प्रतिभा कभी उम्र की मोहताज नहीं होती। इस कहावत को मुक्केबाज विकास कृष्ण यादव ने जहां एशियाई खेलों में मात्र 18 वर्ष की आयु में स्वर्ण पदक जीत कर सही साबित किया था वहीं अब उन्होंने उन्नीस वर्ष की आयु में ही विश्व चैम्पियनशिप में भी कांस्य पदक जीत कर खुद को बॉक्सिंग के रिंग का नया नायक साबित कर दिया है। विकास एशियाड में बॉक्सिंग का गोल्ड मैडल जीतने वाले अब तक के सबसे कम उम्र के मुक्केबाज हैं।
विकास अभी हाल ही में अजरबैजान के बाकू में हुई विश्व मुक्केबाजी प्रतिस्पर्धा में कांस्य पदक लाने वाले इकलौते भारतीय मुक्केबाज हैं। उन्होंने लंदन में होने वाले ओलम्पिक खेलों के लिए भी क्वालिफाई कर लिया और ओलम्पिक में अपने मुक्के का दम दिखाने के लिए अभी से तैयारियों में जुट गए हैं।
इस युवा प्रतिभावान मुक्केबाज की अब तक की उपलब्धियां भी कम नहीं हैं। विकास यादव यूथ एशियन मुक्केबाजी में स्वर्ण पदक पर कब्ज़ा कर सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाज का खिताब जीत चुके हैं। यूथ ओलम्पिक में रजत पदक जीत वे 2010 के सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय मुक्केबाज अन्डर 17 और अन्डर 19 में अपने भार वर्ग में विश्व चैम्पियन भी रह चुके हैं। गौरतलब है कि इस युवा मुक्केबाज ने 12 साल बाद एशियाई खेलों में भारत को स्वर्ण पदक दिलाया था। भारत ने 1998 में डिंको सिंह के स्वर्ण पदक के बाद से एशियाई खेलों में कोई सोने का तगमा नहीं जीता था। 12 साल बाद पदक का ये अकाल विकास यादव ने खत्म किया। जैसे ही हरियाणा का लाडला विकास यादव पंचों के जौहर दिखाने के लिए रिंग में उतरता है तो लाखों खेल प्रेमियों की निगाहें टेलीविजन पर लग जाती हैं।
साधारण किसान परिवार मेें 10 फरवरी, 1992 को हिसार जिले के गांव सिंघवा में कृष्ण यादव व श्रीमती दर्शना के घर पैदा हुए विकास भिवानी के वैश्य कॉलेज के विद्यार्थी हैं और आजकल उनका परिवार भिवानी के सेक्टर 13 में रहता है। विकास के पिता कृष्ण यादव बिजली निगम में स्टैनोग्राफर के पद पर कार्यरत हैं और मां श्रीमती दर्शना गृहणी हैं। मुक्केबाजी को कैरियर बनाने के सवाल पर विकास का कहना है कि वह एक दिन भिवानी स्टेडियम में घूमने गए तो वहां बच्चों और युवाओं को बॉक्सिंग का अभ्यास करते देखा और उसके मन में भी बॉक्सिंग सीखने की ललक पैदा हुई। इस बारे में जब उसने घर आकर मां-पिताजी से बात की तो उन्होंने भी सहमति दे दी। शौकिया शुरू किये बॉक्सिंग के अभ्यास में जब विकास अपने मुक्के का जौहर दिखाने लगा तो उसे कोच और परिवार ने प्रोत्साहित किया। अपनी कड़ी मेहनत, परिवार के समर्थन और कोच के कुशल निर्देशन के परिणाम स्वरूप बहुत छोटी उम्र में ही उसने 17 वर्ष से भी कम आयु में यूथ विश्व चैम्पियन बनकर अपनी प्रतिभा का परिचय दे दिया था।
इसके बाद तो उन्होंने मुड़ कर ही नहीं देखा। विकास भारत के एकमात्र ऐसे मुक्केबाज हैं जिन्होंने एशियाड में गोल्ड और विश्व चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीत कर अपने देश को गौरवान्वित किया है।
विकास कृष्ण का लक्ष्य अपने देश के लिए ओलम्पिक में सोना जीतने का है और इसके लिए अभी से तैयारी में जुट चुके हंै। उनके दादा सरजीत सिंह का कहना है कि उन्हें लेश मात्र भी शक नहीं है कि उनका पोता देश के लिए ओलम्पिक में स्वर्ण जीतेगा। विकास के माता-पिता का कहना है कि उनका बेटा इरादे का पक्का है। खाने में उसे चूरमा और गोंद के लड्डू बहुत पसंद हैं। अभी उनकी उम्र महज 19 साल है और वे कड़ी मेहनत से ओलम्पिक की तैयारी में जुटे हुए हैं। आशा है वे देश के लिए ओलम्पिक में भी पहला स्वर्ण लाने में सफल रहेंगे।
बॉक्सिंग-के-रिंग-का-नया-ना/">साभार : रघुविन्द्र यादव : दैनिक ट्रिब्यून
विकास अभी हाल ही में अजरबैजान के बाकू में हुई विश्व मुक्केबाजी प्रतिस्पर्धा में कांस्य पदक लाने वाले इकलौते भारतीय मुक्केबाज हैं। उन्होंने लंदन में होने वाले ओलम्पिक खेलों के लिए भी क्वालिफाई कर लिया और ओलम्पिक में अपने मुक्के का दम दिखाने के लिए अभी से तैयारियों में जुट गए हैं।
इस युवा प्रतिभावान मुक्केबाज की अब तक की उपलब्धियां भी कम नहीं हैं। विकास यादव यूथ एशियन मुक्केबाजी में स्वर्ण पदक पर कब्ज़ा कर सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाज का खिताब जीत चुके हैं। यूथ ओलम्पिक में रजत पदक जीत वे 2010 के सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय मुक्केबाज अन्डर 17 और अन्डर 19 में अपने भार वर्ग में विश्व चैम्पियन भी रह चुके हैं। गौरतलब है कि इस युवा मुक्केबाज ने 12 साल बाद एशियाई खेलों में भारत को स्वर्ण पदक दिलाया था। भारत ने 1998 में डिंको सिंह के स्वर्ण पदक के बाद से एशियाई खेलों में कोई सोने का तगमा नहीं जीता था। 12 साल बाद पदक का ये अकाल विकास यादव ने खत्म किया। जैसे ही हरियाणा का लाडला विकास यादव पंचों के जौहर दिखाने के लिए रिंग में उतरता है तो लाखों खेल प्रेमियों की निगाहें टेलीविजन पर लग जाती हैं।
साधारण किसान परिवार मेें 10 फरवरी, 1992 को हिसार जिले के गांव सिंघवा में कृष्ण यादव व श्रीमती दर्शना के घर पैदा हुए विकास भिवानी के वैश्य कॉलेज के विद्यार्थी हैं और आजकल उनका परिवार भिवानी के सेक्टर 13 में रहता है। विकास के पिता कृष्ण यादव बिजली निगम में स्टैनोग्राफर के पद पर कार्यरत हैं और मां श्रीमती दर्शना गृहणी हैं। मुक्केबाजी को कैरियर बनाने के सवाल पर विकास का कहना है कि वह एक दिन भिवानी स्टेडियम में घूमने गए तो वहां बच्चों और युवाओं को बॉक्सिंग का अभ्यास करते देखा और उसके मन में भी बॉक्सिंग सीखने की ललक पैदा हुई। इस बारे में जब उसने घर आकर मां-पिताजी से बात की तो उन्होंने भी सहमति दे दी। शौकिया शुरू किये बॉक्सिंग के अभ्यास में जब विकास अपने मुक्के का जौहर दिखाने लगा तो उसे कोच और परिवार ने प्रोत्साहित किया। अपनी कड़ी मेहनत, परिवार के समर्थन और कोच के कुशल निर्देशन के परिणाम स्वरूप बहुत छोटी उम्र में ही उसने 17 वर्ष से भी कम आयु में यूथ विश्व चैम्पियन बनकर अपनी प्रतिभा का परिचय दे दिया था।
इसके बाद तो उन्होंने मुड़ कर ही नहीं देखा। विकास भारत के एकमात्र ऐसे मुक्केबाज हैं जिन्होंने एशियाड में गोल्ड और विश्व चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीत कर अपने देश को गौरवान्वित किया है।
विकास कृष्ण का लक्ष्य अपने देश के लिए ओलम्पिक में सोना जीतने का है और इसके लिए अभी से तैयारी में जुट चुके हंै। उनके दादा सरजीत सिंह का कहना है कि उन्हें लेश मात्र भी शक नहीं है कि उनका पोता देश के लिए ओलम्पिक में स्वर्ण जीतेगा। विकास के माता-पिता का कहना है कि उनका बेटा इरादे का पक्का है। खाने में उसे चूरमा और गोंद के लड्डू बहुत पसंद हैं। अभी उनकी उम्र महज 19 साल है और वे कड़ी मेहनत से ओलम्पिक की तैयारी में जुटे हुए हैं। आशा है वे देश के लिए ओलम्पिक में भी पहला स्वर्ण लाने में सफल रहेंगे।
बॉक्सिंग-के-रिंग-का-नया-ना/">साभार : रघुविन्द्र यादव : दैनिक ट्रिब्यून
1 टिप्पणी:
Great Achievement...Nice Article !!
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