रविवार, 27 दिसंबर 2009

चौधरी हरमोहन सिंह यादव : ग्राम सभा से राज्य सभा तक


नाम ः चौधरी हरमोहन सिंह यादव/
जन्म ः 18 अक्टूबर, 1921, मेहरबान सिंह का पुरवा, कानपुर नगर/
पिता ः चौधरी धनीराम सिंह यादव/
वैवाहिक स्थति ः विवाह, श्रीमती गयाकुमारी जी के साथ। आपके पाँच पुत्र एवं एक पुत्री है/
शिक्षा ः हायर सेकेण्डरी/
राष्ट्रीय अध्यक्षः
अखिल भारतीय यादव महासभा, सन् 1980 (मथुरा)/
अखिल भारतीय यादव महासभा, सन् 1993 (हैदराबाद)/
अखिल भारतीय यादव सभा, सन् 1994 /
अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा के का0 अध्यक्ष 2007 तक/
संस्थापकः
श्रीकृष्ण भवन, वैशाली, गाजियाबाद/
कैलाश विद्यालोक इण्टर काॅलेज/
चौधरी रामगोपाल सिंह विधि महाविद्यालय, मेहरबान सिंह का पुरवा, कानपुर/
मनोरंजन एकता पार्क, कानपुर/
गयाकुमार इण्टर काॅलेज एवं छात्रावास, मेहरबान सिंह का पुरवा, कानपुर/
मोहन मंदिर, मेहरबान सिंह का पुरवा, कानपुर/
राजनैतिक :
प्रधान (निर्विरोध), लगातार दो बार, ग्रामसभा गुजैनी, सन् 1952/
सदस्य, (निर्विरोध), अंतरिम जिलापरिषद/
सभासद, कानपुर महापालिका सन् 1959, दूसरी बार, 1967/
पदेन सदस्य, कानपुर नगर निगम, लगभग 42 वर्ष/
जिला सहकारी बैंक के प्रथम अध्यक्ष/
उत्तर प्रदेश भूमि विकास बैंक के उपाध्यक्ष (निर्विरोध)/
दिनांक 06 मई, 1970 को प्रथम बार कानपुर-फर्रूखाबाद स्थानीय निकाय निर्वाचन क्षेत्र से उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित। आपका कार्यकाल 05 मई, 1976 तक रहा।/
द्वितीय बार दिनांक 06 मई, 1976 को कानपुर-फर्रूखाबाद स्थानीय निकाय निर्वाचन क्षेत्र से उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित। आपका कार्यकाल 05 मई, 1982 तक रहा। /
तृतीय बार दिनांक 06 मई, 1984 से जनता दल समाजवादी के टिकट पर विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित। आपका कार्यकाल 05 मई, 1990 तक रहा।/
सभापति (दो बार) उत्तर प्रदेश विधान परिषद की आश्वासन समिति के। /
संसदीय राजभाषा समिति के सदस्य रहे।/
पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष, लोकदल।/
पूर्व सदस्य, राष्ट्रीय कार्यकारिणी, लोकदल एवं जनता दल।/
सदस्य, राज्य सभा सन् 1990 से 1996 तक।/
सदस्य राज्यसभा सन् 1997 से 2003/
महामहिम राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत।/
रुचिः समाजसेवा, ग्रामीण विकास एवं किसानों के हितों की रक्षा में। /
अन्यः सन् 1984 में श्रीमती इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद रतन लाल नगर, कानपुर के सिख भाइयों की लगभग 4-5 घण्टे अपने सुपुत्र चौधरी सुखराम सिंह यादव (सभापति, विधान परिषद उत्तर प्रदेश) के साथ हवाई फायरिंग करके दंगाइयों से रक्षा करने के कारण सन् 1991 में भारत के महामहिम राष्ट्रपति द्वारा शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया।/
स्थायी पताः ग्राम मेहरबान सिंह का पुरवा, तहसील व जिला-कानपुर, उ0प्र0।

सोमवार, 21 दिसंबर 2009

'बाल साहित्य समीक्षा' का आकांक्षा यादव विशेषांक

बच्चों के समग्र विकास में बाल साहित्य की सदैव से प्रमुख भूमिका रही है। बाल साहित्य बच्चों से सीधा संवाद स्थापित करने की विधा है। बाल साहित्य बच्चों की एक भरी-पूरी, जीती-जागती दुनिया की समर्थ प्रस्तुति और बालमन की सूक्ष्म संवेदना की अभिव्यक्ति है। यही कारण है कि बाल साहित्य में वैज्ञानिक दृष्टिकोण व विषय की गम्भीरता के साथ-साथ रोचकता व मनोरंजकता का भी ध्यान रखना होता है। समकालीन बाल साहित्य केवल बच्चों पर ही केन्द्रित नहीं है अपितु उनकी सोच में आये परिवर्तन को भी बखूबी रेखाकित करता है। सोहन लाल द्विवेदी जी ने अपनी कविता ‘बड़ों का संग’ में बाल प्रवृत्ति पर लिखा है कि-''खेलोगे तुम अगर फूल से तो सुगंध फैलाओगे।/खेलोगे तुम अगर धूल से तो गन्दे हो जाओगे/कौवे से यदि साथ करोगे, तो बोलोगे कडुए बोल/कोयल से यदि साथ करोगे, तो दोगे तुम मिश्री घोल/जैसा भी रंग रंगना चाहो, घोलो वैसा ही ले रंग/अगर बडे़ तुम बनना चाहो, तो फिर रहो बड़ों के संग।''
आकांक्षा जी बाल साहित्य में भी उतनी ही सक्रिय हैं, जितनी अन्य विधाओं में। बाल साहित्य बच्चों को उनके परिवेश, सामाजिक-सांस्कृतिक परम्पराओं, संस्कारों, जीवन मूल्य, आचार-विचार और व्यवहार के प्रति सतत् चेतन बनाने में अपनी भूमिका निभाता आया है। बाल साहित्यकार के रूप में आकांक्षा जी की दृष्टि कितनी व्यापक है, इसका अंदाजा उनकी कविताओं में देखने को मिलता है। इसी के मद्देनजर कानपुर से डा0 राष्ट्रबन्धु द्वारा सम्पादित-प्रकाशित ’बाल साहित्य समीक्षा’ ने नवम्बर 2009 अंक आकांक्षा यादव जी पर विशेषांक रूप में केन्द्रित किया है। 30 पृष्ठों की बाल साहित्य को समर्पित इस मासिक पत्रिका के आवरण पृष्ठ पर बाल साहित्य की आशा को दृष्टांकित करता आकांक्षा यादव जी का सुन्दर चित्र सुशोभित है। इस विशेषांक में आकांक्षा जी के व्यक्तित्व-कृतित्व पर कुल 9 रचनाएं संकलित हैं।
’’सांस्कृतिक टाइम्स’’ की विद्वान सम्पादिका निशा वर्मा ने ’’संवेदना के धरातल पर विस्तृत होती रचनाधर्मिता’’ के तहत आकांक्षा जी के जीवन और उनकी रचनाधर्मिता पर विस्तृत प्रकाश डाला है तो उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन से जुडे दुर्गाचरण मिश्र ने आकांक्षा जी के जीवन को काव्य पंक्तियों में बखूबी गूंथा है। प्रसि़द्ध बाल साहित्यकार डा0 राष्ट्रबन्धु जी ने आकांक्षा जी के बाल रचना संसार को शब्दों में भरा है तो बाल-मन को विस्तार देती आकांक्षा यादव की कविताओं पर चर्चित समालोचक गोवर्धन यादव जी ने भी कलम चलाई है। डा0 कामना सिंह, आकांक्षा यादव की बाल कविताओं में जीवन-निर्माण का संदेश देखती हैं तो कविवर जवाहर लाल ’जलज’ उनकी कविताओं में प्रेरक तत्वों को परिलक्षित करते हैं।

वरिष्ठ बाल साहित्यकार डा0 शकुन्तला कालरा, आकांक्षा जी की रचनाओं में बच्चों और उनके आस-पास की भाव सम्पदा को चित्रित करती हैं, वहीं चर्चित साहित्यकार प्रो0 उषा यादव भी आकांक्षा यादव के उज्ज्वल साहित्यिक भविष्य के लिए अशेष शुभकामनाएं देती हैं। राष्ट्भाषा प्रचार समिति-उ0प्र0 के संयोजक डा0 बद्री नारायण तिवारी, आकांक्षा यादव के बाल साहित्य पर चर्चा के साथ दूर-दर्शनी संस्कृति से परे बाल साहित्य को समृद्ध करने पर जोर देते हैं, जो कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बेहद प्रासंगिक भी है। साहित्य साधना में सक्रिय सर्जिका आकांक्षा यादव के बहुआयामी व्यक्तित्व को युवा लेखिका डा0 सुनीता यदुवंशी बखूबी रेखांकित करती हैं। बचपन और बचपन की मनोदशा पर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत आकांक्षा जी का आलेख ’’खो रहा है बचपन’’ बेहद प्रभावी व समयानुकूल है।

आकांक्षा जी बाल साहित्य में नवोदित रचनाकार हैं, पर उनका सशक्त लेखन भविष्य के प्रति आश्वस्त करता हैं। तभी तो अपने संपादकीय में डा0 राष्ट्रबन्धु लिखते हैं-’’बाल साहित्य की आशा के रूप में आकांक्षा यादव का स्वागत कीजिए, उन जैसी प्रतिभाओं को आगे बढ़ने का रास्ता दीजिए। फूलों की यही नियति है।’’ निश्चिततः ’बाल साहित्य समीक्षा’ द्वारा आकांक्षा यादव पर जारी यह विशेषांक बेहतरीन रूप में प्रस्तुत किया गया है। एक साथ स्थापित व नवोदित रचनाकारों को प्रोत्साहन देना डाॅ0 राष्ट्रबन्धु जी का विलक्षण गुण हैं और इसके लिए डा0 राष्ट्रबन्धु जी साधुवाद के पात्र हैं।
समीक्ष्य पत्रिका-बाल साहित्य समीक्षा (मा0) सम्पादक-डा0 राष्ट्रबन्धु,, मूल्य 15 रू0, पता-109/309, रामकृष्ण नगर, कानपुर-208012समीक्षक- जवाहर लाल ‘जलज‘, ‘जलज निकुंज‘ शंकर नगर, बांदा (उ0प्र0)

शनिवार, 19 दिसंबर 2009

1857 की झूठी वीरांगना : रानी लक्ष्मीबाई

"आल्हा-ऊदल और बुन्देलखण्ड" (लेखक-कौशलेन्द्र यादव, ARTO-बिजनौर) पुस्तक को लेकर एक विवाद खड़ा हो गया है. प्रथम खंड में सम्मलित अंतिम चैप्टर "1857 की झूठी वीरांगना-रानी लक्ष्मीबाई" को लेकर ही इस पुस्तक का तमाम लोगों द्वारा विरोध किया जा रहा है, यहाँ तक कि लेखक के सर की कीमत भी 30,000 रूपये मुक़र्रर कर दी गई है. अब लेखक के पक्ष में भी तमाम संगठन आगे आने लगे हैं. सारी लड़ाई इस बात को लेकर है कि क्या इतिहास कुछ छिपा रहा है ? क्या इतिहासकारों ने दलितों-पिछड़ों के योगदान को विस्मृत किया है ? आप भी इस चैप्टर को यहाँ पढ़ें और अपनी राय दें-










विवादों के घेरे में एक सार्थक पुस्तक : आल्हा-उदल और बुंदेलखंड

आजकल किताबें बाजार में बाद में आती हैं, उनकी चर्चा पहले आरंभ हो जाती है. किताब में कितने भी चैप्टर हों, पर यदि एक चैप्टर विवादित हो गया तो पूरी किताब को इसकी कीमत चुकानी पड़ती है. ऐसा ही हुआ है कौशलेन्द्र प्रताप यादव की पुस्तक "आल्हा-उदल और बुंदेलखंड" के साथ. कौशलेन्द्र उत्तर प्रदेश के बिजनौर जनपद में ARTO के पद पर तैनात हैं. 198 पृष्ठों की यह पुस्तक तीन में खण्डों विभाजित हैं- बुंदेलखंड, आल्ह खण्ड, महोबा खण्ड. प्रथम खंड में बुंदेलखंड की पूरी संस्कृति खूबसूरत चित्रों के साथ समाहित है. पुस्तक का पहला चैप्टर ही खजुराहो की मूर्तियों के बारे में है कि ये अश्लील नहीं हैं, बल्कि इनके पीछे तमाम रहस्य छुपे हुए हैं. बुंदेलखंड के तमाम अमर चरित्र और चर्चित स्थानों के बारे में पुस्तक में शोधपरक जानकारियां दी गई हैं. प्रथम खंड में सम्मलित अंतिम चैप्टर "1857 की झूठी वीरांगना-रानी लक्ष्मीबाई" को लेकर ही इस पुस्तक का तमाम लोगों द्वारा विरोध किया जा रहा है, यहाँ तक की लेखक के सर की कीमत भी 30,000 रूपये मुक़र्रर कर दी गई है. ऐसी घटनाओं को देखकर कई बार शक भी होता है कि हम एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र हैं या नहीं. आल्हा-उदल-मलखान के किस्से हमने बहुत सुने हैं, पर यह पुस्तक उनके सम्बन्ध में तमाम जानकारी उपलब्ध कराती है. महोबा के तालाब-बावड़ियों कि कहानी यहाँ दर्ज है, तो लखनऊ में भी महोबा कि बात यहाँ दर्ज की गई है। लोक-भाषा में दिए गए तमाम उद्धरण पुस्तक को रोचक बनाते हैं. कुल मिलाकर पुस्तक काफी रोचक और शोधपूर्ण है. लेखक ने महोबा में अपनी पोस्टिंग के दौरान जो अनुभव बटोरे, उन्हें शब्दों की धार दी, जिसके चलते पुस्तक और भी महत्वपूर्ण हो गई है. ग्लेज़्ड पृष्ठों पर उकेरी गई इस पुस्तक को लेकर एक शिकायत हो सकती है कि इसका मूल्य हर किसी के वश में नहीं है, पर इस पुस्तक को पढ़ना एक सुखद अनुभव हो सकता है. लेखक कौशलेन्द्र प्रताप यादव इस पुस्तक के लिए साधुवाद के पात्र हैं !!

पुस्तक : आल्हा-उदल और बुन्देलखण्ड/ लेखक : कौशलेन्द्र प्रताप यादव /मूल्य : 650/- / पृष्ठ : 198/प्रकाशक : प्रगति प्रकाशन-240, वैस्टर्न कचहरी रोड, मेरठ

रविवार, 13 दिसंबर 2009

भोजपुरी के जुबली स्टार : दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ

(इण्डिया टुडे के 11 नबम्बर 2009 अंक में यू0पी0- उत्तराखण्ड के कुछ ऐसे विलक्षण परन्तु अनचीन्ही शख्सियतों के बारे में चर्चा है जिन्होने जीवन के विविध क्षेत्रों में परिश्रम और दृढ़ संकल्प के बूते कुछ अलग कार्य किया है। इनमें से कुछ एक नाम यदुवंश से हैं, इन सभी को यदुकुल की तरफ से बधाई)--
चार साल में वे 50 लाख रू. की प्राइज वाले जुबली स्टार हैं. उनकी अब तक रिलीज 22 फिल्मों में से 2 गोल्डन जुबली, 4 सिल्वर जुबली, 13 सुपर हिट, 2 औसत और मात्र एक फ्लॉप रहीं. बचपन से फिल्मों के दीवानें दिनेश लाल यादव रात को तीन किमी दूर बीडियो पर फिल्म देखने जाते थे, कुछ साल गायकी में संघर्ष करने के बाद 2003 में टी सीरीज के 'निरहुआ सटल रहे' ने उन्हें लोकप्रियता की बुलदिंयों पर पहुंचा दिया और ’निरहुआ’ उनके नाम के साथ चिपक गया. 2005 में फिल्म 'हमका अहइसा वइसा न समझा' में उन्हें बतौर हीरो मौका मिला और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

सफलता का गुरः ईमानदारी और कड़ी मेहनत.
सबसे बड़ी बाधाः बेईमानी और धोखाधड़ी करने वालो पर गुस्सा फूट पड़ता है.
सबसे बड़ी ताकतः परिवार और प्रशंसकों का उनमें भरोसा, जिसने हमेशा हौसला बनाए रखा.
जिंदगी का सबसे अहम क्षणः 2007 में जब उन्होने माँ के लिए गाँव के पुराने मकान को महल-सा बनवाया तो उनकी ऑंखें छलक आई.

गुरुवार, 10 दिसंबर 2009

बिरहा से मोह रहे मन : डाॅ0 मन्नू यादव

(इण्डिया टुडे के 11 नबम्बर 2009 अंक में यू0पी0- उत्तराखण्ड के कुछ ऐसे विलक्षण परन्तु अनचीन्ही शख्सियतों के बारे में चर्चा है जिन्होने जीवन के विविध क्षेत्रों में परिश्रम और दृढ़ संकल्प के बूते कुछ अलग कार्य किया है। इनमें से कुछ एक नाम यदुवंश से हैं, इन सभी को यदुकुल की तरफ से बधाई)-
आज संगीत की एक विधा बिरहा को बचाने में लगे हैं 37 वर्षीय डाॅ0 मन्नू यादव। चौथी कक्षा से बिरहा सीखने लग गए मन्नू यादव ने इस विधा की मौलिकता बनाकर रखी और उसे विश्व पटल पर ले जाने के लिए प्रयासरत हैं. नौंवी कक्षा तक जाते-जाते वे बाल कलाकार के रूप में विख्यात हो चुके थे और रामदेव, परशूराम तथा बुल्लू जैसे कलाकारों से उनका मुकाबला होने लगा था. मूलरूप से मिर्जापुर जिले के निवासी मन्नू यादव की गायकी में अश्लीलता और फूहड़ता की बजाए छंद, मात्रा, पिंगल, अलंकार, बंदिश, कलाघर छंद, माधवी छंद, जवाब बंद और अक्षर छंदों की सुन्दर मंचीय प्रस्तुती को लोगों ने खूब सराहा. नतीजतन उनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी और उन्हें बड़े सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बुलाया जाने लगा. वे विभिन्न राज्यों में बिरहा गायन शैली प्रस्तुत कर चुके हैं. 2007 मे सार्क देशों के फोर फेस्टिवल में भी वे बिरहा प्रस्तुति के लिए आमंत्रित किए गए, जहाँ उन्होंने अपने गायन से लोगों का मन मोह लिया।
सफलता का गुरः ईमानदारी और सच्चाई का पालन करना
सबसे बड़ी बाधा : ईर्ष्या करने वाले लोग हैं जो दूसरों को आगे बढ़ने नहीं देना चाहते।
सबसे बड़ी ताकतः खुद पर भरोसा रखना, जिससे आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है.
जिंदगी का सबसे अहम क्षणः सन् 1857 की क्रांति के 150 वर्ष पूरे होने पर लालकिले से जब राष्ट्रपति की उपस्थिति में उन्होने बिरहा गायन किया.

बुधवार, 9 दिसंबर 2009

युद्धबंदियों और शहीदों के परिजनों को उम्मीदें बाँट रहा साइकिल यात्री : हीरालाल यादव

(इण्डिया टुडे के 11 नबम्बर 2009 अंक में यू0पी0- उत्तराखण्ड के कुछ ऐसे विलक्षण परन्तु अनचीन्ही शख्सियतों के बारे में चर्चा है जिन्होने जीवन के विविध क्षेत्रों में परिश्रम और दृढ़ संकल्प के बूते कुछ अलग कार्य किया है। इनमें से कुछ एक नाम यदुवंश से हैं, इन सभी को यदुकुल की तरफ से बधाई)--


बगैर सीट वाली साइकिल से 52 वर्षीय हीरालाल यादव पिछले एक दशक में देश और दुनिया में 65,000 किमी की दूरी नाम चुके हैं, कभी वे किसी युद्धबंदी के परिजनों के पास बैठकर खत लिख रहे होते हैं तो कभी शहीद के परिजन से दुःख बांटते हैं, अन्य दिनों में वे युद्धबंदियों की रिहाई पर केंद्रित अपनी प्रदर्शनी में व्यस्त होते हैं या फिर सभागार में अभागे फौजियों और उनके परिजनों पर लिखी कविताएं सुना रहे होते हैं। गोरखपुर जिले के, पेशे से बीमा एजेण्ट हीरालाल यादव का यह जुनून 1997 में आजादी की स्वर्ण जयंती से शुरू हुआ. वे साइकिल से सद्भावना यात्रा पर निकल पड़े. 1999 में उन्होने कारगिल सलाम सैनिक यात्रा की. इसके बाद तो यह सिलसिला उनके जीवन का हिस्सा ही बन गया।
सफलता का गुरः कोई काम नामुमकिन नही है.
सबसे बड़ी बाधाः जब लोग इस अभियान के ’फायदे’ पर बहस करते हैं.
सबसे बड़ी ताकतः फल की दुकान चलाने वाली उनकी पत्नी शकुन्तला, जो अक्सर दौरे पर रहती है.
जिंदगी का सबसे अहम क्षणः 30 जुलाई 99 का दिन जब कारगिल में सैनिकों ने उनकी अगवानी की और उन्हें सगे भाई से ज्यादा सगा कहा.

रविवार, 6 दिसंबर 2009

कम उम्र में बड़ा सम्मान पाने वाला उदीयमान वैज्ञानिक-शिक्षक : डा0 अनिल कुमार यादव

(इण्डिया टुडे के 11 नबम्बर 2009 अंक में यू0पी0- उत्तराखण्ड के कुछ ऐसे विलक्षण परन्तु अनचीन्ही शख्सियतों के बारे में चर्चा है जिन्होने जीवन के विविध क्षेत्रों में परिश्रम और दृढ़ संकल्प के बूते कुछ अलग कार्य किया है। इनमें से कुछ एक नाम यदुवंश से हैं, इन सभी को यदुकुल की तरफ से बधाई)--

वर्तमान में सुखद भविष्य के अंकुर दिखते हैं, आजमगढ़ के एक प्राइमरी अध्यापक के बेटे 26 वर्षीय डाॅ0 अनिल कुमार यादव को भारतीय अल्ट्रासोनिक सोसाइटी ने पिछले साल डाॅ0 एम।पांचोली सम्मान के लिए चुना, यह उनके उस निष्कर्ष का सम्मान था जिसमें उन्होने पता लगाया कि गैलियम नाइट्राइड नैनोट्यूब की मोटाई बदलने से उसकी ऊष्मा चालकता कितनी बदलती है, इसका उपयोग ऊर्जा संरक्षण, हाइपावर-हाइफ्रेक्वेंसी इलेक्ट्रानिक उपकरण, ब्लू लाइट एमिटिंग उपकरण, चिकित्सकीय परीक्षणों और बायोकेमिकल सेंसिंग उपकरणों को किफायती बना सकता है। सम्मान के निर्णायकों में देश और विदेश के नामी वैज्ञानिक थे. अनिल कुमार यादव कहते हैं, ’’अच्छा शिक्षक और वैज्ञानिक बनना मेरी तमन्ना है.’’ बतौर डा0 राजाराम यादव, रीडर, इलाहबाद विश्वविद्यालय-"अन्वेषी मष्तिक, टीम भावना, अहंकार शून्यता, जल्दी समझने की शक्ति अनिल कुमार यादव के गुण हैं।"

सफलता का गुरः हर काम को नये ढंग से और समर्पित भाव से करना.
सबसे बड़ी बाधाः इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अनुसंधान के लिए संसाधनों की कमी.
सबसे बड़ी ताकतः पढ़ाई, अध्यापन और अनुसंधान में दिलचस्पी,
जिंदगी का सबसे अहम क्षणः जब प्रथम डाॅ0 एम पंचोली अवार्ड के लिए चुना गया.

बुधवार, 2 दिसंबर 2009

श्यामलाल यादव को पहला आरटीआई पुरस्कार

इंडिया टुडे के पत्रकार श्यामलाल यादव को देश के पहले पीसीआरएफ-एनडीटीवी राष्ट्रीय सूचना का अधिकार पुरस्कार के लिए चयन हुआ है. श्‍यामलाल यादव , इंडिया टुडे के स्‍पेशल कॉरेस्‍पॉडेंट है. श्‍यामलाल यादव को यह अवार्ड उन 1130 लोगों के बीच मिला है जो इस अवार्ड के लिए नामांकित किए गए थें. उन्हें यह पुरस्कार हाल ही में सूचना के अधिकार के तहत किए गए उनके काम के लिए दिया गया है. यादव ने अब तक विभिन्न मंत्रालयों में सूचना के अधिकार के तहत 1,700 से ज्यादा आवेदन दायर किए हैं. इस अवार्ड के तहत श्‍यामलाल यादव को 1 दिसंबर को भारत के उपराष्‍ट्रपति हामिद अंसारी द्वारा एक लाख रुपये और एक प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। इस अवार्ड के लिए एक ज्‍यूरी बनाई गई थी जिसमें अभिनेता आमिर खान, इन्‍फोसिस के संस्‍थापक एन। आर. नारायण मूर्ति, एनडीटीवी के सीएमडी प्रणव रॉय, प्रसिद्ध नृत्‍यांगना मल्लिका साराभाई, मधु त्रेहन, जस्टिस (सेवानिवृत) जे. एस. वर्मा, पूर्व मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त जे. एम. लिंगदोह, पुलेला गोपीचंद और संजय गुप्‍ता शामिल थे. यह अवार्ड का पहला साल है और इसके पहले विजेता श्‍यामलाल यादव बने हैं.

श्यामलाल यादव पिछले पांच साल से इंडिया टुडे में हैं।श्यामलाल यादव इंडिया टुडे से पहले कुछ दिन अमर उजाला के दिल्ली ब्यूरो में रह चुके हैं। इससे पहले वो जनसत्ता में रहे। आजकल सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करके वो सरकार से ऐसी ऐसी जानकारी निकलवा ले रहे हैं जिनके बारे में सुनकर आम पाठक भौंचक रह जाता है। मंत्रियों और अफसरों की विदेश यात्राओं पर आरटीआई के ज़रिये उन्होने ही जानकारी निकलवाई और लोगों को बताया कि उनके टैक्स का कितना पैसा ये लोग बेदर्दी से उड़ा रहे हैं।
श्यामलाल यादव को मंगलमय और उज्ज्‍वल भविष्य की कामना सहित यदुकुल-परिवार की ओर से ढेरों बधाई !!!!