बहुत कम ही ऐसी पत्रिकाएं होती हैं जो अपने प्रवेशांक से ही छाप छोड़ जाती हैं. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से गिरसंत कुमार यादव द्वारा प्रकाशित और अजय शेखर द्वारा संपादित त्रैमासिक पत्रिका "प्रगतिशील उद्भव" का पहला अंक ही सामाजिक न्याय पर केन्द्रित है. प्रख्यात आलोचक प्रो. चौथीराम यादव ने अपने साक्षात्कार में बाजारीकरण के दौर में सामाजिक न्याय की प्रासंगिकता को सिद्ध किया है तो योगेन्द्र यादव ने सामाजिक न्याय की राजनीति पर एक वैचारिक बहस कड़ी करने की कोशिश की है. भूमंडलीकरण के दंद में पिसती ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर राम शिव मूर्ति यादव का आलेख एक गंभीर पड़ताल है तो युवा लेखक कृष्ण कुमार यादव का धर्मनिरपेक्षता पर लेख भारतीय सन्दर्भ में इसकी सटीक व्याख्या करता है. लेख, विमर्श, कहानी, पुस्तक चर्चा, बहस इत्यादि तमाम स्तंभों के साथ जन साहित्य, संस्कृति एवं विचारों की यह परिवर्तनकामी पत्रिका भीड़ में अलग स्थान बनाने में सफल दिखती है.
संपर्क : अजय शेखर/गिरसंत यादव, 1/553, विनय खंड, गोमती नगर, लखनऊ -226010
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16 घंटे पहले
7 टिप्पणियां:
Kabhi-kabhi lagta hai yadav samaj ko Media aur Magazines ke kshhetra me teji se ana chahiye! Yah public par kafi impact dalte hain...
नई पत्रिका के बारे में जानकारी हेतु धन्यवाद.
जन साहित्य, संस्कृति एवं विचारों की यह परिवर्तनकामी पत्रिका भीड़ में अलग स्थान बनाने में सफल दिखती है.....aisi magazines hi safal bhi hoti hain.
Shekhar/Girsant ji, magazine ko delhi men bhi book stalls par uplabdh karayen.
Apke blog se Patrika ke bare men jankar achha laga.
बाजारीकरण के दौर में सामाजिक न्याय की प्रासंगिकता को सिद्ध किया है.
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पूरी दुनिया में बाजार भहरा रहा है.
ADBHUT VISHLESHAN.
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