मंगलवार, 26 मई 2009

"यादव" से "यादव-ज्योति" तक का सफर

‘‘यादव ज्योति‘‘ पत्रिका यादव समाज की सबसे पुरानी पत्रिकाओं में से है। पिछले 32 वर्षों से सफलता पूर्वक निकल रही इस पत्रिका के संस्थापक संपादक स्व0 धर्मपाल सिंह रहे हैं और वर्तमान में उनकी धर्म पत्नी श्रीमती लालसा देवी इसका संपादन कर रही हैं। धर्मपाल सिंह जी का 13 जुलाई 2008 को अचानक हुए हृदयाघात से देहान्त हो गया था। धर्मपाल सिंह शास्त्री यादव समाज के आजन्म सेवक, ‘यादव‘ मासिक पत्रिका के सम्पादक तथा ‘यादव गांधी‘ के नाम से प्रसिद्ध राजित सिंह के सुपुत्र थे। ‘‘यादव‘‘ अखिल भारतीय यादव महासभा की वैधानिक पत्रिका थी। परन्तु राजित सिंह जी के स्वर्गवास के बाद यादव महासभा की अरूचि एवं उपेक्षापूर्ण रवैये से विक्षुब्ध धर्मपाल शास्त्री जी ने राजित सिंह जी की स्मृति में इसे ‘यादव-ज्योति‘ के नाम से अपने दम पर प्रकाशित करते रहने का संकल्प लिया। शास्त्री जी का अपना प्रिंटिंग प्रेस था। उन्होंने ‘यादव ज्योति‘ को निरंतर उच्चकोटि की पत्रिका बनाने के लिए अपने पूर्ण प्रयास किये। किन्तु कुछ विपरीत परिस्थितियों के कारण प्रेस की व्यवस्था लड़खड़ाने लगी और इसमें काफी हानि हुई। लेकिन शास्त्री जी न टूटे, न झुके। उन्होंने न किसी के आगे हाथ फैलाया, न किसी के आगे सहायता के लिए गिड़गिड़ाये। यहाँ तक कि यथेष्ठ सरकारी अनुदान के लिए भी प्रयास नहीं किये। यह सब उनके आत्मसम्मान की भावना और शुभ पारिवारिक संस्कारों के कारण ही था। व्यवसायिकता से दूर रहते हुए और पूर्ण रूप से सामाजिक सरोकारों से जुड़े रह कर समाज सेवा की भावना से ही वे इस कार्य में लगे रहे। ‘‘यादव-ज्योति‘‘ पत्रिका में यदुवंश से जुड़े सारगर्भित आलेखों के साथ-साथ सामाजिक-राजनैतिक विषयों पर भी रचनाएं समाहित हैं। यादव समाज की विभूतियों से जुड़ी खबरों के अलावा विभिन्न संस्थाओं द्वारा आयोजित कार्यक्रमों की विस्तृत रिपोर्ट है। वैवाहिक समाचार, शोकांजलि एवं अधिकारियों के प्रोन्नति-स्थानान्तरण संबंधी छोटी-छोटी खबरें पत्रिका को हर किसी तक पहुंचाने के दायित्वबोध का ही अंग दिखती हैं। राजदेव यादव द्वारा किश्तवार प्रस्तुत धारावाहिक ‘वीर लोरिक देव‘ अर्द्धशतक पूरा कर चुका है। भगवान कृष्ण के चित्र से सुसज्जित इस 32 पृष्ठ की पत्रिका में बहुत कुछ है पर इन्हें एक नजर में प्रदर्शित करने वाली विषय-सूची का अभाव खलता है। यदि सम्पादिका ‘पाठकों के पत्र‘ भी प्रकाशित करें तो संवाद की बेहतर गुंजाइश रहेगी और पत्रिका व्यापक आयामों के साथ देखी जा सकेगी।
संपर्क- श्रीमती लालसा देवी, ‘यादव-ज्योति‘ कार्यालय, के0 54/157-ए, दारानगर, वाराणसी-221001

15 टिप्‍पणियां:

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

यादव-ज्योति पत्रिका के बहाने आपने सारगर्भित जानकारी भी दी.वाकई आप यदुवंश समाज के हित में अच्छा कार्य कर रहे हैं...बधाई.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
बेनामी ने कहा…

आप कड़ी मेहनत कर रहे हैं, आपकी हर पोस्ट लाजवाब होती है.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

यादव पत्रिका का नाम तो सुना था पर इतनी विस्तृत जानकारी पहली बार मिली.

Akanksha Yadav ने कहा…

पत्रिका मेरी नज़रों से गुजरी है.....अच्छा प्रयास है.

KK Yadav ने कहा…

यदि सम्पादिका ‘पाठकों के पत्र‘ भी प्रकाशित करें तो संवाद की बेहतर गुंजाइश रहेगी और पत्रिका व्यापक आयामों के साथ देखी जा सकेगी...Im also agree.

www.dakbabu.blogspot.com ने कहा…

अजी हमने भी कभी डाक में यह पत्रिका देखी थी और उधार मांगकर पढ़ी थी.

Unknown ने कहा…

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Unknown ने कहा…

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Jay ने कहा…

मुझे ओ पत्रिका पढ़नी है कहा मिलेगी?

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KP Yadav
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Sneharth Yadav ने कहा…

Can you please share there phone number , i want to subscribe it.

Sumant Kumar Yadava Jaura ने कहा…

यह पत्रिका मुझे चाहिए

Sneharth Yadav ने कहा…

Anybody having phone number for the office. Kindky share.

Sneharth Yadav ने कहा…

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