सम्मेलन में हिन्दी के संवर्द्धन एवं विशिष्ट साहित्य सेवा हेतु ‘’साहित्य गौरव‘‘ की मानद उपाधि से सम्मानित किया। विभिन्न विधाओं में अब तक कुल 7 पुस्तकें लिख चुके श्री यादव को इससे पूर्व विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक-सामाजिक संस्थानों द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और प्रशासन के साथ-साथ सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु 50 से ज्यादा सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त हो चुकीं हैं। 



इस अवसर पर सुश्री बीएस शांताबाई, प्रधान सचिव, कर्नाटक महिला हिन्दी सेवा समिति, प्रोफेसर नित्यानंद पाण्डेय, पूर्व निदेशक, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा, जाने-माने कवि-चित्रकार संदीप राशिनकर, श्री गोकुलेश्वर द्विवेदी, डा राम आसरे गोयल, हितेश पांडेय, नरेश पाण्डेय ’चकोर’ सहित तमाम साहित्यकार, पत्रकार व बुद्धिजीवी उपस्थित थे।

 गौरतलब है कि श्री कृष्ण कुमार यादव को इससे पूर्व उ.प्र. के मुख्यमंत्री द्वारा ’’अवध सम्मान’’, परिकल्पना समूह द्वारा ’’दशक के श्रेष्ठ हिन्दी ब्लागर दम्पति’’ सम्मान, विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार द्वारा डाक्टरेट (विद्यावाचस्पति) की मानद उपाधि, भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘’डा0 अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान‘‘, साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा, राजस्थान द्वारा ”हिंदी भाषा भूषण”, वैदिक क्रांति परिषद, देहरादून द्वारा ‘’श्रीमती सरस्वती सिंहजी सम्मान‘’, भारतीय बाल कल्याण संस्थान द्वारा ‘‘प्यारे मोहन स्मृति सम्मान‘‘, ग्वालियर साहित्य एवं कला परिषद द्वारा ”महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला‘ सम्मान”, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ‘‘भारती रत्न‘‘, अखिल भारतीय साहित्यकार अभिनन्दन समिति मथुरा द्वारा ‘‘कविवर मैथिलीशरण गुप्त सम्मान‘‘, भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ द्वारा ’’पं0 बाल कृष्ण पाण्डेय पत्रकारिता सम्मान’’, सहित विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और प्रशासन के साथ-साथ सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु 50 से ज्यादा सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त हो चुकी हैं।   



शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

भारत का पहला चाइनामैन गेंदबाज : कुलदीप यादव

मुंबई इंडियंस की टीम में हरभजन सिंह व प्रज्ञान ओझा जैसे स्थापित स्पिन गेंदबाज हैं, इसलिए एक जूनियर स्पिनर को इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के मैच में जगह मिलनी कठिन थी। फिर भी प्रैक्टिस मैचों में जूनियर खिलाडिय़ों को अपने हुनर का प्रदर्शन करने व टीम प्रबंधन को प्रभावित करने का अवसर मिल जाता है। ऐसे ही एक प्रैक्टिस मैच में जब बल्लेबाजी के लिए  सचिन तेंदुलकर मैदान में उतरे तो उनके सामने एक अंजान सा नई उम्र का गेंदबाज था। उसने अपनी स्टॉक बॉल फेंकी। गेंद ऑफ  स्टम्प के बाहर पिच हुई और तेजी से अंदर की ओर आयी। सचिन तेंदुलकर हक्के-बक्के रह गए। पहली ही गेंद पर उनका मिडिल स्टम्प उखड़ गया था। इस यादगार गेंद को फेंकने वाले 18 वर्षीय कुलदीप यादव का कहनाथा, ‘सचिन पाजी को मालूम नहीं था कि मैं चाइनामैन गेंदबाज हूं। दरअसल, कोच शॉन पोलक को छोड़कर टीम में किसी को भी मेरे बारे में पता नहीं था। लेकिन मेेरे लिए यह सपने के सच होना जैसा हो गया कि मैंने क्रिकेट इतिहास के  सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज को पहली गेंद पर बोल्ड किया।’

सचिन तेंदुलकर का विकेट इत्तेफाक हो सकता है, लेकिन इसी अनुभव को एक अन्य अच्छे बल्लेबाज के खिलाफ  दोहराना संयोग नहीं हो सकता। यह प्रतिभा व लगन का ही कमाल कहा जा सकता है  कि कुलदीप यादव जब नेशनल क्रिकेट एकेडमी में चितेश्वर पुजारा को गेंद कर रहे थे तो पुजारा ने पहली तीन गेंद तो किसी तरह से अपने विकेट में जाने से रोकीं, लेकिन चौथी गेंद वह भी, डंडे पर खा गए।

दरअसल, इन बेहतरीन बल्लेबाजों का इस तरह से आउट होना इस वजह से भी हो सकता है कि चाइनामैन गेंदबाजों का सामना करने का अवसर मुश्किल से ही मिलता है। जब कोई बाएं हाथ का स्पिनर गेंद को उंगलियों की बजाय कलाई से स्पिन कराता है तो उसे चाइनामैन गेंदबाज कहते हैं। इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है कि दायं हाथ से कलाई के जरिए लेग स्पिन कराने वाले को लेग स्पिनर कहते हैं, जबकि बायें हाथ से कलाई के जरिए ऑफ  स्पिन कराने वाले को चाइनामैन गेंदबाज कहते  हैं। चाइनामैन गेंदबाज दुर्लभ में भी अति दुर्लभ होते हैं और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मुश्किल से ही कोई नाम याद आता है, जैसे दक्षिण अफ्रीका के पॉल एडम्स थे।

इस लिहाज से देखा जाए तो कुलदीप यादव दुर्लभ गेंदबाजों में से एक हैं। लेकिन यह प्रतिभावान अंडर-19 की टीम के साथ भारत का प्रतिनिधित्व कर चुका है। इस स्तर पर खेलने वाला वह भारत का पहला चाइनामैन गेंदबाज है। गौरतलब है कि हाल में ऑस्ट्रेलिया में जो त्रिकोणीय एकदिवसीय प्रतियोगिता खेली गई थी, जिसे भारत की अंडर-19 टीम ने जीता, उसमें कुलदीप यादव अपनी टीम की तरफ से सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज बने। उन्होंने चार मैचों में 6.44 की औसत से 9 विकेट हासिल किए और उनका इकोनॉमी दर 1.81 रहा, यानी प्रति ओवर उन्होंने 2 रन से भी कम दिए।
एक चाइनामैन गेंदबाज के लिए इतना शानदार औसत व इकोनॉमी दर हासिल करना आसान काम नहीं है। इससे जाहिर हो जाता है कि कुलदीप नायर का गेंद पर जबरदस्त नियंत्रण है। बहरहाल, इस उभरते हुए गेंदबाज का सपना है कि वह भारत का शेन वॉर्न बने।

आश्चर्य की बात यह है कि कुलदीप स्पिन गेंदबाज की बजाय तेज गेंदबाज बनना चाहते थे। जब वह एक स्थानीय एकेडमी में ट्रायल के लिए गए तो उन्हें देखने के बाद कोच कपिल पांडे ने उनसे व उनके पिता से कहा कि कुलदीप की लंबाई एक  तेज गेंदबाज के लायक नहीं बढ़ पाएगी, इसलिए उसे स्पिन गेंदबाजी करनी चाहिए।

कोच ने कुलदीप पर स्पिन गेंद करने का दबाव डाला, जो उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं आया। कुलदीप ने गेंदबाजी की असामान्य शैली अपनाई। बहरहाल, अगर आप पहली बार लेग स्पिन फेंकने का प्रयास करेंगे तो अधिक संभावनाएं इस बात की हैं कि आप गुगली फेकेंगे क्योंकि गेंद को सही से छोड़ा नहीं जाएगा। कुलदीप के मामले में पहली गेंद सटीक चाइनामैन थी। कपिल पांडे को विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने कुलदीप से कहा, ‘अब से तू यही डालेगा।’
चूंकि कपिल पांडे  मूलत: तेज गेंदबाजी के कोच हैं, इसलिए कुलदीप को ट्रेनिंग देने के लिए उन्होंने यूट्यूब का सहारा लिया। यह दोनों शेन वॉर्न के वीडियो देखते और उनकी शैली की समीक्षा करते- एक्शन, गेंद को छोडऩे का बिन्दु आदि। इसके बाद कपिल पांडे की निगरानी में कुलदीप घंटों तक वॉर्न जैसी ही गेंदबाजी करने का प्रयास करते। साथ ही कुलदीप ऑस्ट्रेलिया के असामान्य गेंदबाज ब्रेड हॉज का भी अध्ययन करने लगे, खासकर उनकी उलट दिशा में मुडऩे वाली गेंद का। लेकिन कुलदीप ने अपने आपको वॉर्न पर मॉडल किया है।

इसके वर्षों बाद कुलदीप की राष्ट्रीय क्रिकेट एकेडमी में वॉर्न से मुलाकात हुई और वॉर्न ने कहा, ‘हम दोनों का गेंदबाजी स्टाइल एकसा है।’ वॉर्न ने कुलदीप को सुझाव दिया कि वह अपनी गेंदबाजी में अधिक नियंत्रण व वेरिएशन लाए। यानी अलग-अलग अंदाज से गेंद करना।

चाइनामैन गेंदबाजी के फायदे भी हैं और नुकसान भी। फायदा यह है कि अपने नयेपन व अनोखेपन से सफलता बहुत जल्दी मिलती है, लेकिन जब इसको बल्लेबाज पढऩे लगते हैं तो विकेट मिलना बहुत कठिन होता जाता है। संसार के लगभग सभी असामान्य गेंदबाजों के साथ यही हुआ है, जैसे पॉल एडम्स (दक्षिण अफ्रीका), ब्रेड हॉज (ऑस्ट्रेलिया), अजंता मेंडिस (श्रीलंका), सुहैल तनवीर (पाकिस्तान) आदि। फिलहाल कुलदीप  वार्न के नक्शेकदम पर चलने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं।

सोमवार, 10 फ़रवरी 2014

सामाजिक न्याय की राजनीति ठहराव के बिन्दू पर आकर खड़ी हो गयी है - योगेन्द्र यादव

देश के जाने-माने राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव पिछले दिनों पटना में थे। एक कार्यक्रम के दौरान इनसे बातचीत करने का अवसर मिला। अपनी बेबाक, गंभीर और सटीक टिप्पणियों के लिए मशहूर श्री यादव ने देश की राजनीति, ओबीसी की दशा दिशा और वर्ष 2014 में देश में राजनीतिक संभावनाओं पर विस्तार से बात की। प्रस्तुत है बातचीत का महत्वपूर्ण हिस्सा-

नवल किशोर कुमार– पिछले 4-5 वर्षों में देश की राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव आया है। आंकड़े विकास की अलग कहानी कहते हैं, वही उनकी विश्वसनीयता पर भी सवाल उठने लगे हैं। आंकड़ों के विशेषज्ञ होने के नाते आप क्या कहेंगे?

योगेंद्र यादव – देखिए, आंकड़ों से मैंने अपने आपको बहुत दूर कर लिया है। रही बात देश की राजनीति में बदलाव की तो निश्चित तौर पर बदलाव हुआ। देश के लोग गुस्से में हैं। लेकिन यह सकारात्मक गुस्सा है। पहली बार देश का आम आदमी अपनी बात कहने लगा है। निश्चित तौर पर यह बदलाव आने वाले दिनों में रंग दिखलायेगा।

नवल किशोर कुमार – देश में सामाजिक न्याय की लड़ाई कुंद पड़ती जा रही है। आपके हिसाब से इसकी क्या वजहें हो सकती हैं?

योगेन्द्र यादव – सामाजिक न्याय की राजनीति एक ठहराव के बिन्दू पर आकर खड़ी हो गयी है। उसकी वजह यह है कि सामाजिक न्याय की राजनीति का जो पहला दौर था, वह एक तरह से चूक गया है। जो नेताओं के चेहरा बदलने का काम था वह पूरा हो चुका है। अगर सामाजिक न्याय की राजनीति का मतलब यह था कि एक जाति के नेताओं को हटाकर दूसरी जाति के नेताओं को बिठाया जाय तो वह काम मोटे तौर देश के अनेक राज्यों में हो चुका है। लेकिन उसका जो दूसरा गहरा पड़ाव था कि सामान्य लोगों के जीवन में बदलाव लाया जाय। जन्म के संयोग पर जो विसंगतियां हैं, उसे खत्म किया जाय। उस चुनौती को लेने के लिए पहले दौर की राजनीति तैयार नहीं है। फ़िर चाहे वह लालू प्रसाद यादव की राजनीति हो या करूणानिधि की राजनीति। जो अपने आपको सामाजिक न्याय की राजनीति का वाहक कहते हैं, वे लोग इस बुनियादी चुनौती के लिए तैयार नहीं हैं। साथ ही साथ वह राजनीति अपने आप में अंदरूनी ठहराव में भी पहूंच चुकी है। चूंकि पिछड़ों में ओबीसी के अंदर जो बड़ी जातियां थीं, थोड़ा अगड़ी जातियां थीं, थोड़ा सा दबंग जातियां थीं, उन्होंने ओबीसी के नाम पर बाकी सब चीजों पर कब्जा कर लिया। दलित समाज में जो उपरी तबका है उसने अन्य दलितों के अधिकारों पर कब्जा कर लिया है। आदिवासी समाज में भी पूर्वोत्तर के राज्यों में आदिवासी, इसाई आदिवासी और जो थोड़े से समुदाय हैं उसने कब्जा कर लिया है। मुस्लिम समाज में भी जो अति पिछड़ा समाज है उसे कुछ नहीं मिला। तो आज अगर सामाजिक न्याय की राजनीति होगी तो वह अति पिछड़े, पसमांदा और सबसे पिछड़े आदिवासी की राजनीति होगी। आज अगर सामाजिक न्याय की राजनीति होगी तो केवल चेहरा बदलने की राजनीति नहीं होगी। लोगों के जीवन बदलने की राजनीति होगी। इस राजनीति के लिए पुराने सामाजिक न्याय की राजनीति अभी तैयार नहीं है।

नवल किशोर कुमार – कल एक वामपंथी नेता ने विक्ल्प के तौर पर वामपंथ और समाजवादियों को एक मंच पर आने का आहवान किया है। आपकी नजर में यह कितना तर्कसंगत है?

योगेंद्र यादव – इसमें कोई शक नहीं कि देश में बदलाव की तमाम बड़ी ताकतों को एक साथ आना चाहिए। इसमें कोई शक नहीं कि जिसे 20वीं सदी में समाजवाद कहा जाता था और जिसे 20वीं सदी में साम्यवाद कहा जाता था, जिसमें आगे कोई नक्सली था या जो आम्बेडकरवादी ताकतें थीं, इन सबको एक मंच पर आना होगा। लेकिन इन धाराओं के जो बड़े-बड़े दल बने हैं, वे आज इन्हीं धाराओं के बदलाव को लाने में असमर्थ हैं। तो मैं नहीं समझता कि जो देश में बड़ी कम्यूनिस्ट पार्टियां हैं या समाजवाद का नाम लेने वाली कुछ पार्टियां इस देश में जो हैं, वे बड़े बदलाव में सहायक हो सकती हैं। मेरे विचार से तो इस देश में समाजवाद लाने में जो बाधक पार्टियां हैं, वे वो पार्टियां हैं जो समाजवाद के नाम पर चल रही हैं। या सीपीआई-सीपीएम जैसी बड़ी कम्युनिस्ट पार्टियां जो कम्युनिज्म के नाम पर चल रही हैं, वे कम्युनिज्म के सबसे बड़ी बाधक हैं। मैं समझता हूं कि इतिहास का जो प्रवाह है, बदलाव है, वो इन बड़ी पार्टियों को किनारे कर देगा। इनके किनारे होने के बाद समाजवाद, साम्यवाद, नारीवाद और आम्बेडकरवाद आदि विचारधाराओं की जो छोटी-छोटी शक्तियां हैं, वे बदलाव लाने में सक्षम होंगी।

नवल किशोर कुमार – साहित्य के क्षेत्र में बात करें तो एक राजनीतिक कोशिश वहां भी की जा रही है। मेन स्ट्रीम साहित्य और दलित साहित्य के तर्ज पर ओबीसी साहित्य की बात कही जा रही है। इसका कैसा भविष्य आप देख पाते हैं?

योगेंद्र यादव – साहित्य में मेरी बहुत गति नहीं है। और जरूरी नही है कि एक क्षेत्र के बारे में कुछ जानकारी रखने वाला व्यक्ति बाकी क्षेत्रों के बारे में भी साधिकार टिप्पणी करे। मैं बहुत कम जानता हूं। यह संभव है कि और यह जरूरी है कि समाज का जो साहित्य है, समाज में आप कहां से आते हैं, कहीं न कहीं उसे प्रतिबिंबित करता है। फ़णीश्वरनाथ रेणु का साहित्य, जो मेरा प्रिय साहित्य है वो किसी शहरी मध्यम वर्गीय जीवन जीने वाले व्यक्ति का साहित्य नहीं हो सकता था। वो वही से आया, जहां से वह उपजा था। तो इसलिए जरुर है कि साहित्य समाज में जो आपका अस्तित्व है या फ़िर समाज में जो समुदाय है उसे प्रतिबिंबित करेगा। लेकिन यह भी याद रखें कि साहित्य केवल कटघरा नहीं है। साहित्य पूरी दुनिया की आंख खोलता भी है। साहित्य में यह आकांक्षा रहनी चाहिए कि वह जहां भी पैदा हो, वह अनंत से जुड़ सके। वह पूरी दुनिया से जुड़ सके। जो साहित्य यह आकांक्षा छोड़ दे वह साहित्य नहीं हो सकता।

नवल किशोर कुमार – योगेंद्र जी, फ़िर से वापस राजनीति की ओर चलते हैं। आज देश के कई राज्यों में पिछड़े वर्गों के लोगों का शासक है। फ़िर भी देश का पिछड़ा वर्ग उपेक्षित क्यों महसूस करता है?

योगेंद्र यादव – ये जो पिछड़ा वर्ग नामक कैटेगरी बनी है। यह कोई हमारे समाज की बनाई हुई कैटेगरी नहीं है। ओबीसी शब्द शुद्ध रुप से सरकारी कागजों और कमीशनों की बनाई हुई कैटेगरी है। जिसे हम ओबीसी कहते हैं, उसमें कम से कम 4 अलग-अलग किस्म के समुदाय शामिल हैं। एक वो जो कृषक समुदाय है, सम्पन्न है और जो जमींदार किस्म के लोग हैं। ये जातियां सक्षम हैं। अनेक जगहों पर दबंग भी हैं। इनके पास देश के कई इलाकों में जमीन और साधन भी हैं। ये भी अपने-आपको ओबीसी कहलाते हैं। कर्नाटक के लिंगायत हों, महाराष्ट्र के मराठा हों, या कांबा हों आंध्रप्रदेश, या उत्तरप्रदेश और बिहार में यादव एवं कुर्मी या फ़िर हरियाणा के जाट हों, ये अधिकांश इस वर्ग में आते हैं। इसके बाद देश के तमाम सीमांत किसान, छोटे-छोटे किसान जो हैं, वे भी हैं इसमें। लेकिन पहली और दूसरी कोटि के लोगों की कोई तुलना नहीं हो सकती। तीसरी श्रेणी में वे जातियां आती हैं जो कि आर्टिजन यानी शिल्पकार या हाथ का काम करके बनाने वाले लोग हैं। चौथी वे जातियां जिसे समाज में सर्विस कास्ट की संज्ञा दी गयी है। जैसे नाई, धोबी एवं अन्य जातियां। और पांचवी श्रेणी में उन जातियों के लोग आते हैं जिनकी सामाजिक हैसियत भी लगभग एक जैसी ही हैं। लेकिन चूंकि ये ईसाई या फ़िर मुसलमान धर्म की जातियां हैं, इसलिए इन्हें दलित नहीं कहा जाता। ये पांच अलग-अलग किस्म के कैटेगरी हैं। इन सबको एक कैटेगरी में डाल देना और ओबीसी कहना राजनीति के साथ न्याय नहीं है। क्योंकि इनमें जमीन आसमान का अंतर है। इनमें इतना ही अंतर होता है जितना कि दलित और ब्राह्म्ण में होता है। इसलिए इनकी राजनीति को एक साथ लाने के लिए जिस किस्म की रचनात्मकता चाहिए, उसके लिए अभी इसकी राजनीति तैयार नहीं हुई है। क्योंकि राजनीति चंद ऊपरी जातियों के कब्जे में आ गयी है। जब तक ओबीसी की राजनीति को ऊपरी जातियों के चंगुल से छुड़ाया नहीं जायेगा या उसे अति पिछड़े के पास नहीं लाया जाएगा और ओबीसी की राजनीति को उनके दैनन्दिन अनुभवों से जोड़ा नहीं जाएगा तब तक ओबीसी की राजनीति आगे नहीं बढ सकती। और इस मायने में उत्तर भारत में ओबीसी राजनीति की स्थिति बहुत ही दयनीय है। दक्षिण भारत की ओबीसी राजनीति ने इन सबकों को सीखा है और इससे वहां के लोगों की जिंदगी में कुछ न कुछ बदलाव आया है। ये जो करूणानिधि हैं, वे अनेक्सर वन से आते हैं। दक्षिण भारत की ओबीसी राजनीति अति पिछड़े की राजनीति बनी। जबकि उत्तर भारत की ओबीसी राजनीति में कम दृष्टि रखने वाले लोग आये। जिसके चलते बहुत बुनियादी राजनीति नहीं हो पायी।

नवल किशोर कुमार – योगेंद्र जी आखिरी सवाल। वर्ष 2014 में कैसा परिवर्तन देख रहे हैं आप?

योगेंद्र यादव – निर्भर करता है कि परिवर्तन से आपका आशय क्या है। अगर परिवर्तन का मतलब यह कि जो पार्टी सत्ता में है उसके बुरे दिन आयेंगे तो ये बताने के लिए आपको किसी विशेषज्ञ की आवश्यकता नहीं है। आप आंख घुमाकर देख लिजिए। देश में चारों तरफ़ कांग्रेस की हालत त्रस्त है। चारों तरफ़ हार रहे हैं। बंगाल में प्रणव मुखर्जी के बेटे बमुश्किल से जीत पाते हैं। वही उत्तराखंड में मुख्यमंत्री के बेटे चुनाव हार गये। यह सब संकेत है। जाहिर है देश में कांग्रेस की हालत पस्त है। इसमें कोई नई बात नहीं है। जो नई बात है वह यह कि मुख्य विपक्षी दल की हालत भी उतनी ही खराब है या फ़िर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं कि उससे भी ज्यादा खराब है। और यह देश में अलग परिस्थिति पैदा करती है जहां सत्तारुढ दल डूब रहा है। विपक्षी स्थिति लेने की स्थिति में नहीं हैं। इस प्रकार देश में एक नई राजनीतिक संभावना पैदा होती है। अभी से इस संभावना के बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।

(नवल किशोर कुमार अपनाबिहार.आर्ग के संपादक हैं)
साभार : विस्फोट. काम 

शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

पूर्व न्यायमूर्ति सखाराम सिंह यादव भाजपा में शामिल

लोकसभा चुनाव से पहले हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज सखाराम यादव के भाजपा में शामिल होने के साथ ही कयासबाजी का दौर शुरू हो गया है। चर्चा है कि श्री यादव भदोही लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी हो सकते हैं। साफ-सुथरी छवि के सखाराम यादव का जन्म 25 जुलाई 1940 को हंडिया के जगदीशपुर गांव में हुआ था। शुरुआती पढ़ाई गांव से करने के बाद सीएवी इंटर कॉलेज से 12वीं तक की पढ़ाई की।

उसके बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीएससी और एलएलबी किया। पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने पिता रूप नाथ सिंह यादव के जूनियर के रूप में हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की। 24 जनवरी 1991 को हाईकोर्ट के जज बने और जुलाई 2002 में रिटायर हुए। हाईकोर्ट के जज रहते हुए श्री यादव ने समाज के कमजोर वर्ग के विकास से जुड़े मुद्दों पर अहम फैसले दिए। हाईकोर्ट से रिटायर होने के बाद वे सेंट्रल एड़ािनिस्टट्रवि ट्रबि्यूनल (कैट) इलाहाबाद और बंगलुरु में भी काम किया।

2006 में सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट के रूप में प्रैक्टिस कर रहे हैं। उनके पिता रूपनाथ सिंह यादव हंडिया से दो बार विधायक रहे और 1977 में जनता दल के टिकट पर प्रतापगढ़ से लोकसभा के लिए चुने गए। रूप नाथ सिंह यादव ने 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की उपस्थिति में कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली थी। सखाराम के बेटे अजय सिंह यादव हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं और उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।


शनिवार, 1 फ़रवरी 2014

हरियाणा के मुख्यमंत्री बन सकते हैं 'आप' के योगेन्द्र यादव

दिल्ली में सरकार बनने के बाद अब आम आदमी पार्टी योगेन्द्र यादव पर दांव खेलना चाहती है। सूत्रों की मानें तो उन्हें हरियाणा के मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जा सकता है।

हरियाणा में इस साल चुनाव होने है। ऐसे में नई पॉलिसी के तहत योगेन्द्र यादव अभी से वहां अपनी पैठ बनाने में जुट गए हैं। पार्टी ने हरियाणा में उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया भी शुरु कर दी है और योगेन्द्र खुद इसपर नजर बनाए हुए हैं। पार्टी को उम्मीद है कि दिल्ली की तरह हरियाणा की जनता भी उन्हें एक मौका जरूर देगी।