बिसंभर यादव मरहा जैसे योद्धा कवि का शरशैया पर लेटे रहना तथा निरुपाय एक- एक दिन गिनना हम सबको लज्जित करता है। समाज को मरहा जी जैसे कवियों ने खूब उल्लसित किया है। जीवन की संध्या में उनका उत्साह भी कम न हो यह जिम्मेदारी भी समाज की है।
जनकवि बिसंभर यादव 'मरहा' 83 वर्ष के हो गए। दो वर्ष पूर्व तक वे गांव- गांव की जन सभाओं, रामायण मेलों में सायकिल चलाकर जाते थे। बेहद गरीबी में पले बढ़े जनकवि बिसंभर यादव मरहा अनपढ़ हैं।
छत्तीसगढ़ के ग्रामीण जनों में वे सबसे लोकप्रिय कवि हैं। लेकिन विगत दो वर्षों से वे खाट पर हैं। गांव में टहल रहे थे कि एक बैल ने उन्हें उठाकर पटक दिया। मरहा जी यादव हैं उनके पुरखों ने बड़े से बड़े मरखंडा बैल को साधकर पोसवा बनाया। लेकिन दुखद संयोग रहा कि उन्हें एक बैल ने ही पटक दिया। जीवन भर समाज के अनुशासनहीन बैलों को कविता के सोंटे से पीट- पीट कर सीधा करते रहे। लेकिन दुर्घटना के बाद अब वे वस्त्र भी स्वयं नहीं पहन पाते। उनका बेरोजगार पुत्र उन्हें कपड़ा पहनाता है।
83 वर्षीय जनकवि अब साधनहीन हैं। पहले गांव- गांव जाकर कविता सुनाते थे तो कविता का पारिश्रमिक पा जाते थे। विगत बीस वर्ष उनके घर की गाड़ी काव्य मंचों से प्राप्त पारिश्रमिक से चली। बेटा सिंचाई विभाग में दिहाड़ी मजदूर था। शासन से गुहार लगाने के बावजूद अब घर बैठा दिया गया है।
अत्यंत गरीबी और साधनहीनता में जीवन भर संघर्ष करते हुए आगे ही आगे बढऩे वाले जनकवि बिसंभर यादव मरहा को शासन से प्रतिमाह 1500 रुपए की राशि साहित्यकार पेंशन के रूप में मिलती है। इलाज के लिए सहायता के बावजूद मरहा जी शैया सायी होकर रह गये। न केवल मरहा जी बल्कि बहुतेरे साहित्यकार जीवन की संध्या में कष्ट भोग रहे हैं। डॉ. विमलकुमार पाठक, डॉ. बलदेव लगातार शारीरिक कष्ट से उबरने के लिए संघर्षरत हैं। शासन की सदाशयता ने उन्हें संबल आवश्य प्रदान किया किन्तु 15 सौ रुपए की पेंशन बहुत कम है। सुझाव यह भी है कि राज्य शासन के मानदंडों के अनुसार जो साहित्यकार पेंशन की पात्रता रखते हैं उनका व्यापक सर्वे भी प्रतिवर्ष शासकीय स्तर पर होना चाहिए।
छत्तीसगढ़ शासन द्वारा साहित्य के लिए दो लाख का एक ही पुरस्कार दिया जाता है। देश के अन्य प्रांतों में एक वर्ष में साहित्य के क्षेत्र में बीस पचीस छोटी बड़ी राशियों के सम्मान दिए जाते हैं। छत्तीसगढ़ में भी इश तरह के प्रयास किए जाएं। इससे बड़ी संख्या में साहित्यकार अपने लेखकीय श्रम के लिए सम्मान प्राप्त कर संतोष पा सकेंगे।
अभी- अभी नायडू स्मृति लाइफ टाइम सम्मान क्रिकेट के पुराने स्टार सलीम दुर्रानी को दिया जा रहा है। राशि भी पंद्रह लाख की है। साहित्य उस तरह लाभ का धंधा नहीं है जिस तरह खेल या फिल्म है। लेकिन साहित्य की अपनी महत्ता है। समाज में समरसता एवं एकता के लिए साहित्यकार जीवन भर चुपके- चुपके जो काम करता है, महसूस करने वाले ही उसकी महत्ता जान पाते हैं। इसीलिए बिसंभर यादव मरहा जैसे योद्धा कवि का शरशैया पर लेटे रहना तथा निरुपाय एक- एक दिन गिनना हम सबको लज्जित करता है। समाज को मरहा जी जैसे कवियों ने खूब उल्लसित किया है। जीवन की संध्या में उनका उत्साह भी कम न हो यह जिम्मेदारी भी समाज की है।
मरहा जी ने देशप्रेम की कविताओं का खूब सृजन किया। कुछ वर्ष पूर्व तक 'मरहा नाइट' का आयोजन भी होता था जिसमें यह अकेला कवि रात- रात भर कविता सुनाकर श्रोताओं को विभोर कर देता था।
छत्तीसगढ़ में भिन्न- भिन्न क्षेत्रों में समृद्धि के द्वीप हम देखते हैं। यह तेजी से विकसित हो रहा राज्य सबकी आंखों का तारा है। ऐसे में इस राज्य के साहित्यकार भी इसकी समृद्धि को महसूस करें, ऐसा प्रयास जरुरी हो जाता है। अभी तो स्थिति शंकर सक्सेना के इस दोहे सी है ...
'प्यासा का प्यासा रहा द्वीप नदी के बीच
सारी नदियां पी गया, सागर आंखें मींच।'
डॉ. परदेशीराम वर्मा
एलआईजी-18, आमदीनगर, हुडको, भिलाईनगर 490009, मो. 9827993494
साभार : उदंती
जनकवि बिसंभर यादव 'मरहा' 83 वर्ष के हो गए। दो वर्ष पूर्व तक वे गांव- गांव की जन सभाओं, रामायण मेलों में सायकिल चलाकर जाते थे। बेहद गरीबी में पले बढ़े जनकवि बिसंभर यादव मरहा अनपढ़ हैं।
छत्तीसगढ़ के ग्रामीण जनों में वे सबसे लोकप्रिय कवि हैं। लेकिन विगत दो वर्षों से वे खाट पर हैं। गांव में टहल रहे थे कि एक बैल ने उन्हें उठाकर पटक दिया। मरहा जी यादव हैं उनके पुरखों ने बड़े से बड़े मरखंडा बैल को साधकर पोसवा बनाया। लेकिन दुखद संयोग रहा कि उन्हें एक बैल ने ही पटक दिया। जीवन भर समाज के अनुशासनहीन बैलों को कविता के सोंटे से पीट- पीट कर सीधा करते रहे। लेकिन दुर्घटना के बाद अब वे वस्त्र भी स्वयं नहीं पहन पाते। उनका बेरोजगार पुत्र उन्हें कपड़ा पहनाता है।
83 वर्षीय जनकवि अब साधनहीन हैं। पहले गांव- गांव जाकर कविता सुनाते थे तो कविता का पारिश्रमिक पा जाते थे। विगत बीस वर्ष उनके घर की गाड़ी काव्य मंचों से प्राप्त पारिश्रमिक से चली। बेटा सिंचाई विभाग में दिहाड़ी मजदूर था। शासन से गुहार लगाने के बावजूद अब घर बैठा दिया गया है।
अत्यंत गरीबी और साधनहीनता में जीवन भर संघर्ष करते हुए आगे ही आगे बढऩे वाले जनकवि बिसंभर यादव मरहा को शासन से प्रतिमाह 1500 रुपए की राशि साहित्यकार पेंशन के रूप में मिलती है। इलाज के लिए सहायता के बावजूद मरहा जी शैया सायी होकर रह गये। न केवल मरहा जी बल्कि बहुतेरे साहित्यकार जीवन की संध्या में कष्ट भोग रहे हैं। डॉ. विमलकुमार पाठक, डॉ. बलदेव लगातार शारीरिक कष्ट से उबरने के लिए संघर्षरत हैं। शासन की सदाशयता ने उन्हें संबल आवश्य प्रदान किया किन्तु 15 सौ रुपए की पेंशन बहुत कम है। सुझाव यह भी है कि राज्य शासन के मानदंडों के अनुसार जो साहित्यकार पेंशन की पात्रता रखते हैं उनका व्यापक सर्वे भी प्रतिवर्ष शासकीय स्तर पर होना चाहिए।
छत्तीसगढ़ शासन द्वारा साहित्य के लिए दो लाख का एक ही पुरस्कार दिया जाता है। देश के अन्य प्रांतों में एक वर्ष में साहित्य के क्षेत्र में बीस पचीस छोटी बड़ी राशियों के सम्मान दिए जाते हैं। छत्तीसगढ़ में भी इश तरह के प्रयास किए जाएं। इससे बड़ी संख्या में साहित्यकार अपने लेखकीय श्रम के लिए सम्मान प्राप्त कर संतोष पा सकेंगे।
अभी- अभी नायडू स्मृति लाइफ टाइम सम्मान क्रिकेट के पुराने स्टार सलीम दुर्रानी को दिया जा रहा है। राशि भी पंद्रह लाख की है। साहित्य उस तरह लाभ का धंधा नहीं है जिस तरह खेल या फिल्म है। लेकिन साहित्य की अपनी महत्ता है। समाज में समरसता एवं एकता के लिए साहित्यकार जीवन भर चुपके- चुपके जो काम करता है, महसूस करने वाले ही उसकी महत्ता जान पाते हैं। इसीलिए बिसंभर यादव मरहा जैसे योद्धा कवि का शरशैया पर लेटे रहना तथा निरुपाय एक- एक दिन गिनना हम सबको लज्जित करता है। समाज को मरहा जी जैसे कवियों ने खूब उल्लसित किया है। जीवन की संध्या में उनका उत्साह भी कम न हो यह जिम्मेदारी भी समाज की है।
मरहा जी ने देशप्रेम की कविताओं का खूब सृजन किया। कुछ वर्ष पूर्व तक 'मरहा नाइट' का आयोजन भी होता था जिसमें यह अकेला कवि रात- रात भर कविता सुनाकर श्रोताओं को विभोर कर देता था।
छत्तीसगढ़ में भिन्न- भिन्न क्षेत्रों में समृद्धि के द्वीप हम देखते हैं। यह तेजी से विकसित हो रहा राज्य सबकी आंखों का तारा है। ऐसे में इस राज्य के साहित्यकार भी इसकी समृद्धि को महसूस करें, ऐसा प्रयास जरुरी हो जाता है। अभी तो स्थिति शंकर सक्सेना के इस दोहे सी है ...
'प्यासा का प्यासा रहा द्वीप नदी के बीच
सारी नदियां पी गया, सागर आंखें मींच।'
डॉ. परदेशीराम वर्मा
एलआईजी-18, आमदीनगर, हुडको, भिलाईनगर 490009, मो. 9827993494
साभार : उदंती
3 टिप्पणियां:
वास्तव मे यह दुखद स्थिति है । हम उनके स्वास्थ्य की मंगल कामना करते हैं।
Wakai yah sochne wali bat hai..
Sri yadav ko gumnai se nikalne ke liye yadukul blog ka dhanyabad
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