पूर्व केंद्रीय मंत्री डीपी यादव के नाम से भला कौन अपरिचित होगा। वह उन राजनेताओं में से थे, जिन्होंने अंत तक शुचिता का दमन नहीं छोड़ा।11 अगस्त को उनके निधन के साथ ही इस परंपरा का एक वाहक भी ख़त्म हो गया। उन्होंने दिल्ली के मैक्स अस्पताल में अंतिम सांस ली। वे 76 वर्ष के थे।
गौरतलब है कि डीपी यादव 1972 में पहली बार सांसद बने थे। उस वक्त उनकी उम्र महज 34 वर्ष थी। कांग्रेस के टिकट पर उन्होंने महान समाजवादी नेता मधुलिमये को पराजित किया था। 1977 के चुनावों में वे कृष्ण सिंह से पराजित हो गए थे। मगर, 1980 के चुनावों में उन्होंने कृष्ण सिंह को पराजित कर बदला चुकता कर लिया था।
डीपी यादव इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में केंद्रीय उप शिक्षा मंत्री बने। नई दिल्ली स्थित राजेंद्र भवन ट्रस्ट के उपाध्यक्ष रहे डीपी यादव महान शिक्षाविद भी थे। ‘मेरे सपनों का मुंगेर’, ‘बिहार आज और कल’, ‘ बिहार भविष्य के पांच साल ‘, ‘जागृत बिहार की तस्वीर’ जैसी दर्जनों पुस्तकें भी उन्होंने लिखीं।तीन बार मुंगेर संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके यादव अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक अपने क्षेत्र की समस्याओं के प्रति जागरुक रहे।
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