शनिवार, 27 मार्च 2010

यादव राजनेताओं का बहिष्कार ??

जाति या समुदाय किसी भी व्यक्ति की बड़ी ताकत होती है। जाति के पक्ष-विपक्ष में कहने वाले बहुत लोग मिलेंगे, पर इसकी सत्ता को कोई नक्कार नहीं सकता। यह एक आदर्श नहीं व्यवहारिकता है। यही कारन है कि जातीय-संगठन भी तेजी से उभरते हैं. सबसे ज्यादा संगठन आपको ब्राह्मणों और कायस्थों के दिखेंगें. ये संगठन जहाँ सामाजिक आधार प्रदान करते हैं, वहीँ कई बार राजनीति में भी अद्भुत गुल खिलाते हैं.

कभी लालू प्रसाद यादव का दायाँ हाथ माने जाने वाले रंजन प्रसाद यादव का जब लालू यादव से मनमुटाव हुआ तो उन्होंने सारा ध्यान "यादव जागरण मंच" को स्थापित करने में लगा दिया। इस मंच ने रंजन यादव को सामाजिक और राजनैतिक ताकत दी, जिसकी बदौलत अंतत: पिछले लोकसभा चुनाव में रंजन यादव जद (यू) के प्रत्याशी रूप में लालू यादव को पाटलिपुत्र से पराजित कर पहली बार लोकसभा पहुँचे. पर यहीं से रंजन यादव के लिए "यादव जागरण मंच" गौड़ हो गया। इस मंच के माध्यम से जब वे लोकसभा पहुँच गए तो इसकी उपेक्षा करने लगे. अंतत: हारकर मंच के लोगों ने रंजन प्रसाद यादव को मंच के संरक्षक पद से मुक्त करने, निलंबित करने और सामाजिक बहिष्कार करने का फैसला किया. मंच के बिहार प्रदेश संयोजक और पूर्व विधायक धर्मेन्द्र प्रसाद जैसे तमाम लोग अब रंजन यादव से खफा हैं.

..दुर्भाग्यवश यादव समाज में यही हो रहा है. यदुवंशी नेता सत्ता में आते ही यादवों कि उपेक्षा करने लगते हैं. मुलायम सिंह ने अमर सिंह को तरजीह दी तो शरद यादव भाजपा के साथ खड़े हो गए. लालू यादव जमीनी हकीकत को भूलकर हवा-हवाई नेता बनने लगे. कभी परिवारवाद तो कभी यादवों की उपेक्षा...वाकई इन सबसे उबरने की जरुरत है. यादव महासभा स्वयं राजनीति का शिकार हो चुकी है. यदुवंशी बुद्धिजीवी और अधिकारियों का इससे कोई नाता नहीं है. सवाल पुन: वही है आखिरकार यदुवंश की उपेक्षा कर ये नेता कहाँ तक जा पाएंगे. जो यादव उन्हें ताकत देते हैं, उन्हें ही सत्ता के मद में चूर बड़े नेता पटकनी देने का प्रयास करते हैं. यदि यादव नेताओं को दीर्घकालीन राजनीति करनी है तो यादवों की गरिमा, अस्मिता को लेकर चलना होगा. यादव किसी की गठरी नहीं हैं कि जहाँ चाहा उपयोग कर लिया. आज कांग्रेस से लेकर बसपा तक अपने परंपरागत वोटबैंक को वापस लेन कि कोशिश कर रहे हैं, ऐसे में यादव नेताओं को भी इस पर मंथन करने की जरुरत है...!!

बुधवार, 24 मार्च 2010

यदुवंश में अवतार लिया माँ विंध्यवासिनी ने

श्री श्री विन्ध्यनिवासिनी आद्या महाशक्ति हैं।विन्ध्याचल सदा से उनका निवास-स्थान रहा है। जगदम्बा की नित्य उपस्थिति ने विंध्यगिरिको जाग्रत शक्तिपीठ बना दिया है। प्रयाग एवं काशी के मध्य विंध्याचल नामक तीर्थ है जहां माँ विंध्यवासिनी निवास करती हैं। श्री गंगा जी के तट पर स्थित यह महातीर्थ शास्त्रों के द्वारा सभी शक्तिपीठों में प्रधान घोषित किया गया है। यह महातीर्थ भारत के उन 51 शक्तिपीठों में प्रथम और अंतिम शक्तिपीठ है जो गंगातट पर स्थित है।
श्रीमद्भागवत महापुराणके श्रीकृष्ण-जन्माख्यान में यह वर्णित है कि देवकी के आठवें गर्भ से आविर्भूत श्रीकृष्ण को वसुदेवजीने कंस के भय से रातोंरात यमुनाजीके पार गोकुल में नन्दजीके घर पहुँचा दिया तथा वहाँ यशोदा के गर्भ से पुत्री के रूप में जन्मीं भगवान की शक्ति योगमाया को चुपचाप वे मथुरा ले आए। आठवीं संतान के जन्म का समाचार सुन कर कंस कारागार में पहुँचा। उसने उस नवजात कन्या को पत्थर पर जैसे ही पटक कर मारना चाहा, वैसे ही वह कन्या कंस के हाथों से छूटकर आकाश में पहुँच गई और उसने अपना दिव्य स्वरूप प्रदर्शित किया। कंस के वध की भविष्यवाणी करके भगवती विन्ध्याचल वापस लौट गई।
मार्कण्डेयपुराणके अन्तर्गत वर्णित श्री दुर्गासप्तशती (देवी-माहात्म्य) के ग्यारहवें अध्याय में देवताओं के अनुरोध पर माँ भगवती ने कहा है-
नन्दागोपग्रिहेजातायशोदागर्भसंभवा,
ततस्तौ नाशयिश्यामि विंध्याचलनिवासिनी।
वैवस्वतमन्वन्तर के अट्ठाइसवेंयुग में शुम्भऔर निशुम्भनाम के दो महादैत्यउत्पन्न होंगे। तब मैं नन्द गोप के घर में उनकी पत्नी यशोदा के गर्भ से अवतीर्ण हो विन्ध्याचल में जाकर रहूँगी और उक्त दोनों असुरों का नाश करूँगी। लक्ष्मीतन्त्र नामक ग्रन्थ में भी देवी का यह उपर्युक्त वचन शब्दश:मिलता है। ब्रज में नन्द गोप के यहाँ उत्पन्न महालक्ष्मीकी अंश-भूता कन्या को नन्दा नाम दिया गया। मूर्तिरहस्य में ऋषि कहते हैं- नन्दा नाम की नन्द के यहाँ उत्पन्न होने वाली देवी की यदि भक्तिपूर्वकस्तुति और पूजा की जाए तो वे तीनों लोकों को उपासक के आधीन कर देती हैं।
विन्ध्यस्थाम विन्ध्यनिलयाम विंध्यपर्वतवासिनीम,
योगिनीम योगजननीम चंदिकाम प्रणमामि अहम् ।
(नवरात्रि का आज नौवाँ दिन है. माँ के दर्शन के लिए सभी लोग लालायित हैं, पर यह गौरव यदुवंश को ही प्राप्त है, जिसमें माँ ने अवतार लिया)

मंगलवार, 23 मार्च 2010

बाबा रामदेव ने भारत स्वाभिमान दल की घोषणा की

योग गुरू बाबा रामदेव के नेतृत्व वाले पंतजलि योगपीठ ने विदेशी बैंकों में जमा कालाधन वापस लाने, राजनैतिक शुचिता के माध्यम से भारत को दुनिया की महाशक्ति बनाने और देश से अशिक्षा, भूख, बेरोजगारी, नक्सलवाद और भ्रष्टाचार आदि समाप्त करने के इरादे से अगले लोकसभा चुनावों में सभी 543 सीटों पर उम्मीदवार खड़े करने की घोषणा की है। बाबा रामदेव ने कहा कि भारत स्वाभिमान के बैनर तले वे सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करेंगे। हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि वे किसी राजनीतिक पद या लाभ से खुद को दूर रखेंगे।उन्होंने कहा कि इसके लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू कर दिया गया है। संगठन ने अगले दो वर्षों में देश के प्रत्येक जिले में सात से 10 लाख सदस्य बनाने का लक्ष्य रखा है।

बाबा रामदेव ने कहा कि भारत स्वाभिमान का उद्देश्य स्विस बैंक सहित विभिन्न विदेशी बैंकों में जमा 258 लाख करोड रुपये वापस लाना और उसे देश के विकास में लगाकर भारत से अशिक्षा, भूख, गरीबी, बेरोजगारी, नक्सलवाद और आतंकवाद को समाप्त करना है। उन्होंने काला धन वापसी के लिए केंद्र सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों को नाकाफी बताया। उन्होंने कहा कि काले धन को लेकर भारत ने 20 देशों से समझौता तो किया, लेकिन स्विटजरलैंड इसमें शामिल नहीं है। बाबा रामदेव ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से अपील की कि वह स्विटजरलैंड के साथ दोतरफा कर संधि करें, जिससे स्विस बैंक काला धन से संबंधित ब्यौरा भारत को उपलब्ध करा सके।बाबा रामदेव ने देश से भ्रष्टाचार, बलात्कार, दहेज हत्या, गोहत्या, आतंकवाद एवं मिलावट का धंधा खत्म करने के लिए मौजूदा कानून में संशोधन कर ऐसे अपराधों के लिए मृत्युदंड की व्यवस्था करने की वकालत भी की।

रविवार, 21 मार्च 2010

राजकुमार यादव अभिनय के क्षेत्र में

आजकल हिंदी-सिनेमा में भी यदुवंशी दिखने लगे हैं। राजपाल यादव व रघुवीर यादव पहले से ही अभिनय के क्षेत्र में हैं तो हाल ही में लीना यादव की "तीन पत्ती" काफी चर्चा में रही. अब इस कड़ी में एक नया नाम जुड़ गया है- राजकुमार यादव, जो 'लव, सैक्स और धोखा' फिल्म के माध्यम से आपने जौहर दिखने को तैयार हैं. रंगमंच की दुनिया से फिल्मों में प्रवेश करने वाले गुड़गांव के राजकुमार यादव की पहली फीचर फिल्म 'लव, सैक्स और धोखा' शुक्रवार को देश भर में रिलीज हो गई . राजकुमार यादव की दूसरी फिल्म भी तैयार है और जो जुलाई में रिलीज होगी।दिवाकर बनर्जी द्वारा निर्देशित लव, सेक्स और धोखा मुख्य रूप आज के सामाजिक परिवेश पर आधारित है, जिसमें लोग अपनी से ज्यादा दूसरों की जिंदगी में ताकझांक करने में ज्यादा दिलचस्पी लेते हैं।

गुड़गांव के सिद्धेश्वर व ब्लू बेल्स स्कूल में पढ़े राजकुमार यादव काफी समय तक थियेटर में हस्ती माने जाने वाले गुड़गांव के महेश वरिष्ठ व अरुण मारवाह के साथ रंगमंच से जुडे़ रहे हैं। दिल्ली के आत्माराम कालेज से ग्रेजुएट राजकुमार ने तीन साल दिल्ली में थियेटर करने के बाद पूना के फिल्म इंस्टीट्यूट से अभिनय में दो साल का प्रशिक्षण लिया है। आमिर खान व इरफान खान से प्रभावित राजकुमार यादव इस फिल्म में लीड रोल की भूमिका निभा रहे हैं. इस फिल्म में उन्होंने एक ऐसे बेरोजगार युवक की भूमिका निभाई है जो जैसे तैसे अपनी जिदंगी गुजार रहा है और कर्जदार भी हो गया। कर्ज चुकाने के लिए भी उसे कई तरह के पापड़ बेलने पड़ते है। इस फिल्म में उनके साथ नेहा चौहान मुख्य भूमिका में है।
इस यदुवंशी के साथ हमारी शुभकामनायें साथ हैं !!

रविवार, 14 मार्च 2010

कृष्ण कुमार यादव को अक्षर शिल्पी सम्मान-2010

म0प्र0 के प्रतिष्ठित राजेश्वरी प्रकाशन, गुना ने युवा साहित्यकार एवं भारतीय डाक सेवा के अधिकारी श्री कृष्ण कुमार यादव को उनके विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और प्रशासन के साथ-साथ सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु ’’अक्षर शिल्पी सम्मान-2010’’ से विभूषित किया है। अंडमान व निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएं पद पर पदस्थ श्री यादव की रचनायें देश की विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं और इसके साथ ही आपकी अब तक कुल 5 पुस्तकें- अभिलाषा (काव्य संग्रह), अभिव्यक्तियों के बहाने (निबन्ध संग्रह), अनुभूतियां और विमर्श (निबन्ध संग्रह) और इण्डिया पोस्टः 150 ग्लोरियस ईयर्स, क्रान्ति यज्ञः 1857 से 1947 की गाथा प्रकाशित हो चुकी हैं। शोधार्थियों हेतु हाल ही में आपके जीवन पर एक पुस्तक ‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर : कृष्ण कुमार यादव‘‘ भी प्रकाशित हुई है।

हाल ही में श्री कृष्ण कुमार यादव को भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘’महात्मा ज्योतिबा फुले फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2009‘‘, भारतीय बाल कल्याण संस्थान द्वारा ‘‘प्यारे मोहन स्मृति सम्मान‘‘, ग्वालियर साहित्य एवं कला परिषद द्वारा काव्य शिरोमणि-2009 एवं महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला‘ सम्मान, साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी, प्रतापगढ द्वारा विवेकानंद सम्मान, महिमा प्रकाशन, दुर्ग-छत्तीसगढ द्वारा महिमा साहित्य भूषण सम्मान व आल इण्डिया नवोदय परिवार द्वारा भी अखिल भारतीय स्तर पर साहित्यिक योगदान हेतु सम्मानित किया गया है।

बुधवार, 10 मार्च 2010

परमवीर चक्र विजेता योगेन्द्र सिंह यादव : टाइगर हिल का टाइगर

कारगिल युद्ध के मोर्चे पर दुश्मन के छक्के छुड़ाते हुए अपने प्राणों की बलि देने वाले जवानों की सूची बड़ी लम्बी है, जिन्होंने राष्ट्र की उत्कृष्ट शौर्य परम्परा को जीवन्त किया. कारगिल युद्ध के बाद भारतीय सेना के चार शूरवीरों को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। उन्हीं में एक ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव भी हैं. सबसे कम मात्र 19 वर्ष कि आयु में ‘परमवीर चक्र’ प्राप्त करने वाले इस वीर योद्धा योगेन्द्र सिंह यादव का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जनपद के औरंगाबाद अहीर गांव में 10 मई, 1980 को हुआ था। 27 दिसंबर , 1996 को सेना की 18 ग्रेनेडियर बटालियन में भर्ती हुए योगेन्द्र सिंह यादव की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी सेना की ही रही है, जिसके चलते वो इस ओर तत्पर हुए.

कारगिल-युद्ध से भला कौन नहीं परिचित होगा, जिसने सम्पूर्ण देश के जनमानस को झकझो दिया था। भारत और पाकिस्तान की नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान समर्थित घुसपैठियों 1999 के प्रारम्भ में कारगिल क्षेत्र की 16 से 18 हजार फुट ऊंची पहाड़ियों पर कब्जा जमा लिया था। मई 1999 के पहले सप्ताह में इन घुसपैठियों ने श्रीनगर को लेह से जोड़ने वाले महत्वपूर्ण राजमार्ग पर गोलीबारी आरंभ कर दी। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए भारत ने इन घुसपैठियों के विरुद्ध 'आपरेशन विजय' के तहत कार्रवाई आरंभ की। इसके बाद संघर्षों का सिलसिला आरंभ हो गया। हड्‌डी गला देने वाली ठंड में भी भारतीय सेना के रणबांकुरों ने दुश्मनों का डट कर मुकाबला किया । 2 जुलाई को कमांडिंग आफिसर कर्नल कुशल ठाकुर के नेतृत्व में 18 ग्रेनेडियर को टाइगर हिल पर कब्जा करने का आदेश मिला. इसके लिए पूरी बटालियन को तीन कंपनियों - ‘अल्फा’ , ‘डेल्टा’ व ‘घातक’ कम्पनी में बांटा गया।

‘घातक’ कम्पनी में ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव सहित 7 कमांडो शामिल थे। 4 जुलाई की रात में पूर्व निर्धारित योजनानुसार कुल 25 सैनिकों का एक दल टाइगर हिल की ओर बढ़ा। चढ़ाई सीधी थी और कार्य काफी मुश्किल। टाइगर हिल में घुसपैठियों की तीन चौकियां बनीं हुई थीं। एक मुठभेड़ के बाद पहली चौकी पर कब्जा कर लिया गया। इसके बाद केवल 7 कमांडो वाला दल आगे बढ़ा। यह दल अभी कुछ ही दूर आगे बढ़ा था की दुश्मन की ओर से अंधाधुंध गोलीबारी आरंभ हो गयी। इस गोलीबारी में दो सैनिक शहीद हो गए. इन दोनों शहीदों को वापस छोड़कर शेष 05 जाबांज सैनिक आगे बढ़े। किन्तु एक भीषण मुठभेड़ में इन पांचों में चार शहीद हो गए और बचे केवल ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव। हालाँकि वह बुरी तरह घायल हो गए थे, उनकी बाएं हाथ की हड्‌डी टूट गई थी और हाथ ने काम करना बन्द कर दिया था। फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। योगेन्द्र सिंह ने हाथ को बेल्ट से बांधकर कोहनी के बल चलना आरंभ किया. इसी हालत में उन्होंने अपनी एक.के.-47 राइफल से 15-20 घुसपैठियों को मार गिराया. इस तरह दूसरी चौकी पर भी भारत का कब्जा हो गया। अब उनका लक्ष्य 17,500 फुट की ऊंचाई पर स्थित चौकी पर कब्जा करना था। अत: वह धुआंधार गोलीबारी करते हुए आगे बढ़े, जिससे दुश्मन को लगने लगा कि काफी संख्या में भारतीय सेना यहां पहुंच गई है। कुछ दुश्मन भाग खड़े हुए, तो कुछ चौकी में ही छिप गए, किन्तु ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव ने अपने अद्‌भुत साहस का परिचय देते हुए शेष बचे घुसपैठियों को भी मार गिराया और तीसरी चौकी पर कब्जा जमा लिया. इस संघर्ष में वह और अधिक घायल हो गए पर अपनी जांबाजी से अंतत: योगेन्द्र सिंह यादव टाइगर हिल पर तिरंगा फहराने में सफल रहे.

इसी बीच उन्होंने पाकिस्तानी कमाण्डर की आवाज सुनी, जो अपने सैनिकों को 500 फुट नीचे भारतीय चौकी पर हमला करने के लिए आदेश दे रहा था. इस हमले की जानकारी अपनी चौकी तक पहुंचाने के योगेन्द्र सिंह यादव ने अपनी जान की बाजी लगाकर पत्थरों पर लुढ़कना आरंभ किया और अंतत : जानकारी देने में सफल रहे. उनकी इस जानकारी से भारतीय सैनिकों को काफी सहायता मिली और दुश्मन दुम दबाकर भाग निकले।

योगेन्द्र सिंह यादव के जख्मी होने पर यह भी खबर फैली थी कि वे शहीद हो गए, पर जो देश की रक्षा करता है, उसकी रक्षा स्वयं ईश्वर ने ही की. भारत सरकार ने ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव के इस अदम्य साहस, वीरता और पराक्रम के मद्देनजर परमवीर चक्र से सम्मानित किया. सबसे कम मात्र 19 वर्ष कि आयु में ‘परमवीर चक्र’ प्राप्त करने वाले इस वीर योद्धा ने उम्र के इतने कम पड़ाव में जांबाजी का ऐसा इतिहास रच दिया कि आने वाली सदियाँ भी याद रखेंगीं !!

मंगलवार, 9 मार्च 2010

व्यवस्था परिवर्तन के बहाने राजनीति की राह में बाबा रामदेव

योग गुरु बाबा रामदेव का मानना है कि व्यवस्था परिवर्तन के लिए मौजूदा लचर व्यवस्था को राजनैतिक मौत देनी होगी। पूरे सिस्टम में आमूल-चूल बदलाव करना होगा। शायद इसीलिए बाबा रामदेव व्यवस्था परिवर्तन के नारे के साथ भारत स्वाभिमान समिति के बैनर तले लोकसभा और देश की विधान सभाओं की सभी सीटों पर प्रत्याशी खड़ा करने का मन बना रहे हैं। बाबा रामदेव देश के मौजूदा नेतृत्व पर करारा प्रहार करते हुए कहते हैं कि भारत का नेतृत्व जितना कमजोर है, उतना किसी दूसरे राष्ट्र का नहीं है। इसीलिए व्यवस्था में परिवर्तन का बीड़ा भारत स्वाभिमान समिति ने उठाया है। बाबा के अनुसार, देश की राजनीति थानों से चल रही है। गरीब का दम निकल रहा है और अमीरों की तिजोरियां भर रही हैं। संसद में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण का समर्थन भी आप कर रहे हैं।

मेरठ में भारत स्वाभिमान न्यास एवं पतंजलि योग समिति के कार्यक्रम में भाग ले रहे बाबा ने कहा कि जब देश की युवा पीढ़ी में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने का जज्बा है तो फिर सत्ता की कमान उनके हाथ में देने से गुरेज क्यों? सत्ता के शीर्ष पर ऐसे लोगों को बैठने का हक हो जो भ्रष्टाचार से छुटकारा दिला सकें, पर मुझे नहीं लगता कि आज किसी नेता में यह क्षमता रह गई है। बाबा रामदेव का कहना है कि देश दलाली और कमीशनखोरी की वजह से खोखला हो रहा है। रामदेव बोले, वह न राजनीति नहीं करेंगे और न किसी पद को हासिल करने की चाहत रखते हैं। बाबा के मुताबिक, वह पद के भूखे इसलिए नहीं है कि राजनीति के शीर्ष पर बैठे लोग खुद उनका चरण स्पर्श करते हैं। उनका मकसद देश की व्यवस्था सुधारना है।

सोमवार, 8 मार्च 2010

अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर पर्वतारोही संतोष यादव सम्मानित

संतोष यादव भारत की जानी-मानी पर्वतारोही हैं। ज़िन्दगी में मुश्किलों के अनगिनत थपेड़ों की मार से भी वह विचलित नहीं हुईं और अपनी इस हिम्मत की बदौलत माउंट एवरेस्ट की दो बार चढाई करने वाली विश्व की पहली महिला बनीं। इसके अलावा वे कांगसुंग (Kangshung) की तरफ से माउंट एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक चढ़ने वाली विश्व की पहली महिला भी हैं।उन्होने पहले मई 1992 में और तत्पश्चात मई सन् 1993 में एवरेस्ट पर चढ़ाई करने में सफलता प्राप्त की। हिमालय की चोटी पर पहुँचने का एहसास क्या होता है, इसे संतोष यादव ने दो बार जिया है. 'ऑन द टॉप ऑफ़ द वर्ल्ड' जुमले का प्रयोग हम अक्सर करते हैं पर इसके सार को असल मायनो में संतोष यादव ने समझा. वह भी आज से डेढ़ दशक पहले. अरावली की पहाड़ियों पर चढ़ते हुए कामगारों से प्रेरणा लेकर उन्होंने ऐसा करिश्मा कर दिखाया, जिसकी कल्पना खुद उन्होंने कभी नहीं की थी.

संतोष यादव का जन्म सन 1969 में हरियाणा के रेवाड़ी जनपद के में हुआ था। उन्होने महारानी कालेज, जयपुर से शिक्षा प्राप्त की है। एक छोटे से गाँव से निकल कर, बर्फ से ढके हुए हिमालय के शिखर का आलिंगन करने के यादगार लम्हे तक का सफ़र संतोष यादव के लिए उतार चढ़ाव भरा रहा, पर उसे आज भी वे जीवंत किये हुए हैं. उनकी इस अद्भुत कामयाबी पर उन्हें सन 2000 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया जा चुका है. सम्प्रति संतोष यादव भारत-तिब्बत सीमा पुलिस में एक पुलिस अधिकारी हैं।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर नई दिल्ली में तीन दिवसीय महिला लीडरशिप शिखर सम्मेलन में अपने अपने क्षेत्र में नाम कमाने वाली महिलाओं फिल्म अभिनेत्री शर्मिला टैगोर, राजनेता एवं समाजसेवी मोहसिना किदवई, राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष मोहिनी गिरि, नृत्यांगना यामिनी कृष्णमूर्ति और मीडिया हस्ती इंदु जैन के साथ पर्वतारोही संतोष यादव को भी सम्मानित किया गया। यदुकुल की तरफ से ढेरों बधाई !!

रविवार, 7 मार्च 2010

योगेन्द्र यादव : व्यक्तित्व और कृतित्व

सामयिक वार्ता के संपादक एवं देश के मशहूर राजनीतिक विश्लेषक योगेन्द्र यादव लोकतंत्र के शास्त्र को नये सिरे से गढ़ने और उसे देखने का नजरिया बदलने पर जोर देते हैं. आज भारत में युवाओं का बड़ा महिमामंडन हो रहा है । ७१% नौजवानों की आबादी वाले राष्ट्र में युवाओ की राजनीतिक स्थिति पर चुनाव विश्लेषक योगेन्द्र यादव ने एक सटीक प्रश्न उठाया है कि "क्या सचमुच इस देश में ऐसा नौजवान युवा वर्ग मौजूद है जो अपने बूते राजनीति-चुनावों की दिशा तय कर सके ? जब मैं देखता हूँ कि राहुल नाम का एक लड़का जो गमले का फूल है, हजारों कांग्रेसी युवा कार्यकर्ताओं के अधिकारों को रौंदता हुआ मात्र वंशवाद के बूते प्रधानमंत्री के पद की ओर मूविंग चेयर पर बिठाकर बढाया जा रहा है । पूरी कांग्रेस में एक भी भगत सिंह नही है , जो इस वंश गुलामी का विरोध कर कार्यकर्त्ता की मर्यादा की प्रतिष्ठा करे ? " आज 'यदुकुल' में ऐसे ही तेवरों वाले योगेन्द्र यादव जी के बारे में जानिए-

Yogendra Yadav is a Senior Fellow at the Centre for the Study of Developing Societies (CSDS), Delhi since 2004। He is Founder Convenor (1995- 2002) of the Lokniti network and the founder Director (1997-2003) of Lokniti, a research programme on comparative democracy of the CSDS। Educated in Sriganganar (BA, Rajasthan University), Delhi (MA, JNU) and Chandigarh (M Phil, Panjab University), he taught at Panjab University Chandigarh (1985-1993) before joining the CSDS। Currently he is a Fellow at Institute of Advanced Study (Wissenschaftskolleg) at Berlin for the year 2009-2010.Professor Yadav's areas of interests include democratic theory, election studies, survey research, political theory, modern Indian political thought and Indian socialism. He has co-authored State of Democracy in South Asia (OUP, 2008) and co-edited (with Sandeep Shastri and K C Suri) Electoral Politics in Indian States (OUP, 2009). He has also co-authored (with Alfred Stepan and Juan Linz) Democraccy in Multi-national Societies, due for publication in 2010 from John Hopkins University Press. He has been involved in designing and coordinating the National Election Studies, the most comprehensive series of academic surveys of the Indian electorate, from 1996 to 2009. He has published dozens of academic papers in various books and journals and has written over two hundred articles in newspapers and magazines. He is one of the General Editors of Lokchhintan and Lokchintak Granthamala, a series of social science anthologies in Hindi and is on the International Advisory Board of the European Journal of Political Research. He is the Editor of Samayik Varta, a monthly journal published in Hindi. Since 1996 Professor Yadav has been a psephologist and political commentator on a number of television channels in India including Doordarshan, NDTV and CNN-IBN.He is currently a member of the Governing Council of the Indian Council of Social Science Research and a member of the Governing Borad of the Indian Institute of Advanced Study, Shimla. He is an Honorary Fellow, Indian Institute of Political Economy, Pune (since 2004). He was one of the two Chief Advisors in Political Science for the National Council of Educational Research and Training (NCERT) who suprevised the writing of the new textbooks for Political Science for class IX, X, XI and XII. He was also a member of the Expert Group appointed by the Government of India in 2007 to examine the structure and functioning of an Equal Opportunity Commission.In 2008 Professor Yadav was awarded the Malcom Adishesiah Award for contribution to development studies. In 2009 the International Political Science Association honoured Professor Yogendra Yadav with the first Global South Solidarity Award "in recognition of outstanding work on the politics of the developing world".Research interests :Professor Yadav's areas of interests include Democracy, democratic theory, election studies, survey research, political theory, modern Indian political thought and Indian socialism.Selected Publications Articles in Professional / Refereed journals :--
(with Rajeeva L. Karandikar and Clive Payne) 'Predicting the 1998 Indian Parliamentary Elections' Electoral Studies, vol. 21 (2002), pp.69-89.
'A Radical Agenda for Political Reforms' Seminar, vol. 506 [Reforming Politics], October 2001.
"The Third Electoral System", Seminar [480: A symposium on the state of our polity and the political system], August 1999.
Edited (with Aditya Nigam) Special issue on 'Electoral Politics in India, 1989-99', Economic and Political Weekly, Volume XXXIV(No. 34 and 35), August 21-28, 1999.
"Electoral Politics in the Time of Change: India's Third Electoral System, 1989-99", Economic and Political Weekly, Volume XXXIV(No. 34 and 35), August 21-28, 1999, pp. 2393-9.
(with Anthony Heath) "The United Colours of Congress: Social Profile of Congress Voters, 1996 and 1998", Economic and Political Weekly, Volume XXXIV(No. 34 and 35), August 21-28, 1999, pp. 2518- 2528.
"Vaikalpik Rajniti ki Vaikalpik Ran-niti" , Samayik Varta and Andolan, 1999.
"India, Monograph No. 2 in the series Comparative Electoral Systems in South Asia (Colombo: International Centre for Ethnic Studies, 1997)."
"CTBT aur Bharatiya Paramanu Bomb ka Charitra" Samayik Varta, August 1998.
"Bebas Matdata aur Nikkami Sarkaren" Samayik Varta, December 1998.Articles in Edited Volumes
"Whose democracy? Which Reforms?: A Plea for Democratic Agenda for Electoral Reforms" in Subhash C. Kashyap et.al.(eds) Reviewing the Constitutions? Delhi: Shipra, 2000
"Understanding the Second Democratic Upsurge: Trends of Bahujan Participation in Electoral Politics in the 1990s" in Francine R. Frankel, Zoya Hasan, Rajeeva Bhargava and Balveer Arora eds., Transforming India: Social and Political Dynamics of Democracy, Delhi: Oxford University Press, 2000, pp. 120-145
"Politics" in Marshall Bouton and Philip Oldenburg eds. India Briefing: A Transformative Fifty Years, New York: M. E. Sharpe, 1999, pp. 3-38
`Soviet Collapse: Does it Make any Difference to the Indian Left?' in Bhupinder Brar, ed., Soviet Collapse: Implications for India, Delhi: Ajanta, 1993: 21-33.
`JP's Changing Ideas on Social Change' in Nageshwar Prasad, ed., J.P. and Social Change, Delhi: Radiant, 1992: 48-63.Authored Books
General editor (with V। B. Singh) of Lokchintan Granthamala, a series of volumes on social science in Hindi, Vani Prakashan, Delhi. Four volumes ['Loktantra ke saat adhyaya', 'Adhunikata ke aine mein Dalit', Rajniti ki Kitab and Bharat mein Bhoomandalikaran]Professor Yadav has contributed in all about 200 articles in various Newspapers and magazines. His contributions in Hindi have included articles in Jansatta, Navbharat Times, Hans, Samayik Varta, Samay Chetna, Deshkal Samvad, Rashtriya Sahara among others. His contributions in English have been to The Times of India, The Economic Times, The Hindu, The Sunday Observer, The Telegraph, The Tribune and other newspapers and magazines.
Contact :- Programme for Comparative Democracy, Centre for the Study of Developing Societies (CSDS), 29 Rajpur Road, Delhi - 110 054
फ़ोन :- 011 - 23942199, 23981012 Extn।: 334

शुक्रवार, 5 मार्च 2010

शिवपाल सिंह यादव : जीवन परिचय

जन्म तिथि : 06 अप्रैल, 1955
शैक्षिक योग्यता : बी0ए0, बी0पी0एड0
पिता : स्व0 श्री सुघर सिंह यादव
माता : स्व0 श्रीमती मू्र्ति देवी
पत्नी : श्रीमती सरला यादव
सन्तान : पुत्र -एक, पुत्री -एक
पारिवारिक सदस्य : 5 भाई एवं एक बहन
पैतृक निवास : सैफई, जनपद इटावा
वर्तमान पद :
नेता विरोधी दल, विधान सभा, उत्तर प्रदेश
1996 से विधान सभा सदस्य
प्रबन्धक, एस0एस0 मेमोरियल पब्लिक स्कूल, सैफई, इटावा
अध्यक्ष, चौ0 चरण सिंह पी0जी0 कालेज, हैवरा, इटावा
प्रबन्धक, डॉ0 राम मनोहर लोहिया इण्टर कालेज, धनुवां, इटावा
प्रबन्धक, डॉ0 राम मनोहर लोहिया इण्टर कालेज, बसरेहर, इटावा
प्रबन्धक, जन सहयोगी कन्या इण्टर कालेज, बसरेहर, इटावा
प्रबन्धक, डॉ0 राम मनोहर लोहिया माध्यमिक हाईस्कूल, गीजा, इटावा
प्रबन्धक, मनभावती जन सहयोगी इण्टर कालेज, बसरेहर, इटावा
पूर्व पद :
कैबिनेट मंत्री, कृषि एवं कृषि शिक्षा, कृषि विपणन, पी0डब्ल्यू0डी0, उर्जा एवं भूतत्व खनिकर्म
अध्यक्ष, मण्डी परिषद्
अध्यक्ष, जिला सहकारी बैंक, इटावा
निदेशक, पी0सी0एफ0
प्रमुख महासचिव, समाजवादी पार्टी
अध्यक्ष, जिला पंचायत, इटावा
अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक लिमिटेड, लखनऊ
विधान सभा, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा विमुक्त जातियों संबंधी संयुक्त समिति सदस्य (1997-98)
अभिरूचि: समाज सेवा एवं राजनीति
व्यवसाय : कृषि
निर्वाचन क्षेत्र : 289, जसवन्तनगर, जनपद इटावा ।

मंगलवार, 2 मार्च 2010

मुलायम सिंह यादव का अखाड़ा पूरा देश

सत्तर साल के हो चुके मुलायम सिंह यादव छोटे कद के जरूर है मगर एक जमाने में अच्छे खासे पहलवान हुआ करते थे। अखाड़े में अपने से दुगुने कद के लोगों को धोबी पाट दांव लगा कर चित कर दिया करते थे और कई दंगलों के वे विजेता हैं। राजनीति में तो वे बहुत बाद में आए। इसके पहले एक स्कूल में पढ़ाया करते थे। संयोग की बात यह है कि मेरी खेती और गांव ग्राम नगला सलहदी, ब्लॉक जसवंत नगर, जिला इटावा में ही हैं और अब फाइव स्टार बन चुका भारत का एक मात्र गांव सैफई सिर्फ एक कोस दूर है। उस जमाने में सैफई भी हमारे नगला सलहदी की तरह बीहड़ी गांव था जहां किसी की छत किसी के आंगन के बराबर होती थी और पानी की कमी दूर करने के लिए गंगा नहर बनाई गई थी। मुलायम सिंह उस जमाने में साइकिल पर चलते थे जो अब उनकी पार्टी का चुनाव चिन्ह हैं। राजनीति में उनकी शुरूआत, उनका आधिकारिक जीवन परिचय कुछ भी कहे, सहकारी बैंक की राजनीति से हुई थी। सैफई और नगला सलहदी दोनों का रेलवे स्टेशन बलरई है जहां अभी कुछ साल पहले थाना बना है वरना रपट दर्ज करवाने के लिए जसवंत नगर जाना पड़ता था। बलरई में सहकारी बैंक खुली। ये चालीस साल पुरानी बात है। मास्टर मुलायम सिंह चुनाव में खड़े हुए और इलाके के बहुत सारे अध्यापकों और छात्रों के माता पिताओं को पांच पांच रुपए में सदस्य बना कर चुनाव भी जीत गए। उनके साथ बैंक में निदेशक का चुनाव मेरे स्वर्गीय ताऊ जी ठाकुर ज्ञान सिंह भी जीते थे। चुनाव के बाद जो जलसा हो रहा था उसमें गोली चल गई। मुलायम सिंह यादव और मेरे ताऊ जी बात कर रहे थे और छोटे कद के थे इसलिए गोली चलाई तो मुलायम सिंह पर गई थी मगर पीछे खड़े एक लंबे आदमी को लगी जो वहीं ढेर हो गया। इस घटना का वर्णन मुलायम सिंह यादव की किसी भी जीवनी में नहीं मिलेगा। सहकारी बैंक में उस समय पचास साठ हजार रुपए होंगे। तीन लोगों का स्टाफ था। चपरासी और कैशियर एक ही था। मैनेजर पार्ट टाइम काम करता था और निदेशकों की तरफ से नियुक्त एक साहब लेखाधिकारी बनाए गए थे जो चूंकि बैंक में सोते भी थे इसलिए चौकीदारी का भत्ता भी उन्हें मिलता था। इसके बाद मुलायम सिंह जसवंत नगर और फिर इटावा की सहकारी बैंक के निदेशक चुने गए। विधायक का चुनाव भी सोशलिस्ट पार्टी और फिर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से लड़ा और एक बार जीते भी। स्कूल से इस्तीफा दे दिया था। पहली बार मंत्री बनने के लिए मुलायम सिंह यादव को 1977 तक इंतजार करना पड़ा जब कांग्रेस विरोधी लहर में उत्तर प्रदेश में भी जनता सरकार बनी थी। 1980 में भी कांग्रेस की सरकार में वे राज्य मंत्री रहे और फिर चौधरी चरण सिंह के लोकदल के अध्यक्ष बने और विधान सभा चुनाव हार गए। चौधरी साहब ने विधान परिषद में मनोनीत करवाया जहां वे प्रतिपक्ष के नेता भी रहे। आज मुलायम सिंह यादव धर्म निरपेक्षता के नाम पर भाजपा को उखाड़ फेकना चाहते हैं। लेकिन पहली बार 1989 में वे भाजपा की मदद से ही मुख्यमंत्री बने थे। उस समय लाल कृष्ण आडवाणी का राम जन्मभूमि की आंदोलन और उनकी रथ यात्रा चल रही थी और मुलायम सिंह ने घोषणा की थी कि वे यात्रा को किसी हाल में अयोध्या नहीं पहुंचने देंगे। लालू यादव ने उत्तर प्रदेश पहुंचने से पहले ही आडवाणी को समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया। विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार गिर गई और मुलायम सिंह यादव ने चंद्रशेखर के जनता दल समाजवादी की सदस्यता ग्रहण की और कांग्रेस की मदद से मुख्यमंत्री बने रहे। कांग्रेस ने अप्रैल 1991 में समर्थन वापस ले लिया। उत्तर प्रदेश में मध्याबधी चुनाव हुए और मुलायम सिंह मुख्यमंत्री नहीं रह पाए। उनकी जगह कल्याण सिंह ने ले ली। सात अक्तूबर 1992 को मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाई। कम लोगों को याद होगा कि 1993 में मुलायम सिंह यादव बहुजन समाज पार्टी के साथ मिल कर उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव लड़े थे। हालाकि यह मोर्चा जीता नहीं लेकिन भारतीय जनता पार्टी भी सरकार बनाने से चूक गई। मुलायम सिंह यादव ने कांग्रेस और जनता दल दोनों का साथ लिया और फिर मुख्यमंत्री बन गए। उस समय उत्तराखंड का आंदोलन शिखर पर था और आंदोलनकारियों पर मुजफ्फरनगर में गोलियां चलाई गई जिसमें सैकड़ों मौते हुई। उत्तराखंड में आज तक मुलायम सिंह को खलनायक माना जाता है। जून 1995 तक वे मुख्यमंत्री रहे और उसके बाद कांग्रेस ने फिर समर्थन वापस ले लिया। 1996 में मुलायम सिंह यादव ग्यारहवी लोकसभा के लिए मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र से चुने गए थे और उस समय जो संयुक्त मोर्चा सरकार बनी थी उसमें मुलायम सिंह भी शामिल थे और देश के रक्षा मंत्री बने थे। यह सरकार बहुत लंबे समय तक चली नहीं और सच यह है कि मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री बनाने की भी बात चली थी मगर लालू यादव ने इस इरादे पर पानी फेर दिया। इसके बाद चुनाव हुए तो मुलायम सिंह संभल से लोकसभा में लौटे। असल में वे कन्नौज भी जीते थे मगर वहां से उन्होंने अपने बेटे अखिलेश को सांसद बना दिया। अब तक मायावती मुलायम सिंह यादव की घोषित दुश्मन बन चुकी थी। 2002 में भाजपा और बहुजन समाज पार्टी ने मायावती के साथ मिल कर सरकार बनाई जो डेढ़ साल चली और फिर भाजपा इससे अलग हो गई। मुलायम सिंह यादव तीसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और विधायक बनने के लिए उन्होंने 2004 की जनवरी में गुन्नौर सीट से चुनाव लड़ा जहां वे रिकॉर्ड बहुमत से जीते। कुल डाले गए वोटों में से 92 प्रतिशत उन्हें मिले थे जो आज तक विधानसभा चुनाव का रिकॉर्ड है। मुलायम सिंह यादव ने लंबा सफर किया है, बार बार साथी बदले हैं, बार बार साथियों को धोबी पाट लगाया है मगर राजनीति वे दंगल की शैली में ही करते हैं। अब उनका अखाड़ा पूरा देश है और इस अखाड़े में उनका उत्तराधिकारी बनने की प्रतियोगिता भी शुरू हो गई है। उत्तराधिकारियों की कमी नहीं हैं क्योंकि मुलायम सिंह यादव परिवार का हर वह सदस्य जो चुनाव लड़ सकता है, राजनीति में हैं और उत्तराधिकारी होने का दावेदार है।
आलोक तोमर

सोमवार, 1 मार्च 2010

यदुवंशी थोडा मंथन करें...!!

अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा के नव निर्वाचित अध्यक्ष प्रो।उदय प्रताप सिंह यादव ने कहा है कि आरक्षण की लड़ाई में यादव महासभा, समाज के सभी पिछड़ों को साथ लेकर चलेगी। यह संघर्ष तभी थमेगा जब यादवों की ताकत के अनुपात में उन्हें सत्ता में भागीदारी मिलेगी। वे मेला ग्राउंड के मृगनयनी गार्डन में आयोजित यादव महासभा के 57वें राष्ट्रीय अधिवेशन को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि नए दायित्व को संभालते हुए वे यादव समाज के कमजोर छात्र-छात्राओं को आर्थिक सहायता देने की जरूरत को पूरा करने का हर संभव प्रयास करेंगे।

प्रो. यादव ने कहा कि यादव समाज ने लंबे समय तक आर्थिक व सामाजिक शोषण झेला है यदि हम समय रहते जागरूक नहीं हुए तो अधिकारों से वंचित रह जाएंगे। हमें ‘माधव’ के रास्ते पर चलकर संघर्ष की सीख लेना चाहिए। उन्होंने अपने संकल्प को दोहराते हुए कहा कि यादव महासभा आरक्षण की लड़ाई में सारे पिछड़ों को सथ लेकर चलेगी अन्यथा राजनीतिक हमारे उद्देश्य को सफल नहीं होने देंगे।यादव महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो0 यादव ने संगठन की उपलब्धियों का जिक्र करते हुए कहा कि उपनामों की भिन्नता के बावजूद आज यादव समाज एक परिवार के रूप में अपनी पहचान बना चुका है। रोटी-बेटी का संबंध भी होने लगा है। यादव महासभा के कार्यक्रम में शिक्षा के विकास,सेना में अहीर रेजीमेंट की स्थापना तथा बालिकाओं को शिक्षित करने के बिन्दुओं को शामिल किया जाएगा।
अधिवेशन में यादव महासभा के कार्यवाहक राष्ट्रीय अध्यक्ष चौ0 हरिमोहन सिंह यादव ने कहा कि आज देश के 22 प्रांतों में यादव महासभा का संगठन सक्रिय होकर काम कर रहा है। संगठनात्मक गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए वैशाली गाजियाबाद में अभा यादव महासभा का केन्द्रीय कार्यालय बनाया गया है। अब जरूरत है कि समाज के लोग सकल रूप से संगठित होकर अपने अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करें।

सभी राज्यों में यादव सीएम हों : गौरमप्र सरकार के वाणिज्यिक कर मंत्री बाबूलाल गौर ने कहा कि यादव समाज को इतना संगठित किया जाए कि भविष्य में सभी राज्यों में यादव समाज के मुख्यमंत्री नजर आएं। उन्होंने यादव समाज से करवट बदलने का आह्वान करते हुए कहा कि वे देश में धर्मराज्य की स्थापना करें। उन्होंने कहा कि यादव समाज की जितनी संख्या है सत्ता में उन्हें उतनी भागीदारी मिलना चाहिए।
‘सावधान व एकजुट रहने की जरूरत’ : कानपुर के सांसद प्रो. रामगोपाल यादव ने कहा कि यादव समाज ने जब-जब अपने विकास का मार्ग प्रशस्त किया तब-तब उसे सत्ता से दूर रखने की साजिश हुई है। उत्तर प्रदेश में कन्या विद्याधन योजना को मायावती सरकार ने बंद कर दिया है।हजारों लोगों को नौकरी से निकाल दिया क्योंकि उनमें अधिकांश, पिछड़े वर्ग से जुड़े हैं। प्रो. यादव ने कहा कि आने वाले समय में ऐसे हमले और तेज होंगे इनसे सावधान व एकजुट रहने की जरूरत है तभी हम यादव समाज को विभाजित होने से रोकने में कामयाब होंगे।
शिक्षा के विकास की जरूरत : गिरधारी यादवबिहार के सांसद गिरधारी यादव ने कहा कि शिक्षा के विकास की जरूरत है। कुल आबादी का 18 फीसदी हिस्सा होने के बाद भी यादवों का शैक्षणिक विकास नहीं हो पाया है। सांसद श्री यादव ने कहा कि रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव एक सफल राजनीतिज्ञ हैं फिर भी बिहार की मौजूदा सरकार उन्हें फेल मुख्यमंत्री कहकर माहौल को खराब कर रही है। उनकी काबलियत का प्रदर्शन, मुनाफे में आया रेल विभाग है।
‘विकास के लिए नए विचार अपनाने पड़ेंगे’ : राष्ट्रीय अधिवेशन की स्वागत समिति के अध्यक्ष अशोक सिंह ने कहा कि यादव समाज के विकास के लिए नए विचार अपनाने की जरूरत है। अभी तक हम छोटे -छोटे दायरों में बटे थे, शिक्षा की कमी तथा कुरीतियों के कारण विकास से वंचित रहे। महासभा ने यादवीकरण की जो प्रक्रिया शुरू की है उससे समाज को नई पहचान मिली है।
( यह यादव महासभा के 2007 में हुए अधिवेशन की रिपोर्ट की एक कवरेज है, पर इसमें व्यक्त बातें आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं. जरुरत है की हम सिर्फ बातों तक सीमित न रहें बल्कि उन्हें फलीभूत भी करें. जितनी बातें इस अधिवेशन में कही गई हैं, उनके लिए ठोस योजना भी प्रस्तुत होनी चाहिए. यादव समाज के विकास के लिए नए विचार अपनाने की जरूरत है, पर ये विचार कहाँ से आयेंगें इस पर भी सोचने की जरुरत है. इस पोस्ट का उद्देश्य मात्र यादव बंधुओं को मंथन के लिए प्रेरित करना है......आप सोचें और नए विचारों के साथ आगे आयें, जिन्हें फलीभूत किया जा सके)