कृष्ण कुमार यादव का द्वितीय निबंध-संकलन ‘‘अनुभूतियाँ और विमर्श’’ लखनऊ के नागरिक उत्तर प्रदेश प्रकाशन द्वारा प्रकाशित है.इसमें उनके विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित विभिन्न 15 लेखों को निबन्ध संग्रह के रूप में संकलित कर प्रस्तुत किया गया है। इस संग्रह के निबंधों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-व्यक्तित्व व कृतित्व पर आधारित निबंध, संास्कृतिक प्रतिमानों पर आधारित निबंध एवं समसामयिक व ज्वलन्त मुद्दों पर आधारित निबंध। व्यक्तित्व व कृतित्व आधारित लेखों मंे देश के मूर्धन्य साहित्यकारों व मनीषियों- मुंशी प्रेमचन्द, राहुल सांकृत्यायन, मनोहर श्याम जोशी, अमृता प्रीतम व डा0 अम्बेडकर के जन्म से महाप्रयाण तक के सफर को क्रमशः लिपिबद्ध कर बिखरे मनकों को एकत्र कर माला के रूप में तैयार कर उनके जीवन-संघर्ष व भारतीय समाज में योगदान को रेखांकित करने का सार्थक प्रयास किया गया हैे। इस पुस्तक का विमोचन करते हुए पद्मश्री गिरिराज किशोर जी ने कहा था- ''आज जब हर लेखक पुस्तक के माध्यम से सिर्फ अपने बारे में बताना चाहता है,ऐसे में ‘अनुभूतियाँ और विमर्श’ में तमाम साहित्यकारों व मनीषियों के बारे में पढ़कर सुकून मिलता है और इस प्रकार युवा पीढ़ी को भी इनसे जोड़ने का प्रयास किया गया है।'' मनुष्य एक विचारवान प्राणी है। उसे साहित्य, समाज और परिवेश से प्राप्त मानस संवेदनों के सन्देशों से जिन अनुभूतियों की उपलब्धि होती है, उनके ही विमर्श से नई-नई व्याख्याओं को आधार मिलता है। कृष्ण कुमार यादव का निबंध संग्रह ‘‘अनुभूतियाँ और विमर्श’’ इसी चिन्तन, मनन और विवेचन को आधार देती मानसी वृत्ति का परिणाम है, जिसमें लेखक ने साहित्य और साहित्यकार, व्यक्ति और समाज, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, वैश्विक चेतना तथा सांस्कृतिक अध्ययन के अनेक आधुनिक और उत्तर आधुनिक तथ्यों को व्याख्यायित करने का प्रयास किया है।
इस संग्रह के अन्य निबन्धों में नारी विमर्श, युवा भटकाव, भूमण्डलीकरण, उपभोक्तावाद चिन्तन के विविध आयाम सहज संलक्ष्य है। लेखक की श्रेष्ठ-जीवन मूल्यों के प्रति प्रखण्ड आस्था, भारतीय संस्कृति के प्रति अगाध अनुराग तथा समग्रता भारतीयता के प्रति एकनिष्ठा की स्पृहणीय चेतना से प्राणवान यें निबन्ध हिन्दी जगत की स्थायी निधि हैं। इनमें लेखक का स्वाध्याय तथा अभिव्यक्ति की निश्छलता अपने पूर्ण वैभव के साथ विद्यमान है। वैज्ञानिक विश्लेषण की दक्षता लेखन में है, इसलिए उसका कथ्य प्रत्येक पाठक का कथ्य बन गया है। इनमें हिन्दी से सम्बन्धित निबन्ध महत्वपूर्ण हैं। ये निबन्ध अनुभूतिपरक हैं चिन्तन प्रधान हैं तथा दार्शनिकता का पुट लिये हुये हैं, इसलिए सर्वस्पर्शी हैं। इनमें न तो किसी वाद का आग्रह है और न किसी मत के खण्डन का दुराग्रह। सन्तुलन धर्मिता इनकी विशिष्टता है।
कुल मिलाकर एक प्रशासक होने के साथ-साथ मानवीय संवेदनाओं से गहरे रूप में जुड़े हुए कृष्ण कुमार यादव का यह संकलन वैश्विक जीवन दृष्टि, आधुनिकता बोध तथा सामाजिक सन्दर्भों को विविधता के अनेक स्तरों पर समेटे हिन्दी निबन्ध के जिस पूरे परिदृश्य का एहसास कराता है वह निबंध कला के भावी विकास का सूचक है। सर्वथा नई शब्द योजना, नई प्रासंगिकता, नई अनुभूतियाँ और नई विमर्श शैली के साथ यह एक दस्तावेजी निबंध संग्रह है, जो विचारों की धरोहर होने के कारण संग्रहणीय भी है।
बाल दिवस के अवसर पर बाल दिवस सह खेल-कूद प्रतियोगिता का आयोजन
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17 घंटे पहले
10 टिप्पणियां:
सर्वथा नई शब्द योजना, नई प्रासंगिकता, नई अनुभूतियाँ और नई विमर्श शैली के साथ यह एक दस्तावेजी निबंध संग्रह है, जो विचारों की धरोहर होने के कारण संग्रहणीय भी है....kk ji Badhai.
मनुष्य एक विचारवान प्राणी है। उसे साहित्य, समाज और परिवेश से प्राप्त मानस संवेदनों के सन्देशों से जिन अनुभूतियों की उपलब्धि होती है, उनके ही विमर्श से नई-नई व्याख्याओं को आधार मिलता है। कृष्ण कुमार यादव का निबंध संग्रह ‘‘अनुभूतियाँ और विमर्श’’ इसी चिन्तन, मनन और विवेचन को आधार देती मानसी वृत्ति का परिणाम है ************Very nice review of a good book.
बेहतर समीक्षाएं पुस्तक की कमी को पूरी कर देती हैं.
पद्मश्री गिरिराज किशोर जी ने कहा था- ''आज जब हर लेखक पुस्तक के माध्यम से सिर्फ अपने बारे में बताना चाहता है,ऐसे में ‘अनुभूतियाँ और विमर्श’ में तमाम साहित्यकारों व मनीषियों के बारे में पढ़कर सुकून मिलता है और इस प्रकार युवा पीढ़ी को भी इनसे जोड़ने का प्रयास किया गया है।'' .........ये पंक्तियाँ संग्रह की गंभीरता को दर्शाती हैं.
Anubhutiyan aur Vimaesh jaisi uttam pustak ke bare men padhkar achha laga.
पुस्तक के आवरण में नवीनता दिखी.
साहित्य कुञ्ज के नए अंक में इसकी समीक्षा देखी, बधाई.
http://www.sahityakunj.net/LEKHAK/K/KKYadav/KKYadav_main.htm
Belated wishes of merry x-mas.
****आपके जीवन में नव-वर्ष -२००९ सारी खुशियाँ लाये****
सभी यदुकुल परिवार को बधाई..ईस माध्यमसे पुरी दुनिया .मे बिखडे हुए यादवकुल के लोग ईक्कटा होते है यह अच्छी बात है. हमे गवर्व है की इस देस में यादवराज था अभी नही..लाने केलिए प्रयास करना होगा...कृष्णदेव को सब बिलांग करते है,,लेकीन कृष्णजी का धमर्म छत्रपती शिवाजीने संभाला..बाकी लोगो कृष्णजी का ऊपयोग राजनिती के लिए दंगे फसाद करणे केलिए किया है. यादवोंनो सभी यादवोंका आदर करणे का काम करणा चाहिए ओ किसीबी प्रांत या जाती का हो...शिवाजी की माता यादवकुल की थी...जय जिजाऊ जय शिवराय जय कृष्ण
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