आज के इस भौतिकवादी युग में साहित्य और संस्कृति के प्रति लोगों का अनुराग खत्म होता जा रहा है। पार्टी एवं क्लब कल्चर की चकाचैंध में युवा पीढ़ी अपने संस्कारों व सामाजिक सरोकारों से दूर छिटक रही है। ऐसे में 30 वर्षीय युवा अधिकारी कृष्ण कुमार यादव यदि धारा से विपरीत साहित्य की दुनिया में तेजी से अपना मुकाम बना रहे हैं, तो न सिर्फ यह युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत है बल्कि प्रशासनिक प्रवृत्तियों और मानवीय संवेदनाओं का अतुलनीय समन्वय भी है। भारतीय डाक सेवा के अधिकारी कृष्ण कुमार यादव का नाम साहित्य की दुनिया में अपरिचित नहीं है। देश की प्रायः सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उनकी साहित्यधर्मिता के सशक्त दर्शन होते हैं। अल्पायु में ही साहित्य-संसार को पाँच पुस्तकें देने वाले श्री यादव जिस कुशलता के साथ प्रशासकीय दायित्वों का निर्वाहन करते हैं, उसी तन्मयता के साथ भावों को भी शब्द देते हैं। उनके बारे में निःसंकोच कहा जा सकता है-‘‘जिधर नजर गई, कविता सृजित हुई।‘‘इलाहाबाद से मो0 इम्तियाज़ गाजी के सम्पादन में प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका ‘ गुफ्तगू ‘ का जनवरी-मार्च २००८ अंक कृष्ण कुमार यादव के व्यक्तित्व और कृतित्व पर परिशिष्ट रूप में केन्द्रित है। मु0 गाजी परिशिष्टों में कवियों की सर्वश्रेष्ठ रचनाओं का ऐसा संकलन प्रस्तुत करते रहे हैं, जो उसके व्यक्तित्व के हर पहलू से परिचित करा सके। अभी कैलाश गौतम पर जारी अंक ने काफी वाहवाही बटोरी थी और अब युवा कवि कृष्ण कुमार यादव पर परिशिष्ट निकाल कर मु0 गाजी ने साहित्य में पुराने और नये कवियों को एक मंच पर खड़ा करने का स्तुत्य प्रयास किया है। बेपनाह शोहरत हासिल कर चुके बेकल उत्साही, मुनव्वर राना, डा0 राहत इन्दौरी, डा0 बुद्धिनाथ मिश्र सहित तमाम शायरों के कलाम (गजल) और कवियों की कविताएं एक साथ प्रकाशित कर मो0 गाजी सामाजिक सद्भाव का मजबूत सेतु रचने का भी महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। यह बेहद खुशी की बात है कि गुफ्तगू में सुलभ साहित्यिक विषयवस्तु मूल्यवत्ता और गुणवत्ता की गंध से सर्वथा सुवासित है। एक तरफ साहित्य को जहाँ माल के रूप में बेचने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, वहां पर मु0 गाजी द्वारा प्रतिबद्धता के धरातल पर ऐसे खूबसूरत अंक निकालना अचरज ही पैदा करता है। एक तरफ जहाँ कविता के पाठक न होंने और साहित्यिक पत्रिकाओं में इसे शेष स्थान को भरने का रोना रोया जाता है, वहाँ गुफ्तगू द्वारा कविता गजल जैसी विधाओं के द्वारा अपना एक अच्छा खासा पाठक वर्ग बनाना स्वयं दर्शाता है कि कविता के नाम पर किसी की मठाधीशी नहीं चलने वाली। कृष्ण कुमार इस दौर के युवा कवियों में ऐसे कवि हैं जो अपनी काव्यभाषा की तरह ही जीवन में भी उतने ही सहज और सौम्य हैं। गुफ्तगू ने अपना यह अंक उन पर केन्द्रित कर एक अच्छा काम किया है।गुफ्तगू के प्रस्तुत अंक में काव्य संवेदना के भिन्न-भिन्न आस्वाद को सहेजती है । कृष्ण कुमार यादव की 35 चुनिंदा कविताएं और उनकी कविताओं पर विश्लेषणात्मक मूल्यांकनपरक निबन्ध शामिल हैं। यश मालवीय, जितेन्द्र जौहर, गोवर्धन यादव, रविनन्दन सिंह इत्यादि ने अपने मूल्यांकनपरक निबन्धों में कृष्ण कुमार यादव की कविताओं की गाँठ को पाठकों के सामने बखूबी खोला है। कृष्ण कुमार यादव के काव्यसंसार को सहेजती यह पत्रिका साहित्य के तमाम रूपों और सच से मुखातिब है। इस कम उम्र में भी कई बार वे जैसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं, वह उनका सशक्त हथियार बन जाती है। मांस का लोथड़ा, मरा हुआ बच्चा, गुर्दा, हे राम, भिखमंगों का ईश्वर, डाकिया, एक माँ और माँ का पत्र कवितायें जहाँ अत्यन्त मर्मस्पर्शी हैं, वहीं ई-पार्क, आटा की चक्की, क्लोन, बेटी का कर्तव्य, विज्ञापनों का गोरखधन्धा, रिश्तों का अर्थशास्त्र तथा टूटते परिवार एक अलग सोच की प्रतिबिम्ब हैं। वस्तुतः गहरे जीवन-राग से उपजी ये कविताएं संवेदना के तरल प्रवाह के साथ व्यंग्य की ऐसी तीखी धार को लेकर बहती हैं जो पत्थरों से टकराने की क्षमता तो रखती ही हैं साथ-ही-साथ प्रतिबन्धों के किनारों को तोड़कर भी अपनी बात कहने से नहीं चूकतीं। कृष्ण कुमार के कृतित्व पर चार विद्वान साहित्यकारों के मूल्यांकनपरक निबन्ध इस युवा प्रतिभा का गहराई से परिचय कराने में सक्षम है एवं इस अंक को विशिष्टता प्रदान करते हैै।कहते हंै कि कविता यदि चाँद की खूबसूरती को रंग देती है तो उसकी बदरंगियत की ओर भी उंगली उठाती है। चर्चित कवि यश मालवीय की मानें तो कृष्ण कुमार खुली आंँखों से चैतरफा देखते हैं और फिर उसे अपनी सृजनात्मक छुअन से कविता का आलोक देते हैं। उनकी कविताओं में संवेदनात्मक ज्ञान और ज्ञानात्मक संवेदन की एक लय बनती है, जिसे बकौल डा0 जगदीश गुप्त ‘अर्थ की लय‘ से जोड़कर देखा जा सकता है। बकौल गोवर्धन यादव भूमण्डलीकरण के दौर और पूँजीवाद की चकाचैंध के बीच सिकुड़ता मनुष्य कृष्ण कुमार की कविताओं में अद्भुत रूप से प्रस्तुति पाता है और इस अर्थ में ये कवितायें समकालीन समाज का प्रतिबिम्ब हैं। तभी तो गोपाल दास ‘नीरज‘ ने इस युवा कवि के लिए लिखा कि-‘‘कृष्ण कुमार यद्यपि छन्दमुक्त कविता से जुड़े हुए हैं लेकिन उनके समकालीनों में जो अत्यधिक बौद्धिकता एवं दुरूहता दिखायी पड़ती है, उससे वे सर्वथा अलग हैं। वो व्यक्तिनिष्ठ नहीं समाजनिष्ठ कवि हैं।‘‘जितेन्द्र ‘जौहर‘ कृष्ण कुमार की रचनाओं को सहज जीवन का पर्याय मानते हुए उनकी कविताओं को जैन दर्शन के स्याद्वाद की तरह देखते हैं। इनमें जहाँ शिल्प व छन्द की गेयता है, वहीं भाव व कथ्य पर भी उतना ही जोर है। आजादी के बाद बदलते समाज, राजनीति, अर्थतन्त्र, भ्रष्टाचार, अवसरवादिता, लोकतांत्रिक एवं धार्मिक पाखण्डों की नब्ज पकड़ने में नये रचनाकारों के बीच रवि नन्दन सिंह कृष्ण कुमार को बड़ी सम्भावनाओं का कवि मानते हैं। कविता की नियति सिर्फ इतनी नहीं है कि वह हर्ष-विषाद को व्यक्त करे बल्कि वह व्यवस्था परिवर्तन भी करती है। इस रूप में कृष्ण कुमार की कवितायें समसामयिक दुरवस्थाओं का चित्रण ही नहीं करतीं बल्कि उन्हंे बदलने की चुनौती भी देती हैं।कुल मिलाकर कृष्ण कुमार यादव पर केन्द्रित गुफ्तगू का यह विशिष्ट अंक खूबसूरत आवरण पृष्ठ व मुद्रण के साथ अपने अस्सी पृष्ठीय लघुकलेवर में प्रभूत मूल्यवान साहित्यिक सामग्री समाहित कर पाने में सक्षम हुआ है। यद्यपि कृष्ण कुमार को महनीय शासकीय दायित्वों की दुर्गम घाटियों से अहर्निश गुजरना पड़ता है, फिर भी सृजनशीलता की निरन्तरता कहीं भी बाधित नहीं हो पायी है। ऐसे में मो0 इम्तियाज गाजी द्वारा ऐसे कर्मठ और बलवती साहित्यिक जिजीविषा के द्योतक कवि पर परिशिष्ट का प्रकाशन सराहनीय है और नई पीढ़ी के प्रति पत्रिका के सरोकारों को भी समृद्ध करता है। अत्यन्त आकर्षक साज-सज्जा के साथ इतनी विशद सामग्री संयोजन के लिए सम्पादक मो0 गाजी निश्चित रूप से बधाई के पात्र हैं। युवा प्रशासक और साहित्यकार कृष्ण कुमार यादव विशेष बधाई के पात्र हैं कि उन पर इतनी अल्पायु में ही साहित्यिक पत्रिकाएं विशेषांक जारी कर रही हैं। यह सक्रियता बनी रहे तो बेहतर है।
संपर्क: मो0 इम्तियाज गाजी, 123 ए/1, हरवारा, धूमनगंज, इलाहाबाद
समीक्षक- जवाहरलाल ‘जलज‘, शंकर नगर- बांदा (उ0प्र0)
संपर्क: मो0 इम्तियाज गाजी, 123 ए/1, हरवारा, धूमनगंज, इलाहाबाद
समीक्षक- जवाहरलाल ‘जलज‘, शंकर नगर- बांदा (उ0प्र0)
11 टिप्पणियां:
A lot of Congratulations to KK Yadav for this special issue.
इस उम्र में ही कृष्ण कुमार जी के ऊपर विशेषांक का प्रकाशन हो रहा है, यह हम सबके लिए गौरव की बात है. हमारी यही प्रार्थना है कि आप इसी तरह अपनी निपुण प्रशासनिक क्षमताओं के साथ साहित्य के गगन में भी आभा मंडल फैलाये रहें और आपकी कीर्ति दूर-दूर तक फैले.
देहरादून से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका "सरस्वती सुमन" पत्रिका के अक्टूबर-दिसम्बर २००८ अंक में कृष्ण कुमार जी के कवित्व भाव पर डॉक्टर एस पी शुक्ल का लिखा लेख " भाव, विचार और संवेदना के कवि : कृष्ण कुमार यादव" पढ़ा था ...बड़े सुन्दर शब्दों में उनकी कुछेक कविताओं का जिक्र करते हुए श्री शुक्ल जी ने उनकी भाव-भूमि को टटोला है. इस उम्र में आपके ऊपर आलेख और विशेषांक का प्रकाशन आपकी अद्भुत रचनाधर्मिता के परिचायक हैं ..बधाई स्वीकारें !!
के.के. यादव लिख ही नहीं रहे हैं, बल्कि खूब लिख रहे हैं. एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी होने के साथ-साथ अपनी व्यस्तताओं के बीच साहित्य के लिए समय निकलना और विभिन्न विधाओं में लिखना उनकी विलक्षण प्रतिभा का ही परिचायक है. ऐसे में गुफ्तगू पत्रिका द्वारा उन पर विशेषांक का प्रकाशन एक अभिनव कदम है. इस हेतु के. के. जी को शत्-शत् बधाइयाँ.बस यूँ ही लिखते रहें, जमाना आपके पीछे होगा के.के. जी.................!
Chha jao mere sher.
Mubarak ho KK ji.
kkजी को ढेरों बधाई.
भारतीय डाक सेवा के अधिकारी कृष्ण कुमार यादव का नाम साहित्य की दुनिया में अपरिचित नहीं है। देश की प्रायः सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उनकी साहित्यधर्मिता के सशक्त दर्शन होते हैं। अल्पायु में ही साहित्य-संसार को पाँच पुस्तकें देने वाले श्री यादव जिस कुशलता के साथ प्रशासकीय दायित्वों का निर्वाहन करते हैं, उसी तन्मयता के साथ भावों को भी शब्द देते हैं।
===================================डाक सेवा के इतने वरिष्ठ अधिकारी के बारे में सुनकर बांछे खिल गयीं.
Belated wishes of merry x-mas.
यद्यपि कृष्ण कुमार को महनीय शासकीय दायित्वों की दुर्गम घाटियों से अहर्निश गुजरना पड़ता है, फिर भी सृजनशीलता की निरन्तरता कहीं भी बाधित नहीं हो पायी है...Bas yun hi age badhte rahen.
कृष्ण कुमार जी! आपकी रचनाधर्मिता पर देहरादून से प्रकाशित ''नवोदित स्वर'' के 19 january अंक में प्रकाशित लेख "चरित्र की ध्वनि शब्द से ऊँची होती है " पढ़कर अभिभूत हूँ....अल्पायु में ही पत्र-पत्रिकाएं आप पर लेख प्रकाशित कर रहें हैं, गौरव का विषय है !! आपकी हर रचना सोचने को विवश कर देती है.
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