पिछले दिनों एक प्रतिष्ठित अखबार के कोने में छपी एक खबर ने ध्यान आकर्षित किया। समाज में कुछेक कार्य ऐसे होते हैं, जो भले ही अनायास होते हैं पर ऐसी पहल समाज के लिए प्रेरणास्पद होती है। यह वाकया है गाजीपुर जिले के दो मित्रों का, जिसके चलते एक मित्र न सिर्फ पढ़ाई कर पा रहा है बल्कि उसकी फीस भी माफ कर दी गई है। सर, यह मेरा दोस्त है। पढ़ना चाहता है लेकिन इसके पापा के पास पैसा नहीं है। छोटा सा है यह वाक्य, इसे बोलने वाला भी छोटा सा ही बालक है,लेकिन काम उसने बड़ा कर दिखाया। इस बच्चे ने अपने साधनहीन दोस्त को न सिर्फ विद्यालय में प्रवेश दिलाया बल्कि प्रधानाचार्य से उसकी फीस माफ करा दी।
यह प्रशंसनीय काम करने वाला करीब छह वर्र्षीय बालक है विशाल चौहान। ‘सब पढ़ें और सब बढ़ें‘ के जुमले को सच कर दिखाया एक ऐसे मासूम ने, जिसे सरकारी नारों से कुछ लेना देना नहीं। बरही निवासी विशाल अलगू यादव इण्टर कालेज, बरेंदा, गाजीपुर में कक्षा एक का छात्र है। पड़ोसी हम उम्र रामविलास उसका दोस्त है। विशाल रोज स्कूल जाता और रामविलास से भी चलने को कहता,लेकिन परिवार की गरीबी के कारण रामविलास स्कूल नहीं जा पा रहा था। विशाल ने रामविलास के घरवालों से बात की। घरवालों ने अपनी जर्जर माली हालत का हवाला दिया। तब विशाल ने पहल कर प्रधानाचार्य वासुदेव यादव से चर्चा की। प्रधानाचार्य उसकी बात सुन कर चकित हुए। उन्होंने कोशिश करके रामविलास का विद्यालय में न केवल निःशुल्क नाम लिखा बल्कि पूरी फीस भी माफ कर दी। विशाल ने रामविलास को अपनी यूनीफार्म व कुछ पाठ्य पुस्तकें भी दी। अब दोनों दोस्त साथ स्कूल जाते हैं। विशाल के अनुकरणीय कार्य से प्रधानाचार्य इतने अभिभूत हुए कि स्कूल की दैनिक प्रार्थना सभा समाप्त होने के बाद सभी बच्चों के सामने उसका उदाहरण रखा। उन्होंने विशाल को विद्यालय की ओर से पुरस्कृत भी किया।
यह प्रशंसनीय काम करने वाला करीब छह वर्र्षीय बालक है विशाल चौहान। ‘सब पढ़ें और सब बढ़ें‘ के जुमले को सच कर दिखाया एक ऐसे मासूम ने, जिसे सरकारी नारों से कुछ लेना देना नहीं। बरही निवासी विशाल अलगू यादव इण्टर कालेज, बरेंदा, गाजीपुर में कक्षा एक का छात्र है। पड़ोसी हम उम्र रामविलास उसका दोस्त है। विशाल रोज स्कूल जाता और रामविलास से भी चलने को कहता,लेकिन परिवार की गरीबी के कारण रामविलास स्कूल नहीं जा पा रहा था। विशाल ने रामविलास के घरवालों से बात की। घरवालों ने अपनी जर्जर माली हालत का हवाला दिया। तब विशाल ने पहल कर प्रधानाचार्य वासुदेव यादव से चर्चा की। प्रधानाचार्य उसकी बात सुन कर चकित हुए। उन्होंने कोशिश करके रामविलास का विद्यालय में न केवल निःशुल्क नाम लिखा बल्कि पूरी फीस भी माफ कर दी। विशाल ने रामविलास को अपनी यूनीफार्म व कुछ पाठ्य पुस्तकें भी दी। अब दोनों दोस्त साथ स्कूल जाते हैं। विशाल के अनुकरणीय कार्य से प्रधानाचार्य इतने अभिभूत हुए कि स्कूल की दैनिक प्रार्थना सभा समाप्त होने के बाद सभी बच्चों के सामने उसका उदाहरण रखा। उन्होंने विशाल को विद्यालय की ओर से पुरस्कृत भी किया।
10 टिप्पणियां:
Wah..samaj ko aise hi logon ki jarurat hai.
'aashiyaana kahe to kya' par aapki pratikriya padhi. aabhaari hun. abhi bhag-daud me hun. aapke blog par phir aaunga, vada raha...
sadar, anand
शाबाश विशाल।
समाज में इस तरह की तमाम घटनाएँ प्रायः होती रहती हैं परन्तु इन्हें कोई खबर नहीं बनाता। यदुकुल ने इसे खबर बनाकर प्रकाशित किया है यह "यदुकुल ब्लाग" की ऊँची सोच का परिचायक है। यह छोटी खबर तमाम बड़ी से बड़ी खबरों से भी अधिक बड़ी और अधिक प्रभावशाली है। आपको ढेरों वधाई ।
-संपादक
कई बार छोटी-छोटी बातें भी बड़ा सन्देश दे जाती हैं. लाजवाब पोस्ट !!
Salute aise jajbe ko.
dILCHASP PAHAL..MUBARAKVAD.
दूर-दराज की प्रतिभाएं ही आगे चलकर नए आयाम खडा करती हैं.
Nice one.
इसे कहते हैं पूत के पाँव पालने में.
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