मुंबई इंडियंस की टीम में हरभजन सिंह व प्रज्ञान ओझा जैसे स्थापित स्पिन गेंदबाज हैं, इसलिए एक जूनियर स्पिनर को इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के मैच में जगह मिलनी कठिन थी। फिर भी प्रैक्टिस मैचों में जूनियर खिलाडिय़ों को अपने हुनर का प्रदर्शन करने व टीम प्रबंधन को प्रभावित करने का अवसर मिल जाता है। ऐसे ही एक प्रैक्टिस मैच में जब बल्लेबाजी के लिए सचिन तेंदुलकर मैदान में उतरे तो उनके सामने एक अंजान सा नई उम्र का गेंदबाज था। उसने अपनी स्टॉक बॉल फेंकी। गेंद ऑफ स्टम्प के बाहर पिच हुई और तेजी से अंदर की ओर आयी। सचिन तेंदुलकर हक्के-बक्के रह गए। पहली ही गेंद पर उनका मिडिल स्टम्प उखड़ गया था। इस यादगार गेंद को फेंकने वाले 18 वर्षीय कुलदीप यादव का कहनाथा, ‘सचिन पाजी को मालूम नहीं था कि मैं चाइनामैन गेंदबाज हूं। दरअसल, कोच शॉन पोलक को छोड़कर टीम में किसी को भी मेरे बारे में पता नहीं था। लेकिन मेेरे लिए यह सपने के सच होना जैसा हो गया कि मैंने क्रिकेट इतिहास के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज को पहली गेंद पर बोल्ड किया।’
सचिन तेंदुलकर का विकेट इत्तेफाक हो सकता है, लेकिन इसी अनुभव को एक अन्य अच्छे बल्लेबाज के खिलाफ दोहराना संयोग नहीं हो सकता। यह प्रतिभा व लगन का ही कमाल कहा जा सकता है कि कुलदीप यादव जब नेशनल क्रिकेट एकेडमी में चितेश्वर पुजारा को गेंद कर रहे थे तो पुजारा ने पहली तीन गेंद तो किसी तरह से अपने विकेट में जाने से रोकीं, लेकिन चौथी गेंद वह भी, डंडे पर खा गए।
दरअसल, इन बेहतरीन बल्लेबाजों का इस तरह से आउट होना इस वजह से भी हो सकता है कि चाइनामैन गेंदबाजों का सामना करने का अवसर मुश्किल से ही मिलता है। जब कोई बाएं हाथ का स्पिनर गेंद को उंगलियों की बजाय कलाई से स्पिन कराता है तो उसे चाइनामैन गेंदबाज कहते हैं। इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है कि दायं हाथ से कलाई के जरिए लेग स्पिन कराने वाले को लेग स्पिनर कहते हैं, जबकि बायें हाथ से कलाई के जरिए ऑफ स्पिन कराने वाले को चाइनामैन गेंदबाज कहते हैं। चाइनामैन गेंदबाज दुर्लभ में भी अति दुर्लभ होते हैं और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मुश्किल से ही कोई नाम याद आता है, जैसे दक्षिण अफ्रीका के पॉल एडम्स थे।
इस लिहाज से देखा जाए तो कुलदीप यादव दुर्लभ गेंदबाजों में से एक हैं। लेकिन यह प्रतिभावान अंडर-19 की टीम के साथ भारत का प्रतिनिधित्व कर चुका है। इस स्तर पर खेलने वाला वह भारत का पहला चाइनामैन गेंदबाज है। गौरतलब है कि हाल में ऑस्ट्रेलिया में जो त्रिकोणीय एकदिवसीय प्रतियोगिता खेली गई थी, जिसे भारत की अंडर-19 टीम ने जीता, उसमें कुलदीप यादव अपनी टीम की तरफ से सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज बने। उन्होंने चार मैचों में 6.44 की औसत से 9 विकेट हासिल किए और उनका इकोनॉमी दर 1.81 रहा, यानी प्रति ओवर उन्होंने 2 रन से भी कम दिए।
एक चाइनामैन गेंदबाज के लिए इतना शानदार औसत व इकोनॉमी दर हासिल करना आसान काम नहीं है। इससे जाहिर हो जाता है कि कुलदीप नायर का गेंद पर जबरदस्त नियंत्रण है। बहरहाल, इस उभरते हुए गेंदबाज का सपना है कि वह भारत का शेन वॉर्न बने।
आश्चर्य की बात यह है कि कुलदीप स्पिन गेंदबाज की बजाय तेज गेंदबाज बनना चाहते थे। जब वह एक स्थानीय एकेडमी में ट्रायल के लिए गए तो उन्हें देखने के बाद कोच कपिल पांडे ने उनसे व उनके पिता से कहा कि कुलदीप की लंबाई एक तेज गेंदबाज के लायक नहीं बढ़ पाएगी, इसलिए उसे स्पिन गेंदबाजी करनी चाहिए।
कोच ने कुलदीप पर स्पिन गेंद करने का दबाव डाला, जो उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं आया। कुलदीप ने गेंदबाजी की असामान्य शैली अपनाई। बहरहाल, अगर आप पहली बार लेग स्पिन फेंकने का प्रयास करेंगे तो अधिक संभावनाएं इस बात की हैं कि आप गुगली फेकेंगे क्योंकि गेंद को सही से छोड़ा नहीं जाएगा। कुलदीप के मामले में पहली गेंद सटीक चाइनामैन थी। कपिल पांडे को विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने कुलदीप से कहा, ‘अब से तू यही डालेगा।’
चूंकि कपिल पांडे मूलत: तेज गेंदबाजी के कोच हैं, इसलिए कुलदीप को ट्रेनिंग देने के लिए उन्होंने यूट्यूब का सहारा लिया। यह दोनों शेन वॉर्न के वीडियो देखते और उनकी शैली की समीक्षा करते- एक्शन, गेंद को छोडऩे का बिन्दु आदि। इसके बाद कपिल पांडे की निगरानी में कुलदीप घंटों तक वॉर्न जैसी ही गेंदबाजी करने का प्रयास करते। साथ ही कुलदीप ऑस्ट्रेलिया के असामान्य गेंदबाज ब्रेड हॉज का भी अध्ययन करने लगे, खासकर उनकी उलट दिशा में मुडऩे वाली गेंद का। लेकिन कुलदीप ने अपने आपको वॉर्न पर मॉडल किया है।
इसके वर्षों बाद कुलदीप की राष्ट्रीय क्रिकेट एकेडमी में वॉर्न से मुलाकात हुई और वॉर्न ने कहा, ‘हम दोनों का गेंदबाजी स्टाइल एकसा है।’ वॉर्न ने कुलदीप को सुझाव दिया कि वह अपनी गेंदबाजी में अधिक नियंत्रण व वेरिएशन लाए। यानी अलग-अलग अंदाज से गेंद करना।
चाइनामैन गेंदबाजी के फायदे भी हैं और नुकसान भी। फायदा यह है कि अपने नयेपन व अनोखेपन से सफलता बहुत जल्दी मिलती है, लेकिन जब इसको बल्लेबाज पढऩे लगते हैं तो विकेट मिलना बहुत कठिन होता जाता है। संसार के लगभग सभी असामान्य गेंदबाजों के साथ यही हुआ है, जैसे पॉल एडम्स (दक्षिण अफ्रीका), ब्रेड हॉज (ऑस्ट्रेलिया), अजंता मेंडिस (श्रीलंका), सुहैल तनवीर (पाकिस्तान) आदि। फिलहाल कुलदीप वार्न के नक्शेकदम पर चलने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं।
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