जाति आधारित जनगणना के दौरान लोग अपनी जाति छुपा या बदल सकते हैं।
इस संबंध में हौव्वा फैलाने की बजाय लोगों को जागरूक करने की जरुरत है। सामान्यतया जनगणना से जुड़े लोग स्थानीय प्राधिकारी ही होते हैं और अधिकांश मामलों में लोगों की जाति-धर्म से परिचित होते हैं। जानबूझकर झूठ बोलने वालों के लिए जनगणना अधिनियम 1948 की धारा 8 के उपखंड 2 में अनिवार्य प्रावधान किया गया है कि-श्हर व्यक्ति जिससे कोई भी प्रश्न पूछा जाए वह उसका उत्तर देने के लिए कानूनी रूप से बाध्य है और उसे जो कुछ भी ज्ञात है और जिस पर भरोसा है, ऐसी सब जानकारी देगा।श् ऐसे प्रश्नों का उत्तर नहीं देने या जान-बूझकर जानकारी छिपाने या उत्तर देने देने से इन्कार करने पर उस पर 1,000 रु. तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। जो सचमुच जातिमुक्त होना चाहते हैं वे जनगणना में अपने को ‘जाति-मुक्त‘ लिखवा सकते हैं। जाति आधरित गणना के विरोध में इस तरह के कुतर्क देने वाले शायद यह नहीं जानते कि जनगणना के दौरान जो भी व्यक्ति अल्पसंरव्यक की श्रेणी में दर्ज 6 धर्मों में से किसी में अपना नाम नहीं दर्ज कराता, उसे हिन्दू मान लिया जाता है। जाति-धर्म न मानने वाले आदिवासी और अपने को धर्म के परे नास्तिक मानने वाले सभी लांेगों की गिनती हिन्दू-धर्म में ही की जाती है। पर इन सब तथ्यों का कभी विरोध नहीं हुआ। सही मायनों में जाति-मुक्त होने के लिए जाति से भागने की बजाय जातिवादी मानसिकता को खत्म करना ज्यादा जरूरी है, जो कुछ लोगों को द्विज घोषित करती है।
(जातिवार गणना के विरोध में उठाये गए हर सवाल का जवाब क्रमश: अगले खंड में)
4 टिप्पणियां:
जब तक जाति आधारित जनगणना खत्म नहीं होगी जातिवाद भी खत्म नहीं हो सकता.
जाति आधारित जनगणना कदापि नहीं होनी चाहिए.
सही मायनों में जाति-मुक्त होने के लिए जाति से भागने की बजाय जातिवादी मानसिकता को खत्म करना ज्यादा जरूरी है, जो कुछ लोगों को द्विज घोषित करती है...Bahut satil likha !!
बहुत सही लिखा आपने. जिन लोगों ने जाति की आड में सदियों तक शोषण किया, आज अपने हितों पर पड़ती चोट को देखकर बौखला गए हैं. जातिवाद के पोषक ही आज जाति आधारित जनगणना के आधार पर जातिवाद के बढ़ने का रोना रो रहे हैं. इस सारगर्भित लेख के लिए आपकी जितनी भी बड़ाई करूँ कम ही होगी. अपने तार्किक आधार पर जाति-गणना के पक्ष में सही तर्क व तथ्य पेश किये हैं..साधुवाद !!
सामान्यतया जनगणना से जुड़े लोग स्थानीय प्राधिकारी ही होते हैं और अधिकांश मामलों में लोगों की जाति-धर्म से परिचित होते हैं। जानबूझकर झूठ बोलने वालों के लिए जनगणना अधिनियम 1948 की धारा 8 के उपखंड 2 में अनिवार्य प्रावधान किया गया है कि-श्हर व्यक्ति जिससे कोई भी प्रश्न पूछा जाए वह उसका उत्तर देने के लिए कानूनी रूप से बाध्य है और उसे जो कुछ भी ज्ञात है और जिस पर भरोसा है, ऐसी सब जानकारी देगा...Yah jaruri bhi hai.
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