सोमवार, 31 जनवरी 2011

विश्व कप क्रिकेट 2011 के थीम गीत के गीतकार मनोज यादव

एक और उभरता हुआ यदुवंशी अपना जौहर दिखने को तैयार है. ये हैं मनोज यादव. गौरतलब है कि
बॉलीवुड की संगीतकार जोड़ी शंकर, एहसान और लॉय ने क्रिकेट विश्व कप 2011 के लिए थीम सौंग तैयार किया. थीम सौंग के बोल ‘दे घुमा के..’ है. ‘दे घुमा के..’ के गीतकार मनोज यादव हैं. इस गीत को 1 जनवरी 2011 को लॉन्च किया गया.

राहुल सांकृत्यायन, अल्लामा शिबली नोमानी और कैफी आजमी की धरती आजमगढ़ सदैव सुर्ख़ियों में रहती है, पर इस बार एक बेहद रचनात्मक और जोशीले वजह से। दरअसल देश में खेल से ज्यादा जुनून का दर्जा प्राप्त क्रिकेट के महाकुम्भ आईसीसी के थीम सांग लिखने का गौरव आजमगढ़ जिले के सपूत मनोज यादव को हासिल हुआ है।मनोज यादव के लिखे गीत को शंकर महादेवन ने गया है और संगीतबद्ध किया शंकर-एहसान-लाय ने। बरास्ता मनोज यादव, आजमगढ़वासी अपनी ओर अंगुली उठाने वालों को एक संदेश भी दे रहे हैं और कह रहे हैं......दे घुमा के.....!

‘दे घुमा के....आसमान में मार के डुबकी, उड़ा दे सूरज की झपकी, सर्र से चीर हवा का पर्दा बाँध ले पट्ठे जमके गर्दा.....‘ आजमगढ़ के वासी मनोज यादव के दिलो-दिमाग में जन्मा यह गीत देश को आज एक ऊर्जा, एक जोश दे रहा है। इससे आजमगढ़ की फिजां बदली-बदली सी नजर आ रही है। अब यहाँ सृजनात्मकता है, जोश है, देश की माथे की बिन्दी बनने का जज्बा है। जिले के सगड़ी तहसील के भरौली गाँव निवासी मनोज यादव की उपलब्धि पर पूरे जिले को नाज है।

बताए हैं कि मनोज यादव के पिता स्व0 हरिश्चन्द्र यादव जब मुम्बई गये थे तो उनकी आखों में तमाम सपने थे। दो पुत्रों मनोज व प्रमोद व एक पुत्री पुष्पा के पिता हरिश्चन्द्र रेमण्ड कम्पनी में सुपरवाइजर बनें। मनोज यादव ने पिता के सपनों को साकार करना सीखा और उतर गए फिल्मों-विज्ञापनों के लिए गीत व जिंगल लिखने में। गुलजार को प्रेरणा स्रोत मानने वाले मनोज की प्रतिभा को गायक शंकर महादेवन ने पहचाना और शंकर-एहसान-लाय के कहने पर ओ एण्ड एम कम्पनी ने आईसीसी वल्र्ड कप के थीम सांग को लिखने का जिम्मा सौंपा, जिसे मनोज ने बखूबी पूरा किया। गौरतलब है कि क्रिकेट विश्व कप 2011 का आयोजन भारत, बांग्लादेश और श्रीलंका में 19 फरवरी 2011 से हो रहा है. इसलिए इस गीत को हिंदी, बांग्ला और सिंहली भाषाओं में तैयार किया गया.

'यदुकुल' की तरफ से मनोज यादव को इस सृजनात्मक उपलब्धि पर हार्दिक बधाइयाँ !!

गुरुवार, 27 जनवरी 2011

ओमवीर यादव ने बनाया विमान

कौन कहता है कि आसमान में छेद नहीं होता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो। इस कहावत को राजस्थान के सोरवा गांव के ओमवीर यादव ने एक वायुयान बना कर सही साबित कर दिया है। छोटे से गांव व साधारण किसान परिवार में जन्में 21 वर्षीय ओमवीर यादव ने कबाड़ से जुगाड़ वाली तकनीक अपनाकर यह विमान तैयार किया है। विमान को तैयार करने में उसे एक साल का समय लगा है। ओमवीर यादव ने उक्त विमान का प्रदर्शन गांव नसीबपुर स्थित राव तुलाराम शहीदी स्मारक पर किया। विमान को देखने के लिए भारी संख्या में लोग आए हुए थे। विमान में फिलहाल चालक व एक अन्य व्यक्ति बैठ सकता है।

ओमवीर यादव के नाना व साहित्यकार जसवंत प्रभाकर ने बताया कि ओमवीर का चयन 2008 में आईआईटी में हो गया था। उसकी रूचि कुछ नया करने की थी, जिसके कारण उसने गहन अध्यन व प्रयोग कर कम लागत से विमान तैयार किया है। ओमवीर ने बताया कि इस विमान में चालक के अलावा एक अन्य व्यक्ति बैठ सकता हैं। इसका वजन कुल 280 किलोग्राम है। उन्होंने यह जेट एक साल में तैयार किया है और उनको दसवीं बार में यह विमान तैयार करने में सफलता मिली है। उन्होंने बताया कि उसके प्रयोग में अभी तक करीब 20 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं। वहीं इस विमान के निर्माण में 50 हजार रुपये का खर्चा आया है। ओमवीर यादव के अनुसार जेट में मारुति जिप्सी का एक हजार सीसी का इंजन लगा हुआ है। जिसकी क्षमता 46 होर्स पावर है। ओमवीर ने दावा किया कि उसका जेट दो हजार मीटर की ऊंचाई तक उड़ सकता है। वहीं उसकी गति 150 किलोमीटर प्रति घंटा है। उसने बताया कि इसका प्रयोग विशाल भू-भाग के कृषि क्षेत्रों में कीटनाशक दवाओं के छिड़काव को अल्प समय में तथा प्राकृतिक आपदाओं में संकट के समय जीव रक्षा व राहत सामग्री पहुंचाने में कर सकते हैं। उसने बताया कि उनका लक्ष्य अब छह व आठ सीट वाला विमान बनाने का है। वहीं उसे बोइंग विमान कंपनी से जॉब का भी आफर मिल चुका है।

इस अद्भुत कार्य के लिए ओमवीर यादव को 'यदुकुल' की तरफ से हार्दिक बधाइयाँ !!

(फेसबुक पर हितेंद्र सिंह यादव द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी..)

बुधवार, 26 जनवरी 2011

!! गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें !!


!! गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें !!

मंगलवार, 25 जनवरी 2011

बलिराम भगत : स्वतंत्रा सेनानी, पत्रकार, लेखक और राजनेता

भारतीय राजनीति ने फिर अपना एक गौरव पुत्र खो दिया है. । देश रत्न श्री बलिराम भगत पर भारत को गर्व था । देश रत्न श्री बलिराम भगत एक मेधावी छात्र , स्वतंत्रा सेनानी, पत्रकार , लेखक, राज्यपाल, विदेश मंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, आदि आदि थे ।

बिहार के समस्तीपुर के मूल निवासी देश रत्न श्री बलिराम भगत का जन्म ०७-१०-१९२२ को हुआ । पटना कॉलेज से स्नातक और पटना विश्वविध्यालय से ही अर्थशास्त्र में परास्नातक किया। उस वक्त परास्नातक करना बहुत बड़ी बात थी। १९३९ में मात्र १७ वर्ष के नाबालिग उम्र में स्वतंत्रा संग्राम की लड़ाई लड़ने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस में शामिल हो गए । १९४२ में भारत छोडो आन्दोलन में शामिल होने कॉलेज त्याग दिया। जबकि श्री भगत पटना विश्वविध्यालय के मेधावी छात्र थे। देश रत्न श्री बलिराम भगत १९४६ में कांग्रेस के महासचिव बनाये गए । श्री भगत १९४७ में पटना से राष्ट्र दूत नमक हिंदी पत्रिका शुरू किया। समाचार पत्रों में आर्थिक, राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय मामलो पर नियमित रूप से लिखते रहे। देश रत्न श्री बलिराम भगत ने अंतराष्ट्रीय विषयों पर कई पुस्तक लिखे। उनके लेखन से तत्कालीन कई राजनेता लेखक प्रभावित थे। देश रत्न श्री बलिराम भगत की प्रतिभा का उपयोग कांग्रेस ने जमकर किया। श्री भगत अंतराष्ट्रीय मामलो के कुशल जानकार थे। वे जितने बेहतर लेखक थे उतने ही बेहतर वक्ता भी थे। श्री भगत विभिन्न अंतराष्ट्रीय मंचो पर भारतीय संसद का प्रतिनिधित्व करते रहे । इन्स्ताबुल,लन्दन,कोलोम्बो और जापान में श्री भगत ने अपने कुशल भाषण से सभी को प्रभावित किया था।

देश रत्न श्री बलिराम भगत पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी की सरकार में भारत सरकार में विदेश मंत्री रहे । श्री भगत हिमाचल प्रदेश और राजस्थान के राज्यपाल के रूप में देश के सेवा करते रहे । पांचवी लोकसभा के अध्यक्ष बन उन्होंने साबित किया योग्यता की परिभाषा क्या होती है। श्री भगत की योग्यता का लोहा पूर्व प्रधानमंत्री नेहरु, इंदिरा भी मानती थी। देश रत्न श्री भगत हम सब को छोड़कर ०२ जनवरी २०११ में चले गए । पर एक ऐसी नजीर गढ़ गए जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा-पुंज बनी रहेगी !!

वंदना यादव

सोमवार, 24 जनवरी 2011

बलिराम भगत का जाना...

राजनीति में तमाम यदुवंशी प्रखरता से काम कर रहे हैं. यही कारण है कि अब तक यदुवंश से 9 मुख्यमंत्री हो चुके हैं. पर अब तक मात्र दो लोगों को राज्यपाल बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है- गुजरात में महिपाल शास्त्री (2 मई 1990- 21 दिसंबर 1990) एवं हिमाचल प्रदेश व राजस्थान में बलिराम भगत (क्रमशः 11 फरवरी 1993-29 जून 1993 व 20 जून 1993-1 मई 1998). यह बताना इसलिए प्रासंगिक हो गया क्योंकि लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष और हिमाचल एवं राजस्थान के पूर्व राज्यपाल बलिराम भगत (89) का इस साल के आरंभ में ही 2 जनवरी, 2011 को निधन हो गया। गौरतलब है कि भगत जी का निधन शरीर के कई अंगों के काम बंद कर देने के कारण हुआ। वे कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे और अपोलो अस्पताल में उनका देहावसान हुआ.

बलिराम भगत का जन्म सात अक्टूबर 1922 को पटना (बिहार) में हुआ। पटना से स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद भगत ने पटना विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त की। भगत 17 वर्ष की आयु में एक छात्र के रूप में स्वतंत्रता संग्राम में कूद गए। स्वतंत्रता के बाद वह प्रथम लोकसभा के लिए चुने गए। वह लोकसभा में सात बार चुनकर आए।वह पहली कांग्रेस सरकार में वित्त मंत्री के संसदीय सचिव के रूप में सेवा दी और उन्हें वर्ष 1956 में उप वित्त मंत्री बनाया गया। वर्ष 1969 में केंद्रीय मंत्री बनाए जाने से पहले उन्होंने योजना, रक्षा और विदेश राज्य मंत्री के रूप में काम किया। भगत 5 जनवरी 1976 को आपातकाल में लोकसभा अध्यक्ष चुने गए थे। वे इस पद पर एक साल तक रहे। वह वर्ष 1993 में थोड़े समय के लिए हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल और वर्ष 1993 से 1998 तक राजस्थान के राज्यपाल रहे। उनके परिवार में पत्नी विद्या भगत, एक बेटा और एक बेटी हैं।

बलिराम भगत के निधन पर अपने शोक संदेश में प्रधानमंत्री ने उन्हें, "एक स्वतंत्रता सेनानी, महान देशभक्त और लोगों के लिए समर्पित एक वरिष्ठ राजनेता बताया।" प्रधानमंत्री ने कहा, "मैंने अपना एक बहुत ही करीबी मित्र और महत्वपूर्ण सहयोगी खो दिया।" लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने कहा कि भगत के निधन से उन्हें 'अत्यंत दुख' पहुंचा है। उन्होंने कहा, "भगत स्वतंत्र भारत के उन नेताओं में से थे जिन्होंने आजादी के बाद देश का मार्गदर्शन किया और अपनी राजनीतिक भागीदारी से लोकतंत्र को सशक्त बनाया।" लोकसभा अध्यक्ष ने कहा, "भगत के निधन से हमने भारत के एक योग्य पुत्र को खो दिया।
यदुकुल की तरफ से बलिराम भगत जी को श्रद्धांजलि और नमन !!

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

न्याय के क्षेत्र में विश्व कीर्तिमान : न्यायमूर्ति रवीन्द्र सिंह

न्याय सिर्फ होता नहीं बल्कि दिखना भी चाहिए। इसके लिए जरूरी है न्यायिक प्रक्रिया की समझ, त्वरित निर्णय की क्षमता एवं संवेदनशीलता। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री रवीन्द्र सिंह ऐसी ही प्रतिभा के व्यक्तित्व हैं। आरंभ से ही मेधावी रहे श्री सिंह हमेशा चीजों को मानवीय पहलू से देखते हैं और उनके निर्णय वाकई मील का पत्थर होते हैं। तभी तो इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति रवींद्र सिंह ने अपने निर्णयों के मामले में ख्याति ही नहीं अर्जित की बल्कि विश्व में कीर्तिमान भी स्थापित किया है। यहाँ तक कि उनकी इस उपलब्धि का गिनीज बुक आॅफ वर्ल्ड रिकार्ड में भी इसका उल्लेख है। न्यायमूर्ति सिंह ने तो लगभग 1 लाख मुकदमों का निस्तारण किया है पर जुलाई 2009 से जुलाई 2010 तक एक साल की अवधि में उन्होंने 29,395 मुकदमें निस्तारित किये हैं जो कि अपने आप में विश्व रिकार्ड है। इस उपलब्धि के लिए जहां तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जेएस रिबेरो ने उन्हें बधाई दी बल्कि उनका नाम गिनीज बुक में दर्ज होने के लिए संस्तुति भी किया, जो कि अंतत: फलीभूत भी हुआ.

वर्ष 2005 में न्यायमूर्ति का पद सँभालने वाले रवींद्र सिंह का जन्म 2 जुलाई 1953 को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जनपद में मेदेपुर गाँव में श्री संकट बिहारिया यादव के पुत्र रूप में हुआ. साधारण किसान परिवार में जन्मे न्यायमूर्ति यादव की प्रारंभिक शिक्षा ग्राम मेदेपुर, जीआईसी मैनपुरी, एनडी कालेज शिकोहाबाद और उच्च शिक्षा इलाहाबाद में हुई।श्री सिंह 1978 में बार काउंसिल आॅफ उत्तर प्रदेश में अधिवक्ता के तौर पर पंजीकृत हुए और 24 अगस्त 1994 से 1995 तक शासकीय अधिवक्ता रहे. बाद में उन्हें 19 सितंबर 2003 को अपर महाधिवक्ता तथा 24 सितंबर 2004 को एडिशनल जज के रूप में नियुक्ति मिली और 18 अगस्त 2005 को वह परमानेंट हो गये।

यदुवंश परिवार में जन्म लेकर न सिर्फ श्री रवींद्र सिंह ने देश के सबसे बड़े उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति का पद संभाला बल्कि न्यायिक क्षेत्र में ऐसा विशिष्ट कीर्तिमान स्थापित किया की आज भी दुनिया उनका लोहा मानती है. 'यदुकुल' की तरफ से न्यायमूर्ति रवींद्र सिंह को बधाइयाँ और आशा की जानी चाहिए कि वे इसी तरह समाज में प्रेरणा-स्रोत बने रहेंगें !!

गुरुवार, 20 जनवरी 2011

स्मृति शेष 'बालेश्वर यादव' ...बस यादें रह गईं

* निक लागे तिकुलिया गोरखपुर के
* मनुआ मरदुआ सीमा पे सोये, मौगा मरद ससुरारी मे.
* कजरा काहें न देहलू
* फुलौड़ी बिना चटनी कइसे बनी
* सात सहेलिया खड़ी खड़ी
* रोज रोज ससुरा दारु पियत है
* कटहर के कोवा तू खइलऽ त ई मोटकी मुगरिया के खाई.

अगर आपो लोगन में से केहू ई गाना के ऊपर मस्ती से झुमल होखे या ई गाना कै शौक़ीन रहल होये तै अब ई आवाज अब कबहू न सुनाई देई. काहें से की ई मशहूर गाना कै गवैया बालेश्वर यादव जी अब ई दुनिया से जा चुकल बटे.

रविवार ०९ जनवरी २०११ को इन्होने लखनऊ के श्यामा प्रसाद मुखर्जी अस्पताल में आखिरी साँस ली, जहाँ ये कुछ समय से इलाज के लिये भर्ती थे। १ जनवरी १९४२ को आजमगढ़ - मऊ क्षेत्र के मधुबन कस्बे के पास चरईपार गाँव में जन्मे, बालेश्वर यादव भोजपुरी के मशहूर बिरहा और लोकगायक थे.

अई...रई... रई...रई... रे, के विशेष टोन से गीतों को शुरू करने वाले बालेश्वर ने अपने बिरहा और लोकगीतों के माध्यम से यू. पी.- बिहार समेत पूरे भोजपुरिया समाज के दिलों पर वर्षों तक राज किया. वे जन जन के ये सही अर्थों में गायक थे. इनके गीत " निक लागे तिकुलिया गोरखपुर के " ने एक समय पुरे पूर्वांचल में काफी धूम मचाई थी.जन जन में अपनी गायकी का लोहा मनवाने वाले इस गायक पर मार्कंडेय जी और कल्पनाथ राय जैसे दिग्गज राजनीतिज्ञों की नज़र पड़ी तो तो यह गायक गाँव- गाँव की गलियों से निकलकर शहरों में धूम मचाने लगा और कल्पनाथ राय ने अपने राजनितिक मंचों से लोकगीत गवाकर इन्हें खूब सोहरत दिलवाई. बालेश्वर यादव २००४ में देवरिया के पडरौना लोकसभा सीट से कांग्रेस पार्टी के टिकट पर जीतकर लोकसभा में भी पहुंचे. इनके गाये गानों पर नयी पीढ़ी के गायक गाते हुए आज मुंबई में हीरो बन प्रसिद्धि पा गये, मगर ये लोकगायक इन सबसे दूर एक आम आदमी का जीवन जीता रहा. ये आम लोंगों के गायक थे और उनके मन में बसे थे. अभी हाल में ही आजमगढ़ के रामाशीष बागी ने महुआ चैनल के सुर संग्राम में इनके गाये गीतों पर धूम मचा दी थी.

भोजपुरी के उत्थान और प्रचार -प्रसार में इनका महत्वपूर्ण योगदान है. इनके गीत न केवल अपने देश में ही प्रसिद्ध हुए बल्कि जहाँ भी भोजपुरिया माटी के लो जाकर बस गए , वहाँ भी इन्हें गाने के लिये बुलाया जाता रहा. इन्होने अपने भोजपुरी गीतों का डंका सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद, मारीशस, फिजी, हौलैंड इत्यादि देशो में भी बजाया . सन १९९५ में बालेश्वर यादव को उत्तर प्रदेश की सरकार ने लोक-संगीत में अतुलनीय योगदान हेतु 'यश भारती सम्मान 'से सम्मानित किया था.
इनके गाये कुछ और भोजपुरी लोकगीत इस लिकं पर क्लिक करके सुने जा सकते है
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आज जबकि भोजपुरी लोक-संगीत अपनी अस्मिता की लड़ाई में संघर्षरत है,वैसे में बालेश्वर यादव जैसे लोक-गायक के असमय निधन से भोजपुरी अंचल और इसके लोकसंगीत को अपूरणीय क्षति हुई है.बालेश्वर यादव भोजपुरी समाज और भाषा के महेंद्र मिश्र वाली परंपरा के लोक कलाकार थे.श्री यादव लखनऊ के श्यामा प्रसाद मुखर्जी अस्पताल में कुछ समय से इलाज़ हेतु भर्ती थे.बालेश्वर यादव को उत्तर प्रदेश की सरकार ने 'उनके लोक-संगीत में अतुलनीय योगदान हेतु 'यश भारती सम्मान'से नवाज़ा था.इतना ही नहीं बालेश्वर पुरस्कारों की सरकारी लिस्ट के गायक नहीं बल्कि सही मायनों में जनगायक थे,उन्होंने भोजपुरी के प्रसार के अगुआ के तौर पर देश-विदेश में पहचाने गए.ब्रिटिश गुयाना,त्रिनिदाद,मारीशस,फिजी,सूरीनाम,हौलैंड इत्यादि देशो में मशहूर बालेश्वर यादव जी के मौत भरत शर्मा,मदन राय,प्रो.शारदा सिन्हा, आनंद मोहन,गोपाल राय जैसे गायकों को भोजपुरी अस्मिता में उनका साथ देने वाले एक स्तम्भ के गिरने जैसा है.ईश्वर बालेश्वर यादव जी की आत्मा को शांति दे और भोजपुरी गीत संगीत से बलात्कार करने वाले सड़कछाप गायकों को सद्बुद्धि दे !!
चित्र साभार : भोजपुरिया. com

बुधवार, 5 जनवरी 2011

जब शिव गये श्रीकृष्ण की शरण में

ब्रह्मवैवर्तपुराण के श्रीकृष्णजन्मखण्ड में शिव के अंहकार को भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा चूर किये जाने की कथा विस्तार से दिया गया है। भगवान श्रीकृष्ण के प्रत्येक लीला से शिक्षा मिलती है। जरूरत है श्रीकृष्ण के प्रत्येक कार्य पर विचार करने का जो मानव समाज के लिये आॅक्सीजन का काम करता है। मेरे निजि विचार से श्रीकृष्ण के कार्य को समझने की शक्ति आज के परिवेश में भी केवल प्रकाण्ड विद्वान और सकारात्मक सोच रखने वालों में ही होता है।

भगवान श्रीकृष्ण भगवती श्रीराधारानी के पूछे जाने पर बतलाते हैं ब्रह्माण्डों में जिन लोगों को अपनी शक्ति पर अंहकार होता है उस पर में शासन कर अंहकार को ध्वस्त कर देता हूँ। एक समय की बात है वृक नामक दैत्य ने शिव के केदारतीर्थ में एक वर्ष तक दिन-रात कठोर तपस्या कर वर माँगा कि प्रभो मैं जिसके माथे पर हाथ रख दूँ वह जलकर भस्म हो। शिव न वर दे दिया। वृक शिव के ही माथे पर हाथ रखने को भागा। मृत्युंजय नाम से चर्चित शिव भी मृत्यु के डर से भागने लगे। शिव के हाथ से डमरू गिर पडा़। शिव ने जो ण्याघ्रचर्म पहना हुआ था वह भी गिर गया। शिव को लगने लगा मृत्यु निश्चित है। भागत-भागते शिव के कण्ठ, ओठ और तालु भी सुख गये। शिव भय से हे कृष्ण रक्षा करो, रक्षा करो बोलते भाग रहे थे। शिव मेरे ही शरण में आये। तभी दैत्य भी पहुँचा मैंने उस दैत्य से कहा वृक ये जो तुम्हें वरदान शिव ने दिया है इसको परख तो लो। अपने ही सिर पर हाथ रखकर परख लो। वृक ने ऐसा ही किया और शिव की रक्षा हो गयी।

शिव इस घटना के बाद बहुत ही लज्जित हो गयें शिव का अंहकार बुरी तरह चूर-चूर हो गया। मैंने शिव को समझाया। एक बार फिर शिव अंहकार से भरे हुए भयानक असुर त्रिपुर का वध करने के लिए गये। शिव मन ही मन यह समझ रहे थे कि वे संहारक है।

शिव युद्व भूमि में चले तो गये पर मेरे ही द्वारा दिये गये त्रिशुल और कृष्ण-कवच साथ नहीं ले गये। भयानक युद्व हुआ और दैत्यराज ने शिव को उठाकर जमीन पर दे मारा। भय के कारण शिव ने एक बार फिर हे कृष्ण मेरी रक्षा करो पुकारने लगे तब मैंने शिव की रक्षा कर उन्हें त्रिशुल और कृष्ण-कवच दिया जिससे दैत्य का वध हो सका। इसके बाद शिव लज्जापूर्वक मेरी स्तुती किया। इस घटना के बाद शिव भी अंहकार का परित्याग कर दिया।

इस प्रकार शिव का अंहकार समाप्त हुआ। अंहकार और लापरवाही से ही शिव को भी मृत्यु सामने नजर आने लगा। शिव ने भी भगवान श्रीकृष्ण को पुकारा और उनकी रक्षा हो गई। इस कहानी से हमें भी सीख लेनी चाहिए कि हम अंहकार का परित्याग करें। शिव यह भी बतला रहे हैं किनके शरण में जाकर हम पूर्णतः सुरक्षित है। अतः श्रीकृष्ण के ही शरण में रहिये।

-राजाराम राकेश,कार्यालय सहायक, अधीक्षक डाकघर टिहरी उत्तराखण्ड

शनिवार, 1 जनवरी 2011

नूतन वर्ष-2011 की शुभकामनायें


नव वर्ष में आपकी साधना को, आपके सृजन को उत्तरोत्तर आयाम प्राप्त हों, यदुकुल की ओर से सभी को यही आत्मिक शुभकामनाएं !!

*****आप सभी को नूतन वर्ष-2011 की ढेरों शुभकामनायें *****