‘तीस बरस घाटी‘ गोवर्धन यादव का ‘महुआ के वृक्ष‘ पश्चात दूसरा कहानी-संग्रह है। इस संग्रह में कुल 12 कहानियाँ संकलित हैं। श्री गोवर्धन यादव की कहानियों में आसपास का समाज और लोग हैं जो अतीत और भविष्य के बीच व्याप्त विरोधाभासों के बीच जी रहे हैं। इन कहानियों में पर्यावरण पर छाये संकट की चर्चा भी है, और अपनी जमीन और सम्पत्ति के प्रति परंपरागत मोह भी है। नई प्रौद्योगिकी और नए विचारों के साथ पुराने विचारों की टकहराहट की ध्वनि भी है। स्त्री स्वतंत्रता की बात भी प्रकारान्तर से मौजूद है। सबसे बड़ी विशेषता आदिवासी जीवन की गहरी समझ ने कहानियों को जीवन्त बना दिया है। प्रकृति से लेखक का विशेष लगाव है। शायद इसीलिए कहानियों में सूरज का उगना, चाँद का दिखना, देनवा नदी का प्रवाह, चिड़ियों का चहचहाना, बादलों का उमड़ना- घुमड़ना, लौट-लौट कर कहानियों में जगह पाते हैं। कभी-कभी ये प्रवाह में अवरोधक भी बने हैं। गोवर्धन यादव ने यदि लैश बैक के जरिये कथा वस्तु को विस्तार देने की शैली विकसित कर ली है, तो उन्हें पुनरावृत्ति के दोष से बचने के लिए इस विशिष्ट शैली के आग्रह से बचना होगा।
एक रचनाकार की सफलता इसी बात में निहित है कि वह पाठक को ऐसा परिवेश उपलब्ध कराए जहाँ वह अपनी उपस्थिति महसूस कर सके, और तभी ऐसा प्रति यथार्थ रच दे जहाँ तक पाठक घटित होती घटनाओं के बावजूद नहीं पहुँच पाता। इस कसौटी पर इस संग्रह की कहानियों को पढ़ा जाएगा तो गोवर्धन यादव की लेखनी में धारा से हटकर बहुत कुछ प्राप्त होगा। श्री यादव ने उपदेशक बनने की कोशिश नहीं की। उन्होंने कहानियों की वस्तु के साथ न्याय किया है। कहानी के ढाँचे की रक्षा करते हुए यथार्थ और प्रति यथार्थ को सहजता से सँवारने तथा सहज भाषा का प्रवाह बनाए रखने के लिए गोवर्धन जी बधाई के पात्र हैं।
पुस्तक-तीस बरस घाटी (कहानी-संग्रह), लेखक- गोवर्धन यादव, पृष्ठ- 148, मूल्य- 150/-, प्रकाशन वर्ष-2008, प्रकाशक-वैभव प्रकाशन, रायपुर (छत्तीसगढ़)
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12 घंटे पहले
8 टिप्पणियां:
...नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
श्री गोवर्धन यादव की कहानियों में आसपास का समाज और लोग हैं जो अतीत और भविष्य के बीच व्याप्त विरोधाभासों के बीच जी रहे हैं। ...गोवर्धन जी को इस अनुपम कथा-संग्रह हेतु बधाई !!
अनुपम प्रस्तुति. यदुकुल ब्लॉग पर नई पुस्तकों के बारे में पढ़कर अच्छा लगता है.
Is pustak ke bare men jankari ke liye dhanyvad.
नई प्रौद्योगिकी और नए विचारों के साथ पुराने विचारों की टकहराहट की ध्वनि भी है।...yAHI TO AJ KE SAMAJ KA SACH HAI.
इस खूबसूरत कहानी-संग्रह के लिए गोवर्धन जी को बहुत-बहुत बधाई.
एक रचनाकार की सफलता इसी बात में निहित है कि वह पाठक को ऐसा परिवेश उपलब्ध कराए जहाँ वह अपनी उपस्थिति महसूस कर सके, और तभी ऐसा प्रति यथार्थ रच दे जहाँ तक पाठक घटित होती घटनाओं के बावजूद नहीं पहुँच पाता....Bahut khub.
कहानी के ढाँचे की रक्षा करते हुए यथार्थ और प्रति यथार्थ को सहजता से सँवारने तथा सहज भाषा का प्रवाह बनाए रखने के लिए गोवर्धन जी बधाई के पात्र हैं.....!!
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