सोमवार, 19 जनवरी 2009

वैश्विक स्तर पर पहुँची भगवान कृष्ण की रासलीला

भगवान कृष्ण का रासलीला से अनन्य संबंध रहा है। भगवान कृष्ण और गोपियों की रासलीला पर सारा जग न्यौछावर होता है। पर पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण ने रासलीला की पवित्रता को न सिर्फ ठेस पहुँचाई बल्कि इसे लोगों से दूर भी कर दिया। सालों तक बंद कमरे में होती आ रही रासलीला की प्रस्तुति को आम लोगों तक पहुँचाने का बीड़ा उठाया है राजस्थान में भरतपुर के गाँव जनुथर में जन्मे हरिदेव गोविन्द ने। जैसा नाम, वैसा काम। रासलीला को लोगों तक पहुँचाने के लिए उन्होंने देश के साथ विदेशों में भी कई प्रस्तुतियाँ कीं। यह प्रस्तुतियाँ इतनी प्रभावी थीं कि अहिन्दीभाषी प्रदेशों में भी लाखों लोग इसका आनन्द उठाने आते थे। यहाँ तक कि दक्षिण भारत में प्रस्तुति के लिए बकायदा द्विभाषिया तक रखना पड़ा। 7 वर्ष की उम्र से ‘रासलीला‘ से जुड़े हरिदेव के पिताजी उन्हें इस विधा से जुड़े एक रिश्तेदार के पास वृन्दावन छोड़ आए थे। फिर क्या था हरि-हरि कहते हरिदेव कब गोविन्द के चरणों में आकर रासलीला के पुजारी बन गये, पता ही नहीं चला। 16 वर्ष की उम्र तक इस लीला को उन्होंने नजदीक से देखा और सीखा। 20 साल की उम्र में बृज रासलीला संस्थान, वृन्दावन नाम अपनी मण्डली बना ली। ‘बकौल 81 वर्षीय हरिदेव गोविन्द-‘‘जब मैंने इस कला को सीखा तो यह एक

कमरे में हुआ करती थी। वजह यह थी कि जो इसका मर्म समझे बस वही इसका आनन्द उठाए। पर मैं चाहता था कि दुनिया के हर कोने तक पहुँचे।‘‘........... खैर हरिदेव जी की मेहनत रंग लाई और भगवान कृष्ण की कृपा से आज वे भारत में रासलीला के सर्वोत्कृष्ट प्रस्तुतिकारों में जाने जाते हैं। रासलीला विधा को नूतन आयाम देने के लिए वर्ष 2006 में राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के हाथो उन्हें पदमश्री से भी नवाजा गया। कईयों के लिए यह आश्चर्य का विषय था कि यह प्रतिष्ठित सम्मान किसी को सामाजिक कार्य या साहित्य लेखन के लिए नहीं बल्कि ‘रासलीला‘ जैसी लोक कला को वैश्विक स्तर पर ले जाने के लिए मिला।

10 टिप्‍पणियां:

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण ने रासलीला की पवित्रता को न सिर्फ ठेस पहुँचाई बल्कि इसे लोगों से दूर भी कर दिया। सालों तक बंद कमरे में होती आ रही रासलीला की प्रस्तुति को आम लोगों तक पहुँचाने का बीड़ा उठाया है राजस्थान में भरतपुर के गाँव जनुथर में जन्मे हरिदेव गोविन्द ने....इस उपलब्धि पर ढेरों बधाई और इस अनुपम पोस्ट के लिए साधुवाद !!

KK Yadav ने कहा…

....चलिए किसी को तो भगवन कृष्ण की रासलीला की सुध आई.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

लाजवाब प्रस्तुति...रास लीला का तो नाम सुनकर ही भगवन कृष्ण की याद आने लगती है. ऐसे ही 'यदुकुल' पर नई-नई जानकारियां देते रहें.

बेनामी ने कहा…

...रास लीला का बहुत खुबसूरत चित्र लगाया है आपने.

www.dakbabu.blogspot.com ने कहा…

हरे कृष्णा..हरे कृष्णा

Bhanwar Singh ने कहा…

Bahut achhi jankari.

Unknown ने कहा…

रासलीला का मर्म किसी ने तो समझा.हरिदेव गोविन्द ने इसे जो रूप दिया है उसके लिए साधुवाद स्वीकारें !!

www.dakbabu.blogspot.com ने कहा…

60 वें गणतंत्र दिवस की ढेरों शुभकामनायें !!

Akanksha Yadav ने कहा…

सुन्दर ब्लॉग...सुन्दर रचना...बधाई !!
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60 वें गणतंत्र दिवस के पावन-पर्व पर आपको ढेरों शुभकामनायें !! ''शब्द-शिखर'' पर ''लोक चेतना में स्वाधीनता की लय" के माध्यम से इसे महसूस करें और अपनी राय दें !!!

बेनामी ने कहा…

बहुत ही सुन्दर सर जी .. एक नई पोस्ट के लिए हम प्रतीक्षारत